अबोध बंधु बहुगुणा अनुसार संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे नाम का बोध हो. श्रीमती रजनी कुकरेती ने संज्ञा की परिभाषा देते लिखा कि किसी व्यक्ति , वस्तु , स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं जैसे ब्याला, थाळी, बजार, भलै आदि. वहीं डा भवानी दत्त उप्रेती ने संज्ञा की परिभाषा न देकर लिखा की संज्ञा से तात्पर्य संज्ञाएँ तथा संज्ञावत् प्रयुक्त होने वाले कृदंत रूपों से है.
डा भवानी दत्त ने लिखा है कि संज्ञा रूप-सारणी में संज्ञा मूल अथवा संज्ञा व्युत्पन्न प्रतिपादकों के पश्चात् लिंग, वचन, तथा कारक के अनुसार कुमाऊंनी भाषा में प्रत्यय जुड़ते हैं
डा भवानी दत्त उप्रेती ने लिखा कि अधिकाँश पुल्लिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक ओकारांत और स्त्रीलिंग संज्ञा व्युत्पन्न प्रातिपदिक इकारांत हैं . इस तरह पाते हैं कि कुमाउंनी भाषा में ओकारांत संज्ञाएँ सभी पुल्लिंग हैं. और कुमाउंनी में ओकारांत के साथ साथ अपवाद छोड़कर औकारान्त, उकारांत , तथा एकारान्त संज्ञाएं भी अधिकतर पुल्लिंग होती हैं. यद्यपि संख्या न्यूनतम है किन्तु कुमाउंनी भाषा में कुछ इकारांत संज्ञाएँ भी पुल्लिंग होती हैं. कुमाउंनी भाषा में लिंग दृष्टि से अकारांत, व्यंजनान्त, ऐकारांत और ऐंकारांत संज्ञाएँ पुल्लिंग व स्त्रीलिंग दोनों प्रकार कि पाई जाती हैं .
- कुमाउंनी भाषा में संज्ञा रूप
कुमाउंनी भाषा में लिंग दृष्टि से अकारांत, व्यंजनान्त, ऐकारांत और ऐंकारांत संज्ञाएँ पुल्लिंग व स्त्रीलिंग दोनों प्रकार कि पाई जाती हैं .
व्यंजनान्त संज्ञाएँ
पुल्लिंग - वन्, घाम् , पात्
स्वरांत संज्ञाएँ
पुल्लिंग -आकारांत कतुवा माला, इजा
उकारांत गोरु , आरू ---
ओकारांत चेलो , बाटो , लाटो -----
औकारांत द्यौ , मौ , उगौ -----
व्यंजनान्त संज्ञाएँ
स्त्रीलिंग- बात्, ठार, खाट
स्वरांत संज्ञाएँ
स्त्रीलिंग-इकारांत आदिमि, पानि छाति, बानि
एकारांत दुबे ज्वे
एकारांत दुबे ज्वे
ऐंकारांत दै मैं
ऐकारांत भैं शै
कुमाउनी भाषा में अंत्य ध्वनि मुक्ति के कारण कई संयुक्त व्यंजनान्त और उत्क्षिप्त प्रतिपादिक वस्तुत : व्यंजनान्त नही होते और स्वरांत कोटि में रखे जाते हैं
कुमाउनी
कुमाउनी संज्ञा लिंग भेद
यथा - - बल्द, घट्ट, गूड़ (हिंदी अर्थ - बैल पनचक्की, गुड़) जो सभी एकवचन अविकारिकारक हैं
१- कुमाउनी में अधिकतर पुल्लिंग एक बचन संज्ञाएँ ओकारांत होती हैं
और अधिकतर स्त्रीलिंग एकवचन इकारांत होती हैं . यथा :
पुल्लिंग -स्त्रीलिंग
