आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620105 - युग निर्माण योजना (मनुष्य में देवत्व के उदय एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण हेतु)

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

युग निर्माण हेतु विशेष उत्तरदायित्व

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

प्रश्नोत्तरी

1. ये समय भी इसी तरह का है। संध्या काल है, जिसमें युग बदल रहा है। इस विशेष संध्या काल को हमको विशेष कर्त्तव्यों के लिए --------- रखना चाहिए।

2. हममें से प्रत्येक साधक को ये मान के चलना चाहिए - हमारा व्यक्तित्व ----------- है, हमको भगवान ने किसी विशेष काम के लिए भेजा है।

3. कुछ विशेष व्यक्तियों के ऊपर भगवान विश्वास करते हैं, और (और) ये मान के भेजते हैं कि ये हमारे भी कुछ ----------- आ सकते हैं, अपने ही गोरख-धंधे में नहीं फँसे रहेंगे।

4. युग निर्माण परिवार के हर व्यक्ति को अपने बारे में ऐसी ही मान्यता बनानी चाहिए, कि हमको भगवान ने विशेष काम के लिए भेजा है, ये (कोई) विशेष समय है, और हममें से हर आदमी को ये अनुभव करना चाहिए कि हम कोई विशेष उत्तरदायित्व ले कर के आए हैं ---------- को बदलने का उत्तरदायित्व, युग की आवश्यकताओं को पूरा करने का उत्तरदायित्व हमारे कंधे पर है।

5. बुद्ध के साथ चीवरधारी भिक्षु विशेष उत्तरदायित्व निभाने के लिए आए थे - आप लोग अगर इस तरह का अनुभव (और) विश्वास कर सकें - आप लोग हमारे साथ उसी तरीके से जुड़े हुए हैं, और विशेष उत्तरदायित्व, ---------- का सौंपा हुआ, पूरा करने के लिए हम लोग आए हुए हैं।

6. १. पहला कदम आपको जो बढ़ाना पड़ेगा वो ये बढ़ाना पड़ेगा कि अपनी परिस्थितियों में हेर-फेर करना। जिस तरीके से सामान्य मनुष्य जीते हैं, उस तरीके से आप जीने से ---------- कर दीजिए, और ये कहें - हम तो विशेष व्यक्तियों और महामानवों की तरह से जिएंगे।

7. २. संसार का इतिहास बताता है कि भगवान का पल्ला पकड़ने वाले और भगवान को अपना सहयोगी बनाने वाले कभी घाटे में नहीं रहेंगे - ये विश्वास करें तो एक बहुत बड़ी बात है। जानना चाहिए हमने बहुत बड़ा --------- पा लिआ, अगर हम ये अनुभव कर सकें तब, कि मन:स्थिति बदलनी है, और सांसारिकता का पल्ला पकड़े रहने की अपेक्षा भगवान की शरण में जाना है - ये हमारा जो दूसरा कदम होगा ऊँचा उठने के लिए।

8. ३. तीसरा वाला कदम आत्मिक-उत्थान के लिए हमारा ये होना चाहिए कि हमारी महत्वाकांक्षाएँ, हमारी कामनाएँ, हमारी --------- बड़प्पन के केंद्र से हटें, और महानता के साथ जुड़ जाएँ।

9. मन और इंद्रियों की गुलामी को हम छोड़ दें - इंद्रियों की गुलामी को हम छोड़ दें, उनके हम ---------- बनें।

10. भवबंधनों से मुक्ति चाहते हैं - असल में ये कोई भवबंधनों से मुक्ति नहीं है, हमारी मन और इंद्रियों की गुलामी करना ही भवबंधन है। इनसे हम छुड़ा लेते हैं तो ---------- और मोक्ष का जो वर्णन किया गया है, हम स्वभावत: जीवन मुक्त (मोक्ष) हो जाते हैं।

11. संसार में रह कर के हम अपने कर्त्तव्य पूरे करें, हँसी-खुशी से रहें, अच्छी तरीके से रहें, लेकिन इसमें इस कदर भी ----------- न हो जाएँ, इस कदर फँस न जाएँ, कि हमको अपने जीवन के उद्देश्यों का ध्यान ही नहीं रहे।

12. मैं ये कहता हूँ - अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले विद्यार्थियों, तुम्हें अपनी (छुद्र) छुद्रता के अलावा और कुछ नहीं खोना है; पाना ही पाना है, आध्यात्मिकता के मार्ग पर पाने के अलावा कुछ नहीं है; इसमें एक ही चीज़ हाथ से गुम जाती है - उसका नाम है आदमी की छुद्रता और ----------- ।

13. भगवान के साथ हम रिश्ता जोड़ें, तो हमारे लिए जीवन में कभी अभावों का, कभी इस तरह के संकटों का अनुभव न करना पड़ेगा जैसे कि --------- लोग पग-पग पर किया करते हैं।

14. अगर पतंग ने इतनी हिम्मत और बहादुरी न दिखाई होती, और बच्चे के हाथ में अपना --------- न सौंपा होता, तो पतंग क्या उड़ सकती थी? जमीन पर पड़ी रह सकती थी।

