क्रिया विशेषण जैसे कि नाम ही बता रहा है वह शब्द होते हैं जो कि क्रिया की विशेषता बताते हैं .गति ,ढंग आदि की जानकारी यह बताते हैं, जैसे कि हिंदी में "राम तेज दौड़ रहा है." वाक्य में 'तेज' शब्द 'दौड़ना ' क्रिया की विशेषता बता रहा है ,इसीलिए वह क्रिया विशेषण है. आइये ऐसे ही कुछ गढ़वाली के क्रिया विशेषण सीखते हैं :

गढ़वाली में क्रिया विशेषण

  • धीरे : मठु

  • तेज : तेज

  • ढंग से : अक्वे

  • वाक्य प्रयोग :

  • धीरे धीरे चलो .

  • मठु मठु हीटो.

  • ठीक से गाड़ी चलाओ.

  • अक्वे गाड़ि चल्यादी .

कुमाऊँनी सर्वनाम (हिंदी सर्वनाम )

  • खाण(खाना ) जाण(जाना ) पढण(पढ़ना)

  • मि (मैं ) खान्दु जान्दु पढन्द

  • तु (तू ) खांन्द जान्द पढन्द

  • तुम(आप/तुम) खन्दो जान्दो पढदो

  • उ(वह) खान्द जान्द पढद

  • हम(हम सब ) खन्दो जन्दो पढदो

  • तुम(तुम सब ) खान्दो जान्दो पढदो

  • उ(वे सब) खन्दी जन्दी पढदी


गढ़वाली भाषा में अनगिनत क्रियापद हैं।

  1. जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

  • हरचण - खोना, गंवाना;

  • बुजण - बंद होना;

  • घटण - कम होना;

  • घैंटण - गाढ़ना;

  • बाण - हल लगाना;

  • बुतण - बीज बोना;

  • बोकण - बोझ उठाना;

  • जग्वालण - इंतज़ार करना;

  • ग्वड़ण - कमरे में बंद करना;

  • तचण - गर्म होना;

  • खैंडण - मिलाना, घोटना;

  • बिरौण - अलग करना;

  • मलासण - सहलाना;

  • सोरण - झाड़ू लगाना;

  • लोसण - घसीटते हुए ले जाना;

  • लुच्छण - जबरदस्ती छीन लेना;

  • लुकण - छिपना;

  • संटौंण - परस्पर विनिमय करना;

  • सनकौण - संकेत करना;

  • तड़कण - दरार पड़ना;

  • तड़कौण - किसी कीड़े द्वारा काटना;

  • बगण - बहना;

  • खतण - गिराना;

  • मठाण - मांजना;

  • हिटण - चलना;

  • उठण - उठना;

  • बैठण - बैठना;

  • लेखण - लिखना;

  • मिठाण - मिटाना;

  • रोण - रोना;

  • हैंसण - हंसना;

  • बिदकण - बिदकना;

  • दनकण - दौड़ना;

  • ठेलण - ठेलना;

  • बेलण - बेलना;

  • कटण - काटना;

  • पिसण - पीसना;

  • पकौण - पकाना;

  • उज्यौण - उबालना आदि।

2. गढ़वाली का बहुत-सा शब्द भण्डार वस्तुओं के टकराने, गिरने, रगड़ने, आघात करने आदि ध्वनियों से निर्मित हुआ है। दमडयाट, घमग्याट, छ्मणाट, खमणाट, भिभड़ाट, छिबड़ाट आदि ऐसी ही ध्वनियां हैं।


3. देशज शब्द का प्रयोग गढ़वाली की मुख्य विशेषता है जैसे - खुद, गुठ्यार, गोठ, छमोटु, ठुंगार, डांडा, धुंयाळ, पछिंडी, बिल्कुणु, ब्यखुनी, मौळयार, समलौण, स्वटिगि, स्वाणि, आदि ।


4. गढ़वाली भाषा में नए शब्द-निर्माण की विलक्षण शक्ति है। उदाहरणात :- ‘उच’ से उच्चा (ऊंचा), उचकौण (उकसाना), उचाट (विरक्ति), उच्याण (ऊंचा करना), उचणु (देवता की मनौती के लिए पूर्व में रखी गयी भेंट) आदि।


