आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

3. पात्रता का महत्व

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

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प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1 - ये आंतरिक कायाकल्प है, इसीलिए आपको अपनी मन:स्थिति को, अपने चिंतन को, और अपनी विचारणाओं को, -------- को, दृष्टिकोण को भी बदलना पड़ेगा।

2 - आमतौर से ये समझते हैं लोग - देवताओं की खुशामद कर के, और देवताओं से कुछ प्राप्त कर के हम अपना फायदा उठा लेंगे - अध्यात्म इसी का नाम है - ये लोगों का गलत -------- है।

3 - देवताओं का अनुग्रह मिलता तो है - ये तो मैं नहीं कहता देवताओं का अनुग्रह नहीं मिलता - लेकिन बिना शर्त नहीं। -------- को नहीं मिलता। पात्रता पहले साबित करनी पड़ती है, इसके बाद में ही कहीं ऐसा होता है, कि देवता कोई सहायता कर सकें

4 - कर्मकाण्डों को देख कर के प्रसन्न थोड़े होते हैं। कर्मकाण्डों के पीछे छिपी हुई ------- की भावनाओं को देखते हैं, और अगर भावना उसकी सही है, तो निश्चित रूप से वही फल देते हैं जैसे कि आपने सुना है।

5 - देवताओं के अनुग्रह हर एक के (हि) हिस्से में नहीं आ सकते, गुरुओं के अनुग्रह हर एक के हिस्से में नहीं आ सकते। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द को अनुग्रह दिया था। मांगने वाले तो कितने आते थे, हजारों आदमी आते थे, हजारों आदमी -------- अपनी जरूरतें पूरी करा कर के भाग खड़े होते थे।

6 - पेड़ (अपने) चुम्बक शक्ति से बादलों को घसीट लेते हैं, और बादलों को बरसने के लिए मजबूर कर देते हैं। बादल कहाँ बरसते हैं? वहाँ बरसते हैं जहाँ कि -------- हरियाली होती है।

7 - नारियल चढ़ा देगा उसी को दे देगा, -------- सौ जप कर देगा उसी को दे देगा, पाठ कर देगा उसी को दे देगा, बरगलाने और (फु) फुसलाने से, मतलब है क्रियाएँ करने से, आप देवताओं का अनुग्रह नहीं प्राप्त कर सकते। क्रियाएँ आवश्यक तो हैं

8 - लेकिन आप ये मत ख्याल कीजिए - केवल जप करने से, या -------- कम खाने से आप कोई लम्बे-चौढ़े फायदे उठा सकेंगे - आपको मन:स्थिति को जरूर बदलना पड़ेगा।

9 - फूल की तरीके से अगर आप अपने जीवन को खिला सकते हों, अपनी पात्रता को विकसित कर सकते हों, आप अपनी मन:स्थिति में हेर-फेर कर सकते हों, (तो) आपको हम -------- दिला सकते हैं कि देवताओं के अनुग्रह आपको जरूर मिलेंगे

10 - आप इस ख्याल से मत रहिए, मिन्नतें मत मांगिए, नाक मत रगड़िए, झोली मत फैलाइए, और ये उम्मीदें मत कीजिए - कोई आदमी (आप पर) आपकी पात्रता को देखे बिना, केवल आपके क्रिया-कृत्यों से ही -------- हो कर के आपको निहाल कर जाएगा - ऐसा हो नहीं सकेगा।

11 - जलाराम इम्तिहान में पास हो गए थे। क्या इम्तिहान में पास हो गए थे? उन्होंने (अपनी जमीन में से) दो प्रतिज्ञाएँ की थीं, कि जलाराम (मेहनत) मेहनत मजूरी करेंगें, और खेती में से (अना) अनाज उगाएंगे, और उनकी स्त्री ने ये प्रतिज्ञा की थी कि हम पेट भरने के बाद में जो कुछ भी अनाज हमारे पास बच जाता है, (उनको) दुखियारों को, संतों को -------- रहेंगे 

12 - संत (के) यही निशानियाँ हैं - संत का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। भक्त का चरित्र ऊँचा न हुआ तब - (हम क्या) कीर्तन करते हैं, और अखण्ड कीर्तन करते हैं, और रात्रि जागरण करते हैं, फलाना करते हैं, ढिकाना करते हैं - -------- बातें मत करिए। आप अखण्ड किर्तन करते हैं तो मुबारक, (आप) आप पूजा करते हैं तो मुबारक, लेकिन (अप) अपनी पात्रता को विकसित करते हैं कि नहीं करते?

