सम्पादन : भीष्म कुकरेती...
मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग
( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of Mid Himalayan Languages
गढ़वाली भाषा में विशेषण विधान
गढ़वाली भाषा में विशेषण विधान
Adjectives in Garhwali Language
- अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वाली में चार प्रकर के विशेषणों की व्याख्या की है
1-गुणवाचक
छाल़ो,
काजोळ,
डर्खु ,
रमाळ,
सेल़ोमंद,
चलमलो,
हौन्सिया,
लमडेर,
सवादी,
चकडैत,
आदि
२- परिमाण वाचक -
बिंडी,
बिंडे, उ
थगा,
इथगा
इच्छि ,
इच्छे ,
कति ,
आदि
३- संख्या वाचक
एक बीसी,
दुयेक, दुय्ये ,
चारेक
आदि
४- संकेतात्मक -
इ,
उ,
कति
आदि
गढ़वाली भाषा में विशेषण विधान
Adjectives in Garhwali Language
रजनी कुकरेती ने गढ़वाली विशेषणों को पांच भागों में बांटा है
१- सार्वनामिक विशेषण
२- गुणवाचक विशेषण
३- संख्या वाचक विशेषण
४- परिमाण वाचक विशेषण
५- विशिष्ठ विशेषण
- १- सार्वनामिक विशेषण
जो सर्वनाम अपने सार्वनामिक रूप में संज्ञा की विशेषता बताते हैं और रजनी कुकरेती ने उन्हें चार भागों में विभाजित किया है
१ क- निश्चय अथवा संकेतवाचक - वु, या
१ख - अनिश्चय वाचक - कै, कु
१ग - प्रश्न वाचक - क्या, कै
१घ- सम्बन्ध वाचक - जु, सौब
२- गुणवाचक विशेषण
रजनी ने लिखा है कि संज्ञा के गुण दोष रंग, काल, स्थान, गंध, दिशा, अवस्था, आयु, दशा एवम स्पर्ष का बोध कराने वाले शब्द गुण वाचक विशेषण कहलाते हैं जैसे..............
तातु
पुरणि
चिलखण्या
मलमुलख्या
चिफळण्या
रजनी कुकरेती अपने नोट में लिखती हैं
अ- जब गुण वाचक विशेषण लुप्त होते हैं तो उनका पर्योग संज्ञा समान होता है
सयाणा ठीकि बुल्दन
ब-- गुणवाचक विशेषण के बदले अधिकांस संज्ञाओं व सर्वनामों के साथ कु/कि /का एवम रि/रा प्रस्र्गों के संयोग से बाना रूप प्रयुक्त होता है जैसे
घर्या घी ,
बण्या तैडु
- ३- संख्या वाचक विशेषण
जो विशेषण संज्ञा व सर्वनाम कि संख्या का बोध कृते हैं उन्हें संख्या वाचक विशेषण कहते हैं
क- निश्चित संख्यात्मक जैसे
छै
चार
ख- अनिश्चित वाचक
हजारु
लक्खु
रजनी ने स्पष्ट भी किया कि संख्याएं सात प्रकार कि होती हैं
1)गणना वाचक- दस, बीस, पचास
2)अपूर्ण संख्या वाचक - अधा, त्याई, सवा
3)क्रमवाचक - पैलू, दुसरू
4)आवृति वाचक - दुगुणु , तिगुणु
5)समुदायवाचक - चौकड़ी , तिकड़ी, जोळी (जोड़ी)
6) सम्मुचय वाचक - दर्जन, चौक बिस्सी, सैकड़ा
7) प्रत्येक बोधक - एकेक , द्विद्वी , हरेक,
- ४- परिमाण वाचक विशेषण
रजनी ने परिमाण वाचक संज्ञाओं को दो भागों में विभाजित किया
४ क- निश्चित परिमाण वाचक विशेषण जैसे
तुरांक,
पथा
खंक्वाळ
४ ख- अनिश्चित परिमाण वाचक विशेषण जैसे
बिंडि
थ्वड़ा
बिजां
भौत
४ग- समासयुक्त परिमाण वाचक विशेषण जैसे
थ्वड़ा-भौत
कम-जादा
४घ- आवृति परिमाण वाचक विशेषण जैसे
भौत- भौत
जरा-जरा
- ५- विशिष्ठ विशेषण
रजनी कुकरेती ने कुछ विशिष्ठ विशेषणों का भी उल्लेख किया है यथा-
द्वियाद्वी
तिन्या तिन्नी
चर्याचरी
न्यूनता, व आधिक्य बोधक विशेषण
अबोध बंधु बहुगुणा ने यद्यपि अपने बिभाजन मे न्यूनता व आधिक्य बोधक विशेषणों को अलग नही बताया किन्तु लिखा की गढ़वाली मे कई विशेषण गुण की न्यूनता व आधिक्य प्रकट करते हैं . यथा
झंगरेणो- झंगरेणो सी
ललांगो -लाल
भली मनखेण आदि
रजनी कुकरेती ने भी लिखा की गढ़वाली मे विशेषण की उत्तरावस्था एवम उत्तमावस्था बताने वाले शब्द प्रयोग नही किये जाते हैं
किन्तु रजनी स्पष्ट करती हैं कि गढ़वाली मे इस उद्देश्य हेतु पर-विशेषणों का उपयोग किया जटा है.
