आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

10. चिंतन और मनन

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

इसे डाउनलोड भी कर सकते हैं -     प्रश्नोत्तरी (.doc फाइल)     प्रश्नोत्तरी (.pdf फाइल)

प्रश्नोत्तरी

1 - भजन और पूजन की भाँति, स्वाध्याय और सत्संग की भाँति, दो और भी पूजापरक, उपासनापरक ------- प्रयोग हैं, जो आपको करने ही करने चाहिए - एक का नाम है चिंतन और एक का नाम है मनन।

2 - चिंतन और मनन के लिए किसी कर्मकाण्ड की जरूरत नहीं है, किसी पूजा विधान की जरूरत नहीं है, और (किसी) समय निर्धारण करने (के लिए) भी जरूरत नहीं है। अच्छा तो ये हो कि आप ------- का समय ही इन सब कामों के लिए रखें। अध्यात्म के लिए (ये) समय सबसे अच्छा प्रात:काल का है।

3 - आप आँखें बंद कर के अपनेआप को एकांत में समाया हुआ (सोचें)। सब दुनिया बंद हो गई, सारी दुनिया दिखना बंद हो गई, आपके भीतर ही भीतर का दिखता है, बाहर न कुछ है, न कोई दिखता है - इस तरीके से भी काम चल सकता है, इस चिंतन और मनन के ------- के लिए।

4 - आप तो सिर्फ ये अनुभव कीजिए कि हम ------- और एकांत में बैठे हैं। फिर क्या करें? (फिर) आप दो तरह के विचार करना शुरू कीजिए।

5 - चिंतन उसे कहते हैं जिसमें कि भूतकाल के लिए विचार किया जाता है। भूतकाल हमारा किस तरीके से व्यतीत हुआ इसके बारे में ------- करिए।

6 - अपनी गल्तियों (को) हम विचार करना (हम) शुरू करें, और अपनी (चाल) की समीक्षा (लेना) शुरू करें, और अपनेआप का हम ------- शुरू करें, तो ढेरों की ढेरों चीजें ऐसी हमको मालुम पड़ेंगी जो हमको नहीं करनी चाहिए थीं। 

7 - सब (अ) अपना अच्छा, बाहर वालों का गलत - आमतौर से लोगों की ये मनोवृत्ति होती है, ये मनोवृत्ति बहुत (भय) भयंकर है - आध्यात्मिक उन्नति में (पर) इसके बराबर अड़चन डालने वाला और दूसरा कोई ------- है ही नहीं।

8 - एकांत में चिंतन के लिए जब आप बैठें, (तो) आप ये विचार किया कीजिए (कि) (हम) हम पिछले दिनों क्या भूल करते रहे (हैं)। ------- भटक तो नहीं गए? भूल तो नहीं गए? इसीलिए जन्म मिला था क्या? जिस काम के लिए जन्म मिला था वही किया क्या?

9 - पेट के लिए जितनी जरूरत थी उससे (ज) ज्यादा कमाते रहे क्या? कुटुम्ब की जितनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए थीं, (उसको) पूरा करने के स्थान पर अनावश्यक संख्या में (लोभ) बढ़ाते रहे क्या? और, जिन लोगों को जिस चीज की जरूरत नहीं थी, (उनको) प्रसन्नता के लिए उपहार रूप में ------- रहे क्या?

10 - अपने स्वास्थ्य के लिए जो खान-पान और आहार-विहार जैसा रखना चाहिए था, वैसे रखा क्या? चिंतन में, चिंतन की शैली में जिस तरह की ------- का समावेश होना चाहिए था, वो रखा गया क्या?