अ- चेलो (लड़का ) चेली (लडकी )
ब- थोरो (भैंस का बच्चा ) , थोरी (भैंस की बच्ची )
स- पारो (लकड़ी का विशेष पात्र ) , पारी (काठ का पात्र)
ड़-बाछो ( बछडा ) ,
ड़-बाछि (बछिया
२- औकारान्त्क प्रत्यय भी ओकारान्तक की भांति एकवचन पुल्लिंग संज्ञा का द्योतक होते हैं
संज्ञा व्युत्पन्न में लिंग निर्णय
अ- ओ - निम्न संज्ञाओं में व्यंजनों के पश्चात ओ लगाने से पुल्लिंग का निश्चय होता है यथा
चेलो (चेल = ओ ) =लडका
बातो (बात = ओ) = बत्ती
गल्ओ (गल्+ओ) =गला
ब- औ - निम्नप्रकार के संज्ञाओं में 'औ' प्रत्यय लगाने से पुल्लिंग बन जाता है . यथा
भौ (भ +औ ) = शहद
द्यौ (द्य् +औ ) = वर्षा
स- उ- संज्ञा पर 'उ' प्रत्यय जुड़ने से पुल्लिंग का भास होता है . यथा
गोरु (गोर + उ ) = गाय
आरू (आर = उ ) = आड़ू
द - ए - ए प्रत्यय कुछ विशेष स्थानों में प्रयोग होता है जैसे दुबे, चौबे , खुलबे आदि किन्तु यह जातिवाचक संज्ञा होने से नाम के आगे भी लगता है
स्त्रीलिंग के विशेष सिद्धांत
१- यद्यपि स्त्रीलिंग हेतु कोई निश्चित स्थिति नही मिलती है अपितु अधिकाँश स्त्रीलिंग संज्ञाएँ 'इ' प्रत्यय से संयुक्त होती हैं . यथा .चेली (चेल =इ ) = लडकी
कोई व्यंजन आ, ए, ऐ, से भी युक्त होती हैं , यद्यपि ऐसे कुछ व्यंजन पूलिंग से भी सम्बद्ध होते हैं
क-- 'इ':--- निम्न कोटि की संज्ञाओं में 'इ' रहता है
चेल + इ = चेली
राँ =इ = रानी
वान = इ = वाणी
ख- -नि :- आगत संज्ञा प्रतिपादकों या व्युत्पुन्न प्रतिपादकों में 'र्' ध्वनि के बाद मिलता है यथा
मास्टर् + नि = मास्टरनी
शुबेदार्' +नि = शुबेदारनी
शूनार् = नि = शूनारनी
यद्यपि अन्य ध्वनियों के बाद भी नि लगने से स्त्रीलिंग बनता है
जोग + नि = जोगनी
ग - आनि :- कुमाउनी में अघोष स्पर्शी ध्वनियों के पश्चात् स्त्रीलिंग में 'आनि' मिलता है
पंडित +आनि = पंडितानी
जेठ +आनि = जेठानी
घ- -आनि का प्रयोग ध्वनि परिवर्तन के साथ स्घोस ध्वनि के अप्श्चत भी मिलता है . यथा
कोल + आनि = कोल्य =आनि = कोल्यानी
धोबि + आनि = धोब्यानी
च - आनि/यानि के विकल्प में आन भी लगता है. यथा
; द्योर + आन =द्योरान या द्योर +आनि = द्योरानी
छ- - आ निम्न कोटि की संज्ञाओं में लगता है . यथा
माल् +आ = माला
इज + आ = इजा
ज- -ऐ : कहीं , कहीं 'ऐ' क प्रयोग होता है , यथा
म + ऐ = मै (कृषि उपकरण )
क् + ऐ = कै (वमन)
झ- श +ऐ = शै (दीवार)
गाय का स्त्रीलिंग ' गै' है जब कि गोरु पुल्लिंग है
व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान
