आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

20. शिक्षा और विद्या का ज्ञान विज्ञान

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

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प्रश्नोत्तरी

1. मनुष्य ज्ञान का देवता माना गया (है)। ज्ञान की वजह से, मननशील होने की वजह से, विचारशील होने की वजह से, मनुष्य का स्तर ------- उठा है।

2. कल्पना कीजिए - प्राचीनकाल में जब मनुष्य (बनमानुष) रहा होगा, जब उसको ज्ञान नहीं रहा होगा, सामाजिकता का ज्ञान नहीं रहा होगा, और जीवन की ज़िम्मेदारियों का ज्ञान नहीं रहा होगा, अपनी गौरव-गरिमा और गुण-कर्म-स्वभाव की विशेषताओं के बारे में कोई ------- नहीं (रही) होगी

3. हाथ-पाँव में कोई अंतर नहीं हुआ है, लम्बाई-चौढ़ाई में कोई अंतर नहीं हुआ है, नाक-कान-आँख की ------- में कोई अंतर नहीं हुआ है - लेकिन जो अंतर हो गया है, प्राचीनकाल की तुलना में आज, वो आदमी का ज्ञान बढ़ता हुआ चला गया है।

4. ज्ञान की दो धाराएँ हैं - और दोनों को ही बढ़ाना चाहिए। एक धारा वो है जो (हमारे) जीविका ------- करने के लिए काम आती है - (उसको) शिक्षा कहते हैं - लोक-व्यवहार उसी के आधार पर सीखा जाता है। 

5. बच्चों को स्कूल में जो हम पढ़ाते हैं, ये शिक्षा पढ़ाते हैं। शिक्षा का क्या मतलब? शिक्षा का मतलब है - उनको लोकाचार आए, उनको ये मालुम पड़े (कि) संसार की बनावट क्या है, ------- क्या है, इतिहास क्या है

6. पेड़ कैसे (पैदा हो) पैदा होते हैं, ये ------- क्या है, राजनीति क्या है, समाज क्या है, (ये) नागरिक कर्तव्य क्या हैं, जीविका उपार्जन कैसे (करनी) चाहिए, अर्थशास्त्र क्या है

7. लोक-(व्यवहार) में प्रवीण ------- के संबंध में - एक - (औ) जीविकोपार्जन के संबंध में - दो - जो जानकारियाँ हमको मिलती हैं (उसका) नाम शिक्षा है।

8. शिक्षा (आव) आवश्यक है - शिक्षा न होगी तो आदमी अपने शरीर को सम्हाल किस तरीके से पाएगा, समाज के साथ में तालमेल बिठा किस तरीके से पाएगा, अपनी (अकल) का उपयोग किस तरीके से कर पाएगा - ये (सब) सब ------- के लिए शिक्षा तो आवश्यक है।

9. लेकिन शिक्षा से ही काम चलने वाला नहीं है - (शरीर) शरीर के ------- के लिए, भौतिक जीवन को ठीक बनाए रहने के लिए, शिक्षा बेहद जरूरी है

10. लेकिन (एक) केवल भौतिक जीवन ही तो नहीं है - एक और भी तो ------- जीवन है जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं।

11. चेतना भी तो कोई हमारे भीतर है, ------- भी तो कोई (अंद) हमारे भीतर है, विवेक भी तो (कोई) कोई हमारे भीतर है, संवेदनाएँ भी तो हमारे कोई भीतर हैं - इन सबको ठीक रखने के लिए एक और चीज़ की ज़रूरत है जिसका नाम है विद्या।

12. ज्ञान की ------- उसी को कहते हैं जिसको विद्या कहा गया है। विद्या का (नाम) पूरा नाम - अध्यात्म-विद्या आप मानें तो भी हर्ज़ नहीं (है)।

13. विद्या से क्या मतलब? विद्या से मतलब ये है कि - आप (अपने) विचारों का इस्तेमाल (कि) किस तरीके से करें? आप अपने शरीर का इस्तेमाल किस तरीके से करें? ------- का इस्तेमाल कैसे करें?