13 - नियत का अर्थ है (पा) पात्रता, चिंतन का अर्थ है पात्रता, --------- का अर्थ है पात्रता - आपको विकसित करनी ही चाहिए।

14 - हमारी आत्मा कहती है कि हमको अपने जीवन को श्रेष्ठ काम में --------- देना चाहिए, लगा देना चाहिए। बस चल पड़ी गंगा। 

15 - ऐसी शानदार उसकी भावना - उसको कमी नहीं पड़ने देनी चाहिए। हिमालय ने उसको यकीन दिलाया, विश्वास दिलाया - बेटी, तुम बराबर बहती रहना, और तुम्हारे अंदर सूखने का कभी मौका नहीं आएगा। हमारी बरफ बराबर गलती रहेगी, और तुम्हार पेट और तुम्हारी --------- को पूरा करती रहेगी।

16 - आपको संत का बच्चा होना चाहिए, आपको ॠषियों का बच्चा होना चाहिए, आपको -------- का बच्चा होना चाहिए, (अथवा आप) अर्थात आपका चिंतन, और आपका चरित्र, और आपका व्यक्तित्व, ऐसा होना चाहिए जिससे कि देवता आपकी बराबर सहायता करते हुए चले जाएँ।

17 - इसके लिए आपको त्याग करना ही चाहिए, आपको अपनी बुराइयाँ छोड़नी ही चाहिए, आपको -------- होना ही चाहिए, (आप) आपको अपने दृष्टिकोण में महानता (साबित) करनी चाहिए। 

18 - देने की बात विचार कीजिए, परिशोधन की बात सोचिए, --------- की बात सोचिए, अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने की बात सोचिए।

19 - बस यही अनुभव हमारे जीवन का भी है, और इस अनुभव से आपको लाभ उठाना चाहिए। आप (को) अपनेआप को खाली कीजिए, और --------- हो के जाइए।

दो दिनों से आप ये सुन रहे हैं कि कल्प क्या है? कल्प के लिए आपको क्या करना पड़ेगा? कल्प के लिए दूसरे भी आपकी सहायता करेंगे, (पर) आप ये मान के चलिए कुछ आपको भी करना पड़ेगा। आप अगर कुछ नहीं करेंगे - (औ) केवल (पूजा)‌ ही करते रहेंगे - भीतर वाले हिस्से को ठीक नहीं करेंगे - केवल कर्मकाण्ड तक (ही) सीमित हो कर के रह (जाएँगे) - तो वो उद्देश्य कैसे पूरा होगा? ये कल्प कोई शारीरिक थोड़ी है - ये क्रियाओं से थोड़ी पूरा हो जाएगा। 

ये आंतरिक कायाकल्प है, इसीलिए आपको अपनी मन:स्थिति को, अपने चिंतन को, और अपनी विचारणाओं को, आस्थाओं को, दृष्टिकोण को भी बदलना पड़ेगा।

ये कर सके, तो आप ये समझिए, बाहर की सहायता आपको ज़रूर मिल (के) रहेगी।

आमतौर से ये समझते हैं लोग - देवताओं की खुशामद कर के, और देवताओं से कुछ प्राप्त कर के हम अपना फायदा उठा लेंगे - अध्यात्म इसी का नाम है - ये लोगों का गलत ख्याल है।

देवताओं का अनुग्रह मिलता तो है - ये तो मैं नहीं कहता देवताओं का अनुग्रह नहीं मिलता - लेकिन बिना शर्त (नहीं) - कुपात्रों को (नहीं) - पात्रता पहले साबित करनी पड़ती है, इसके बाद में ही कहीं ऐसा होता है, कि देवता कोई सहायता कर सकें और किसी भक्त को या साधक को लाभ देने में (म) मददगार बन सकें।

आपको भी यही विचार कर के चलना चाहिए। आपको देवानुग्रह की आशा तो करनी चाहिए, गुरुजी के आशीर्वाद की आशा तो करनी चाहिए, गायत्री माता की कृपा की आशा तो करनी चाहिए - लेकिन उस आशा के साथ-साथ में एक जो (शर्त) जुड़ी हुई है, उसको भूल नहीं जाना चाहिए।

वो शर्त ये है कि आप अगर अपनी पात्रता साबित करेंगे, तो देवता आपकी ज़रूर सहायता करेंगे - और (देवता अगर आपकी) अगर आप अपनी पात्रता साबित (नहीं कर) नहीं कर सकते, (तो) फिर ये विश्वास रखिए कि आपको निराश ही होना पड़ेगा - देवता से किसी (ऐ) ऐसी कृपा की आशा मत कीजिए, जो कि कुपात्रों को भी मिल सकती है।

देवता बड़े होशियार हैं, मंत्र बहुत होशियार है - इससे पहले कि आप कर्मकाण्ड करें, उससे पहले (उन) कर्मकाण्डों को देख कर के प्रसन्न (थोड़े) होते हैं - कर्मकाण्डों के पीछे छिपी हुई साधक की भावनाओं को देखते हैं, और अगर भावना उसकी सही है, तो निश्चित रूप से वही फल देते हैं जैसे कि आपने सुना है।

लेकिन अगर आपने भावना को ध्यान नहीं रखा है, केवल क्रिया करने की चिह्न पूजा को कर लिया है, तो उस बहुत सस्ती सी क्रिया के बदले में, आपको वो लम्बी चौड़ी आशाएँ नहीं करनी चाहिए, जो देवताओं (के सहा सहा) सहायता से मिलती थीं, या मिल सकती हैं। 

