वानस्पतिक नाम – Holarrhena antidysenterica (हौलेरीना एण्टीडिसेण्टिरका)
सामान्य नाम – कड़ा
कुल – Apocynacae (एपोसाइनेसी)
स्वरूप – 30-40 फुट ऊँचा वृक्ष
गुण धर्म -
गुण - लघु, रूक्ष
रस - तिक्त, कषाय
वीर्य- शीत
विपाक - कटु
प्रभाव - कफ, पित्तशामक
अग्निदीपक, कुष्ठहर, अर्श नाशक, अतिसारहर, रक्तदोषहर
प्रयोज्य अंग - त्वक, बीज
मात्रा – चूर्ण – 3-5 ग्राम
विशिष्ट योग - कुटजारिष्ट, कुटज पर्पटी, कुटज घन वटी आदि।
प्रयोग –
अग्नितिसार की किसी भी अवस्था मे यह बहुत उपयोगी है। रक्तातिसार व पुराने अतिसार में इसे इसबगोल, एरण्ड या इन्द्रयव से देते हैं।
इन्द्रयव व कटुका का क्वाथ तण्डुलाम्बु से देने पर पित्तज ज्वर मे लाभप्रद है।
रक्तार्श में कुटज त्वक् क्वाथ शुण्ठी से लेने पर लाभप्रद है।
कुटज का क्वाथ सभी त्वक् विकारों में लाभप्रद है।
इसका लेप आमवात व संधिशोथ में लाभप्रद है।