14. परिस्थितियों का उपयोग किस तरीके से करें? अपने पास जो सामान और साधन मिला हुआ है या मिल सकता है, आप (इसमें) ठीक तरीके से इस्तेमाल किस तरीके से कर ------- - बस इसी का नाम विद्या है।

15. इसके लिए आदमी को थोड़ा ऊँचे स्तर पे ------- कर के विचार करना होता है, और ये (देखने) पड़ता है कि इंसान की गरिमा, (और) इंसान की महत्ता की सुरक्षा किस तरीके से की जाए, उसके लिए क्या करना चाहिए - बस इसी का नाम विद्या है।

16. विद्या को अमृत कहा गया है। जिसने विद्या प्राप्त कर ली (है), उसको अमृत मिल गया। जो ठीक ------- से उचित और (अनु) अनुचित का (फल) जानता है, उसके लिए फिर दुनिया में कोई चीज़ मुश्किल नहीं रह जाती। जिसको ये मालुम है - समस्याएँ किस तरीके से पैदा होती हैं - उनके समाधान क्या हैं।

17. परिस्थितियों की वजह (से) से (स) समस्याएँ उत्पन्न नहीं होतीं। दूसरों की वजह से परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं होतीं। ------- आदमी की मन:स्थिति इसकी ज़िम्मेदार है।

18. महापुरुषों के इतिहास को जब आप पढ़ें, तो आप ------- से जान सकते हैं, कि समस्याएँ कहाँ से उत्पन्न हुईं, और आदमी किस तरीके से बढ़े।

19. गई-बीती परिस्थितियों में से भी उनकी मन:स्थिति, इतनी शानदार, (इतनी) शानदार मन:स्थिति हुई, कि न जाने कहाँ से कहाँ उठते, और कहाँ से कहाँ बड़े होते हुए ------- गए।

20. मन:स्थिति में एक चीज़ (अगर) आ जाए - विवेक - आदमी के भीतर आ जाए, तो अपनी समस्याओं का हल कर सकता है, और दूसरों की समस्या को हल कर सकता है, और अपने पास जो ------- सामग्री मिली हुई है, इसका ठीक तरीके से इस्तेमाल कर सकता है।

21. आदमी को ------- मिला हुआ है, आदमी को समय मिला हुआ है, (आ) आदमी को कैसा अच्छा-खासा शरीर मिला हुआ है, आदमी को कैसा बढ़िया वाला दिमाग मिला हुआ है

22. इसको हम विवेक कहते हैं - ज्ञान का अर्थ ------- विवेक - ज्ञान का अर्थ वो नहीं है, नॉलेज (knowledge) नहीं है - ज्ञान का अर्थ है (बिज़) बिज़डम (wisdom)

23. बिज़डम (wisdom) अगर आपके पास है तो आप हर चीज़ को उचित और अनुचित (के) कसौटी (पर) कस सकते हैं, और ------- उसी बात को अपने जीवन में धारण कर सकते हैं जो आपको करनी चाहिए

24. समझदारी का और आध्यात्मिकता का तकाज़ा आदमी को ये है कि प्रत्येक परिस्थिति के बारे में गुण के (हिसाब) से, उसके परिणाम के हिसाब से, ------- विचार करना चाहिए - (स्व) स्वतंत्र चिंतन इसी का नाम (है) - स्वतंत्र चिंतन अगर आपके पास है तो आप उचित और अनुचित का निर्धारण कर सकते हैं।

25. ये ------- अलंकार है, जिसमें ये बात (बताया गया) है कि हंस उस व्यक्ति का नाम है जो उचित और अनुचित का फर्क करना जानता है।

26. लोगों के रास्ते पे चलने के बनस्पत, आपको अलग खड़े हो कर के देखना चाहिए कि मुनासिब रास्ता क्या है, मुनासिब ------- क्या हैं

27. भगवान और आपका ईमान - ईमान और भगवान - दो ------- ऐसी हैं जिनकी सहायता से आप बड़े (से बड़े) फैसले कर सकते हैं। 