एक उदाहरण (में) आप ध्यान (दीजिए) - बादलों को आप देखते हैं ना - बादल कितनी कृपा करते हैं - बादलों के बराबर उदार देवता कौन सा हो सकता है? बिना कीमत पानी बरसाता है, चाहे जितना पानी बरसाता है - समुद्र से लाता है और (जमीन) प्यासी जमीन को पानी पूरा करने के लिए कितना पानी बरसाता है।

लेकिन आपको ध्यान है क्या? उस पानी से कौन लाभ उठा पाता है? आप ये बताइए - हर कोई फायदा उठा लेता है - ना, हर कोई फायदा नहीं उठा सकता - हर जगह हरियाली बादलों से हो जाती है लेकिन जो चट्टानें हैं, इन चट्टानों पर एक तिनका भी पैदा नहीं होता।

आप नदी में पड़े हुए पत्थरों को ज़रा देखिए ना - नदी के पानी से किनारे गीले हो जाते हैं, जमीन गीली हो जाती है, सब (जगह गीले हो जाते) हैं - पर जो चट्टान, जो पत्थर का टुकड़ा, नदी के बीच में सैकड़ों वर्षों से पड़ा हुआ है - ज़रा तोड़ के तो देखिए - नदी का कोई अनुग्रह नहीं हो सका, क्योंकि वो पत्थर है - (और) बादलों का कोई अनुग्रह (से लाभ) नहीं हो सका, क्योंकि वो (च) चट्टान है। आप देखते हैं ना - (भूमि को पानी) बादलों के पानी से भूमि में हरियाली पैदा हो जाती है, (पर) चट्टान में क्यों पैदा नहीं (होती)?

छात्रवृत्ति के बारे में आप जानते हैं ना - (जो) फर्स्ट डिवीज़न पास होते हैं, सरकार की ओर से छात्रवृत्ति उनको दी जाती है - थर्ड डिवीज़न को मिलती है क्या? फेल होने वाले को मिलती है क्या? (उनको) हमारे साथ में (उदार) कीजिए, दया कीजिए, (उदार) कीजिए, दया कीजिए, (उदार) कीजिए, दया कीजिए - ये मत कहिए - उदारता और दया का इस दुनिया में कोई ख़ास व्यवहार नहीं है - यहाँ दुनिया में पात्रता की परख है। 

आपने देखा है ना - किसी की  खूबसूरत कन्या को बहुत से पड़ोसी (ये) माँग सकते हैं - ऐसे (आ) आवारा लड़के - अपनी कन्या हमारे हवाले कर दीजिए, और हमसे (श) शादी कर दीजिए। आपका क्या ख्याल है? कोई अपनी जवान लड़की को, जो पढ़ी लिखी भी है, सुन्दर है, सुयोग्य है - किसी माँगने वाले (को) सुपुर्द कर देगा क्या? ना - नहीं करेगा - क्यों? 

वो तो बेचारा प्यासा फिर रहा है - कोई अच्छा जमाई मिल जाए, तो हम पैसे भी देंगे, खुशामद भी करेंगे, (बरात) भी लाएँगे, कपड़े भी देंगे - कितना तलाश करता फिरता है। क्यों साहब, तलाश क्यों आप (तो) करते हैं जामाता को? जब कि आपके पड़ोस में ही पचास जामाता (इसके) लिए तैयार हैं कि हम भी आपके जमाई बनेंगे, और हमको भी आप अपनी लड़की दे दीजिए - (फिर) फिर बेटी का बाप क्यों नहीं देता? क्यों उनसे (मन) मना कर देता है? क्यों उनसे लड़ने झगड़ने को आमादा हो जाता है?

क्यों अच्छे लड़के के पास जाता है, और खुशामदें करता है, और पैसा भी देता है, और मिन्नतें भी करता है - ऐसा क्यों होता है, बता सकते हैं? सिर्फ एक ही वजह है (कि) वो जामाता इस लायक है, उसके अन्दर इतनी पात्रता है, कि उस लड़की (का) गुज़ारा कर सके, उस लड़की का ठीक उपयोग कर सके, उस लड़की की देखभाल कर सके। इसीलिए लड़की का बाप ऐसे (ही) जामाता को तलाश करता है, जो कि उसके योग्य हो। ठीक बिल्कुल ठीक, यही बात (समझिए) - 

देवताओं के अनुग्रह हर एक के (ब) हिस्से में नहीं आ सकते - गुरुओं के अनुग्रह हर एक के हिस्से में नहीं आ सकते। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द को अनुग्रह दिया था। माँगने वाले तो कितने आते थे - हज़ारों आदमी आते थे - हज़ारों आदमी छोटी-मोटी अपनी ज़रूरतें पूरी करा कर के भाग खड़े होते थे।

लेकिन जो (विवेकानन्द) देना चाहते थे, कि हम दें किसी को, तबियत से, उन्होंने (सिर्फ) विवेकानंद को दिया - क्योंकि उसके अन्दर पात्रता का अंश पाया, इसीलिए उसके सुपुर्द कर दिया।