11 - ये भी कम बुरा कर्म नहीं है कि आप आलस्य और प्रमाद में ही समय काट डालें। (ये ही क्या कम बुरा है इसमें)। आप अपने स्वभाव को गुस्सेबाज बना के रखें, क्रोध से (भरे) भरे रहा करें, ईर्ष्या किया करें, चिंतन और मनन को अस्त-व्यस्त बना के रखें। (ये) ये भी कोई ढंग है? ये क्या है? ये भी ------- हैं।

12 - इन चूकों को (फिर) सुधारने वाला अगला कदम आता है - (आत्म) आत्म-परिष्कार। आत्म-निरीक्षण के बाद में आत्म-परिष्कार का दूसरा नम्बर आता है। सुधार कैसे करें? सुधार में क्या बात करनी होती है? सुधार में ------- करनी पड़ती है।

13 - ये आत्म-परिशोधन इसी का नाम है, (कि) जो गल्तियाँ हुई हैं, उनके विरुद्ध आप ------- खड़ी कर दें, रोकथाम के लिए आमादा हो जाएँ, संकल्पबल से ये (इस्तेमाल) करें कि जो भूल होती रही हैं, (अब हम) अब हमसे न हों। 

14 - खासतौर से मन जैसा दुराग्रही - आप ये उम्मीदें मत कीजिए कि (आपको) कह देने से, और कर देने से, और सुन लेने से और समझाने से बात बन जाएगी। ऐसे नहीं बनेगी। इसके लिए आपको ------- पड़ेगा। 

15 - कौरव सौ हैं, पाण्डव पाँच हैं - (हमारे) हमारे विवेक के, विवेकशीलता के आधार पाँच हैं - कोष (पंच)। और बुराइयाँ कितना (के का है) - सौ कौरवों से भी ज्यादा हैं - अक्षौहणी सेना के बराबर हैं। इनसे बगावत करने वाली बात करनी चाहिए। ------- इसी का नाम है, आत्म-परिष्कार इसी का नाम है।

16 - आत्म-निरीक्षण, और आत्म-परिष्कार अथवा परिशोधन, ये दो कामों को मिला देने से चिंतन की ------- पूरी हो जाती है; और ये भूतकाल से ताल्लुक रखती है, और ये वर्तमान से ताल्लुक रखती है। 

17 - चिंतन की (दो) दो धाराएँ हैं - गल्तियों को याद करना, और गल्तियों को सुधारने के लिए ------- इकट्ठी कर लेना, और (ये) कार्यपद्धति बना लेना।

18 - दूसरा वाला कदम जो आपको हर दिन ------- में बैठ कर के उठाना पड़ेगा, उसका नाम है - मनन। मनन क्या? मनन के भी दो हिस्से हैं - चिंतन के जैसे दो हिस्से थे, ऐसे मनन के दो हिस्से हैं - एक हिस्से का नाम है (आत्म-निर्माण), (एक का) एक का नाम है आत्म-विकास।

19 - निर्माण में क्या? निर्माण उसे कहते हैं कि जो चीज़ें आपके पास नहीं हैं, या जो स्वभाव और गुण और कर्म में जो बात शामिल नहीं हैं, (उसको) शामिल कीजिए। मसलन - आप पढ़े नहीं हैं, विद्या नहीं है (आपके) - अब आप ------- कीजिए।

20 - आपको स्वास्थ्य सम्वर्धन करने के लिए (आपके) अपने आहार में ------- परिवर्तन करना पड़ेगा, ब्रह्मचर्य धारण करना पड़ेगा, और, और व्यायाम का कोई (न) तरीका (अख्तियार) करना पड़ेगा।

21 - निर्माण मतलब बनाना होता है। अपनेआप को बनाइए। अपने स्वास्थ्य को बनाइए, अपने व्यक्तित्व को बनाइए, अपने ------- को बनाइए, अपने स्वभाव को बनाइए, (और) अपनी कार्यशैली को बनाइए, हर चीज़ बनाइए।

22 - अपने व्यक्तिगत जीवन को ही अच्छा बनाना पर्याप्त नहीं है, अपने कुटुम्ब और परिवार का निर्माण करना भी उसी ------- में शामिल होता है, और समाज का निर्माण भी - इन सब को बनाइए।

