जंगल को यहां डाण्डा कहते हैं ।
बर्तनों को भाण्डा कहते हैं।
छोटे बच्चों को नौना कहते हैं
बुजुर्गों को दाना कहते हैं।।
साथ को दगडा कहते हैं ।
लड़ने को झगडा कहते हैं।
मोटे को तगडा कहते हैं ।
भू-स्खलन को रगडा कहते हैं।।
छोटे भाई को यहा भुला कहते हैं ।
किचन को यहा चुला कहते है।
ब्रिज को यहा पुल कहते है ।
नहर को यहा कूल कहते है।।
पत्नी को यहा जनानि कहते है ।
जी मचले तो स्याणी कहते हैं
बहू को दुलैणि कहते है।
ब्याई भैंस को लैन्दी कहते हैं ।
सब कुछ है पर छैन्दी निछैन्दी कहते है ।
दूध दही को दुभैण कहते हैं।।
आदमी को यहा मैस कहते हैं ।
बफैलो को यहा भैस कहते है।
जीजा को यहा भीना कहते हैं।
फाटा लगाने को जोल कहते हैं
गोबर को यहाँ मोल कहते हैं ।
सोने को यहाँ सीणा कहते है।
अटौल को यहा किना कहते है।
सख्त को यहा जिना कहते है ।
गोबर को यहा पिना कहते हैं।।
चावल को यहा भात कहते हैं ।
सादी को बरात कहते हैं।
चौडे वर्तन को परात कहते हैं ।
पित्र तर्पण को शराद कहते है।।
नमक को हम लोण कहते हैं ।
जंगल को हम बोंण कहते हैं।
पहाड को हम ढोंड कहते हैं ।
खेत को हम पुंगडा कहते हैं ।
और सीधे रास्ते को सैंण कहते हैं ।
सिर दर्द को हम मुंडारू कहते हैं ।
गिरने को हम फरकेगे/लमडन कहते हैं ।
चालाक को हम चकड़ेत बोलते हैं ।
और सीधे को लाटा बोलते हैं ।
तेज लडकों को हम चंट बोलते हैं ।
मोटे को ढंट बोलते हैं ।
फीवर को हम जैर-बुखार कहते हैं
पैजामे को हम सुलार कहते हैं ।
और दरांती पे धार लगाने वाले को लवार कहते हैं ।
जब हम प्रयासः करला तबे त हम गढ़वाली बोल सकला