देखते हैं ना - माता - भ्रूण पेट में (पेट में) रहता है - पेट में रहता है - जिंदा होता है तो वो माता की सहायता प्राप्त करता है (माता का दूध प्राप्त करता है) - लेकिन (वो) भ्रूण माता का होता है - उसकी पात्रता (को) माता समझती है, इसीलिए वो देती है।

पेड़ (अपने) चुम्बक शक्ति से बादलों को घसीट लेते हैं, और बादलों को बरसने के लिए मज़बूर कर देते हैं। बादल कहाँ बरसते हैं? वहाँ बरसते हैं जहाँ कि घनी हरियाली होती है।

और बादल वहाँ बरसने (से) इंकार कर देते हैं, जहाँ पेड़ नहीं (होते हैं)। मसलन रेगिस्तानों में कहाँ पानी बरसता है? मसलन जहाँ पेड़ नहीं हैं वहाँ कम पानी (बरसेगा)। लीबिया में कुछ दिन पहले ऐसे ही हुआ था - पेड़ काट डाले गए और उसका परिणाम ये हुआ कि पानी ने बरसना बंद कर दिया, और बिल्कुल सुखा पड़ (गई)। फिर पेड़ लगाए गए, (फिर) फिर बादल बरसे। (मतलब) मतलब सिर्फ ये है कि बादल पेड़ों के चुम्बकत्व से खिंच कर के चले आते हैं। 

खदानें कैसे बनती हैं, आप जानते हैं? खदानों में कहीं थोड़ा सा लोहा, (थोड़ा) पीतल, चांदी वगैरह होती है - अपने चुम्बकत्व से दूर दूर (से) फैले हुए छोटे कणों को घसीटती रहती है, (और) बड़ी खदान (बढ़ती) रहती है। इस वर्ष (सौ) सौ टन लोहा है, तो अगले वर्ष में दो (सौ) टन हो जाएगा, अगले (स) तीन (सौ) टन हो जाएगा। क्यों? क्योंकि वो खदान जो है, चारों ओर से खींचती रहती है और जमा करती रहती है। 

ठीक यही बात है - देवताओं की कृपा को घसीटा जा सकता है, (बुलाया) जा सकता है। देवता अपनेआप देंगे? नहीं - अपनेआप कौन दे देगा? 

आप अपने पैसे किसी को दे देंगे क्या? नहीं। बैंक वाला (चाहे) किसी को रुपया दे देगा क्या? नहीं। क्यों? क्योंकि बैंक वाला उधार देने के पहले, हज़ार बार ये तलाश करता है, कि जिस आदमी को दिया जाने वाला है, वो (अ) ठीक पैसे का इस्तेमाल करेगा कि नहीं करेगा? उसको पैसा वापस मिलेगा कि नहीं मिलेगा? अगर ये न हो तो कोई देने को तैयार नहीं हो सकता। 

आपने देखा है ना (देखा है ना) - (समुद्र) समुद्र के पास नदियाँ अपना अपना सामान ले के भागती हैं - कितनी सारी नदियाँ, कितनी सारी नदियाँ, कितनी सारी नदियाँ - लीजिए साहब हमारा पानी लीजिए, हमारा पानी लीजिए। (क्यों) क्यों लीजिए?

क्योंकि वो (समझते) हैं कि हमारे पानी को जमा करने कि शक्ति इसमें है - और (जो) हम अपने पानी को जमा करती हैं, तो हमारा एक मुनासिब जगह पे जमा हो जाएगा। नदियों की तरीके से दैवी शक्तियाँ भी देती तो हैं, पर हर एक को नहीं दे (सकतीं) - आप (भूल) भूल  मत जाइए । जो कोई माँगेगा उसी को देगा, 

नारियल चढ़ा देगा उसी को दे देगा, ग्यारह सौ जप कर देगा उसी को दे देगा, पाठ कर देगा उसी को दे देगा - बरगलाने और (औ फु) फुसलाने से, मतलब है क्रियाएँ करने से, आप देवताओं का अनुग्रह नहीं प्राप्त कर सकते। क्रियाएँ आवश्यक तो हैं

कपड़े की तरीके से, क्रियाएँ आवश्यक तो हैं चाकू की तरीके से, लेकिन सामान तो हो आपके पास - चाकू से कैसे (का) काटेंगे कलम को? इसीलिए केवल क्रियाएँ बहुत थोड़ा सा काम करती हैं। कर्मकाण्ड (जिसको) आप कर रहे हैं, ग्यारह सौ जप कर रहे हैं, और काम कर रहे हैं - (ये) ये है तो महत्वपूर्ण, ज़रूरी भी है, 

लेकिन आप ये मत ख्याल कीजिए - केवल जप करने से, या अनाज कम खाने से आप कोई लम्बे-चौढ़े फायदे उठा सकेंगे - आपको मन:स्थिति को ज़रूर बदलना पड़ेगा।

फूल जब खिलता है ना - फूल खिलता है तो आपने देखा है - भौंरे उसके ऊपर आते हैं, कितने सारे भौंरे बैठ जाते हैं - आपने (उनके) ऊपर (तित) तितिलियों को घूमते हुए देखा है ना - आपने उनके ऊपर (उनके ऊपर) शहद की मक्खियों के गुच्छे देखे हैं ना - कब आते हैं? जब कि फूल खिलता है। 