28. बोधिवृक्ष के नीचे, एक ------- के नीचे, जिसके नीचे उन्होंने तप किया था, उनको एक खास चीज़ मिल गई - उस (चीज़) खास चीज़ का नाम था - विवेक।

29. ध्यान मुद्रा का मतलब यही है कि उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं - आँखें बंद कर के, और फिर ------- अपने भीतर देखा - और अपनी ज़िम्मेदारियों को देखा, अपने भविष्य को देखा, अपने कर्तव्यों को देखा 

30. बुद्ध का अर्थ है यहाँ विवेक - ठीक - वास्तविकता - वास्तविकता को उन्होंने अंगीकार कर लिया। उन्होंने ये फैसला किया - जो वास्तविकता होगी, सच्चाई होगी, हम ------- उसी बात को मानेंगे - और बातों को नहीं मानेंगे।

31. इसी का नाम है आत्मज्ञान, इसी का नाम है ब्रह्मविद्या, इसी का नाम है प्रज्ञा, इसी का नाम है ॠतम्भरा, ------- है - इसी को (विद्या) विद्या कहा गया है। 

32. गायत्री की महत्ता आपने जानी है तो (आ) आप (बाहन) बनना शुरू कीजिए। उसके (बाहन) की (दो) दो ही ------- विशेषताएँ हैं - एक तो ये है कि नीर और क्षीर को अलग कर देता है, पानी और दूध को अलग कर देता है।

33. आप अलग किस तरीके से करेंगे? आपकी विवेकशीलता के ------- से संभव है कि आप दोनों को अलग कर दें।

34. एक और, इससे आगे वाली बात, ------- आती है - ग्रहण आप क्या करें? छोड़ें क्या? फैसला करना - काम नम्बर एक - और व्यवहार में उतारना - काम नम्बर दो। 

35. व्यवहार में उतारने के बारे में भी हंस का जो ------- बनाया गया है, वो ये बनाया गया है, कि मोती खाता है, कीड़े नहीं खाता - अर्थात जो चीज़ें मुनासिब हैं, जो चीज़ें सही हैं, वो सिर्फ उन्हीं को (अपने) जिंदगी में ग्रहण कर लेता है

36. आप सच्चाई की वजह से, ईमानदारी की वजह से, और दयानतदारी की वजह से (अगर) मुसीबत उठा लें तो क्या हर्ज़ की बात है? यहाँ तक कि आप मुसीबत उठाने ------- के लिए तैयार रहें।

37. आमतौर से इसमें मुसीबत उठाने (की) जैसी कोई बात है नहीं - आप किफायतशारी से रहें, खर्च अपना (कम) मान के चलें, (महत्वाकांक्षाएँ) को आप गिरा कर के रहें - तो आपकी जिंदगी में ------- कोई दिक्कत नहीं आ सकती। 

38. आप दुनिया के बारे में ------- करने की (अ) बनस्पत, (अपनी) गुण-कर्म-स्वभाव के बारे में विचार करना शुरू करें, अपनी आदतों की देखभाल करना शुरू करें, और ये विचार करें - कोई कमियाँ हमारे भीतर तो नहीं हैं

39. अगर आप (अप) अपनी कमियों को सुधारने की (की आप) बाबत तैयार हो जाएँ, तो आप देखेंगे सारी दुनिया किस ------- से (बद) बदल गई 

40. आप अपना दृष्टिकोण क्यों नहीं बदल लेते? इस दुनिया में क्या चीज़ नहीं (है)? इस दुनिया में संतों की कमी है? सज्जनों की कमी है? ------- की कमी है? भलमनसाहत की कमी है? नेक कामों की कमी है? नहीं, कहीं कमी नहीं है।

41. बहुत से ऐसे आदमी हैं जिन्होंने कि (अपने) ऊँचे ख़यालातों से (रिश्ता) रखा है - उनके सामने अच्छी किताबें ही आती हैं, अच्छे सज्जन ही आते हैं, अच्छी परिस्थितियाँ ही आती हैं, अच्छे मौके ही ------- आते हैं

