वानस्पतिक नाम – Vitex negundo (वाइटेक्स निगण्डो)
सामान्य नाम – सम्हालू
कुल – Verbenaceae (वर्बिनेसी) - निर्गुण्डी कुल
स्वरूप – 6-12 फुट ऊँचा उग्रगन्धि गुल्म
गुण-कर्म:-
गुण – लघु, रूक्ष
रस – कटु, तिक्त
वीर्य – उष्ण
विपाक – कटु
प्रभाव – कफवातशामक
*कृमिहर *कुष्ठहर *रूजाहर
प्रयोज्य अंग – पत्र, मूल, बीज
मात्रा – पत्र स्वरस – 10-20 मि.ली.
मूलत्वक् चूर्ण – 3-5 ग्राम
बीज चूर्ण – 6-12 रत्ती
प्रयोग-
शोथयुक्त सभी व्याधियों में लाभप्रद, फुफ्फुस शोथ, उदरावरण शोथ, संधि शोथ आदि में इसका अन्तर्बाह्य प्रयोग करते हैं।
प्रतिश्याय व गले के शोथ में पत्तों का क्वाथ, छोटी पिप्पली, घुड़वच के साथ पिलाते हैं।
निर्गुण्डी मूल चूर्ण को तैल के साथ लेने से संधि शूल व कटि शूल में लाभ होता है।
कफज कास में पंचांग के स्वरस में घृत मिलाकर प्रयुक्त करते हैं।
आमवात में निर्गुण्डी व तुलसी स्वरस अजवायन के चूर्ण के साथ लेते हैं।
मूल व पत्र स्वरस से सिद्ध तेल का शोथ, व्रण, नाड़ीव्रण, कुष्ठ, अपची व गण्डमाला में व्यवहार किया जाता है।