फूल की तरीके से अगर आप अपने जीवन को खिला सकते हों, अपनी पात्रता को विकसित कर सकते हों, आप अपनी मन:स्थिति में हेर-फेर कर सकते हों, (तो) आपको हम यकीन दिला सकते हैं कि देवताओं के अनुग्रह आपको ज़रूर मिलेंगे

जो आप यहाँ प्राप्त करने आए हैं। आपको गुरुओं के आशीर्वाद - (हमारे मरने दीजिए) - कोई और दूसरे गुरु आपके पास आएँगे और आपकी आवश्यकता को पूरा कर देंगे - पूरा ज़रूर कर देंगे।  

आप इस ख्याल से मत रहिए, मिन्नतें मत माँगिए, नाक मत रगड़िए, झोली मत फैलाइए, और ये उम्मीदें मत कीजिए - कोई आदमी (आप पर) आपकी पात्रता को देखे बिना, केवल आपके क्रिया-कृत्यों से ही प्रसन्न हो कर के आपको निहाल कर जाएगा - ऐसा हो नहीं सकेगा।

आपको इतिहास मालूम है ना - (शिवाजी को) शिवाजी को (भवान्) भवानी नाम की एक तलवार मिली थी। क्यों मिली थी? इसीलिए मिली थी कि उसने अपनी पात्रता साबित की थी - सिंहनी का दूध (दुहने) के लिए परीक्षा की थी (उनके पिता) उनके गुरु ने - (कि) आप जाइए, सिंहनी का दूध दुह के ले आइए। (जो) देखा गया कि इतना निष्ठावान है, कि अपने कर्तव्य के लिए अपने प्राण भी दे सकता है, तो भवानी से उन्होंने प्रार्थना की - आप ऐसी तलवार दे दीजिए (जो) अक्षय हो - हो गई ना - अच्छा।

(गांडीव किसको) गांडीव (कि) कहाँ से मिला था अर्जुन को? गांडीव जो अर्जुन को मिला था, ये देवताओं ने दिया था - उनने दिया था, क्या नाम है (इं इं) इंद्र देवता ने। कैसे दिया? सबको क्यों नहीं (दे) दे दिया? अर्जुन को क्यों दिया? 

क्योंकि उन्होंने (एक) एक बार इम्तहान लिया था, कि इतनी कीमती चीज़ को, (आदमी) विश्वस्त आदमी, प्रामाणिक आदमी को ही दिया जाए - हर एक को नहीं दिया जाए। आपको ख्याल होगा, जब (वो) अर्जुन वहाँ गए थे, तो उन्होंने (उनके) इम्तिहान लेने के लिए, वहाँ की सबसे (खूबसूरती) खूबसूरत युवती (उ) उर्वशी को भेजा, उर्वशी को भेजा - ऐसे हाव-भाव करने लगी, (उसके) साथ में शादी की बात करने लगी - दूसरी बात करने लगी।

अर्जुन ने ये कहा - आप तो हमारी माँ (की) बराबर हैं, और हम आपके चरणों की धूल अपने सिर पे रखते हैं, और आप (जान लीजिए) कि हम ही आपकी संतान हैं। (ये) इस जवाब से प्रसन्न हो कर के इंद्र ने ये समझा - ये इस लायक है, इसको गांडीव दे देना चाहिए। अर्जुन को गांडीव इंद्र ने दे दिया था - क्योंकि उसको ये विश्वास हो गया था - ये इसी लायक हैं।

आपको बापा जलाराम की बात मालूम है? भगवान आए थे, उनको एक झोली दे गए थे, (जिसमें) से अक्षय अन्न के भण्डार निकलते थे - ये वरदान भगवान ने दिया था, जो अभी भी (है)। आप गुजरात में कभी गए हों और बीरपुर नाम के गाँव में कभी पहुँचे हों - आपको एक सिद्ध पुरुष जलाराम बापा का स्थान मिलेगा।

वहाँ एक अन्न की झोली अभी भी टंगी हुई है, जो भगवान ने दी थी। उनकी इच्छा थी, उनकी इच्छा थी, क्या इच्छा थी? कि हमारे दरवाजे पे से कोई खाली हाथ नहीं जाने (पावे)। भगवान (ने उनकी) इच्छा पूरी की - क्यों पूरी की? औरों की क्यों नहीं की? और इच्छा करते हैं, मनोकामना करते हैं, तो उनकी इच्छा क्यों नहीं पूरी करते? क्योंकि वो 

जलाराम इम्तिहान में पास हो गए थे। क्या इम्तिहान में पास हो गए थे? उन्होंने (अपनी जमीन में से) दो प्रतिज्ञाएँ की थीं, कि जलाराम (मेहनत) मेहनत मजूरी करेंगें, और खेती में से (अना) अनाज उगाएँगे, और उनकी स्त्री ने ये प्रतिज्ञा की थी कि हम पेट भरने के बाद में जो कुछ भी अनाज हमारे पास बच जाता है, (उनको) दुखियारों को, संतों को खिलाते रहेंगे।