23 - क्या बनाएँ इनका? इनका एक ही बात बनाइए - इनके अंदर ------- पैदा कीजिए, चरित्र-निष्ठा पैदा कीजिए, आदर्श पैदा कीजिए, सत्प्रवृत्तियाँ पैदा कीजिए।

24 - निर्माण के लिए मेरा मतलब गुण, कर्म और स्वभाव से है। आप (इन) इन विशेषताओं को - आप आदमी की शालीनता को, और ------- को, और चिंतन की शैली को बदलने के लिए जो कुछ कर सकते हों वो सब कीजिए।

25 - परिवार के पंचशीलों में श्रमशीलता का नाम आता है, सुव्यवस्था का नाम आता है, ------- का नाम आता है, सहकारिता (का) का नाम आता है - ये सब बातें उसमें आती हैं - आप इन गुणों को स्वयं भी धारण कीजिए, और घरवालों को भी (कीजिए)। 

26 - ये व्यक्तित्व के और चरित्र के निर्माण करने का, चिंतन के निर्माण करने का, एक ------- तरीका है। आप उसको किस तरीके से (प्रारम्भ) कर सकते हैं, इसके बारे में चिंतन और मनन के समय पे, जब आप बैठें एकांत में, तो ये विचार किया (कीजिए)।

27 - आत्म-विकास का क्या मतलब? आत्म-विकास का मतलब ये है कि अपनेआप का, अपने ------- के दायरे को बढ़ा (लेना)।

28 - आप अपने दायरे को सीमित मत कीजिए। आप ------- स्वार्थपरता से ऊँचा उठने की कोशिश कीजिए। अपने 'मैं' के स्थान पर 'हम' कहना सीखिए। हम सब - (WE) - हम सब।

29 - हम सब के, सब हमारे - इस तरीके से विचार कीजिए। आप इस तरीके से विचार कीजिए - आत्मवत् सर्वभूतेषु - ये सारा ------- हमारे ही समान है, सबके सहयोग से हम जिंदा हैं, (और) और (हमारे) हमारा सहयोग (सबको) मिलना चाहिए। 

30 - ये अगर आप विचार करेंगे तो आप (तो) समाजनिष्ठ होते चले जाएंगे, चरित्रवान नागरिक होते हुए चले जाएंगे, देश, धर्म, और समाज और संस्कृति के प्रति आप अपना ------- व्यक्त करने लगेंगे, और उनकी समस्याओं को भी अपनी समस्या मानने लगेंगे। 

31 - ये क्या हो गया? ये (आ) आत्मा का विस्तार। आत्मा का विस्तार यही है जिसको हम ------- उन्नति के नाम से पुकारते हैं, आत्मिक प्रगति के नाम से पुकारते हैं।

32 - यही रास्ता है जिस (पे) चलते हुए (आदमी पूर्ण लक्ष्य तक) आदमी का पूर्ण लक्ष्य तक पहुँचना ------- है। आपके लिए भी यही रास्ता है, सबके लिए एक ही रास्ता है 

33 - संतों ने यही किया था, महापुरुषों ने यही किया था - (वो) अपने लिए नहीं जिए, वो समाज के लिए जिए, देश, धर्म और संस्कृति के लिए जिए, (सबको) सबके दु:खों में ------- हुए, औरों के दु:ख (ब) बँटाते रहे, और अपने सुख बाँटते रहे। 

34 - अपने सुखों को बाँट देना, और दु:खों को (दूसरों को) बँटा लेना - ये कुटुम्ब की वृत्ति है - आप अपनी वृत्तियों को (कुटुम्बिक) बनाइए, ------- बनाइए।

35 - अपने परिवार को जैसा अपना समझते हैं, ठीक उसी तरीके से सारे समाज को भी समझिए, सारे देश को समझिए, सारी मानव जाति को समझिए, ------- को समझिए - दायरा बढ़ाइए।