व्यंजनान्त व अन्य स्वरांत का लिंग विधान में लिंग निर्णय सन्दर्भ व वाक्य धरातल पर होता है
अ- पुल्लिंग:- घाम मंदों छ , नाक टेड़ी छ,
आ- स्त्रीलिंग :- बात निकिछ , गाड़ में आद हुनो
ओकारांत और औकारान्त संज्ञाएँ बहुवचन में विकारी रूप प्राप्त होती हैं
एक वचन वहुवचन
चेलो च्याला
घोड़ो घ्वाड़ा
उपरोक्त संज्ञाओं का लिंग निर्णय वाक्यानुसार होता है
च्याला ऐं ग्यान/गईं (लडके आया गए )
घ्वाड़ा दौड़ला (घोड़े दौड़ेंगे )
पृथक पृथक लिंग
बहुत सी संज्ञाओं में लिंग पृथक प्रित्जक होते हैं
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
बाबा (पिता) इजा (माँ )
बल्द (बैल) गोरु (गाय)
बैग (पुरुष ) श्यैनी
भेदहीन लिंग
कुछ शब्द दोनों लिंगो का प्रतिनिध्वत्व करते हैं
मैश (स्वामी )
उ कशि मैश छ ((स्त्रीलिंग )
उ कशो मैश छ (पुल्लिंग)
कारक
अ- कुमाउनी संज्ञाओं ओकारांत एक वचन संज्ञाए वहुवचन में आकारांत हो जाती हैं
एक वचन; बहुवचन; लिंग
ए- चेलो (लडका ) च्याला (लड़के ) पुल्लिंग
घोड़ो (घोड़ा ) घ्वाड़ा (घोड़े) पुल्लिंग
बाटो (रास्ता ) बाटा (रास्ते ) पुल्लिंग
बी१ - चेलि (लड़की ) चेलि (लड़कियां ) स्त्रीलिंग
घोडि (ड़ +इ ) (घोड़ी) घोडि (छोटी ड़ी) (घोड़ियाँ ) स्त्रीलिंग
बैनि (छोटी बहिन ) बैनि (छोटी बहिनें ) स्त्रीलिंग
बि २ - तालि (ताली ) तालि ( तालियाँ ) स्त्रीलिंग
बालि (अनाज की बाल ) बालि (अनाज की बालें ) स्त्रीलिंग
सी१ - बन् (वन ) बन् (वन ) पुल्लिंग
पात् (पत्ता ) पात् (पत्ता ) पुल्लिंग
बात् (बात ) बात् (बात ) पुल्लिंग
सी २- घट्ट ( पनचक्की ) घट्ट ( पनचक्कियां ) पुल्लिंग
बल्द (बैल) बल्द (बैल) पुल्लिंग
डी - ब्याला (कटोरा ) ब्याला (कटोरे ) पुल्लिंग
माला (माला ) माला (मालाएं) स्त्रीलिंग
इजा (माता ) इजा (माताएं ) स्त्रीलिंग
इ- गोरु (गाय ) गोरु (गायें ) पुल्लिंग
आरू (आड़ू) आरू (आड़ू ) पुल्लिंग
ऍफ़ - कै (वमन ) कै (वमन ) स्त्रीलिंग
जी- भै (भाई ) भै (भाइ ) स्त्रीलिंग
शै (दीवार ) शै (दीवारें ) स्त्रीलिंग
एच - उगौ (कृषि उपकरण ) उगौ पुल्लिंग
खल्यौ (लकड़ी का ढेर ) खल्यौ (लकड़ी के ढेर ) पुल्लिंग
कुमाउनी संज्ञाओं में वचन सम्बन्धी तालिका
तिर्यक अथवा विकारी करक में बहुवचन के रूप बदलते रहते हैं. एक वचन तिर्यक में भी ओकारांत व कुछ औकारान्तक संज्ञाएँ कारकीय स्तिथि में बदलती रहती हैं और बदला हुवा रूप एक वचनीय संज्ञाओं के बहुवचन अविकारी के समान होते हैं . ओकारांत तथा औकारान्त को छोड़ अन्य शेष संज्ञाओं का वचन वाक्य स्तरपर होता है.
