आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620112 - ब्रह्मविद्या का ज्ञान विज्ञान (ब्रह्मविद्या द्वारा ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति) (जीवात्मा का विज्ञान Science of Soul)

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

आस्तिकता का ज्ञान विज्ञान

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर चिंतन / मनन करें

उद्बोधन के कुछ अंश नीचे दिए गए हैं

इन्हें डाउनलोड भी कर सकते हैं - (.doc फाइल) (.pdf फाइल)

उद्बोधन के कुछ अंश

1. भारतीय ज्ञान और विज्ञान का मूल गायत्री मंत्र है, जो कि हमारे सिरों पे शिखा के रूप में, और सूत्र के रूप में विद्यमान है।

2. जितना भी हमारा वांग्मय है, जितने भी हमारे धर्मग्रंथ हैं, वो सब उसी की व्याख्या के स्वरूप हैं।

3. तीन चरण गायत्री के, तीन - सत, रज, तम - सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् - सत्, चित्, आनन्द - ये तीन चरण हैं जिनकी व्याख्या के रूप में गायत्री मंत्र (के) विस्तार आप (के) कर सकते हैं

4. त्रिपदा - तीन पाँव वाली - जनेऊ में तीन धागे, तीन धागे, और तीन, तीन की त्रिवेणी जिसमें स्नान कर के हम धन्य हो जाते हैं।

5. गंगा, यमुना और सरस्वती जिस स्थान पर मिलती हैं उसका नाम संगम कहलाता है, त्रिवेणी कहलाती है, और त्रिवेणी को तीर्थराज कहते हैं - सबसे बड़ा तीर्थ है त्रिवेणी - और त्रिवेणी क्या है? गायत्री है बेटे

6. गायत्री का विज्ञान पक्ष समझाने की कोशिश कर रहा था, और ये कह रहा था - गायत्री का विज्ञान वाला पक्ष, सामर्थ्य वाला पक्ष, तप वाला पक्ष, जप अनुष्ठान वाला पक्ष, साधना वाला पक्ष - कितना समर्थ हो सकता है

7. ब्रह्मवर्चस योजना के अंतर्गत - कि अगर हम गायत्री का तप कर सकें, अगर अपने भीतर से तपा कर के गायत्री मंत्र की सिद्धियों को प्रवेश करा सकें, तो ये कितनी चमत्कारी बन सकती है

8. पिछले दिन ऐसा मालुम पड़ता था कि आस्तिकता के ऊपर बड़ा तेज़ हमला होने वाला है, तेज़ हमला होने वाला है - और आस्तिकता - आस्तिकता क्या (थी)? आस्तिकता बेटे मेरुदण्ड है ये, हमारी रीढ़ की हड्डी है

9. दुनिया में से शांति (खतम) हो जाएगी, शालीनता (खतम) हो जाएगी, अगर एक अंकुश उठा लिया जाए तब - कौन सा अंकुश? वो है हमारी आस्तिकता का अंकुश, भगवान के विश्वास का अंकुश।

10. आस्तिकता जिंदा थी तो आदमी को ये मालुम था कि इस (जनम) में नहीं तो (पल्ले जन) पल्ले (जनम) में परिणाम मिलेगा, कोई न कोई हमको दण्ड मिलेगा, चौरासी लाख योनियों में घूमना पड़ेगा, भूत बनना पड़ेगा, नरक में जाना पड़ेगा, पुनर्जन्म में हमारी मिट्टी-पलीद हो सकती है

11. ये हमको भगवान के न्याय पर विश्वास था, इसीलिए आदमी निरंकुश नहीं था, और आदमी काबू में था

12. भगवान को चकमा कैसे दिया जाए? एक ही हमारे पास था अंकुश, जिसकी वजह से ये मदोन्मत्त, मदोन्मत्त, हाथी, काबू में रखा जा सकता था

13. साइंस ने पिछले दिनों, दिनों ये, ये (घ) घोषणा की थी - नो गॉड, नो सोल (No God, No Soul) - सोल कोई चीज़ नहीं है, और परमात्मा कोई चीज़ नहीं हो सकता - परमात्मा की कोई ज़रूरत नहीं है दुनिया में।

14. नीत्से ने आस्तिकता के ऊपर हमला करते हुए ये कहा था - भगवान को हमने जमीन में दफन कर दिया है, और इतना गहरा दफन किया है कि अब दुबारा भगवान के जिंदा होने की कोई उम्मीद नहीं है

15.बुद्धिवाद की ओर से, और विज्ञान की ओर से - इस जमाने की दो (ही तो) शक्तियाँ‌ हैं - एक बुद्धिवाद है, और एक विज्ञान - दोनों ने जब भगवान के विरुद्ध हमला कर दिया, तो हमको मालुम पड़ा शायद अब भगवान को परेशान होना पड़ेगा

16. भीतर का दुश्मन बहुत खतरनाक होता है, और ये मालुम पड़ता था कि आस्तिकता का भीतर से खात्मा होने जा रहा है - कैसे?

17. नास्तिकता भीतर से (भी) पैदा हो रही थी। (हमको) मलुम पड़ा भगवान चला जाएगा। आप कहेंगे नास्तिक कैसे हो सकते हैं? बेटे हम और आप नास्तिक हैं (असल) में।

18. क्यों? नास्तिक, दो (माने) में नास्तिक हैं - एक तो इस (माने) में नास्तिक हैं - जब आप ये कहते हैं (कि) हमको भजन के लिए समय नहीं मिलता, तब आपको मैं विशुद्ध रूप से नास्तिक (कह)

19. क्यों नास्तिक कहता हूँ? जिस चीज़ को हम बेकार समझते है, बेवकूफी की समझते हैं, निकम्मी समझते हैं, और बेसिलसिले की समझते हैं, उसके बारे में अक्सर हम ये कहते रहते हैं - हमें टाइम नहीं है, फुर्सत नहीं है

20. जिन चीज़ों को हम काम की समझते हैं, हजार काम हर्ज़ कर देते हैं, और उसको, उसको ज़रूर करते हैं - चाहे जितना काम नुकसान हो जाए।

21. आपके मन में इस बात का विश्वास रहा होता कि भगवान इतनी जबर्दस्त शक्ति है, जिसके पास हमको बैठना चाहिए, और उसके साथ में आदान-प्रदान करना चाहिए - तब बेटा मज़ा आ सकता था।

22. एक और भी नास्तिक होने का सबूत है (मेरे) पास - आपका - ये सबूत है, कि जब आप ये कहते हैं - भगवान हर जगह विद्यमान है, और हर रोम-रोम में समाया हुआ है, छिप कर के कोई काम नहीं किया जा सकता - तब - तब आप बुरे कर्म भी करते जाते हैं, और भगवान का नाम भी लेते जाते हैं - तब मैं कहता हूँ आप नास्तिक हैं।