जैसे....
उच्चू, वैसे उच्चू , हौरू उच्चू, सबसे उच्चू, निसु, हौर निसु आदि
आगे रजनी स्पष्ट करती हैं कि विशेषणों के मध्याक्षरों पर संहिता यथा लम्म+ बु , छोट्टु , मत् + थि से गुण कि अधिकता प्रकट कि जाति है।
गध्वलि मे द्विरुक्ति जैसे -
काळु-काळु,
भूरु -भूरु एवं भूरण्या
गढ़वाली भाषा में विशेषण बनाने कि नियम
१- संज्ञा शब्दों के अंत में वल़ो, वळी, दरो , दरी , जोड़ने से विशेषण बनते हैं जैसे
भारावळी, गढवळी
जसपुर वल़ो , कुमाऊ वल़ो
हैंसदरि
पढंदरो
२- संज्ञा शब्दों के अंत में या जोड़ने से यथा
जस्पुर्या, दिपरग्या , इस्कुल्या , सरबट्या
३- संज्ञा के अंत में आन, वान या मान जोड़ने से
भग्यान,
बुद्धिमान
४- संज्ञा शब्द के अंत में री जोड़ने से , जैसे
पुजारी , फुलारी, जुवारी
५- क्रिया शब्दांत में दो या दी जोड़ने से
उठदो, बैठदो
खांदी -पींदी
अबोध बंधु ने सरलतम तरीका अपनाया वहीँ रजनी कुकरेती ने नियमों को अधिक स्पष्टता के साथ तालिका बद्ध किया है और बगैर रजनी के उद्धरणो के गढवाली व्याकरण /विशेषणों का तुलनात्मक अध्ययन पूरा नही माना जा सकता है
३-१- गढवाली में मूल विशेषण :
१-क खाने का सवाद -
मिट्ठू, गळगल़ू , घळतण्या , सळसल़ू ,
१ख मनुष्य प्रकृति -
अळगसि, फोंद्या, क्वांसी, मुन्जमुन्जू, चंट
१ग- द्रव्य विशेषताएं -
चचगार, ठंडो, तातु , खिडखिडु
१घ- पेड सम्बन्धी -
कुंगळी, झपनेळी
१च- मात्र -
छौंदु , बिंडी, बेजां, इच्छी
- सर्वनामो से विशेषण बनाने के नियम
- सर्वनाम
- विशेषण
मूल सर्वनाम
मै/मि
तख
त्वे
कख
जख
हम
कु
वु /वा
पुल्लिंग एक वचन
म्यार/मेरु/मेरो
तखौ
तेरो/ तेरु /त्यारु/त्यारो
कखौ
जखो
हमारू/ /हमारो
कैकु
वैकु/वैको
स्त्री एक वचन
मेरि
तखै
तेरी
कखै
जखै
हमारि
कैकी
वींक/वींकी
बहुवचन ,
मेरा
तखा
त्यारा/तेरा
कखा
जखा
हमारा
कैका
वीन्का
अबोध बंधु ने सरलतम तरीका अपनाया वहीँ रजनी कुकरेती ने नियमों को अधिक स्पष्टता के साथ तालिका बद्ध किया है और बगैर रजनी के उद्धरणो के गढवाली व्याकरण /विशेषणों का तुलनात्मक अध्ययन पूरा नही माना जा सकता है
३-१- गढवाली में मूल विशेषण :
१-क खाने का सवाद -
मिट्ठू, गळगल़ू , घळतण्या , सळसल़ू ,
१ख मनुष्य प्रकृति -
अळगसि, फोंद्या, क्वांसी, मुन्जमुन्जू, चंट
१ग- द्रव्य विशेषताएं -
चचगार, ठंडो, तातु , खिडखिडु
१घ- पेड सम्बन्धी -
कुंगळी, झपनेळी
१च- मात्र -
छौंदु , बिंडी, बेजां, इच्छी
- क्रिया से विशेषण बनाने के कुछ उदाहरण
क्रिया --------------------------------विशेषण
खंडऔण -----------------------खंडऔण्या
बौल़ेण ---------------------------बौळया
- कुमाउंनी में विशेषण विधान (Adjectives in Kumauni Language)
संज्ञा की भांति कुमाउंनी में विशेषण दो वचनों व लिंगो से प्रयुक्त होते हैं
कुमाउंनी में विशेषण निम्न प्रकार से पाए जाते हैं