वचन सम्बन्धी तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है
संज्ञा एक वचन अविकारी कारक विकारी कारक बहुवचन रूप साधक पर प्रत्यय
कुमाउंनी में प्रतिपादकों के अन्त्यों के अनुसार ही विकारी कारक का रूप बनता है . ओकारांत तथा कुछ औकारान्त एकवचन संज्ञाएँ बहुवचन में पुन्ह विकारी हो जाते हैं
१- आकारांत में - आ के स्थान पर -आन
२--इ, -ए, -ऐ तथा -ऐं अन्त्ययुक्त बहुबचन परिवर्तित हो -ईन हो जाता है
३- व्यंजनान्त के पश्चात विकारी कारक में -ऊन जुड़ जाता है
ओकरान्तक और औकारान्तक
(आ --आ)
अन्य संज्ञाएँ
संज्ञाएँ एक वचन विकारी रूप कारक-संज्ञा एक वचन अविकारी कारक विकारी कारक
चेलो ; चेलो खांछ ; च्यालो ले खाछ
खल्यौ : खल्यौ नान्छ खल्यौ बै लाल्यूं
चेलि : चेलि खान्छि चे; लि ले खाछ
पात् : पात् हरिया छ ; पात् में खाछ
बल्द : बल्द बालो बल्द ले बाछ
इजा इजा खान्छि इजा ले खाछ
गोरु गोरु चर्छ गोरु ले चरछ्य
दुबे दुबे खान्छ दुबेले खाछ
कै कै भैछ कै में ल्वे छियो
शै शै शफेद छ शै बै खितीछ
समान विकारीकारक रूप
कुमाऊंनी भाषा में सभ कारकीय स्तिथियों में विकारीकारक रूप एक समान होते हैं
च्याला ले खाछ (लड़के ने खाया)
च्याला कैं दिय ( लड़के को दो )
च्यालाक्पिति भ्योछ (लड़के के द्वारा हुआ )
च्यालाक् दादा (लड़के का भाई )
च्याला में खोट छ (लड़के में दोष है )
ओ च्याला ! ९अरे लड़के !
प्रतिपादक अन्त्य बहुवचन
एक वचन अविकारी कारक - विकारी कारक संबोधन कारक
-आ; -आन --औ
भाया भायान भाय्औ !
ओ -आन --औ
चेलो च्यालान च्यालौ
-इ; -ए, -ऐ, -ऐं , -ईन -औ
चेलि चेलीन चेलिऔ
मैं मैंईन - (प्राणी वाचक)
शै शैईन - (अप्राणी वाचक )
व्यंजनान्त - उ ; -औ -ऊन -औ
गोरु गोरुऊन गोरौ
उगौ उगौऊन ---(अप्राणी वाचक )
बैग बैगऊन बैगौ
बात् बात्ऊन ---(अप्राणी वाचक )
बहुवचन बोधक संज्ञाएँ
अ- -आ पुल्लिंग ओकारांत संज्ञा के -ओ के स्थान पर बहुवचन में -आ आ जटा है
एक वचन बहुवचन
चेलो च्याला
चल्लो चल्ला
बाटो बाटा
घोड़ो घ्वाड़ा
ब- - होर : अधिकतर - होर का प्रयोग सम्बन्ध सूचक संज्ञाओं में होता है
एक वचन बहुवचन
दादा दादाहोर
काका काकाहोर
भाया भायाहोर
काखि काखिहोर
स- ईं: इकारांत स्त्रीलिंग संज्ञा में -इ के स्थान पर -ई हो जटा है
एकवचन बहुवचन
चेलि चेलीन (लडकियां )
श्यैनि श्यैनीन
द- -औ : औ सम्बोधन बोधक है और केवल प्राणी वाचक संज्ञाओं के साथ प्रयोग होता है
च्यालौ
श्यैनिऔ
नेपाली भाषा में संज्ञां विधान
नेपाली में भी गढ़वाली, कुमाउंनी भाषाओँ की तरह ही संज्ञा बोध होता है . नेपाली में भी स्थान, व्यक्ति या दशा के नाम की अभिव्यक्ति को संज्ञा कहते हैं .
नेपाली संज्ञा प्रकार
नेपाली में संज्ञाएँ तीन तरह की होती हैं
व्यक्ति वाचक संज्ञाएँ :
किसी व्यक्ति, स्थान के विशेष नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं . जैसे
काठमांडु , जंग बहदुर सिंग , आदि
सामान्य वाचक संज्ञाएँ:
नेपाली व्याकरण विशेषग्य पराजुली के अनुसार जो संज्ञा ना तो व्यक्तिवाचक हो और ना ही भाव वाचक संज्ञा हो उसे सामान्य वाचक संज्ञा कहते हैं जैसे
कलम, घर फूल , मनिस (मनुष्य) आदि
भाववाचक संज्ञा :
भाव वाचक संज्ञाएँ :
किसी गुण, दशा या कृत्तव का नाम बताती हैं. जैसे
दया, केटोपन, भनाई, चाकरी, अग्लाई, नीलोपन आदि
नेपाली में भाव वाचक संज्ञा बनाने के सिद्धांत
१- जातिवाचक संज्ञा से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान
- जातिवाचक संज्ञा
केटो (बच्चा , लडका )
चाकर
चोर
- भाव वाचक संज्ञा
केटोपन ( बचपन,लड़कपन )
चाकरी
चोरी
२- मूल क्रिया से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान
- मूल क्रिया
पढ़
भन (कहना
हांस
- भाव वाचक संज्ञा
पढे (ढ पर ऐ की मात्रा ) (पढ़ाई )
भनाऊ (कथन )
हाँसाई ( हंसी )
३- विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाने के नियम
- विशेषण
नौलो
रातो
अग्लो
- भाव वाचक संज्ञा
नौलोपन (नयापन)
रातोपन (ललाई )
अग्लाई (उंचाई )
नेपाली भाषा में लिंग विधान
नेपाली व्याकरणाचार्यों जैसे पराजुली के मतानुसार नेपाली में चार प्रकार के लिंग पाए जाते हैं.