23. भगवान का मतलब ये होता है, कि भगवान के पास रह कर के भगवान की विशेषताओं को हम सीखें, भगवान की विशेषताओं को हम सीखें

24. आग के पास हम बैठें और आग की गर्मी अपने भीतर हम ग्रहण करें - ये, ये मतलब था। भगवान (के) पूजा करने, भगवान का विश्वास करने का मतलब ये है, कि हम भगवान के नज़दीक जाएँ, भगवान (उस) के पास जो कुछ भी अच्छाइयाँ हैं, (उसको) अपने जीवन में धारण कर लें।

25. मैं आपको नास्तिक कहता हूँ - कब? जब आप ये कहते हैं - आप हमारी बुराइयाँ‌ स्वीकार कीजिए, आपकी अच्छाइयाँ हमको स्वीकार नहीं हैं।

26. बेटा पच्चीस हज़ार रुपए का आता है - देवी जी, बेटा पैदा करा दीजिए - लाइए पच्चीस हज़ार रुपए दीजिए - नहीं साहब, पच्चीस हज़ार रुपए नहीं - आपका तो पाठ कर देंगे, पंडित जी को सात दिन में चण्डी पाठ करा देंगे, और पंद्रह रुपया दे देंगे - पंद्रह रुपए में तो बेटे रबड़ का खिलौना आता है।

27. बेटे फिर मैं आपको नास्तिक (मान) - क्योंकि आपने भगवान की गरिमा को और भगवान की महता को खतम कर (दिया), और आपने ये मान लिया भगवान के हुकुम की कोई ज़रूरत नहीं है

28. भगवान इतना छोटा और निकम्मा है कि उस पर हम हुकूमत गाँठ सकते हैं, और अपनी मनोकामना के लिए दबाव डाल सकते हैं।

29. भगवान पर विश्वास करने वाले, भगवान को मानने वाले, भगवान को जीवन में धारण करने वाले आदमियों के जीवन में जो चमक होनी चाहिए, प्रकाश दिखने चाहिए, मुझे कहीं नहीं दिखाई पड़ा था।

30. हारा हुआ आदमी, थका हुआ आदमी, जब आध्यात्मिक क्षेत्र में मालुम पड़ता है, तो मुझे मालुम पड़ता है भगवान दुनिया में से चला गया, और आस्तिकता दुनिया में से चली गई।

31. भगवान की विशेषता क्यों नहीं चमकती आदमी के भीतर? भगवान के भक्त के अंदर जो तेज होना चाहिए, वो तेज क्यों नहीं (है अंदर)?

32. हमारा अध्यात्म, आस्तिकता वाले (क्ष) क्षेत्र में से, (अगर) जीवंत (आ) आध्यात्मिकता नहीं है, जीवंत आस्तिकवाद नहीं है, तो ये मर जाएगा - देख लेना।

33. इसीलिए ज़रूरत इस बात की पड़ी कि आस्तिकता को जिंदा रखा जा सके, आस्तिकता को जिंदा रखा जा सके - आस्तिकता को कैसे जिंदा रखा जा सके?

34. आस्तिकता के मोर्चे पर मित्रों, मैंने एक मोर्चे पर लड़ाई ठानी है, जिसको लड़ाई ठानते-ठानते मुझे काफी दिन हो गए।

35. मैंने बुद्धिवाद और विज्ञान, दोनों को चुनौती दी है, और ये कहा है - आपका कहना गलत है, कि भगवान नहीं है।

36. वो बात पुरानी हो गई, पचास साल पुरानी, जब कि विज्ञान ये कहता था, कि, कि, विज्ञान से भगवान साबित नहीं होता - अब हम आपको विज्ञान से ही साबित करेंगे।

37. (आपका) बुद्धिवाद और आपके विज्ञान से हम साबित करेंगे कि भगवान है। मित्रों (बा) बात पुरानी हो गई, जब ये कहा गया था (कि अ) कि ईश्वर नहीं है। अब, अब कोई ये हिम्मत नहीं कर सकता।

38. अब नए विचार सामने आ गए हैं, अब (इन) विचारों को संकलित कर के, क्रमबद्ध कर के, हमने विज्ञान और अध्यात्मवाद के समन्वय की कोशिश की है।

39. जब ये कहा गया था कि ईश्वर नहीं है, तब ये बताया गया था कि अंतिम ईकाई होती है - ऐटम (atom) - ऐटम अंतिम ईकाई माना गया - अणु, परमाणु को अंतिम ईकाई माना गया था।

40. पीछे ये हो गया कि जो ऐटम है, ये तो जमी हुई चीज़ है, ये चीज़ जमी हुई है (के) केवल, वास्तविक नहीं है

41. ऐटम मूल चीज़ नहीं है, ये जमा हुआ तरीका है। इसके अंदर क्या काम, क्या चीज़ काम करती हैं? (इसके) अंदर (बेव्स) काम करती हैं, तरंगें काम करती हैं। इस दुनिया में बिजली की, बिजली की तरंगें, तरंगें काम कर रही हैं

42. अब ऐटम क्या है? कुछ भी नहीं है, ये केवल इलेक्ट्रिसिटी (electricity) इस दुनिया में काम कर रही हैं, फोर्सेस (forces) काम कर (रही) हैं, और फोर्सेस किसी न किसी रूप में, ऐटम के रूप में धारण कर (लेती) हैं।

43. इलेक्ट्रिसिटी के बारे में ये कहा गया, एक ऐसी चीज़ है, ये जड़ और चेतन, दोनों की मिली हुई चीज़ है। इसके भीतर विचार-शक्ति भी काम करती है, विचार भी मिला हुआ है, ये एक विचार भी काम करता है, इसके भीतर समझदारी भी काम करती है

44. समझदारी काम करने के साथ-साथ, इसमें ताकत भी काम करती है। समझदारी और ताकत - ब्रह्म और (स स) संस्कृति, दोनों का समन्वय

45. विज्ञान ने, उस चीज़ का नाम, जो दोनों के समन्वय से चलता है, उसका नाम रखा गया 'क्वॉन्टा' (quanta)।

46. क्वॉन्टा क्या चीज़ है? क्वान्टा बेटा (मुझे) समझाने में आपको दिक्कत पड़ेगी - मैं इतना ही समझा सकता हूँ आपको, कि जड़ और (चे चे) चेतन, दोनों (का) एक मिली हुई चीज़ है, जो सारी दुनिया में काम करती है, जो समझदार है

47. पहले कहता था विज्ञान - जड़ है - अब विज्ञान कहता है - जड़ नहीं है, (चे) चेतन है, (चे) चेतन है - इलेक्ट्रिसिटी - जो दुनिया को चला रही है, वो इलेक्ट्रिसिटी (चे) चेतन है।

48. इसके अंदर बड़ी समझदारी काम, काम करती है। इसको, इस समझदारी की साइंस का नाम, (ने) नेचर की समझदारी का नाम, अभी पिछले दिनों रखा गया है - (ईकालालॉजी) ईकालॉजी।

