आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

8. स्वर्ग का जीवन कैसे जिएँ?

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1 - स्वर्ग आप बना सकते हैं, स्वर्ग आप बिगाड़ सकते हैं। एक हाथ में आपके (में) स्वर्ग है, एक हाथ में आपके (में) नरक। आप चाहें तो स्वर्ग (को) को खोल लीजिए, और उसको ------- देखिए

2 - क्या करना चाहिए आपको? आपको एक काम करना पड़ेगा - इस दुनिया में (स) सबसे बड़ी ------- ये पड़ती है (कि) आदमी अपनी बहुत सारी इच्छाएँ लिए बैठा रहता है, और इच्छाएँ अगर पूरी नहीं होती हैं तब, तब दु:खी

3 - आदमी का दु:ख एक है - आदमी ने बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ, (बड़ी-बड़ी) मनोरथ, और बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएँ ------- बना रखी हैं, और वो पूरी नहीं हो पातीं।

4 - आपके लिए दुनिया (थोड़ी) बनी है - आपकी परिस्थितियों से ही तो (अपना) (ल) मनोकामना पूरी कर सकेंगे। दूसरे आदमी सहयोग देंगे, तभी तो बात बनेगी। वातावरण आपके अनुकूल होगा, तभी तो बात बनेगी। वातावरण आपके अनुकूल बने कोई गारंटी है? परिस्थितियाँ आपके अनुकूल बन जाएँ कोई गारंटी है? फिर, आपकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँ कोई ------- है?

5 - तो क्या करना चाहिए? आपको स्वर्गीय जीवन जीने के लिए मनोकामना एक केंद्र पर (अगे) कर लीजिए, पीछे हटा लीजिए - क्या ------- मिलेगा, इसको आप मत सोचिए - फिर - फिर आप ये सोचिए कि हमारे फर्ज़ और कर्तव्य, जो है, वो हम पूरा करते हैं कि नहीं करते।

6 - आप फर्ज़ और कर्तव्यों को गौर कीजिए, और (फ) फर्ज़ और कर्तव्य पालन किया कि नहीं किया, सिर्फ इसी बात के ऊपर अपनी खुशी (मयस्सर) कर लीजिए। हमने अपना कर्तव्य पालन किया - खुश। हमने अपने बच्चे को ------- बनाने के लिए (प्रयत्न) किया - खुश।

7 - (परिस्थितियों) के ऊपर मत गुलाम होइए। अपनी मन:स्थिति पर केंद्रित हो जाइए, और केंद्रित हो कर के सारे ------- भर में सिर्फ एक खुशी का अपना केंद्र बना लीजिए, कि हमको अपने फर्ज़ और कर्तव्य पालन करने हैं।

8 - इसको कर्मयोग कहते हैं। अगर आप (कर्तव्य) कर्मयोगी बन जाएँ, और ड्यूटी और फर्ज़ को ही पर्याप्त मान लें, और अपनी ड्यूटी हमने ठीक तरीके से अंजाम दी इसीलिए हमको खुश होने का हक (है), और हमको ------- करने का हक है

9 - (अगर) आप ये बात मान लें, तो आप देखेंगे कि आपने केंद्र-बिंदु बदल दिया, खुशी का केंद्र-बिंदु बदल दिया, और आपको चौबीसों घंटे ------- रहने का, और हँसते रहने का, (और) प्रसन्न रहने का पूरा अवसर मिल गया। 

10 - एक और खुशी का दूसरा वाला प्वाइंट है, जिसको हम स्वर्ग कहते हैं। कर्मयोगी को मैं स्वर्ग में निवास करने वाला कहता हूँ। जिसको अपने फर्ज़ की बात याद (रखती) है, मैं स्वर्ग का ------- देवता कहता हूँ। 

11 - देवता का एक और लक्षण है - क्या लक्षण है? देवता अकेले नहीं खाते (हैं), अकेले नहीं खाते (हैं), अकेले नहीं खाते (हैं), मिल-बाँट के खाते हैं। (अगर) आपके पास कोई चीज़ है, तो आप मिल-बाँट के खाइए। ------- आपके पास है - उसका फायदा औरों को मिलने दीजिए।