१- पुल्लिंग
२- स्त्रीलिंग
३- नपुसंक लिंग ; अप्रानी वाचक पदार्थ, भाव, विचार नपुंसक लिंग में आते हैं
यथा:
घर, पुस्तक, रुख, विचार आदि
कवि, कीरा (कीड़ा) , चरा (चिड़िया) , देवता आदि
३- सामान्य लिंग :
जिस किसी में दोनों लिंगों की संभावनाएं होती है . यथा
जब कि व्याकरण शास्त्री जय राज आचार्य मानते हैं कि दो ही लिंग होते हैं .जय आचार्य के अनुसार संज्ञा में लिंग क्रिया अनुसार अभिव्यक्त होता है णा कि संज्ञा से
जैसे
शारदा जान्छा (शारदा जाता है )
शारदा जान्छे (शारदा जाती है )
दुर्गा गयो (दुर्गा गया )
दुर्गा गई (दुर्गा गई)
१- शब्द से पहले लिंग सूचक शब्द जोड़ने से
२- आनी, इनी, इ, एनी प्रत्यय लगाकर पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बदलना
३- नेपाली के पृथक पृथक पुल्लिंग व स्त्रीलिंग शब्द
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
लोग्ने मान्छे
पुरुष देवता
भाले कमिला
स्वास्नी मान्छे
स्त्री देवता
पोथी कमिला (चींटी )
ऊँट
कुकुर
घर्ती
डाक्टर
ऊंटनी
कुकुर्नी (कुत्ती )
घर्तीनि
डाक्टरनी
बुवा (पिता)
दाजू (भाई
सांढे गोरु (बैल)
आमा (मां )
बहिनी (बहिन)
गाई (गाय)
नेपाली में भी अन्य भाषाओँ कि तरह पृथक पुल्लिंग शब्द व पृथक स्त्रीलिंग का विधान मिलता है
नेपाली में वचन विधान
नेपाली में गढ़वाली व कुमाउंनी भाषाओँ के बनिस्पत वचन विधान सरल है
एकवचन
बहुवचन
१- हरु प्रत्यय जोड़ कर बहुवचन बनना :संज्ञा के अंत में हरु जोड़ने से संज्ञा बहुवचन हो जात है , जैसे
राजा
मान्छे (एक व्यक्ति )
किताब
देस
राजाहरू
मान्छेहरु (कई व्यक्ति )
किताबहरु
देसहरू
२- सूचनार्थ शब्दों से वचन सूचना
यो एवम त्यो 'यी' और 'ती' में बदल जाते हैं
यो मान्छे
यी मान्छेहरु
३- संख्या को संज्ञा से पहले लगाने से वचन बादल जाता है
एक दिन
दुई दिन , पांच दिन
४- कुछ संज्ञाओं में संज्ञा शब्द (जो जाती वाचक संज्ञाएँ बहुत सा, बहुत से बिबोधित हो पाती हैं ) से पहले धेरै लगाने से भी एकवचन बहुवचन बन जाता है
यद्यपि धेरै किताबहरु भी प्रयोग किया जाता है
किताब
धेरै किताब
५- कारक को शब्द बहुवचन में का में बदल जाता है
नेवार को मान्छे
छोरा को किताब
नेवार का मान्छेहरु (नेवार के (कई) मनुष्य )
छोरा का किताबहरु (पुत्र की किताबें )