१- गुणवाचक विशेषण
२- प्रणाली वाचक विशेषण
३-परिमाण वाचक विशेषण
४-संख्यावाचक विशेषण
५- सार्वनामिक विशेषण
कुछ विशेषण रूपान्तरयुक्त होते हैं व शेष रूपांतर मुक्त होते हैं
१- कुमाउंनी में गुणवाचक विशेषण
१ अ- रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण
रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण मूल प्रतिवादक व व्युत्पुन प्रतिपादक दोनों होते हैं
मूल प्रतिपादक रुपंतारमुक्त गुण वाचक विशेषण :
मूल प्रतिपादक गुण वाचक विशेषण अधिकतर व्यंजनान्त तथा लिंग-वचन से अप्रभावित होते हैं
दक्ष (चतुर )
च्ल्लाक (चालाक )
शुन्दर (सुन्दर)
व्युत्पन्न प्रतिपादक रुपंतारमुक्त गुण वाचक विशेषण
गुलिया (मीठा)
मरियल ( दुर्बल )
१ब- रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण
रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण लिंग व वचन अनुसार परिवर्तित होते हैं
1 रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण में पुल्लिंग एकवचन अविकारी कारक में ओ (उड़- निको, शारो ) , पुल्लिंग बहुवचन में आ ( निका, शारो ) , तथा स्त्रीलिंग में इ (निकी, शारी ) जुड़ता है
१स- गुणवाचक विशेषण की तीन अवस्थाएं
१- सामान्य - निको (अच्छा)
२- अधिक्य वोधक- वी है निको (उससे अच्छा)
३-अतिशय वोधक - शब् है निको (सबसे अच्छा )
२- कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण
कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण में दो प्रकार के विशेषण होते हैं
१- पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण - पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण के रूप एक वचन व कारको के अनुसार व्यवहार करते हैं
पुल्लिंग एक वचन में इस प्रकर के विशेषणों में अंत में -ओ तथा बहुवचन में -आ प्रत्यय लगता है . जैसे
इशा (ऐसा), इशा (ऐसे);
उशो (वैसा) , कशो
उशा (वैसा) , कशा
२- स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण - स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण दोनों वचनों व कारकों में अपरिवर्तित रहते हैं
इशी (ऐसी)
उशी (वैसी)
कशी (कैसी)
३- कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण
कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण दो प्रकार के पाए जाते हैं
३ अ पुल्लिंग परिमाण वाचक विशेषण
३ ब - स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण-
स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण मूल प्रतिपादक के अतिरिक्त व्युत्पन्न प्रतिपादक भी है
मूल प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण - शब , कम, भौत
व्युत्पन्न प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण -
अत्थ्वे (पूरा का पूरा) ,
शप्पै (सब के सब )
मनें (थोड़ा ), मणि (थोडा ) आदि .