12 - क्या स्वभाव है? देते रहते हैं। देते रहते हैं - क्या मतलब? देते रहने का मतलब ये है कि अगर उनके पास कोई ------- है, तो लोगों को बाँटते रहते हैं, और लोगों की मुसीबतों (को) में हिस्सा बँटाते रहते हैं।

13 - उनके पास (अ) कोई ज्ञान है, विद्या है, ------- है, तो आपको देंगे। देवता इन्हीं दो वजह से (दे) (देवता) हैं। आपकी मुसीबतों में हिस्सा बँटाते हैं - एक; और, अगर उनके पास कोई (वैभ) वैभव है, (तो) आसानी से बाँट देते हैं। 

14 - उस आदमी का नाम देवता है जो दूसरों की मुसीबतें बँटाता है, उस आदमी का नाम देवता है जो अपनी ------- और अपनी सम्पदाओं को मिल-बाँट के खाता है।

15 - ये जो पारिवारिक वृत्ति है, हैं न, इसमें, इसमें वसुधैव कुटुम्बकम् की मान्यता जुड़ी हुई है। वसुधैव कुटुम्बकम् की मान्यता क्या है? आत्मवत् सर्वभूतेषु। आत्मवत् सर्वभूतेषु क्या है? एक ही है - (आप) आप दूसरों की मुसीबत में ------- हो जाइए - एक; और अपनी सुविधाओं को बाँट दीजिए - हो गया आत्मवत् सर्वभूतेषु - और हो गया वसुधैव कुटुम्बकम्।

16 - आपको एक और काम करना चाहिए - कौन (सी)? खिलाड़ी की जिंदगी ------- चाहिए। खिलाड़ी की जिंदगी आप जिएँ। खिलाड़ी (में) हारते भी रहते हैं, जीतते भी रहते हैं।

17 - आप चेहरे पे शिकन मत आने दीजिए। चिंताओं (को), और मुसीबतों की कल्पनाएँ कर के, ------- कर के, और भविष्य की आशंकाएँ कर के, हर समय (आपको) दिल धड़कता रहता है। 

18 - आप निश्चिंत रहिए, निर्द्वन्द्व रहिए, हँसते रहिए, मुस्कराते रहिए - आप हँसते और मुस्कराते रहेंगे, और निश्चिंत रहेंगे, तब, (और) खिलाड़ी की तरीके से जिंदगी जिएँगे, तब, तब फिर आपको मैं ------- कहूँगा।

19 - जवान आदमी वर्तमान की बात सोचते रहते हैं। आपको (वर्तमान क्या) करना चाहिए? आज का दिन आप किस तरीके से ------- बना सकते हैं - अगर ये विचार आपके जी में आ जाएँ, फिर मैं आपसे ये कहूँगा कि आप स्वर्ग में (के) निवास करने वाले आदमी हैं।

20 - स्वर्ग में रहने वाले अपने वर्तमान का ------- करते हैं, भविष्य की तैयारी करते हैं, भूतकाल को भूल जाते हैं, और खिलाड़ी की तरह जिंदगी जीते हैं।

21 - एक तो दूसरे आदमी ने आपको नुकसान पहुँचाया - नुकसान नम्बर एक; और एक, आपने फिर नई बीमारी (शुरु और अ) अभी और कर ली - डाह की, ईर्ष्या की, प्रतिशोध की, ------- की - इन सारी की सारी चीज़ों को आप बनाए रखेंगे, फिर आप कैसे जिएंगे, बताइए न - बाहर से भी पिसेंगे और भीतर से भी पिसेंगे

22 - आप रोगी को (बिना) नुकसान पहुँचाए बिना, उसकी बुराइयों को दूर करने के लिए बराबर जद्दोजहद (करिए)। जब आप किसी व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने की बात सोचते हैं, तो वो द्वेष हो जाता है; और आप उसके दोषों को, ------- को, कमियों को (हटाने) की बात सोचते हैं तब, तब फिर कोई दिक्कत नहीं (पड़ती)।

23 - आपको एक और काम करना चाहिए - आपको ------- होना चाहिए - अपने ऊपर (डिपेन्ड depend) कीजिए, अपने ऊपर (नि) निर्भर कीजिए।

24 - उम्मीद ये करें - ये काम हमको करना है, और हम ही करेंगे - हमें ये काम करना है, और हम ही करेंगे। अगर आपका ये ------- है तब, तब फिर आपको आत्म-निर्भर व्यक्ति कहा जाएगा।

