वानस्पतिक नाम – Solanum indicum Linn. - सोलेनम इण्डिकम
सामान्य नाम – बृहती, सिंही, बड़ी कटेरी, बनभंटा
कुल – कण्टकारी-कुल (Solanaceae -सोलेनेसी)
स्वरूप – इसका क्षुप बैंगन के सदृश 3-6 फुट ऊँचा अनेक शाखा-प्रशाखायुक्त, कंटकित होता है।
गुण-धर्म:-
गुण - लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
रस - कटु
वीर्य - उष्ण
विपाक - कटु
प्रभाव - कफवातशामक
प्रयोज्य अंग - मूल, फल
विशिष्ट योग - बृहत्यादि क्वाथ, बृह्त्यादिगण, दशमूलारिष्ट
मात्रा – क्वाथ 40-80 मि.लि.; चूर्ण 3-6 ग्राम.
प्रयोग –
1. दोषप्रयोग - यह कफवातिक विकारों में प्रयुक्त होता है।
2. संस्थानिक प्रयोग-बाह्य - वेदनायुक्त अवयवों पर लेप करते हैं। बृहतीफल, हरिद्रा और दारुहरिद्रा को एकत्र पीसकर योनिपूरण करने या धूम्र देने से योनिकण्डू आराम होता है।ध्वजभंग में शिश्न पर इसके बीजों का लेप करते हैं।
3. इन्द्रलुप्त रोग में इसका रस सिर में लगाते हैं।
4. आभ्यन्तर - पाचनसंस्थान-यह अग्निमांद्य, ग्रहणी, उदरशूल, अरूचि और कृमिरोग में प्रयुक्त होता है। इसके फल का रस गोघृत और मधु के साथ देने से वमन रुकता है।
5. रक्तवहसंस्थान - हृद्दौर्बल्य, शोथ तथा रक्तविकारों में उपयोगी है। इसके बीजों के चूर्ण का नस्य लेने से संज्ञानाश दूर होता है।
6. श्वसनसंस्थान - प्रतिश्याय, कास, श्वास, स्वरभेद एवं हिक्का रोगों में यह अतीव लाभकर है।
7. मूत्रवहसंस्थान - मूत्रकृच्छ् और अश्मरी में प्रयुक्त होता है।
8. प्रजननसंस्थान - यह रजोरोध, कष्टप्रसव एवं सूतिकारोग में उपयोगी है। वाजीकरणार्थ भी प्रयुक्त होता है।
9. त्वचा - चर्मरोगों में प्रयुक्त होता है।
10. तापक्रम - ज्वरों में इसका प्रयोग करते हैं।