36 - वसुधैव कुटुम्बकम् का अपना सिद्धांत है - हमारा कुटुम्ब बड़ा होना चाहिए, परिवार हमारा बड़ा होना चाहिए, (सारे संसार) सारे संसार तक हमारी कौटुम्बिकता ------- होनी चाहिए। ये कौटुम्बिकता ही है (जिसकी व) जिसके आधार पर आदमी (के) सुख और शांति खड़ी हुई है।

37 - सूरज भी आपका, (चाँद) भी आपका, सितारे भी आपके, नदी भी आपकी, पहाड़ भी आपके, ------- भी आपकी, सारे इंसान भी आपके, सारा कुटुम्ब भी आपका, सारा संसार आपका - (अगर) ये दायरा चौड़ा कर लें तब, तब आपकी खुशी का क्या ठिकाना रह सकता है।

38 - आत्म-समीक्षा (एक), (आत्म) आत्म-सुधार (दो) - ये चिंतन; और, आत्म-निर्माण (एक) और आत्म-विकास (दो) - दो मनन; और दो चिंतन - चारों को मिला दीजिए - ये चारों वेदों का सार है, ये चारों दिशाओं से भगवान के (बर) बरसने वाले अनुदानों को प्राप्त करने का ------- तरीका है।

39 - आपकी उपासना में चिंतन और मनन (की) (को भी) स्थान रहना चाहिए, और न केवल स्थान रहना चाहिए, बल्कि उसे मजबूती से पकड़े रहना चाहिए, छोड़ना किसी भी कीमत (पर) न हो - ऐसा अगर आपका ------- होगा तो आध्यात्मिक जीवन में तेजी से आगे बढ़ेंगे, और वो लाभ प्राप्त करेंगे जो अध्यात्मवाद के क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।

1 - भजन और पूजन की भाँति, स्वाध्याय और सत्संग की भाँति, दो और भी पूजापरक, उपासनापरक ----आध्यात्मिक --- प्रयोग हैं, जो आपको करने ही करने चाहिए - एक का नाम है चिंतन और एक का नाम है मनन।

2 - चिंतन और मनन के लिए किसी कर्मकाण्ड की जरूरत नहीं है, किसी पूजा विधान की जरूरत नहीं है, और (किसी) समय निर्धारण करने (के लिए) भी जरूरत नहीं है। अच्छा तो ये हो कि आप ---सबेरे ---- का समय ही इन सब कामों के लिए रखें। अध्यात्म के लिए (ये) समय सबसे अच्छा प्रात:काल का है।

3 - आप आँखें बंद कर के अपनेआप को एकांत में समाया हुआ (सोचें)। सब दुनिया बंद हो गई, सारी दुनिया दिखना बंद हो गई, आपके भीतर ही भीतर का दिखता है, बाहर न कुछ है, न कोई दिखता है - इस तरीके से भी काम चल सकता है, इस चिंतन और मनन के -----अभ्यास -- के लिए।

4 - आप तो सिर्फ ये अनुभव कीजिए कि हम ----एकाकी--- और एकांत में बैठे हैं। फिर क्या करें? (फिर) आप दो तरह के विचार करना शुरू कीजिए।

5 - चिंतन उसे कहते हैं जिसमें कि भूतकाल के लिए विचार किया जाता है। भूतकाल हमारा किस तरीके से व्यतीत हुआ इसके बारे में ----समीक्षा --- करिए।

6 - अपनी गल्तियों (को) हम विचार करना (हम) शुरू करें, और अपनी (चाल) की समीक्षा (लेना) शुरू करें, और अपनेआप का हम ---पर्यवेक्षण ---- शुरू करें, तो ढेरों की ढेरों चीजें ऐसी हमको मालुम पड़ेंगी जो हमको नहीं करनी चाहिए थीं। 