49. ईकालॉजी क्या होती है? ईकालॉजी बेटे ये होती है - सारी सृष्टि बड़े समन्वयात्मक ढंग से चल रही है। एक चक्र घूम रहा है।

50. कैसे? (बहुत) नेचर बड़ी समझदार है - घास पैदा होती है - घास को खाता है जानवर, जानवर करता है गोबर, गोबर से मिलती है खाद, खाद से पैदा होती है घास, घास को खाता है जानवर, जानवर करता है गोबर, गोबर - चक्र चल रहा है।

51. नेचर इतनी समझदार है - उसने हर चीज़ को इतने कायदे से बनाया है, कानून से बनाया है, नियम से बनाया है, कि हम दोनों (एक साथ) (जी) जीते हैं, हम और हमारे पेड़ दोनों एक साथ जिंदा हैं

52. ये ऐसी, ऐसी विचारशील दुनिया बनाई (हुई) है, किसी ऐसे समझदार ने बनाई है, किसी ऐसे होशियार आदमी ने बनाई है, किसी ऐसे दूरदर्शी ने बनाई है, (इतने) अगर दूरदर्शी ने नहीं बनाई होती, तो ये पृथ्वी न जाने कहाँ टक्कर मार देती

53. कायदे के हिसाब से, कानून के हिसाब से - सूरज निकलता है, टाइम पे निकलता है, (व्यवस्था) से निकलता है

54. अब हम साबित करेंगे कि, कि, कि गॉड है, सोल है - अब हम साबित करेंगे, साबित करेंगे। हमारा ये विश्वास है कि बुद्धिवाद अब बढ़ चला है, विज्ञान ने अब चरण बढ़ा दिए हैं, विज्ञान ने चरण बढ़ा दिए हैं।

55. हम (थो) थोड़े दिन पीछे, नास्तिकता के खिलाफ जो मुहिम खड़ी करेंगे, अब हम नास्तिक देशों में से शुरू करेंगे - और हम चाइना (China) से शुरू करेंगे, और रशिया (Russia) से शुरू करेंगे। अगले दिनों हम आस्तिकवाद का प्रचार वहाँ से करेंगे

56. नास्तिक के बारे में हमारा ये (ख्या) ख्याल है कि (हम ई) ईमानदार है ये नास्तिक। क्यों? वो ये कहता है, ये कहता है - भगवान को (हमे) हमें सबूत नहीं मिला, और हम भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते, और लैबोरेटरी (laboratory) में भगवान नहीं आता, इसलिए हम नहीं मानते।

57. हम उससे ये कहें - बेटे आ जा, हम तुझे देख लैबोरेटरी में बना के दिखा देंगे तो तू मान जाएगा - बिल्कुल मान लूँगा गुरुजी - तुरंत कह देगा, वो ईमानदार आदमी है।

58. आप बेईमान - (ऐ धे) भी कहते हैं - भगवान है - और उसके नियम और सिद्धांतों को नहीं मानते - फिर मैं आपको ये मानता हूँ आप बेईमान आदमी हैं, और आप ईमानदार नहीं हैं।

59. लोगों में से हर आदमी के दिमाग (पर) से ये बात निकलती कि जो महातम बताए गए हैं, आस्तिकता के, वो सही नहीं हैं, वो सब गलत हैं, गलत हैं।

60. इसीलिए लोगों में अश्रद्धा उत्पन्न होती हुई चली जा रही थी, (कह रहा) कह रहा था - जो लाभ बताए गए थे, वो लाभ साबित नहीं होते।

61. इन लोगों को समझाने की ज़रूरत पड़ी - किस तरीके से समझाऊँ? पुस्तकें समझाऊँ? गीता में ये कहा गया है

62. क्या करना पड़ा मुझे? क्या करना पड़ा? मुझे लोगों के पास भेजा गया, कि तुम जाओ, और ये कहो लोगों को, ये कहो लोगों को कि सही अध्यात्म, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा अगर काम में लाया जा सकता हो, तो उसके सिद्धांत सही हैं, सही हैं। फार्मूला (formula) तो सही होना चाहिए

63. लोगों को ये समझाने के लिए - आध्यात्मिकता के फार्मूले अगर आपके पास सही हों, और सही अध्यात्म, सही तरीके से कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, अगर लोगों (की) जानकारी हो, तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि अध्यात्म के सारे के सारे चमत्कार सही हैं।

64. असली अध्यात्म क्या हो सकता है, ये लोगों को ज़बानी बताने की अपेक्षा, अपने व्यक्तिगत जीवन के द्वारा समझाने के लिए मैं आया

65. इस अविश्वास के वातावरण में मैं आया, और मैंने लोगों को ये बताया, केवल (फरक) इतना ही है कि अध्यात्म का जो तरीका हमने ग्रहण किया है, वो तरीका सही नहीं है

66. अगर हम सही अध्यात्म ग्रहण करने की परिस्थितियों में हों, आप विश्वास कर सकते हैं कि इसका लाभ होता है - नहीं होता - ज़रूर होता है, होता है - नहीं होता - होता है - ये हमारी बहस जनता के साथ है, आप लोगों के साथ

67. हम आपको चैलेंज करते हैं - अध्यात्म का परिणाम होता है, जो भी लाभ बताया गया था। क्या लाभ बताए गए थे? सात लाभ बताए गए थे।

68. स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम् । आयु: (प्राणं) प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् । मह्यं दत्त्वा (ब्रह्मलोक व्र) व्रजत् ब्रह्मलोकम् - सात चीज़ गायत्री देती है।

69. पाँच व्यक्ति मिल कर के जितना काम कर सकते हैं, मुझ अकेले ने किया है। पाँच (को) के जागरण की मैं विधि बताता हूँ, वास्तव में पाँच व्यक्ति होते हैं

70. पाँच शरीरों से मैंने काम किए हैं - एक शरीर ने लेखन का काम किया, एक शरीर ने, एक शरीर ने संगठन का काम किया, एक शरीर ने योगाभ्यास की, की खोज और रिसर्च का काम जारी रखा है

71. एक शरीर ने लोगों की सेवा करने के लिए और सहायता करने के लिए (सत्प्रयास) से लोगों की सेवा, सहायता की है, और एक से अपना आत्मिक, (आ, आ, आत्मा) का विकास किया है, ये नया युग लाने के लिए बहादुरों की सेना इकट्ठी की है

72. एक मेरा ये स्वरूप है - इसीलिए पाँच शरीरों से काम करने की वजह से साढ़े, साढ़े तीन सौ वर्ष का हो गया तो कोई बात नहीं - आयु