उनकी स्त्री खाना पकाती रहती थीं सारे दिन और (उनका उनके) बापा जलाराम खेती-बाड़ी करते रहते थे। वो अनाज उगाते थे, पैदा करते रहते थे, और वो खिलाती रहती थीं। बस इस (बीच में से) जो पेट भरने को मिल गया, बहुत - उसी से गुजारा कर लिया। 

संत (के) यही निशानियाँ हैं - संत का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। भक्त का चरित्र ऊँचा न हुआ तब - (हम क्या) कीर्तन करते हैं, और अखण्ड कीर्तन करते हैं, और रात्रि जागरण करते हैं, और फलाना करते हैं, (औ) ढिकाना करते हैं - बेकार बातें मत करिए। आप अखण्ड किर्तन करते हैं तो (मुबारक), (आप) आप पूजा करते हैं तो (मुबारक), लेकिन (अप) अपनी पात्रता को विकसित करते हैं कि नहीं करते?

सिर्फ एक का जवाब दीजिए - भगवान सिर्फ एक ही बात को देखते रहते हैं। पूजा तो (आप अपने) हमारे अपने मन को धोने का एक तरीका है। भगवान को बरगलाया नहीं जा सकता, भगवान को फुसलाया नहीं जा सकता, भगवान के साथ में ब्लैक मेलिंग नहीं किया जा सकता। 

भगवान के साथ में तो सीधा रास्ता एक ही है कि अपनी पात्रता साबित करें भागीरथ की तरीके से - भागीरथ गंगाजी को माँगने गए थे - पानी की ज़रूरत थी - उनको अपनी (फसल) के लिए भी ज़रूरत थी, अपने बाप (दादाओं) का उद्धार करने के लिए भी ज़रूरत थी - लेकिन साथ साथ में इससे भी बड़ी ज़रूरत थी कि सारे संसार को पानी की ज़रूरत है और पानी (मिलनी) चाहिए।

सारे संसार के लिए पानी के लिए निःस्वार्थ (आ), भागीरथ (आ) - भागीरथ ने तप किया और तप के कारण को (ढूंढा)। अगर ये कारण रहा होता कि भागीरथ पानी का स्टोर इकट्ठा करेंगे, और हर आदमी से पैसे वसूल करेंगे, और अपना फ़ायदा उठाएँगे, (औ) गंगाजी को अपने पास बुला लेंगे, गंगा जी से अपना उल्लू सीधा करेंगे - तो आप विश्वास रखिए, गंगाजी (ने) कभी भी भागीरथ के चंगुल में फँसने (से) तैयार न हुई (होतीं)। उनने (जाना कि) आदमी की नीयत, 

नीयत (का) अर्थ है (पा) पात्रता, चिंतन का अर्थ है पात्रता, चरित्र का अर्थ है पात्रता - आपको विकसित करनी ही चाहिए।

आपको मालूम है ना - देवताओं के अनुग्रह में कोई कमी है क्या? (गंगा को) जब गंगा (हिमालय से) हिमालय से निकल के चली - अब हम यहाँ नहीं (रहेंगी) - हम (को) लोगों की प्यास बुझाएँगी, (ह) खेतों की हरियाली को पूरा करेंगी - हर जगह जाएँगी, हर जगह जाएँगी -

हम पशु और पक्षियों की प्यास बुझाना चाहती हैं, खेतों में हरियाली पैदा करना चाहती हैं - और (आपकी) आपकी गोदी में, और आपके हिमालय में अब हमारे रहने का ज़रा भी मन नहीं (है)। जैसे ही उन्होंने अपना संकल्प प्रकट किया - पहले तो हिमालय ने मना भी किया - नहीं, आपको नहीं जाना चाहिए - आप तो यहीं रहिए - (यहाँ) यहाँ क्या कष्ट है आपको? (उन्होंने) कहा - नहीं, कष्ट का सवाल नहीं है, हमारी आत्मा नहीं मानती है। 

हमारी आत्मा कहती है कि हमको अपने जीवन को श्रेष्ठ काम में खपा देना चाहिए (औ) लगा देना चाहिए - बस चल पड़ी गंगा -

चल पड़ी गंगा। लोगों ने ये भी कहा - आप सूख जाएँगी, और आप खाली हो जाएँगी, आप दीवालिया हो जाएँगी। लेकिन गंगा ने कहा - तो दीवालिया हो जाने में कोई हर्ज़ है क्या? ज़िंदगी एक अच्छे काम के लिए लग जाए तो कोई हर्ज़ है क्या? बस, वो चल पड़ी, चल पड़ी - फिर हिमालय ने देखा, हिमालय ने देखा ऐसी शानदार छोकरी, (ऐसी) शानदार उसका मन, 

ऐसी शानदार (उसकी) भावना - उसको कमी नहीं पड़ने देनी चाहिए। हिमालय ने उसको यकीन दिलाया, विश्वास दिलाया - बेटी, तुम बराबर बहती रहना, और तुम्हारे अंदर सूखने का कभी मौका नहीं आएगा। हमारी बरफ बराबर गलती रहेगी, और तुम्हारा पेट और तुम्हारी ज़रूरतों को पूरा करती रहेगी।