42. आप अपनेआप को बदल लीजिए न - अपनेआप को बदल देने के बारे में ------- आपको जानकारी हो, तो इसका नाम विद्या है।

43. विद्या उस ------- का नाम है, जो दुनियावी जानकारियों के संबंध में नहीं, अपनी विशेषताओं के संबंध में ज्ञान कराती है।

44. न केवल विशेषताओं के बारे में ज्ञान कराती है, बल्कि ये ------- है - गुत्थियाँ भीतर से पैदा होती हैं, बाहर से नहीं।

45. (अपना) समय का उपयोग करना (सीखिए), अपने शरीर का उपयोग करना (सीखिए), अपनी (अकल) का उपयोग करना सीखिए, अपने ------- का उपयोग करना सीखिए। भगवान ने जो कुछ भी दिया है, उन सब चीज़ों का ठीक इस्तेमाल करना सीखिए - ज़रा सीखिए तो सही।

46. फिर आपके ------- वो ढेरों की ढेरों समस्याएँ - जो कभी आपको आर्थिक तंगी के रूप में दिखाई पड़ती हैं, कभी बीमारी के रूप में दिखाई पड़ती है, कभी मान-अपमान के रूप में दिखाई पड़ती हैं, कभी लोगों के असहयोग के रूप में दिखाई पड़ती हैं

47. आप उन सारी समस्याओं का मुकाबला कर सकते हैं, अगर आपने अपनेआप को सही करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, (और उ) उस समझदारी को अपने ------- में धारण कर लिया है।

48. बुरे आदमी हैं - तो बीमार भी तो बुरे ------- हैं - बीमारियों से आप (ल) लड़िए, और (उसके) बीमार की हिफ़ाजत कर दीजिए। 

49. आप केवल बुराइयों से बैर रखें - हमला जो आप पर हुआ है ------- ओर से, बुराइयों ने किया है - व्यक्ति को और बुराइयों को अगर फर्क करना सीख लें, तो आपको मैं ज्ञानवान कह सकता हूँ।

50. ज्ञानवान जिस दिन आप बनेंगे, उस दिन आपका (दरिद्र) दूर हो जाएगा - क्योंकि आप बड़ों के साथ में मुकाबला करने की तुलना में, अपने छोटों के साथ मुकाबला करना शुरू कर देंगे - फिर आपको ये मालुम पड़ेगा आप मालदार हैं, आप ------- हैं, आप सम्पन्न हैं, और भाग्यवान हैं।

51. तुलना (भर) की तो बात है - न कोई गरीब है ------- में, न कोई अमीर है - जो आदमी (अपने) मुकाबला अमीरों से करता है, वो गरीब है - (औ) जो गरीबों से मुकाबला करता है, अमीर है।

52. अपनी (परि) परिभाषाओं को ही बदल दें, अपने सोचने के तरीके को ही बदल दें। आप अपनेआप को, सोचने के तरीके को ठीक ------- से बदल दें, और अपनी रीति-नीति में आवश्यक सुधार कर लें, तो मैं आप से ये कहता हूँ, आपकी सारी की सारी गुत्थियों के समाधान होंगे

53. आप सुखी जीवन जिएंगे, आप शांति (का) जिंदगी जिएंगे, आप ------- की जिंदगी जिएंगे, आप खुशहाली की जिंदगी जिएंगे - इसीलिए विद्या की ओर आपको गौर करना चाहिए।

54. आप अपनेआप को ढांचा बना लें, सांचा बना लें - जो कोई भी आपके नज़दीक आएगा, इसमें ढलता हुआ ------- जाएगा। 

55. चंदन के नज़दीक आने के बाद में अगर झाड़-झंखाड़ खुशबूदार बन सकते हैं, तो कोई (बजह) नहीं कि (अगर) आप समुन्नत स्तर के व्यक्ति हैं, जो भी आपके ------- आए, जो भी आपका सहयोगी बने, जो भी (आपका) सम्पर्क में आए, खुशहाल न बने, समुन्नत न हो