73. प्राण - प्राण - कल मैं कह रहा था न - जो साँड़ की तरीके से, साँड़ की तरीके से (ढाँ) पड़ता हुआ, और ये कहता हूँ - मेरे सामने कोई आएगा तो पेट फाड़ दूँगा। बेटे मैं हिम्मत के साथ चलता हूँ।

74. ये कहता हूँ जमाने से - जमाने - हाँ - तू खराब जमाना है - हाँ - और लाखों आदमी तेरे हिमायती हैं - हाँ - लाखों आदमी दुनिया को गिराने में लगे हुए हैं - अब हम तुझे बदल देंगे, बदल देंगे

75. ये क्या है? ये बेटे हमारी (टि) टिटहरी जैसी हिम्मत है, गिलहरी जैसी हिम्मत है। टिटहरी - प्राण किसे कहते हैं? प्राण बेटे हिम्मत को कहते हैं

76. आदमी का संकल्प इतना बड़ा होता है, ये प्राण शक्ति (कहलाती) है। आयु, प्राण: - गायत्री का एक अक्षर है प्राण - प्राण किसे कहते हैं? हिम्मत है।

77. कैसी हिम्मत है? बेटे ऐसी हिम्मत होती है - जहाज, जहाजों को पलट दे जो उसे तूफान कहते हैं, जहाजों को पलट दे जो उसे तूफान कहते हैं, जो तूफानों से टकराए उसे इंसान कहते हैं, जो तूफानों से टकराए उसे इंसान कहते हैं।

78. इसका नाम है प्राण - आयु, प्राण, (प्र प्र) प्रजां- प्रजां - गायत्री के अंदर से प्रजा होती है - बेटे बहुत संतानें हो जाती

79. हमारे बहुत बच्चे हैं - कितने बच्चे हैं? अभी-अभी हमने बताया था, (पु पु) पुनर्गठन करने जा रहे हैं, इन (ती) की तादात दो लाख, जो हमारी पत्रिकाओं के ग्राहक - और जो ऐसे ही हैं, जो कभी मिल गए थे, कभी नहीं मिले - (वो) वो कितने हैं? वो तो बेटे (द) दस लाख हैं।

80. हमारी संतानें सब सुयोग्य हैं - हमारी संतान में कोई ऐसा नहीं है जिसके बारे में कभी हमको शिकायत करनी पड़े। कोई भजन करता है, कोई जप करता है, कोई अनुष्ठान करता है, कोई सेठ है, कोई सन्यासी है, कोई डॉक्टर है

81. आयु, प्राण, प्रजां, पशुं, कीर्तिं - कीर्ति भी बेटे हमने पाई है - कीर्तिं, द्रविणं - और पैसे की (बा बा) बात तो आपको कह ही रहे थे।

82. इतना कह सकता हूँ कि मेरे पास बहुत पैसा है। जब मैं खर्च करना चाहता हूँ, तो चाहे जितना खर्च कर लेता हूँ। जब तक खर्च नहीं करना चाहता, तो बैंक में जमा रखता हूँ - भगवान की में, ताकि कोई चोर न ले जाए

83. ब्रह्मवर्चसम् - (आखिरी) बात गायत्री की है - ब्रह्मवर्चस तो बेटे बता ही रहा हूँ। सातों चीज़ हो गईं? हाँ, सातों चीज़ हो गईं। बेटे कैसे हो सकती हैं? अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तब।

84. इसीलिए, मित्रों मैं आया, और लोगों को ये साबित करने के लिए, हिम्मत दिलाने, विश्वास दिलाने के लिए आया, कि लोगों, घबराने की ज़रूरत नहीं है।

85. विवेकानन्द भी अपने समय पर आए थे और लोगों से ये कहा था, आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है, और विश्वास खोने की ज़रूरत नहीं है।

86. हिन्दुस्तान वालों से कहा - देखो इतनी (जल्दीबाजी), उतावली करने की ज़रूरत नहीं है, हमारी फिलॉसफी बड़ी है। हमको इतनी उतावली करने की ज़रूरत नहीं है, ज़रा सा समझो तो सही।

87. विदेशों में जाकर के लोगों से ये कहा उन्होंने, विवेकानन्द ने - तुम काँच के महल पे ढेले फेंको मत - ये दुनिया की शांति, और दुनिया (का), दुनिया (का) नया संदेश, दुनिया को महान संदेश देने वाली (जो) संस्कृति है

88. मैंने लोगों से कहा - अध्यात्म के ऊपर से, भगवान के ऊपर से, आपको निष्ठा खोने कि ज़रूरत नहीं है। इसके सारे सिद्धांत सही हैं। (फरक) केवल ये हो गया है, इसकी सही तरीके और सही विधियाँ नहीं मालुम हैं आपको।

89. गायत्री के जो तीन चरण हैं, तीन चरण हैं, मैंने इसमें वो सारे सिद्धांत छिपे हुए पाए, जो ज्ञान भाग से संबंधित हैं।

90. विज्ञान भाग तो वो जो समझा चुका आपसे, जिसमें योगाभ्यास की ज़रूरत पड़ती है, तप करना पड़ता है, योग अनुष्ठान करने पड़ते हैं, जप करने पड़ते हैं

91. जीवन के व्यवहार से, और मनुष्य के चिंतन से (संबंधित) रखता है, उसका नाम है ज्ञान पक्ष। गायत्री का ज्ञान पक्ष है अपनेआप में सामर्थ्यवान।

92. दोनों आवश्यक हैं, और दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं। विज्ञान पक्ष के बिना ज्ञान पक्ष अधूरा रह जाता है, और ज्ञान पक्ष के बिना विज्ञान पक्ष अधूरा रह जाता है।

93. आप जप अनुष्ठान करते रहें, जीवन के सुधार करने के लिए कोई प्रक्रिया न करें, चिंतन को सुधारें नहीं, और अपने दृष्टिकोण को सुधारें नहीं - दे अनुष्ठान, दे अनुष्ठान, दे अनुष्ठान - ऐ तेरे का, दे अनुष्ठान - विचार नहीं करेगा? नहीं महाराज जी विचार नहीं करूँगा - तो बेटे तेरा अनुष्ठान धूल के बराबर है।

94. वहाँ एक, एक घटना मैंने देखी जिससे आपको ये बात मालुम पड़ेगी कि विज्ञान के साथ में ज्ञान पक्ष कैसा, कैसा आवश्यक है।

95. मैं ये विचार करता रहा - इतने दिन इनको यहाँ हो गए, दस-दस बारह-बारह साल यहाँ रहते हुए हो गए, और ये जप भी करते हैं, मौन भी करते हैं, अनुष्ठान भी करते हैं, ध्यान भी करते हैं, गंगाजल भी पीते हैं, सारे कर्मकाण्ड करते हैं ये

96. फिर, इनका क्रोध शांत न हो सका, स्वार्थ शांत न हो सका, तो हम कैसे मानें कि इनको भगवान मिल जाएगा। भगवान मिलने की तो पहचान ये है कि आदमी की मन की मलीनताएँ दूर हो जाती हैं, और शीशे में भगवान (दी) दीखता है - सीधी सादी सी बात (है)