इस प्रकार के विशेषण रूपान्तर मुक्त हैं . किन्तु रूपान्तर युक्त परिमाण वाचक विशेषण में लिंग, वचन व कारक के अनुसार परिवर्तन का विधान है .यथा
इतनो (इतना )
इतना (इतने )
इतुनी (इतनी )
उतुनो (उतना )
उतुना (उतने )
उतनी (उतनी )
४- कुमाउनी में संख्या वाचक विशेषण
संख्या वाचक विशेषण के दो भेद हैं
४अ- अनिश्चित वाचक संख्या वाचक विशेषण -
गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण के साथ विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय लगाकर अनिश्चय संख्या वाचक विशेषण की प्राप्ति होती है
शैकड़ों
एकाध
दशेक
शौएक
कुमाउंनी में कभी कभी गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण की जगह संज्ञा का प्रयोग होता है . जैसे
बर्शेक
दिनेक
कुछ केवालात्मक विशेषण भी संख्या वाचक विशेषण की कोटो में पाए जाते हैं . यथा
एकोलो-दुकोलो
एकाला-दुकाला
इकली- दुकली
४ब- निश्चय संख्या वाचक विशेषण
निश्चय संख्या वाचक विशेषण सात कोटि के होते हैं १- गणना वाचक, २- क्रम वाचक विशेषण , ३- गुणात्मक वोधक , ४- समूह वोधक, ५- ५- प्रत्येक बोधक ६-ऋणात्मक बोधक ७- केवालात्मक
१- गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
१अ -पूर्णांक बोधक : पूर्णांक बोधक दो प्रकार के होते हैं
क- मूल प्रतिपादक - एक, द्वी, तीन. चार, पाँच, छै शात
ख- व्युत्पन्न - उन्नीश , उन्तीश , द्वी शौ, दश हजार
१ब- अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण -
अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण दो प्रकर के होते हैं
ब क- मूल प्रतिपादक
पौ
आद्धा
पौन
शवा
डेढ़
बख- व्युत्पन्न अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण
पौनेद्वी
शवाद्वी
शाढ़े तीन
२- क्रम वाचक विशेषण
क्रम वाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
१-२अ- रूपांतर उक्त क्रम वाचक विशेषण
पैञलि (पहली ) ,पैञलो (पहला ),पैञला (पहले )
दुशरि, दुशोरी , दुशारा
तिशरि , तिशोरी, तिशारा
चौथि , चौथो, चौथे
२ब् रूपान्तर मुक्त क्रम वाचक विशेषण
रूपान्तर मुक्त कर्म वाचक विशेषण मे पाञ्च के बाद कर्म द्योतक विशेषणों मे कर्म द्योतक पर-प्रत्यय के रूप मे ऊँ रहता है व दोनों लिंगों, कारकों व वचनों में अपरिवर्तित रहता है
पंचुं
छयुं
शतुं
अठुं
नवुं
दशुं
शौउं
हजारूं
३- गुणात्मकता वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
गुणात्मकता वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण के साथ गुणात्मकता बोधक प्रत्यय -गुन तथा लिंग वचन द्योतक प्रत्यय -ओ (पुल्लिंग एक वचन) , -आ, (पुल्लिंग बहुवचन ) तथा -इ (स्त्रीलिंग) संलग्न रहते हैं .
दुगुनो, दुगुना ,दुगुनि
तिगुनो,तिगुना, तिगुनि
स्त्रीलिंग एक वचन व बहुवचन में एक रूप होता है और -इ प्रत्यय ही रहता है
४- समूह वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण के साथ प्रत्यय -ऐ तथा ऊँ जोड़ने से समूह वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण रूप बनता है
दिय्यै
तिन्नें (न्न + ऐं )
पचाशें
द्शुं
बीशुं
५- प्रत्येक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
प्रत्येक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में कुछ मूल प्रतिपादक हैं तथा शेष व्युत्पन्न प्रतिपादक हैं
मूल प्रतिपादक - हर (प्रत्येक) , हर मैश (प्रत्येक व्यक्ति )
व्युत्पन्न प्रतिपादक - पूर्णांक गणनात्मक वाचक विशेषणों की द्विरुक्ति से व्युत्पन्न प्रतिपादक बनते हैं - एकेक, चार- चार
अपुर्नात्मक गन्ना वाचकों की द्विरुक्ति से भी ब्युत्पन्न प्रतिपादन बनते हैं - आधा -आधा , पौवा -पौवा
६- ऋणात्मक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
इस प्रकार के विशेषणों दो गणनात्मक संख्या वाचक विशेषणों के मध्य काम लगाने से बनते हैं . यथा द्विकम पचाश, पांच कम शौ
७- केवालात्मक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
केव्लात्मक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
रूपांतर युक्त - एकोलो , एकाला , एकली
रूपांतर मुक्त - इन विशेषणों के साथ -ऐ प्रत्यय जुड़ा होता है पर समूह बोधक से भिन्न भी है जैसे -एक्कै (केवल एक ), द्विय्ये (केवल दो), तिन्नैं
विशेषण रूप सारिणी
चूँकि विशेषणों के लिंग बोधक पर प्रत्यय विशेष्य के लिंग बोधक पर प्रत्ययों के अनुसार रुपतारिंत होते हैं इसलिए रूपांतरणो पर वाक्य स्तर पर विचार किया जाता है.