लाखों वर्ष हो गए गंगा को (ब) बहते हुए, पर क्या कुछ कमी पड़ी क्या? नहीं, कभी कमी नहीं पड़ी। (आप ये ये) ये तरीके हैं - आप देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए कल्प साधना कर रहे होंगे - ज़रूर आपका विश्वास होगा कि गायत्री माता का हम जप करेंगे, तो गायत्री माता अनुग्रह करेंगी -  (आपको) ज़रूर अनुग्रह करेंगी - गायत्री माता का स्वभाव है, वो ज़रूर सहायता करती हैं।

और, गुरुजी का आशीर्वाद मिलेगा - वो अपने पुण्य का एक अंश देंगे - बिल्कुल यकीन रखिए - हमने सारी ज़िंदगी भर अपने पुण्य के अंश (बाँटे) बाँटे हैं, और हमको बाँटने में बड़ी ख़ुशी होती है - लोगों को खाने में ख़ुशी होती है, (हमको) खिलाने में ख़ुशी होती है।

और, एक और शक्ति है, जो हमारे ऊपर छाई हुई है - जिसकी वजह से ये ब्रह्मवर्चस बना है, और ये शांतिकुंज बना है - (जिस) जिसकी प्रेरणा से ये कल्प साधना के शिविर लगाए गए हैं, और जिनकी इच्छा के हिसाब से आपको बुलाया गया है - वो आपको खाली हाथ जाने देंगे क्या? नहीं। ये तीनों शक्तियाँ ऐसी हैं जो बराबर आपकी सहायता करने के लिए आमादा हैं, और सच्चे मन से चाहती हैं कि आपको दें।

गाय सच्चे मन से चाहती है - अपने बच्चे को हम सारा का सारा दूध पिला दें। जो घास खा कर के गाय आती है, दूध ले के आती है, और ये चाहती है - हम अपने बच्चे को (पूरा) पूरा दूध पिला दें - लेकिन बच्चा तो उसका होना चाहिए - बच्चा किसी और का हुआ तब - कुत्ती का बच्चा हुआ तब, बिल्ली का बच्चा हुआ तब, गधी का बच्चा हुआ तब - तो क्यों पिलाएगी गाय? आपको गाय का ही बच्चा होना चाहिए -

आपको संत का बच्चा होना चाहिए, आपको ॠषियों का बच्चा होना चाहिए, आपको अध्यात्म का बच्चा होना चाहिए, (अथवा आप अर्थ) अर्थात आपका चिंतन, और आपका चरित्र, और आपका व्यक्तित्व, ऐसा होना चाहिए, जिससे कि देवता आपकी बराबर सहायता करते हुए चले जाएँ।

इससे कम में बात बनेगी नहीं। 

इसके लिए आपको त्याग करना ही चाहिए, आपको अपनी बुराइयाँ छोड़नी ही चाहिए, आपको (को) उदार होना ही चाहिए, (आपका) आपको अपने (द) दृष्टिकोण में महानता (साबित) करनी चाहिए। 

भगवान को हम क्या करें? (दे) देते तो बहुत हैं - लेकिन वो उस (उस) परीक्षा के बिना कहाँ देते हैं। आपको याद है ना - सुदामा जी एक बार माँगने गए थे, और सुदामा जी के (से) माँगने से पहले श्रीकृष्ण भगवान ने ये देखा, ये कुछ हमको भी दे पाएँगे कि नहीं? उनकी पोटली में चावल रखा हुआ था - चावल रखा हुआ था - गए थे माँगने की इच्छा से, लेकिन उन्होंने कहा चावल हमारे हवाले कीजिए, बाद में करना बात।

आप चावल नहीं खाली कर सकते तो हम क्यों आपके लिए खाली करेंगे? क्यों हम आपकी सहायता (देंगे)। उन्होंने चावल की पोटली को उनके हाथ से छीन लिया और छीनने के बाद में (अपने) पास रखा। बस वही चावल बढ़ते हुए चले गए, और चावलों से सुदामा जी को वो धन मिल गया, जिसके बारे में सुना होगा आपने, कि द्वारिका जी से सारा धन सुदामा जी को चला गया था। ये चावल बोए गए थे - चावल ले के अगर द्वारिका जी नहीं गए होते - कौन? द्वारिका जी सुदामा जी न गए होते, तब, तब (आप) उनको खाली हाथ आना पड़ता।

आप देंगे नहीं तो (ले) ले कहाँ से लेंगे। इसलिए,

देने की बात विचार कीजिए, परिशोधन की बात सोचिए, पवित्रता की बात सोचिए, अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने की बात सोचिए।

इतना अगर आप सोच सकते हों, तो फिर आप देखिए, (किस कदर आपको) किस कदर आपको भगवान की सहायता मिलती है - देवताओं की कैसी सहायता मिलती है - आपके मंत्र कैसे चमत्कारी सिद्ध होते हैं - (आपका) व्रत और अनुष्ठान से कितना (जा ज़्यादा फ़ा) ज़्यादा फ़ायदा मिलता है।