7 - सब (अ) अपना अच्छा, बाहर वालों का गलत - आमतौर से लोगों की ये मनोवृत्ति होती है, ये मनोवृत्ति बहुत (भय) भयंकर है - आध्यात्मिक उन्नति में (पर) इसके बराबर अड़चन डालने वाला और दूसरा कोई --व्यवधान ----- है ही नहीं।

8 - एकांत में चिंतन के लिए जब आप बैठें, (तो) आप ये विचार किया कीजिए (कि) (हम) हम पिछले दिनों क्या भूल करते रहे (हैं)। ----रास्ता --- भटक तो नहीं गए? भूल तो नहीं गए? इसीलिए जन्म मिला था क्या? जिस काम के लिए जन्म मिला था वही किया क्या?

9 - पेट के लिए जितनी जरूरत थी उससे (ज) ज्यादा कमाते रहे क्या? कुटुम्ब की जितनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए थीं, (उसको) पूरा करने के स्थान पर अनावश्यक संख्या में (लोभ) बढ़ाते रहे क्या? और, जिन लोगों को जिस चीज की जरूरत नहीं थी, (उनको) प्रसन्नता के लिए उपहार रूप में ----लादते --- रहे क्या?

10 - अपने स्वास्थ्य के लिए जो खान-पान और आहार-विहार जैसा रखना चाहिए था, वैसे रखा क्या? चिंतन में, चिंतन की शैली में जिस तरह की ----शालीनता --- का समावेश होना चाहिए था, वो रखा गया क्या?

11 - ये भी कम बुरा कर्म नहीं है कि आप आलस्य और प्रमाद में ही समय काट डालें। (ये ही क्या कम बुरा है इसमें)। आप अपने स्वभाव को गुस्सेबाज बना के रखें, क्रोध से (भरे) भरे रहा करें, ईर्ष्या किया करें, चिंतन और मनन को अस्त-व्यस्त बना के रखें। (ये) ये भी कोई ढंग है? ये क्या है? ये भी ---गल्तियाँ ---- हैं।

12 - इन चूकों को (फिर) सुधारने वाला अगला कदम आता है - (आत्म) आत्म-परिष्कार। आत्म-निरीक्षण के बाद में आत्म-परिष्कार का दूसरा नम्बर आता है। सुधार कैसे करें? सुधार में क्या बात करनी होती है? सुधार में --रोकथाम ----- करनी पड़ती है।

13 - ये आत्म-परिशोधन इसी का नाम है, (कि) जो गल्तियाँ हुई हैं, उनके विरुद्ध आप ----बगावत --- खड़ी कर दें, रोकथाम के लिए आमादा हो जाएँ, संकल्पबल से ये (इस्तेमाल) करें कि जो भूल होती रही हैं, (अब हम) अब हमसे न हों

14 - खासतौर से मन जैसा दुराग्रही - आप ये उम्मीदें मत कीजिए कि (आपको) कह देने से, और कर देने से, और सुन लेने से और समझाने से बात बन जाएगी। ऐसे नहीं बनेगी। इसके लिए आपको ----लड़ना --- पड़ेगा। 

15 - कौरव सौ हैं, पाण्डव पाँच हैं - (हमारे) हमारे विवेक के, विवेकशीलता के आधार पाँच हैं - कोष (पंच)। और बुराइयाँ कितना (के का है) - सौ कौरवों से भी ज्यादा हैं - अक्षौहणी सेना के बराबर हैं। इनसे बगावत करने वाली बात करनी चाहिए। ----आत्म-सुधार --- इसी का नाम है, आत्म-परिष्कार इसी का नाम है।

16 - आत्म-निरीक्षण, और आत्म-परिष्कार अथवा परिशोधन, ये दो कामों को मिला देने से चिंतन की ----प्रक्रिया --- पूरी हो जाती है; और ये भूतकाल से ताल्लुक रखती है, और ये वर्तमान से ताल्लुक रखती है। 

17 - चिंतन की (दो) दो धाराएँ हैं - गल्तियों को याद करना, और गल्तियों को सुधारने के लिए --हिम्मत ----- इकट्ठी कर लेना, और (ये) कार्यपद्धति बना लेना।