१- ओकारांत संज्ञाओं की भांति ही वाक्यन्तार्गत ओकारांत विशेषण सर्वत्र पुल्लिंग बोधक होते हैं
२- इकारांत विशेषण सर्वत्र स्त्रीलिंग होते हैं
३- व्यंजनान्त पुल्लिंग संज्ञाएँ एकवचन में -ओ तथा बहुवचन में - आ प्रत्यय्युक्त विशेषणों द्वारा पुर्वगामित होती हैं
४- आकारांत , एकारांत तथा ऐकारांत संज्ञाओं (दोनों लिंग) के विशेषणों में पुल्लिंग में -ओ व आ और स्त्रीलिंग में -इ हो जाते हैं
५- यद्यपि बहुत थोड़ी ही पुल्लिंग संज्ञाएँ इकारांत होती हैं इस प्रकार की इकारांत संज्ञाओं के विशेषण में अन्त्य -ओ व -आ पुल्लिंग में होता है
६- -उ, -ए, -औ अन्त्य्युक्त संज्ञाएँ जो केवल पुल्लिंग होती हैं इनके साथ भी विशेषणों में - एकवचन -ओ तथा बहुवचन में -आ रहता ह
प्रातिपदिक मूल
काल
नान
निक
-एक वच.पु.
कालो
नानो
निको
बहु .वच.पु
काला
नाना
निका
स्त्रीलिंग , एक.बच, तथा बहु.वच.
कालि
नानि
निकि
७- पुल्लिंग ओकारांत , इकारांत, उकारांत , इकारांत , ऐकारांत , औकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण ओकारांत रहते हैं
८- पुल्लिंग बहुवचन में आकारान्त तथा स्त्रीलिंग दोनों वचनों में व्यंजनान्त आकारान्त, एकारांत, ऐकारांत, तथा ऐकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण इकारांत होते हैं
निकि बात
निको घर
ठुलि माला
ठुलो ब्याला
नानि चेलि
नानो आदिम
काचो आरू
ठुलो चौबे
नानि मै
निको दै
ठुलि शै
पाको केलो
मंदों द्यौ
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि ---
कुमाउनी में विशेषणों के पुल्लिंग व स्त्रीलिंग संज्ञाओं के साथ रूपान्तर युक्त आबद्ध रूपों -ओ, -आ, (क्रमश: पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक वचन व बहुबचन ) एवम -इ (स्त्रिलिन्ग एक वचन में ) से युक्त होते हैं
विशेषण लिंग बोधक रूपिम
{-ओ} - विशेषण पुल्लिंग बोधक रूपिम के दो रूप होते हैं -ओ व -आ
क- -ओ : विशेषण पुल्लिंग बोधक ; एक वचन ओकारांत विशेषण के अन्त्य रूप में आता है
कालो
नानो
शारो
ख- - आ: विशेषण पुल्लिंग बोधक अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है
श्याता
ठुला
चुकिला
क्यारा
{-इ} - इ विशेषण स्त्रीबोधक है . इ केवल स्त्रीबोधक है जो स्त्रीवाचक विशेषणों में अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है
ठुलि
निकि
कालि
शारि
विशेषण , वचन व कारक रूप
कुमाउंनी में वचन, प्रत्ययों का लिंग वाचकों से सम्बन्ध होता है
१- अविकारी करक में -ओ युक्त प्रत्यय एक वचन का बोधक है , यथा निको और -आ प्रत्यय युक्त बहुवचन का बोधक है , यथा निका
२- -इ प्रत्यय लिंग निर्णय स सम्बंद्ध है और एक वचन व बहुवचन दोनों में समरूप प्रयुक्त होता है , यथा निकि
लुप्त विशेषणों में कारक
विशेषण प्रातिपदिक
- पुल्लिंग
- स्त्रीलिंग
प्रतिपादक
ओकारांत
इकारांत
उदहारण
अविकारी
ओ
इ
.