15. हममें से किसी की भी उपासना लौकिक कामनाओं के लिए नहीं, बल्कि भगवान की साझेदारी के लिए, भगवान को स्मरण रखने के लिए, भगवान के आज्ञानुवर्ती होने के लिए, और भगवान को अपना --------- करने के उद्देश्य से उपासना होनी चाहिए। अगर आप ऐसी उपासना करेंगे, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ - उपासना सफल होगी।

16. आपको आंतरिक संतोष मिलेगा। न केवल आंतरिक संतोष मिलेगा, पर आपके व्यक्तित्व का (भी) विकास होगा, और वयक्तित्व के विकास करने का निश्चित परिणाम यह है - आदमी भौतिक और आत्मिक, दोनों तरह की सफलताएँ, ----------- मात्रा में प्राप्त करता है।

17. आप हँसती-हँसाती जिंदगी जिएँ, खिलती-खिलाती जिंदगी जिएँ, हल्की-फुल्की जिंदगी जिएँ - हल्की-फुल्की जिंदगी जिएँगे तो आप जीवन का सारे-का-सारा -------- पाएँगे।

18. दुनिया में रहें, काम दुनिया में करें, पर अपना मन भगवान में रखें, अर्थात उच्च --------- और उच्च आदर्शों के साथ जोड़ (के) रखें।

19. कर्त्तव्य (हमारा) हमने अपना पूरा किया - बहुत है - हमारे लिए बहुत है। इस दृष्टि से अगर आप जिएँगे तो आपकी खुशी को कोई छीन नहीं सकता; और आपको इस बात की परवाह नहीं मिलेगी कि जब कभी सफलता मिले तब आपको प्रसन्नता हो। चौबीस घंटे (आपको) खुशी से जीवन जी सकते हैं। जीवन की -----------, सफलता का यही तरीका है।

20. साधकों में से कई व्यक्ति हमसे ये पूछते रहते हैं - क्या करें, क्या करें, क्या करें - मैं उनमें से हर एक से ये कहता हूँ - ये मत पूछो, बल्कि ये पूछो - क्या बनें, क्या बनें, क्या बनें - अगर आप कुछ बन जाते हैं, तो करने से भी ज्यादा ------- है, पर जो कुछ भी आप कर रहे होंगे वो सब सही हो रहा होगा।

21. आप साँचा बनने की कोशिश करें। अगर आप साँचा बनेंगे, तो जो भी गीली मिट्टी आपके ------- में आएगी, आपकी ही तरीके से, आपके ही ढंग के, शक्ल के खिलौने बनते चले जाएंगे।

22. आप सूरज बनें - आप चमकेंगे और चलेंगे। उसका --------- क्या होगा? जिन लोगों के लिए आप करना चाहते हैं, वो आपके साथ-साथ चलेंगे और चमकेंगे।

23. आप गलें और वृक्ष बनें, और वृक्ष बन कर के अपने जैसे -------- बीज आप पाएँ कि अपने भीतर से ही पैदा कर डालें।

24. सप्त-ॠषियों ने अपनेआप को बनाया। उनके अंदर तप की सम्पदा थी, ज्ञान की सम्पदा थी - बस (जो कोई भी) जहाँ कहीं भी रहते चले, जो कुछ भी काम उन्होंने कर लिया, वो ही महानतम श्रेणी का, --------- काम कहलाया।

25. हम अपनेआप को फौलाद बनाएँ, अपनेआप की सफाई करें, अपनेआप को --------, अपनेआप को (परिष्कृत) करें

26. समाज सेवा (से) करने से पहले ये आवश्यक है कि हम समाज सेवा के लायक हथियार तो अपनेआप को बना लें - ये ज्यादा अच्छा है। हम अपनेआप की सफाई करें। समाज सेवा भी करें, पर आपनेआप की सफाई को -------- न जाएँ।

27. आप हमारी दुकान में शामिल हो जाएँ, आप दुकान में शामिल हो जाएँ। हमारी दुकान में बहुत फायदा है, इसमें से हर आदमी को काफी -------- का शेयर मिल सकता है।

28. हमारे गुरु और हमने साझेदारी की है, शंकराचार्य ने और -------- ने साझेदारी की थी (एक दुकान में), सम्राट अशोक और बुद्ध ने साझेदारी की थी, समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी ने साझेदारी की थी

29. हम और आप मिल कर के एक बड़ा काम करें, उसमें से जो मुनाफा आवे उसको बाँट लें। अगर आप इतना हिम्मत कर सकते हों, और ये --------- करते हों कि हम प्रामाणिक आदमी हैं, तो जिस तरीके से हमने (और) अपने गुरु की दुकान में साझा कर लिया है, आप आएँ और हमारे साथ साझा करने की (की) कोशिश करें।

30. अपनी पूंजी उसमें लगाएँ - समय की पूंजी, --------- की पूंजी, बुद्धि की पूंजी हमारी दुकान में शामिल करें और इतना मुनाफा कमाएँ, जिससे कि आप निहाल हो जाएँ।