भगवान तो ऐसे ही हैं - कैसे? द्रौपदी को निहाल किया था ना - आपको ध्यान है कि नहीं - भगवान ने द्रौपदी को कितना वस्त्र दिया था - लेकिन, आप माँगे तो आपको मिलेगा क्या? ना, आपको नहीं देंगे - क्यों? द्रौपदी के साथ पक्षपात, आपके साथ (पक्षपात) क्यों नहीं? नहीं, मित्रों, एक ही बात है, कि द्रौपदी ने (ये) साबित कर दिया था (कि) उसको मिलने का हक - आप ये साबित कीजिए (कि आपका) मिलने का हक है। 

आपको ध्यान है - एक बार द्रौपदी के जीवन की घटना है, कि वो (गंगा) (जमुना) स्नान कर रही थीं। एक महात्मा जी बगल में नहा रहे थे - उनके पास एक लंगोटी नहाने को थी और एक पहनने को थी। बस (लंगोटी) हवा का झोंका आया - एक लंगोटी बह गई - (जिसको) पहने हुए थे वो लंगोटी फट गई - देखा ना आपने - दुर्भाग्य (दुर्भाग्य देखा)। द्रौपदी ने देखा - ये महात्मा जी की एक लंगोटी बह गई, एक लंगोटी फट गई, और (शरम) के मारे अपने शरीर को छिपा कर के झाड़ी में जा बैठे।

उनकी सहायता करनी चाहिए - उनका मन पिघल गया - द्रौपदी का। उन्होंने अपनी साड़ी के (द) दो टुकड़े काटे - आधा वाला टुकड़ा (उन) महात्मा जी को दे दिया, और ये कहा, कि (आपकी) (शरम) चली जाएगी - आप इस (साड़ी में से) साड़ी में से अपने लिये (सा द) दो लंगोटी बना लीजिए - मैं तो आधी साड़ी से भी काम चला सकती हूँ। बस ऐसा हो गया। 

ये क्या थी? ये उदारता, जो उनके कपड़े के साथ में जुड़ी हुई (थी) - कपड़े (की) कीमत क्या हो सकती है? कपड़ा तो ज़रा सी कीमत का था, लेकिन भगवान के भण्डार में चला गया, तो लाखों गुना हो गया। 

भगवान ने देखा - जो आदमी उदार है, (उसके) लिए उदार होना चाहिए - जो आदमी दयालु है (उसके) लिए दयालु होना चाहिए - जो आदमी चरित्रवान है, (उसके) लिए चरित्रवान होना चाहिए। बस द्रौपदी के लिए, भगवान ने कितना सारा, जब वो नंगी कर रहे थे दुःशासन, तो कितना सारा कपड़ा भेज दिया, और कितनी सारी सहायता की। 

आपसे मुझे यही कहना था, (और कुछ कहना नहीं) और कुछ कहना नहीं है - आप यहाँ से देवता का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए आए हैं, और आपको वरदान पाने की इच्छा है - आपकी इच्छा सही है, और (मुनासिब) - और (आप) आप किसी गलतफ़हमी में नहीं हैं, (और) किसी अंधविश्वास में जकड़े हुए नहीं हैं - प्राचीन काल के असंख्य इतिहास ऐसे हैं, जिसमें कि देवताओं ने सहायता की है और अनुग्रह किए हैं। 

आपको ज़रूर सहायता मिलेगी - पर एक शर्त को भूलिए मत - अगर (उस) शर्त को भुला देंगे, तो आप घाटे में रहेंगे, फिर आप निराश होंगे, फिर आप गाली देंगे - फिर आप ये सोचेंगे मंत्र मिथ्या होते हैं, देवता मिथ्या होते हैं - क्यों मिथ्या होते हैं?

अगर आप (अपनी) पात्रता, जिसके लिए हमको बहुत ज़ोर देना है, जिसके लिए आपको ये अनुष्ठान करा रहे हैं - (जो) चिंतन बदलने के लिए - ताकि आपका भीतर का कायाकल्प हो जाए, और देवता आपको कायाकल्प करने में बहुत सहायता दें। 

आप अपने भीतर को बदलने की कोशिश कीजिए - आप अपना चिंतन बदलिए, अपना चरित्र बदलिए, अपने जीवन का ढर्रा और ढांचा बदलिए - फिर देखिए, आपकी बदली हुई परिस्थितियों में, जो देवता आपसे नाखुश थे, जो मुँह मोड़े हुए थे - किस तरीके से आपके गुलाम हो जाते हैं, कैसे आपकी सहायता करते हैं, कैसे आपको छाती से लगाते हैं, कैसे आपको निहाल कर देते हैं। 

बस यही अनुभव हमारे जीवन का भी है, और इस अनुभव से आपको लाभ उठाना चाहिए। आप (को) अपनेआप को खाली कीजिए, और निहाल हो के (जाइए)।

बस इतना ही कहना था आज मुझे आपसे।

ॐ शांति