सम्पादन : भीष्म कुकरेती
मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग
( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages)
गढ़वाली भाषा में संधि
डा भवानी दत्त उप्रेती ने जहाँ कुमाऊंनी भाषा में दो प्रकार की संधियों के बारे में पुष्टि की वहीं अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वा ळी में तीन प्रकार की संधियों के उदहारण सहित व्याखा की है
श्रीमती रजनी कुकरेती ने संधियों का विभागीकरण न कर केवल उदहारण दिए हैं.
बहुगुणा अनुसार की संधि इस प्रकार हैं
१- स्वर संधि
२- व्यंजन संधि
३- वि:सर्ग संधि
गढ़वाली में स्वर संधि
गढ़वाली भाषा के महानतम विद्वान् व लेखक अबोध बंधु बहुगुणा ने स्वर संधियों में किया
१- स्वर संधि
अ- दीर्घ स्वर संधि :
झट +आदि = झट्टदि
झट् + ट् = झट्ट
गंध + अक्षत = गंधाक्षत
ब- गुण स्वर संधि:
सुर +इंद्र = सुरेन्द्र
सुख + इच्छा = सुखेच्छा
बड़ो + उड़्यार = बड़ोड़्यार
स- वृद्धि स्वर संधि
जण + एक = जणेक, जणैक
तंत = उखद = तंतोखद
द- यण स्वर संधि
भैजी + आदि = भैज्यादि
बौजि + औरु = बौज्योरू
इ- अयादी चतुष्टय संधि
ने + अन = नयन
पो + इतर = पवितर
२- गढ़वाली में व्यंजन संधि
वाक् + ईस
दिक् + गज = दिग्गज
३- गढ़वाली में विस:र्ग संधि
दु: + कर्म = दुस्कर्म
अध्: + गति = अधोगति
शुरुवाती आधुनिक गढ़वाली के कवि चंद्रमोहन रतूड़ी की कविताओं में कुछ विशेष संधि युक्त शब्द भी मिलते हैं
पैर + टेक = पैर्टेक
बढ़दि + और = बढ़द्यौर
बुंदुन + यख + इंद्र= बुंदुन्यखेंद्र
मृग + और + अन्द्कार = मृगौरंधकार
आतुर - और + स्वास = आतुरोर्स्वास
गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन
गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन भी होता है और कई एक जैसे उच्चारण वाले शब्दों की रचना हो जाती है. श्रीमती रजनी कुकरेती ने निम्न उदहारण दिए हैं
लिखित रूप
उच्चारण
वास्तविक अर्थ
तक्खौ
तख़ औ
तखौ
तखै
तख ऐ
तख आ
तखाS
स्यै
स्वी
वै
वी
त्वी
जखी
तखी
सीतै
मिनी
तन्नि
रामी
तखौ
तखौ
तखौ
तखै
तखै
तखा
तखा
स्यै
स्वी
वै
वी
त्वी
जखी
तखी
सीतै
मिनी
तन्नि
रामी
तख़ च
तख़ औ
तख़ कु
तख कि
तख ऐ
तख आ
तख का
स्या इ
स्यू इ
वा इ
वु इ
तू इ
जख इ
तख इ
सीता इ
मिं इ
तन इ
राम इ
रामि का अर्थ गाय/भैंस का भूतकाल का राम्भना भी होता है यथा या गौड़ी किलै रामि होली ?
संदर्भ:
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
कुमाउंनी भाषा संधि
संधि दो ध्वनियों का जुड़ कर एक हो जाना है.
कुमाउंनी में दो तरह की संधियाँ पाई जाती हैं -
अ- स्वर संधि
ब- व्यंजन संधि
स्वर संधि के उदहारण
१- आन , इन, उन -आदि का प्रयोग
च्याला = आन = च्यालान (आ+ आ = आ)
चेलि + इन = चेलिन (इ+ ई = ई )
गोरु = उन = गोरून (उ + ऊ = ऊ )
२- औट का प्रयोग
ओ + ओ = औ
तलौटो ( तलो + औ + ओ )
डलौटो ( डलो +औट +ओ )
व्यंजन संधि के उदाहरण
१- यदि पहले पद का ग् हो और दूसरा पद आदि ध्वनि ह् हो तो ग् और ह् = घ
आग् + हाल्नो = अघानो
२- लघु रूपता
अ- रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित के पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक रुपिमो के परस्पर जुड़ने पर -
तीन + बीस = तेईस
चार = बीस = चौबीस
ब- महाप्राण 'ठ' के पश्चात ह्रस्व ह आने से जोड़ शब्द में ह लोप हो जाता है
कांठा +हाल्नो = कांठान्नो
स- पहले पद का द्वित व्यंजन के दुसरे व्यंजन के आदि नजन के जोड़ में कभी कभी द्वी तत्व नही रह जाता है
अन्न +जल = अंजल
द- नासिक्य स्पर्श युक्त संख्या वाचक विशेषणों में विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय अथवा स्वतंत्र रु से जुड़ने पर नासिक्य का लोप हो जाता है
तीन + बीस = तेईस
तीन + तीस =तैंतीस
ध- पूर्णांक गणनात्मक संख्या के साथ -गुण प्रत्यय जुड़ने से ध्वनि लोप है या कहीं ह्र्स्वी करण विद्यमान रहता है
१- तीन +गुनो= तिगिनो
चार + गुनो = चौगुनो
२- सात + गुनो =सतगुनो
आठ +गुनो = अठगुनो
न-- दो स्वतंत्र रूपिम समीप आंयें तो जुड़ने पर पहले के अन्त्य स्वर का लोप हो जाता है
गाड़ा+ ख्याता = गाड़ख्याता
गोरु + बकरा = गोरबकरा
ठुला + नाना = ठुल्नाना
प- यदि पहले पद का व्यंजनान्त और दुसरे पद का आदि व्यंजन समान हों तो तो एक का लोप हो जाता है
नाक = कटि =नकटि
नाक =कटो = नकटो
फ- ह्र्स्वीकरण और प्रतिस्पथान में लाघुरुप्ता हो जाती है
सात +ऊँ = सतूं
तेरा = ऊँ = तेरुं
भ- व्यंजन का अंत प्रतिपादक के उपरान्त यदि प्रत्यय आदी व्यंजन हो तो संयोग में प्रतिपादक व्यंजन ह्रस्व हो जाता है
कम + नि = कम्नि
म- ध्वनात्मक समानता -
रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित सीमा में गणनात्मक संख्यावाचक प्रतिपादक जैसे चालीस, तीस पहले उन जुड़ने से परवर्ती व्यंजनध्वनि लोप हो जाती है
उन + चालीस-= उन्तालिस (उनचालीस)
गं - विस्तार
योगिक क्रिया में विस्तार हो
द्वि + सरो = दुसोरो
तीन + सरो = तिसोरो