25 - खीज से तो बचिए न - खीज से बचने में क्या ------- है - आप अपना दृष्टिकोण बदल (दीजिए न) - (अगर) आप दृष्टिकोण बदल लेते हैं, तो मैं स्वर्ग का रहने वाला कहूँगा आपको।

26 - भगवान ने तो आपको राजकुमार बनाया है न, आपको बुद्धि दी है न, आपको ------- दी है (न), आपको हाथ-पाँव दिए हैं (न)

27 - आप मत अपनेआप को दरिद्र मानिए, मत अपनेआप को कंगाल मानिए। फिर आप ये मान के चलिए कि आप देवता है। देवता (होंगे) तो देने में समर्थ (हैं)। आपके पास देने को ------- है।

28 - लोगों को प्रोत्साहन दीजिए न - देखिए, आप (आपको) प्रोत्साहन देकर के छोटे-छोटे आदमी क्या से क्या बन सकते हैं। देने के लिए कुछ कम है क्या? (अपना) पसीना दे दीजिए, आप ------- दे दीजिए

29 - (आप) आप लोगों के लिए (स) सहानुभूति दे दीजिए। देने के लिए कुछ भी कम नहीं है। आपके पास देने की अगर ------- हो तो आप कुछ भी दे सकते हैं।

30 - फिर देखिए (वो ए) वो एक रोटी जो आपने (अपने) रोटी में से बचत कर ली थी, आपके लिए कितना ------- ले कर के आती है, और कितनी खुशी ले के आती है, (कितना) शांति ले के आती है। 

31 - एक दिन उपवास कर लीजिए, और उपवास करने के बाद में जो उस दिन का अनाज बच गया, उस दिन (का) जो दाल बच गई, उसको आप (कैसे) ऐसे दुखियारे के घर पहुँचा दीजिए (जिसकी उसको) जरूरत है। फिर आप देखेंगे किस कदर से आपको, (किस) किस तरीके से आपको शांति मिलती है, किस तरीके से आप ------- के नजदीक चले जाते हैं। 

32 - देवता के यही गुण हैं - देवता उदार होते हैं, देवता ------- हृदय होते हैं, देवता संकीर्ण नहीं होते, देवताओं के मनों में हर समय देने की इच्छा बनी रहती है।

33 - जब दूसरों की सहायता (करने) करने के लिए आमादा होंगे, तो आपको अपने में से (क) कटौती करनी पड़ेगी, साधु और ब्राह्मण का जीवन जीना पड़ेगा। (साधु) ब्राह्मण (किफायतशार) को कहते हैं, मितव्ययी को कहते हैं, ------- को कहते हैं, स्वल्प-संतोषी को कहते हैं। 

34 - संत किसे कहते हैं? परोपकारियों को कहते हैं, लोकहित में लगे हुए आदमियों को (व्यक्ति) कहते हैं, (जन उनको) समाज के लिए विसर्जित और समर्पित लोगों को कहते हैं, ------- में अपनेआप को खपा देने वाले का नाम संत कहते हैं।

35 - अपने संकल्प और निश्चय कीजिए - हम सिर्फ ------- की तरफ चलेंगे, ऊँचाइयों की ओर चलेंगे। आप मस्ती से रहिए, दूसरों को मस्ती से रहने दीजिए। आप खुशी से रहिए, दूसरों को खुशी से रहने दीजिए।

36 - आप जीइए, दूसरों को जीने दीजिए। मिल-जुल के रहिए, मिल-बाँट के खाइए, हँसते रहिए, (हँसाते) रहिए, अपने (फर्ज़) फर्ज़ और कर्तव्यों के ऊपर ------- रहिए। 

37 - अगर आप इतना कर सके हों, तो देख लेना, आप देवता हो जाएंगे, और ------- का सारे का सारा उदय (आपके) इसी जीवन में हो जाएगा, जैसे कि हम अपेक्षा करते हैं।

1 - स्वर्ग आप बना सकते हैं, स्वर्ग आप बिगाड़ सकते हैं। एक हाथ में आपके (में) स्वर्ग है, एक हाथ में आपके (में) नरक। आप चाहें तो स्वर्ग (को) को खोल लीजिए, और उसको ----सामने --- देखिए