18 - दूसरा वाला कदम जो आपको हर दिन ---एकांत ---- में बैठ कर के उठाना पड़ेगा, उसका नाम है - मनन। मनन क्या? मनन के भी दो हिस्से हैं - चिंतन के जैसे दो हिस्से थे, ऐसे मनन के दो हिस्से हैं - एक हिस्से का नाम है (आत्म-निर्माण), (एक का) एक का नाम है आत्म-विकास।

19 - निर्माण में क्या? निर्माण उसे कहते हैं कि जो चीज़ें आपके पास नहीं हैं, या जो स्वभाव और गुण और कर्म में जो बात शामिल नहीं हैं, (उसको) शामिल कीजिए। मसलन - आप पढ़े नहीं हैं, विद्या नहीं है (आपके) - अब आप ----कोशिश --- कीजिए।

20 - आपको स्वास्थ्य सम्वर्धन करने के लिए (आपके) अपने आहार में ----क्रांतिकारी--- परिवर्तन करना पड़ेगा, ब्रह्मचर्य धारण करना पड़ेगा, और, और व्यायाम का कोई (न) तरीका (अख्तियार) करना पड़ेगा।

21 - निर्माण मतलब बनाना होता है। अपनेआप को बनाइए। अपने स्वास्थ्य को बनाइए, अपने व्यक्तित्व को बनाइए, अपने ---चरित्र ---- को बनाइए, अपने स्वभाव को बनाइए, (और) अपनी कार्यशैली को बनाइए, हर चीज़ बनाइए।

22 - अपने व्यक्तिगत जीवन को ही अच्छा बनाना पर्याप्त नहीं है, अपने कुटुम्ब और परिवार का निर्माण करना भी उसी ----श्रंखला --- में शामिल होता है, और समाज का निर्माण भी - इन सब को बनाइए।

23 - क्या बनाएँ इनका? इनका एक ही बात बनाइए - इनके अंदर ----भलमनसाहत --- पैदा कीजिए, चरित्र-निष्ठा पैदा कीजिए, आदर्श पैदा कीजिए, सत्प्रवृत्तियाँ पैदा कीजिए।

24 - निर्माण के लिए मेरा मतलब गुण, कर्म और स्वभाव से है। आप (इन) इन विशेषताओं को - आप आदमी की शालीनता को, और ----आदतों --- को, और चिंतन की शैली को बदलने के लिए जो कुछ कर सकते हों वो सब कीजिए।

25 - परिवार के पंचशीलों में श्रमशीलता का नाम आता है, सुव्यवस्था का नाम आता है, ----मितव्ययिता --- का नाम आता है, सहकारिता (का) का नाम आता है - ये सब बातें उसमें आती हैं - आप इन गुणों को स्वयं भी धारण कीजिए, और घरवालों को भी (कीजिए)। 

26 - ये व्यक्तित्व के और चरित्र के निर्माण करने का, चिंतन के निर्माण करने का, एक ---शानदार ---- तरीका है। आप उसको किस तरीके से (प्रारम्भ) कर सकते हैं, इसके बारे में चिंतन और मनन के समय पे, जब आप बैठें एकांत में, तो ये विचार किया (कीजिए)।

27 - आत्म-विकास का क्या मतलब? आत्म-विकास का मतलब ये है कि अपनेआप का, अपने ----अहम--- के दायरे को बढ़ा (लेना)।

28 - आप अपने दायरे को सीमित मत कीजिए। आप ---संकीर्ण ---- स्वार्थपरता से ऊँचा उठने की कोशिश कीजिए। अपने 'मैं' के स्थान पर 'हम' कहना सीखिए। हम सब - (WE) - हम सब।