97. भगवान किसी के पास है कि नहीं बताइए - बेटे सीधी बात बता - अपना ईमान खोल के दिखा - और तेरे हम शीशे को देखेंगे - इसमें तेरा शीशा साफ होगा तो भगवान की शकल दिखाई पड़ेगी - शीशा हमारा गंदा है तब फिर (न) नहीं दिखाई पड़ेगी

98. शीशे को धो - सारा उद्देश्य शीशे की सफाई करने का है, और कुछ नहीं है - बेटे जितना भी जप, अनुष्ठान है, अपने मन की मलीनता धोने के अलावा है - भगवान की खुशामदें और चापलूसी करने का कोई उद्देश्य नहीं है - अपनेआप की उपासना करते हैं, भगवान की हम क्या करेंगे

99. ज्ञान वाला पहलू किसे कहते हैं? बेटे जिसमें दृष्टिकोण का और चरित्र का परिमार्जन और (प) परिष्कार होता है।

100. ज्ञान वाला पहलू है और वो विज्ञान वाला पहलू है - दोनों में से एक से काम चलेगा? नहीं - दोनों से काम चलेगा - एक से चलाइए - नहीं बेटे, (ए) एक से (न) नहीं चलेगा।

101. अध्यात्म के दो पहलू हैं - एक ज्ञान वाला पहलू, विज्ञान वाला पहलू। ज्ञान वाला पहलू भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना विज्ञान वाला पहलू।

102. भजन को भी कर और जीवन का परिष्कार भी कर - दोनों को मिला देते हैं तो बेटे एक समग्र अध्यात्म बन जाता है

103. जन्म जन्मांतरों के कुसंस्कार जो जमे हुए हैं इनको भी साफ करना चाहिए, इनको भी धोना चाहिए, अपने मन की मलीनताओं के बारे में भी गौर करना चाहिए, अपने (चिं) चिंतन और दृष्टिकोण का भी विचार करना चाहिए, और इसके साथ भी लोहा लेना चाहिए, और आत्मपरिष्कार भी करना चाहिए

104. जप करने से मुक्ति, जप करने से - नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं - जप करने से मुक्ति नहीं - तो फिर कैसे? बेटे जप के साथ-साथ में जीवन का संशोधन - (दोनों के एक) ज्ञान और विज्ञान दोनों से मिला हुआ पहलू है - ब्रह्मविद्या और ब्रह्म(वर्)वर्चस

105. ज्ञान और विज्ञान - दोनों को मिला कर के आप चलेंगे तो बिजली के दोनों तारों को मिला देने से जिस तरीके से करेंट पैदा होता है, उस तरीके से करेंट पैदा हो जाएगा

106. ज्ञान वाले पहलू के तीन पक्ष हैं - तीन पक्ष हैं - एक का नाम है आस्तिकता - और एक का नाम है आध्यात्मिकता - और एक का नाम है धार्मिकता - ये तीन धाराएँ हैं ज्ञान पक्ष की - विज्ञान पक्ष की तो मैंने बता दी थीं आपको, आप भूलना मत - श्रद्धा, उच्च चरित्र, और, और ऊँचा उद्देश्य

107. आस्तिकता हमारे जीवन का स्वरूप और हमारे जीवन का अंश होना चाहिए - आस्तिकता किसे कहते हैं? आस्तिकता बेटे ईश्वर विश्वास को कहते हैं, और ईश्वर का विश्वास जमाने के लिए भजन किया जाता है

108. भजन करने के क्या उद्देश्य हैं? - ईश्वर का विश्वास जो हमने गँवा दिया - ईश्वर का विश्वास जो हमने गँवा दिया - ईश्वर का विश्वास जो हमने गँवा दिया - उसको जीवंत करने के लिए, और अपने मन पे मज़बूती के साथ उसकी प्रतिष्ठापना करने के लिए हम भजन करते हैं, पूजा करते हैं, जप करते हैं, ध्यान करते हैं

109. ईश्वर का विश्वास मुख्य बात है, भजन उसका एक माध्यम है, मीडियम (medium) है - मीडियम से हमारे मन पे भगवान का विश्वास जम जाए - इसीलिए हम भजन करते हैं

110. आप ऐसा, ऐसा, ऐसा अपमान करते हैं भगवान जी का - ये समझते हैं कि हम रोटी खिला देंगे, कपड़े पहना देंगे - आप उसको ये समझते हैं भूखा भिखारी है, कंगला है - कंगला नहीं है भगवान, बड़ा समर्थ आदमी है

111. और भगवान को आप ये समझते हैं कि आप चापलूसी से काबू में कर लेंगे, चापलूसी से कर लेंगे, चापलूसी - भगवान की इतनी पैनी आँखें हैं, तेज़, (एक्) एक्सरे (X-Ray) की किरणों की तरीके से भगवान की आँखें हैं, जो भेदन करती, पार करती हुई सीने में से निकल जाती हैं, और आपके कलेजे को देखती हैं चीर कर के, ये देखती हैं आप किस उद्देश्य के लिए कर रहे हैं, ये बताइए

112. आपका ईमान कहाँ है, और आपकी दृष्टि कहाँ है, किस काम के लिए करते हैं - बेटे इसके अलावा और भगवान के ऊपर कोई (ऐसी) असर नहीं डालती - आप किस काम के लिए करते हैं ये बताइए - बस, भगवान को दूसरी बात सुनने की फुर्सत नहीं है

113. आप जो कर रहे हैं, किस काम के लिए कर रहे हैं? काम, काम अगर ऊँची कोटि का है तो भगवान की मदद मिलेगी और भगवान का प्यार मिलेगा

114. मित्रों क्या करना पड़ेगा? हमको भगवान को, आस्तिकता जिसको हम कहते हैं, (अ) उसका नाम है ईश्वर का विश्वास। (ई, ई) ईश्वर का विश्वास किसे कहते हैं? ईश्वर का विश्वास बेटे हमारे जीवन में चमकता है, और ईश्वर का विश्वास, ईश्वर का विश्वास हमारे, हमारे, हमारे प्रत्येक क्रिया-कलाप में से परिलक्षित होता है।

115. कैसे परिलक्षित होता है - ईश्वर का विश्वास? ईश्वर का विश्वास (इ) इस मायने में परिलक्षित होता है कि भगवान

116. भगवान क्या है? पहले तो ये जानना पड़ेगा - तब पता चलेगा भगवान से आप वास्ता रखते हैं कि नहीं, और उसकी उपासना, भजन करते हैं कि नहीं करते