2 - क्या करना चाहिए आपको? आपको एक काम करना पड़ेगा - इस दुनिया में (स) सबसे बड़ी ----दिक्कत --- ये पड़ती है (कि) आदमी अपनी बहुत सारी इच्छाएँ लिए बैठा रहता है, और इच्छाएँ अगर पूरी नहीं होती हैं तब, तब दु:खी

3 - आदमी का दु:ख एक है - आदमी ने बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ, (बड़ी-बड़ी) मनोरथ, और बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएँ ---भौतिक ---- बना रखी हैं, और वो पूरी नहीं हो पातीं।

4 - आपके लिए दुनिया (थोड़ी) बनी है - आपकी परिस्थितियों से ही तो (अपना) (ल) मनोकामना पूरी कर सकेंगे। दूसरे आदमी सहयोग देंगे, तभी तो बात बनेगी। वातावरण आपके अनुकूल होगा, तभी तो बात बनेगी। वातावरण आपके अनुकूल बने कोई गारंटी है? परिस्थितियाँ आपके अनुकूल बन जाएँ कोई गारंटी है? फिर, आपकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँ कोई ----जरूरी--- है?

5 - तो क्या करना चाहिए? आपको स्वर्गीय जीवन जीने के लिए मनोकामना एक केंद्र पर (अगे) कर लीजिए, पीछे हटा लीजिए - क्या ---परिणाम ---- मिलेगा, इसको आप मत सोचिए - फिर - फिर आप ये सोचिए कि हमारे फर्ज़ और कर्तव्य, जो है, वो हम पूरा करते हैं कि नहीं करते।

6 - आप फर्ज़ और कर्तव्यों को गौर कीजिए, और (फ) फर्ज़ और कर्तव्य पालन किया कि नहीं किया, सिर्फ इसी बात के ऊपर अपनी खुशी (मयस्सर) कर लीजिए। हमने अपना कर्तव्य पालन किया - खुश। हमने अपने बच्चे को ---सुयोग्य ---- बनाने के लिए (प्रयत्न) किया - खुश।

7 - (परिस्थितियों) के ऊपर मत गुलाम होइए। अपनी मन:स्थिति पर केंद्रित हो जाइए, और केंद्रित हो कर के सारे ----संसार --- भर में सिर्फ एक खुशी का अपना केंद्र बना लीजिए, कि हमको अपने फर्ज़ और कर्तव्य पालन करने हैं।

8 - इसको कर्मयोग कहते हैं। अगर आप (कर्तव्य) कर्मयोगी बन जाएँ, और ड्यूटी और फर्ज़ को ही पर्याप्त मान लें, और अपनी ड्यूटी हमने ठीक तरीके से अंजाम दी इसीलिए हमको खुश होने का हक (है), और हमको -----संतोष -- करने का हक है

9 - (अगर) आप ये बात मान लें, तो आप देखेंगे कि आपने केंद्र-बिंदु बदल दिया, खुशी का केंद्र-बिंदु बदल दिया, और आपको चौबीसों घंटे ---मुस्कराते ---- रहने का, और हँसते रहने का, (और) प्रसन्न रहने का पूरा अवसर मिल गया। 

10 - एक और खुशी का दूसरा वाला प्वाइंट है, जिसको हम स्वर्ग कहते हैं। कर्मयोगी को मैं स्वर्ग में निवास करने वाला कहता हूँ। जिसको अपने फर्ज़ की बात याद (रखती) है, मैं स्वर्ग का -----निवासी -- देवता कहता हूँ। 

11 - देवता का एक और लक्षण है - क्या लक्षण है? देवता अकेले नहीं खाते (हैं), अकेले नहीं खाते (हैं), अकेले नहीं खाते (हैं), मिल-बाँट के खाते हैं। (अगर) आपके पास कोई चीज़ है, तो आप मिल-बाँट के खाइए। ---ज्ञान ---- आपके पास है - उसका फायदा औरों को मिलने दीजिए।

12 - क्या स्वभाव है? देते रहते हैं। देते रहते हैं - क्या मतलब? देते रहने का मतलब ये है कि अगर उनके पास कोई ---चीज़ ---- है, तो लोगों को बाँटते रहते हैं, और लोगों की मुसीबतों (को) में हिस्सा बँटाते रहते हैं।