29 - हम सब के, सब हमारे - इस तरीके से विचार कीजिए। आप इस तरीके से विचार कीजिए - आत्मवत् सर्वभूतेषु - ये सारा ----संसार --- हमारे ही समान है, सबके सहयोग से हम जिंदा हैं, (और) और (हमारे) हमारा सहयोग (सबको) मिलना चाहिए। 

30 - ये अगर आप विचार करेंगे तो आप (तो) समाजनिष्ठ होते चले जाएंगे, चरित्रवान नागरिक होते हुए चले जाएंगे, देश, धर्म, और समाज और संस्कृति के प्रति आप अपना ----लगाव --- व्यक्त करने लगेंगे, और उनकी समस्याओं को भी अपनी समस्या मानने लगेंगे। 

31 - ये क्या हो गया? ये (आ) आत्मा का विस्तार। आत्मा का विस्तार यही है जिसको हम ---आध्यात्मिक ---- उन्नति के नाम से पुकारते हैं, आत्मिक प्रगति के नाम से पुकारते हैं।

32 - यही रास्ता है जिस (पे) चलते हुए (आदमी पूर्ण लक्ष्य तक) आदमी का पूर्ण लक्ष्य तक पहुँचना ----संभव--- है। आपके लिए भी यही रास्ता है, सबके लिए एक ही रास्ता है 

33 - संतों ने यही किया था, महापुरुषों ने यही किया था - (वो) अपने लिए नहीं जिए, वो समाज के लिए जिए, देश, धर्म और संस्कृति के लिए जिए, (सबको) सबके दु:खों में ---शामिल ---- हुए, औरों के दु:ख (ब) बँटाते रहे, और अपने सुख बाँटते रहे। 

34 - अपने सुखों को बाँट देना, और दु:खों को (दूसरों को) बँटा लेना - ये कुटुम्ब की वृत्ति है - आप अपनी वृत्तियों को (कुटुम्बिक) बनाइए, ----पारिवारिक --- बनाइए।

35 - अपने परिवार को जैसा अपना समझते हैं, ठीक उसी तरीके से सारे समाज को भी समझिए, सारे देश को समझिए, सारी मानव जाति को समझिए, ----प्राणिमात्र --- को समझिए - दायरा बढ़ाइए।

36 - वसुधैव कुटुम्बकम् का अपना सिद्धांत है - हमारा कुटुम्ब बड़ा होना चाहिए, परिवार हमारा बड़ा होना चाहिए, (सारे संसार) सारे संसार तक हमारी कौटुम्बिकता -----विकसित -- होनी चाहिए। ये कौटुम्बिकता ही है (जिसकी व) जिसके आधार पर आदमी (के) सुख और शांति खड़ी हुई है।

37 - सूरज भी आपका, (चाँद) भी आपका, सितारे भी आपके, नदी भी आपकी, पहाड़ भी आपके, ---जमीन---- भी आपकी, सारे इंसान भी आपके, सारा कुटुम्ब भी आपका, सारा संसार आपका - (अगर) ये दायरा चौड़ा कर लें तब, तब आपकी खुशी का क्या ठिकाना रह सकता है।

38 - आत्म-समीक्षा (एक), (आत्म) आत्म-सुधार (दो) - ये चिंतन; और, आत्म-निर्माण (एक) और आत्म-विकास (दो) - दो मनन; और दो चिंतन - चारों को मिला दीजिए - ये चारों वेदों का सार है, ये चारों दिशाओं से भगवान के (बर) बरसने वाले अनुदानों को प्राप्त करने का ----सही--- तरीका है।

39 - आपकी उपासना में चिंतन और मनन (की) (को भी) स्थान रहना चाहिए, और न केवल स्थान रहना चाहिए, बल्कि उसे मजबूती से पकड़े रहना चाहिए, छोड़ना किसी भी कीमत (पर) न हो - ऐसा अगर आपका ----संकल्प --- होगा तो आध्यात्मिक जीवन में तेजी से आगे बढ़ेंगे, और वो लाभ प्राप्त करेंगे जो अध्यात्मवाद के क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।