117. भगवान के दो, दो रूप हैं - एक निराकार, एक साकार। निराकार किसे कहते हैं? निराकार भगवान उसे कहते हैं जो आँख से दिखाई नहीं पड़ता, पर वृत्तियों के रूप से काम करता है - हमारे शरीर में, हमारे जीवन में तीन तरीके से काम करता है

118. हमारे शरीर में सत्कर्मों के रूप में, हमारे मस्तिष्क में सद्विचारों के रूप में, (औ) हमारे अंत:करण में सद्भावनाओं के रूप में

119. (अगर) उसको देखने का हो तो तीन तरीके से (अ) अनुभव किया जा सकता है, देखा नहीं जाता भगवान को

120. व्यापक भगवान है तो देखा नहीं जा सकता - उसको (अन) अनुभव किया जा (सकता है)। अनुभव हम कर सकते हैं। तीन हमारे शरीर हैं, तीन शरीरों में अनुभव कर सकते हैं निराकार भगवान को

121. जो हमारे शरीर में क्रिया के रूप में सत्कर्मों के (लिए), मस्तिष्क में सद्विचारों के रूप (में), और अंत:करण में सद्भावनाओं के रूप में अगर आता हो तो जान लेना भगवान है निराकार।

122. महाराज जी निराकार से तो हमारा समाधान नहीं हुआ। निराकार से तेरा समाधान नहीं हुआ तो मैं साकार बता सकता हूँ।

123. सिया राम मय सब जग जानी, करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी - ईशावास्यमिदम ग्वं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत - ये सारे के सारे विश्व ब्रह्माण्ड में मैं समाया हुआ हूँ

124. शंकर भगवान का गोल-मटोल पिण्डा - ग्लोब - शालीग्राम का गोल-मटोल पिण्डा - ग्लोब - सारा विश्व ब्रह्माण्ड जो दिखाई पड़ता है ये हमारा स्वरूप है

125. इसको आप सिया राम मय जान कर के, नारी तत्व को सिया मान कर के, और नर तत्व को राम मान कर के, इनको प्रणाम कीजिए, अर्थात सेवा कीजिए, इनकी सहायता कीजिए, इनके साथ में सद्व्यवहार कीजिए - हो गई साहब सेवा आपकी - अब तो हो गई साकार - साकार भी हो गया

126. महाराज जी फिर एक और रह गया अभी - (आप की) समाधान नहीं हुआ - क्या नहीं हुआ? फिर ये जो (हम) हमने (इ) इष्टदेव बनाए हुए हैं, ये क्या चक्कर है?

127. अच्छा तो बेटे मैं बताता हूँ - ये इष्टदेव तैने बनाए रखे है, साकार और निराकार से ये भिन्न हैं। ये साकार भी नहीं हैं, और निराकार भी नहीं हैं। ये कोई अलग (दुनिया) है।

128. क्या है ये? ये (इष्ट) इष्टदेव है। इष्टदेव किसे कहते हैं? 'इष्ट' संस्कृत में कहते हैं 'लक्ष्य' (को) - इष्ट मीन्स (means) लक्ष्य, लक्ष्य मीन्स (means) इष्ट - लक्ष्य, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?

129. मनुष्य के जीवन का विकास, जीवन (के) का स्वरूप क्या होना चाहिए, ये (हमें) इष्टदेव (सिखाता है) - इष्टदेव कौन है हमारा? इष्टदेव हमारे राम हैं - तो हम क्या करेंगे? हम बेटे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरण चिह्नों पर चलेंगे, अपनेआप को राम जैसा ढालने की कोशिश करेंगे।

130. श्रीकृष्ण (पु) पूर्ण पुरुष थे - विनोद, ये भी जीवन में आवश्यक है - और त्याग, ये भी जीवन में आवश्यक है। विनोद और त्याग का समन्वय है, इसलिए पूर्ण पुरुष हैं।

131. आपका इष्ट कौन है? हनुमान जी - आप क्या बनेंगे? हम हनुमान जी बनेंगे - हनुमान जी कैसे होते हैं? हनुमान जी ऐसे होते हैं (जिनको) 'राम काज कीन्हे बिना मोहे कहाँ विश्राम' - चौबीस घंटे राम का काज करने में हनुमान जी थे

132. दे मनोकामना, दे मनोकामना, दूसरी कोई (बा) बात ही नहीं आती है। दूसरी कोई बात सुनना ही नहीं चाहता, मनोकामना के अलावा।

133. मित्रों क्या करना पड़ेगा? हमारा अध्यात्म - अध्यात्म वो होना चाहिए जिसमें भगवान की निष्ठाएँ जुड़ी हुई हों, लक्ष्य जिसके साथ जुड़ा हुआ हो, तो हम उसको कह सकते हैं - ये है आस्तिकता हमारे जीवन में

134. भगवान का भक्त जो होता है, बड़ा होता है। अगर तू भक्ति करे, वास्तव में - कैसी भक्ति होती है? बेटे भक्ति ऐसी होती है (जिसमें अपने आदमी अ) जिसमें व्यक्ति अपनेआप को सौंप देता है

135. सबेरे हम आपको ध्यान कराते हैं, रोजाना - उसमें हम एक (बात) भक्ति की निशानी और (उसका) तरीका बताते हैं, और कहते हैं - समर्पण, विसर्जन, विलय, समन्वय, समापन, शरणागति

136. धूपबत्ती खिला दूँगा, बेल का पत्ता खिला दूँगा, और आक का फूल खिला दूँगा, और ये धतूरे का (फ) फूल खिला दूँगा। किसको खिला देगा? घोड़े को। घोड़ा कौन होता है? महादेव।

137. तो (फि) फिर क्या करेगा? महादेव पे सवारी करूँगा। कैसे सवारी (करूँगा)? महाराज जी यहाँ, जहाँ मैं ले जाऊँगा वहीं (चल पड़ूँगा), जो चाहूँगा वो करा लूँगा महादेव से। तो, तो बेटे तेरी मर्जी की बात है।

138. मेरी भक्ति अलग है - मेरी भक्ति (ऐ) उसे कहते हैं जिसमें कि बीज की तरीके से गलना पड़ता है, और वृक्ष की तरीके से फलना पड़ता है

139. भगवान की, भगवान की समीपता उसे कहते हैं (जिसमें) भगवान की आज्ञाएँ, भगवान की इच्छाएँ, भगवान के संदेश, भगवान की मर्यादाएँ, भगवान की हुकूमतें - हमारे जीवन के रोम-रोम में समा जाती हैं

140. अगर (हम) जीवन में समा जाती हों रोम-रोम में, और उसके अनुरूप हम आचरण करना शुरू करते हैं, तो मैं एक बात बताए देता हूँ आपको, (कि भगवान) कि मनुष्य भगवान से बड़ा हो जाता है, अगर भक्त हो जाए तब