13 - उनके पास (अ) कोई ज्ञान है, विद्या है, -----बुद्धि -- है, तो आपको देंगे। देवता इन्हीं दो वजह से (दे) (देवता) हैं। आपकी मुसीबतों में हिस्सा बँटाते हैं - एक; और, अगर उनके पास कोई (वैभ) वैभव है, (तो) आसानी से बाँट देते हैं। 

14 - उस आदमी का नाम देवता है जो दूसरों की मुसीबतें बँटाता है, उस आदमी का नाम देवता है जो अपनी ----सुविधाएँ --- और अपनी सम्पदाओं को मिल-बाँट के खाता है।

15 - ये जो पारिवारिक वृत्ति है, हैं न, इसमें, इसमें वसुधैव कुटुम्बकम् की मान्यता जुड़ी हुई है। वसुधैव कुटुम्बकम् की मान्यता क्या है? आत्मवत् सर्वभूतेषु। आत्मवत् सर्वभूतेषु क्या है? एक ही है - (आप) आप दूसरों की मुसीबत में ---हिस्सेदार ---- हो जाइए - एक; और अपनी सुविधाओं को बाँट दीजिए - हो गया आत्मवत् सर्वभूतेषु - और हो गया वसुधैव कुटुम्बकम्।

16 - आपको एक और काम करना चाहिए - कौन (सी)? खिलाड़ी की जिंदगी ----जीनी --- चाहिए। खिलाड़ी की जिंदगी आप जिएँ। खिलाड़ी (में) हारते भी रहते हैं, जीतते भी रहते हैं।

17 - आप चेहरे पे शिकन मत आने दीजिए। चिंताओं (को), और मुसीबतों की कल्पनाएँ कर के, ----संदेह --- कर के, और भविष्य की आशंकाएँ कर के, हर समय (आपको) दिल धड़कता रहता है। 

18 - आप निश्चिंत रहिए, निर्द्वन्द्व रहिए, हँसते रहिए, मुस्कराते रहिए - आप हँसते और मुस्कराते रहेंगे, और निश्चिंत रहेंगे, तब, (और) खिलाड़ी की तरीके से जिंदगी जिएँगे, तब, तब फिर आपको मैं -----देवता -- कहूँगा।

19 - जवान आदमी वर्तमान की बात सोचते रहते हैं। आपको (वर्तमान क्या) करना चाहिए? आज का दिन आप किस तरीके से ----बेहतरीन --- बना सकते हैं - अगर ये विचार आपके जी में आ जाएँ, फिर मैं आपसे ये कहूँगा कि आप स्वर्ग में (के) निवास करने वाले आदमी हैं।

20 - स्वर्ग में रहने वाले अपने वर्तमान का ---ध्यान ---- करते हैं, भविष्य की तैयारी करते हैं, भूतकाल को भूल जाते हैं, और खिलाड़ी की तरह जिंदगी जीते हैं।

21 - एक तो दूसरे आदमी ने आपको नुकसान पहुँचाया - नुकसान नम्बर एक; और एक, आपने फिर नई बीमारी (शुरु और अ) अभी और कर ली - डाह की, ईर्ष्या की, प्रतिशोध की, ---घृणा ---- की - इन सारी की सारी चीज़ों को आप बनाए रखेंगे, फिर आप कैसे जिएंगे, बताइए न - बाहर से भी पिसेंगे और भीतर से भी पिसेंगे

22 - आप रोगी को (बिना) नुकसान पहुँचाए बिना, उसकी बुराइयों को दूर करने के लिए बराबर जद्दोजहद (करिए)। जब आप किसी व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने की बात सोचते हैं, तो वो द्वेष हो जाता है; और आप उसके दोषों को, ---दुर्गुणों ---- को, कमियों को (हटाने) की बात सोचते हैं तब, तब फिर कोई दिक्कत नहीं (पड़ती)।

23 - आपको एक और काम करना चाहिए - आपको ---आत्मनिर्भर ---- होना चाहिए - अपने ऊपर (डिपेन्ड depend) कीजिए, अपने ऊपर (नि) निर्भर कीजिए।

24 - उम्मीद ये करें - ये काम हमको करना है, और हम ही करेंगे - हमें ये काम करना है, और हम ही करेंगे। अगर आपका ये ----आत्मविश्वास --- है तब, तब फिर आपको आत्म-निर्भर व्यक्ति कहा जाएगा।