कालो
भौत
नानि
बड़िया
विकारी
आ
इ
.
काल़ा
भौत
नानि
बड़िया
अविकारी
आ
इ
.
काल़ा
भौत
नानि
बड़िया
विकारी
आन
ईन
.
कालान
भौतान
नानीन
बड्यान
- विकारी कारक
निको
कर्ता कारक (ले
कर्मकारक (आश )
करण
सम्प्रदान
अपादान
छटी
अधिकरण
सम्बन्ध
एक वचन
निकाले
निकाश
निकाक्पिति
निकाखिन
निकाबटे
निकाको
निका
निक-आ !
बहुवचन
निकानले
निकान
निकानक्पिति
निकानखिन
निकानबटे
निकानको
निकान में
निकौ !
इसी प्रकार व्यंजनान्त विकारी बहु वचन में ऊन के पश्चात् कारक परसर्ग जुड़ते हैं
ञ = अनुस्वरीक बिंदु
नेपाली विशेषण विधान-Nepali Adjectives
प्राय: नेपाली में विशेषण शब्द -ओ से अंत होते हैं . यथा
ठुलो (बडी)
पुरानो (पुराना/पुरानी)
लामो (लम्बा)
किन्तु वचन व लिंग के अनुसार शब्दांत में स्वर बदल जाते हैं .यथा
नेपाली में संकृत की तरह उभयलिंगी विशेषण का भी प्रयोग होता है, जैसे
नेपाली में संकृत की तरह उभयलिंगी विशेषण का भी प्रयोग होता है, जैसे
असल केटो
असल केटी
असल केटोहरु
असल केटीहरु
नेपाली भाषा में तुलनात्मक विशेषण बि पाए जाते हैं
नेपाली विशेषण सम्बंधित कुछ नियम
१- संज्ञा या सर्व नामों पर इनो या इलो लगाकर विशेषण बनाये जाते हैं , जैसे
रस= इलो = रसिलो
हान्स =हँसिलो
२- विशेषण संज्ञा से पाहिले लगाये जाते हैं , जैसे
पुरानो मंदिर
राम्रो शहर
३- दशा सूचक विशेषण प्रकार हैं
यो, (यो किताब )
त्यो ( त्यो आइमाई )
४- सम्बन्ध बोधक विशेषण
मेरो (मेरा)
हाम्रा (हमारा )
तिम्रो (तुम्हारा )
विशेषण संज्ञा के हिसाब से आचरण करते हैं
५- संज्ञा के वचनों के हिसाब से विशेषण भी वचन बदल लेते, जैसे
ठुलो राजा ( एक वचन संज्ञा व एक वचन विशेषण ) व ठुला राजाहरू ( बहुवचनीय संज्ञा व विशेषण )
पुरानो मंदिर व पुराना मंदिरहरू
६- जब कोई विशेषण दोहराया जाता है तो इसका अर्थ है की यह बहुवचन है
त्यो पसल मा असल असल माल छ
अन्य उदहारण
सानसाना (छोटा )
ठुलठुला ( बड़ा )
७- तुलनात्मक स्तिथि में कोई स्मबंध्कार्क शब्द प्रयोग होता है जैसे भन्दा
मुंबई दिल्ली भन्दा ठुलो छ ( मुंबई दिल्ली से बड़ा है )
सब का भी प्रयोग होता है
शहर को सब पसल बन्द छ ( शहर की सब दुकाने बन्द हैं )
८- प्रश्नात्मक विशेषणों में
कहां (कहाँ ) , के (क्या ) , कौं (कौं), कति जैसे विशेषणों का प्रयोग होता है