141. भक्ति की निशानियाँ, आस्तिकता की निशानियाँ - आस्तिकता की निशानियाँ दो बातों पे टिकी हुई है - केवल माला घुमाने में नहीं है - सटक सीता-राम, सटक सीता-राम, सटक सीता - ये, ये नहीं है बेटे भगवान की भक्ति की निशानी

142. असली भक्ति की व्याख्या बता दीजिए। (बट) बेटे, उसे बता कर के मैं बता दूँगा कि असली भक्त तुझे बनना हो तो ऐसे बनना पड़ेगा - इससे कम में भी नहीं और ज्यादा भी नहीं।

143. ईमानदारी की कमाई, परिश्रम की कमाई, मेहनत की कमाई - (तब) ये क्या है? ये बेटे, ये, ये योग है, तप है

144. चौढ़ा वाला हृदय, उदार हृदय, दानी हृदय, परमार्थ (का) परायण का हृदय - ये भक्त की निशानी है - (भक्त की) भक्त निष्ठुर नहीं हो सकता, भक्त कृपण नहीं हो सकता, भक्त संकीर्ण नहीं हो सकता, भक्त संग्रही नहीं हो सकता - भक्त का, भक्त का अंत:करण उदार होना चाहिए, भक्त को चरित्रवान होना चाहिए, भक्त को समाजनिष्ठ होना चाहिए

145. जप करने का समय - उनकी स्त्री जब खाना पकाती तो जप करती रहती राम नाम का, (और) बापा जलाराम जब खेती का काम करते तो (र) राम नाम लेते रहते - असली भक्ति बता रहा हूँ

146. असली भक्ति बता रहा हूँ तुझे - असली भक्ति कैसे हो सकती है - जीवन की प्रक्रियाओं के साथ जुड़ी रहती है असली भक्ति।

147. हाँ महाराज जी, हम तो ये समझते थे, कि भगवान केवल क्रियाओं को देखता है, और क्रियाओं को समझता है, और क्रियाओं का लेखा-जोखा रखता है - ऐसी बात नहीं है - क्रियाओं के साथ-साथ में विचारणाओं का जुड़ा रहना आवश्यक है।

148. एक दिन भगवान आए, भगवान आए, अपने भक्त का गौरव बढ़ाने के लिए - भगवान आते हैं हमेशा, भक्त का गौरव बढ़ाने के लिए।

149. (भक्त) की परीक्षा भी होती है। परीक्षा होती है? हाँ बेटे, परीक्षा भी होती है। भक्त की परीक्षा होती है? हाँ बेटे, परीक्षा के बिना तो कोई सर्टिफिकेट भी नहीं (मिलेगा)।

150. बापा जलाराम की क्या, क्या (का) कामना थी? साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम्ब समाए - (संत) आप नहीं भूखा मरूँ, संत न भूखा जाए।

151. भक्त का स्वरूप क्या होना चाहिए? (भगवान को) उदार - एक - पात्र, सत्पात्र, चरित्रनिष्ठ, और समाजनिष्ठ

152. आस्तिकता इसी का नाम है। आस्तिकता हमारे जीवन में आए, भगवान का विश्वास हमारे जीवन में आवे, भगवान की गरिमा हमारे जीवन में आवे, भगवान का आधार हमारे जीवन में आवे - तो बेटे हमारा मज़ा आ जाए, और जाने कैसा-कैसा हो जाए

153. (फिर) वो शक्तियाँ और सिद्धियाँ, जो भगवान के पास हैं, वो सब हमारी हो जाएँ - हम भगवान के हो जाएँ, (और) भगवान हमारा हो जाए

154. आध्यात्मिकता क्या? अपने ऊपर विश्वास करना, अपनेआप को धोना, अपनेआप को सम्हालना, अपनेआप को ठीक करना

155. अपनेआप को देखो, अपनेआप को (सुनो) - शक्ति का पुंज, शक्ति का केंद्र, सामर्थ्यों का केंद्र, अगर हम इसको ठीक कर लें तब

156. आत्मा हमारा शीशे के बराबर है - इसके सामने हम गंदी चीज़ें रख दें, बस सारे का सारा आत्मा हमारा गंदा दिखाई पड़ता है - अच्छी चीज़ें रख दें, तो हम, (अच्छा) अच्छा आत्मा हमारा दिखाई पड़ता है।

157. अपनेआप को हम देखें, अपनेआप को सम्हालें, अपनेआप को संशोधन करें, अपनी गल्तियों को ठीक करें - अगर हम करते हैं तो गायत्री का दूसरा वाला चरण, जिसको हम आध्यात्मिकता कहते हैं, सम्पन्न होता (है)

158. तीसरा वाला चरण - जिसको हम धार्मिकता कहते हैं - कर्तव्यनिष्ठा, ज़िम्मेदारी, फ़र्ज़, फ़र्ज़, फ़र्ज़, फ़र्ज़, कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य - कर्तव्यों के बारे में हम ध्यान रखें बेटे, तो फिर (हमारा) हैरानियाँ दूर हो जाएँ, और हर (वखत) खुशी हमारे ऊपर छाई रहे - खुशी का, संतोष का कोई ठिकाना नहीं रहे - हम अपना कर्तव्य (पु) पूरा करते हैं।

159. (हम अपने) कर्तव्य पूरा किया - कर्तव्य अगर मनुष्य के जीवन में हैं, आदमी को प्रसन्न रहने के लिए पूरी-पूरी गुंजाइश है।

160. आप अपने फ़र्ज़, कर्तव्य, अगर आप करते हैं, तो आपको प्रसन्न रहने का पूरा अधिकार है - पूरा अधिकार है - और चौबीस घंटे (आपके) प्रसन्नता पे कोई आँच नहीं (लगा सकता)।

161. बेटे हम इसलिए अभ्यास कराते हैं आपको - किसका? मूर्ति पूजा का - सामने वाला पहलू, और सामने वाले लोग, आपके साथ में क्या सलूक करते हैं, ये विचार किए बिना, आप, आप अपना फर्ज़ पूरा करते हैं - बस।

162. ये क्या कहलाएगी? ये बेटे धार्मिकता कहलाती है। धर्म किसे कहते हैं? धर्म बेटे कर्म को कहते हैं, कर्तव्यों को कहते हैं, और (फ) फर्ज़ को कहते हैं। वर्क इज़ (वर) वर्शिप (work is worship)। (भजन) जो कर्म है, यही पूजा है। क्यों पूजा है? बेटे इसलिए पूजा है, कि ईमानदारी से किया हुआ कर्म

163. ईमानदारी का श्रम - एक - लोकहित वाला श्रम - दो - और (जिस) जिसको हमने (प्रेस्टीज प्वॉइंट - prestige point) बना कर के किया हो, कि हम ऐसा काम करेंगे जिससे कोई आदमी उंगली न उठाने पावे

164. (बेह) बेहतरीन काम करेंगे - ये क्या है? ये बेटे ये, ये, ये, ये काम वो है जिसको हम (क) कर्मयोग कहते हैं - कर्म वो जिसको हम अपना फ़र्ज़ समझ के करते हैं