25 - खीज से तो बचिए न - खीज से बचने में क्या ----दिक्कत --- है - आप अपना दृष्टिकोण बदल (दीजिए न) - (अगर) आप दृष्टिकोण बदल लेते हैं, तो मैं स्वर्ग का रहने वाला कहूँगा आपको।

26 - भगवान ने तो आपको राजकुमार बनाया है न, आपको बुद्धि दी है न, आपको -----वाणी -- दी है (न), आपको हाथ-पाँव दिए हैं (न)

27 - आप मत अपनेआप को दरिद्र मानिए, मत अपनेआप को कंगाल मानिए। फिर आप ये मान के चलिए कि आप देवता है। देवता (होंगे) तो देने में समर्थ (हैं)। आपके पास देने को --बहुत ----- है।

28 - लोगों को प्रोत्साहन दीजिए न - देखिए, आप (आपको) प्रोत्साहन देकर के छोटे-छोटे आदमी क्या से क्या बन सकते हैं। देने के लिए कुछ कम है क्या? (अपना) पसीना दे दीजिए, आप ---मेहनत ---- दे दीजिए

29 - (आप) आप लोगों के लिए (स) सहानुभूति दे दीजिए। देने के लिए कुछ भी कम नहीं है। आपके पास देने की अगर ----मनोवृत्ति --- हो तो आप कुछ भी दे सकते हैं।

30 - फिर देखिए (वो ए) वो एक रोटी जो आपने (अपने) रोटी में से बचत कर ली थी, आपके लिए कितना ----देवत्व --- ले कर के आती है, और कितनी खुशी ले के आती है, (कितना) शांति ले के आती है। 

31 - एक दिन उपवास कर लीजिए, और उपवास करने के बाद में जो उस दिन का अनाज बच गया, उस दिन (का) जो दाल बच गई, उसको आप (कैसे) ऐसे दुखियारे के घर पहुँचा दीजिए (जिसकी उसको) जरूरत है। फिर आप देखेंगे किस कदर से आपको, (किस) किस तरीके से आपको शांति मिलती है, किस तरीके से आप ----प्रसन्नता --- के नजदीक चले जाते हैं। 

32 - देवता के यही गुण हैं - देवता उदार होते हैं, देवता ---विशाल ---- हृदय होते हैं, देवता संकीर्ण नहीं होते, देवताओं के मनों में हर समय देने की इच्छा बनी रहती है।

33 - जब दूसरों की सहायता (करने) करने के लिए आमादा होंगे, तो आपको अपने में से (क) कटौती करनी पड़ेगी, साधु और ब्राह्मण का जीवन जीना पड़ेगा। (साधु) ब्राह्मण (किफायतशार) को कहते हैं, मितव्ययी को कहते हैं, ---अपरिग्रही ---- को कहते हैं, स्वल्प-संतोषी को कहते हैं। 

34 - संत किसे कहते हैं? परोपकारियों को कहते हैं, लोकहित में लगे हुए आदमियों को (व्यक्ति) कहते हैं, (जन उनको) समाज के लिए विसर्जित और समर्पित लोगों को कहते हैं, -----सत्प्रवृत्तियों-- में अपनेआप को खपा देने वाले का नाम संत कहते हैं।

35 - अपने संकल्प और निश्चय कीजिए - हम सिर्फ ---आदर्शों---- की तरफ चलेंगे, ऊँचाइयों की ओर चलेंगे। आप मस्ती से रहिए, दूसरों को मस्ती से रहने दीजिए। आप खुशी से रहिए, दूसरों को खुशी से रहने दीजिए।

36 - आप जीइए, दूसरों को जीने दीजिए। मिल-जुल के रहिए, मिल-बाँट के खाइए, हँसते रहिए, (हँसाते) रहिए, अपने (फर्ज़) फर्ज़ और कर्तव्यों के ऊपर ---जागरूक ---- रहिए। 

37 - अगर आप इतना कर सके हों, तो देख लेना, आप देवता हो जाएंगे, और -----देवत्व -- का सारे का सारा उदय (आपके) इसी जीवन में हो जाएगा, जैसे कि हम अपेक्षा करते हैं।