5. संज्ञा पदों से निर्मित कई धातु पदों में व्यवहारगत सरलता, भाव की चित्रात्मकता और बोधगम्यता की कुछ बानगी द्रष्टव्य है - जैसे ‘सिंग्याणु’ (सींग मारना), ‘धद्याणु’ (ऊंची आवाज देकर बुलाना), चुंगन्याणु (धीरे-धीरे एक-एक कण उठाकर खाना, क्वीनाणु (कोहनी से मारना), आदि अनेक नामधातु क्रियाएं गढ़वाली भाषा को समृद्ध करती हैं।


6. किसी विशिष्ट भाव या वस्तु की परुषता, कोमलता, कर्कशता, गत्यात्मकता, एवं गिरने या टकराने को व्यक्त करने के लिए गढ़वाली में ‘फच्च’, ‘फत्त’, ‘भट्ट’, छुस्स’, ‘छस्स’, ‘ठस्स’, ‘चस्स’, ‘फुस्स’, ‘छराक’, ‘तराक’, ‘छपछपी’, ‘उचमुची’, ‘घचपच’, ‘बबराट’, ‘भभराट’, ‘धकद्याट’ आदि अनेक अर्थपूर्ण शब्द हैं।


7. अनेक संज्ञा शब्दों में ‘आण’ प्रत्यय जोड़कर गंध के परिचायक शब्द बनाए जा सकते हैं जैसे - मछली से मछ्ल्याण, कुकुर से कुकराण, मूत्र से मुताण/चराण, घी से घियाण, दूध से दुधाण, तेल से तेलाण, ज्वर से ज्वराण, बकरियों से बकरयाण, मिटटी से मटाण, धुंए से धुंवाण, मोळ(गोबर) से मोळयाण आदि शब्द गढ़वाली भाषा में सूंघने की प्रवृत्ति के परिचायक हैं।


8. गढ़वाली भाषा में स्पर्श के विभिन्न अनुभवों को व्यक्त करने के लिए भी अलग-अलग शब्द मिलते हैं। जैसे - कड़कुड़ु (सूखा, प्राणहीन), गदगुदु (मोटा और मुलायम), गिंजगिजु (गीला), चिपचिपु (चिपकने वाला), चिफलु (फिसलने वाला) आदि।


9. स्वाद का बोधक करने वाले शब्दों में खट्टु (खट्टा), मिट्ठु (मीठा), लुण्यां (नमकीन), मर्चण्यां (अधिक मिर्च वाला), चटपुटु (चटपटा), घतघुतु (फीका), मळमुळ (बेस्वाद), फक्फुकु (कठिनाई से निगला जाने वाला), कर्च्याणा (जो कच्चा रह जाए) आदि शब्द आते हैं।


10. पर्यायवाची शब्द भाषा की समृद्धि के द्योतक होते हैं।

- किसी सीमित या कम जगह में जबरदस्ती कुछ डालने या घुसाने के लिए पुण्यांण, क्वचण, ठ्वसण, घुसाण, छिराण, धंसाण आदि कई पर्याय क्रियापद हैं।

- खाने के लिए ‘खाण’ के अतिरिक्त कई ऐसे शब्द हैं जो खाने की क्रिया को ही दिखाते हैं जैसे - भकोरण, घुळण, घटकण, घपकौण, सपोड़ण, चुंगन्याण आदि।

- शरारती बालक के व्यवहार और उसकी हरकतों के लिए बिग्ड्यूं/बिगच्यूं, खत्यूं, लड़खु, फुंडु धोळयूं आदि शब्द हैं।

- ज्यादा दिखावा या नाज-नखरे करने पर नखरयाट, छ्कनाट, नकच्याट, खकच्याट, लबड़ाट, चमच्याट आदि शब्द प्रचलन में रहे हैं।

- गुस्से को प्रकट करने के लिए डंगड्याण, चटगाण, घमकाण, भतकाण, चमकाण, लट्ठयाण, आदि शब्द उपलब्ध हैं।