165. इसीलिए आदमी को अपनी हैरानी, और (आ आ) आदमी को परेशानी, छोड़ कर के, सिर्फ इस बात पर केंद्रीभूत करना चाहिए, कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। कर्तव्यों का पालन करते हैं तो बेटे ये बहुत बड़ी बात है।

166. हम शरीर के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें, तो हम इसको, इसको ठीक रख सकते हैं, (और) निरोग रख सकते हैं, बहुत समय तक। संयम करेंगे

167. शरीर के प्रति कर्तव्यों का पालन (करें) - दिमाग के प्रति कर्तव्यों का पालन - इसमें अवांछनीय विचार आते हैं, इनको रोक

168. अच्छी चीज़ें ला - अपने विचारों में बलपूर्वक अच्छे विचार ला, फिर देखें तेरे (ग) गंदे विचार कहाँ से आते हैं।

169. मित्रों क्या करना चाहिए? मन के प्रति अपना (कर) कर्तव्य, शरीर के प्रति अपना कर्तव्य, (अ आ आ) आत्मा के प्रति अपना कर्तव्य

170. भगवान ने, जिसने कि मानव जीवन दिया, उसके प्रति भी हमारे (क) कर्तव्य हैं - देश के प्रति भी हैं, समाज के प्रति भी हैं, संस्कृति (भी) के भी हमारे कर्तव्य हैं - उन सब कर्तव्यों से हम जुड़े हुए हैं

171. औलाद के प्रति - औलाद के प्रति भी कर्तव्य है तो बेटे इनको सुसंस्कार दे, धन देने का कोई मतलब नहीं है।

172. जो पसीने का कमाया हुआ नहीं है, जो आदमी ने अपने पसीने से नहीं कमाया है, उसको हजम नहीं कर सकता आदमी, वो हजम नहीं कर सकता।

173. वो लोहे का (पै), (लो) लोहे का पैसा है, और धातुओं का पैसा है, पत्थर का पैसा, और पारे का पैसा है, जो आदमी ने अपनी मशक्कत से नहीं कमाया है, और मेहनत से नहीं कमाया है।

174. हमको (अपने) औलाद (के लिए) संस्कार देने चाहिए - हमको, हमको श्रमशीलता के संस्कार, मितव्ययिता के संस्कार, मधुरता के संस्कार, सहकारिता के संस्कार, व्यवस्था के संस्कार - संस्कारों को (दे के) जाइए - संस्कार अगर (आपने) दे कर के गए हैं, तो आपकी औलाद फलेगी, फूलेगी, संस्कारों की वजह से

175. गायत्री का तीसरा वाला चरण, तीसरा (च) वाला चरण - धार्मिकता - जो हमारे प्रत्येक क्रियाकलाप (में), हमारे प्रत्येक दृष्टिकोण में, समन्वित रहनी चाहिए, और जुड़ी रहनी चाहिए

176. फर्ज़, फर्ज़, फर्ज़, फर्ज़, फर्ज़ हमको चारों ओर दिखाई पड़े। कर्तव्य हमको कहाँ से बुलाते हैं? कर्तव्य हमको कहाँ से पुकारते हैं? भगवान हमको कहाँ से पुकारता है? देश हमको कहाँ से पुकारता है? संस्कृति हमको कहाँ से पुकारती है? हमारा बाप कहाँ से पुकारता है? माँ कहाँ से पुकारती है? बेटी कहाँ से पुकारती है? गरीब कहाँ से पुकारते हैं? कर्तव्यों की पुकार आती है

177. बेटे, कर्तव्यों की बात को सुनिए, मोह की बात मत सुनिए, लोभ की बात मत सुनिए, संकीर्णता की बात मत सुनिए, स्वार्थपरता की बात मत सुनिए

178. आप हर एक आवाज से कान बंद कीजिए, और केवल कर्तव्यों की आवाज सुनिए - तब मैं समझूँ कि आप गायत्री के उपासक, गायत्री का तीसरा चरण आपको स्वीकार है, और आपने विचारणाओं में गायत्री का समावेश कर लिया

179. आपकी आध्यात्मिकता - आत्म-विश्वास, आत्म-परि(शो)शोधन, आत्म-संघर्ष, आत्म-परिष्कार - ये सारे के सारे क्रिया कृत्य हैं, जिसको हम आध्यात्मिकता (क) कह सकते हैं।

180. अपनेआप को देखो, अपनेआप को समझो, अपनेआप को ठीक (किया) - तुमने ही अपनेआप को गिराया है, और तुम ही अपनेआप को उठा सकते हो - अपनेआप को सुधारो, और अपनेआप को बदल दो, ताकि सारी, सारी दुनिया तुम्हारी बदल जाए।

181. आत्मावलम्बी - अपनेआप को देखना (जब) हम सीखते हैं, तो हम अध्यात्मवादी होते हैं, और ये गायत्री मंत्र की दूसरी वाली धारा कहलाती है

182. तीसरी (धार) वाली धारा वो है, जिसको हम ईश्वर विश्वास कहते हैं, ईश्वर की आस्था कहते हैं, (ई) ईश्वर को जीवन में सम्मिलित करना कहते हैं, ईश्वर परायण होना कहते हैं, ईश्वर को समर्पण करना कहते हैं - ये है ईश्वर का विश्वास जो पूजा, भजन के माध्यम से, (इस) ईश्वर की आस्था को हम अपने जीवन में हृदयंगम करते हैं

183. तीनों ही तीनों अगर हमारी विचारणाएँ, हमारे जीवन में काम करने लगें, (जीवन) धारा बहने लगे, तो जानिए गायत्री का ज्ञान वाला पक्ष, जो उसका प्राण है, उसका जीवन है - फिर, फिर आपका गायत्री का ज्ञान वाला पक्ष अगर जीवन में आए - (तो) विज्ञान वाला पक्ष, दोनों को मिला कर के, ऐसे करेंट (current) उत्पन्न हों

184. सारे के सारा आध्यात्मिकता काम करने लगे - अगर (आपको उसको) ज्ञान वाला पक्ष, विज्ञान वाला पक्ष - चरित्र वाला पक्ष और क्रिया (प) वाला पक्ष - जप-तप वाला पक्ष, और अपने जीवन के दृष्टिकोण के परिष्कार (वाला) पक्ष - दोनों को कर लें तो मजा आ जाए

185. कोई और आदमी दे आदमी को, पर उसको लेने की पात्रता न हो, हजम करने की पात्रता न हो, तो कोई फायदा नहीं कर सकता

186. हजम करने के लिए, हजम करने के लिए हमारा व्यक्तित्व विकसित होना चाहिए, भगवान की कृपा का - भगवान की कृपा हर एक को हजम नहीं हो सकती, (और) हर एक को नहीं मिल सकती