56. आत्म-कल्याण का भी इसी में रास्ता है, (और) लोक-कल्याण का भी इसी में रास्ता है - ये दोनों ------- आपको विद्या के आधार पर, ज्ञान के आधार पर, आपको मिल सकते हैं।

57. इसीलिए शिक्षा की तरीके से, विद्या (का) भी महत्व समझिए, (और) उसको प्राप्त करने के लिए निरंतर ------- करने में लगे रहिए।

मनुष्य की विशेषता ज्ञान। ज्ञान न हो तब – ज्ञान (विहीन होने) की वजह से चेतन होते हुए भी सब (प्राणी) को नीचे दर्जे में गिना जाता है। जीवन तो वनस्पति में भी (है), पर ज्ञान नहीं - दूसरे भी हैं - मक्खी हैं, मच्छर हैं, कीड़े हैं, मकोड़े हैं - जीवन है, उनमें भी ज़िंदगी है, मेंढक में भी ज़िंदगी है, मछली में भी ज़िंदगी है, कछुए में भी ज़िंदगी है, चिड़िया में भी ज़िंदगी है - फिर उनको क्यों हम घटिया दर्जे का मानते हैं? उनकी एक ही कमी है, (कि उनको) ज्ञान की कमी।  

1. मनुष्य ज्ञान का देवता माना गया (है)। ज्ञान की वजह से, मननशील होने की वजह से, विचारशील होने की वजह से, मनुष्य का स्तर ---- ऊँचा ---- उठा है।

2. कल्पना कीजिए - प्राचीनकाल में जब मनुष्य (बनमानुष) रहा होगा, जब उसको ज्ञान नहीं रहा होगा, सामाजिकता का ज्ञान नहीं रहा होगा, और जीवन की ज़िम्मेदारियों का ज्ञान नहीं रहा होगा, अपनी गौरव-गरिमा और गुण-कर्म-स्वभाव की विशेषताओं के बारे में कोई ---- जानकारी ---- नहीं (रही) होगी

तब, (तब) वो भी, जैसे कि डार्विन साहब कहते थे बंदर की औलाद, वास्तव में बंदर की औलाद की तरीके से इंसान भी रहा होगा तब - लेकिन आज सृष्टि का स्वामी बना हुआ है - किस वजह से? हाथ-पाँव बड़े हो गए हैं - नहीं हाथ-पाँव बड़े नहीं हुए (हैं), हाथ-पाँव उसके वही हैं,

3. हाथ-पाँव में कोई अंतर नहीं हुआ है, लम्बाई-चौढ़ाई में कोई अंतर नहीं हुआ है, नाक-कान-आँख की ---- बनावट ---- में कोई अंतर नहीं हुआ है - लेकिन जो अंतर हो गया है, प्राचीनकाल की तुलना में आज, वो आदमी का ज्ञान बढ़ता हुआ चला गया है।

4. ज्ञान की दो धाराएँ हैं, और दोनों को ही बढ़ाना चाहिए। एक धारा वो है जो (हमारे) जीविका ---- पैदा ---- करने के लिए काम आती है - (उसको) शिक्षा कहते हैं - लोक-व्यवहार उसी के आधार पर सीखा जाता है।

5. बच्चों को स्कूल में जो हम पढ़ाते हैं, ये शिक्षा पढ़ाते हैं। शिक्षा का क्या मतलब? शिक्षा का मतलब है - उनको लोकाचार आए, उनको ये मालूम पड़े (कि) संसार की बनावट क्या है? ---- भूगोल ---- क्या है? इतिहास क्या है?

दुनिया में इंसानों (की) चाल-चलन क्या रहे (हैं)? दुनिया में किस तरीके से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं? ये हम इतिहास से सीखें।

6. पेड़ कैसे (पैदा हो) पैदा होते हैं? ये ---- सृष्टि ---- क्या है? राजनीति क्या है? समाज क्या है? (ये) नागरिक कर्तव्य क्या हैं? जीविका उपार्जन कैसे (करनी) चाहिए? अर्थशास्त्र क्या है?

वगैरह बातें सीख कर के हम जीविका उपार्जन कर सकते हैं, और जीविका उपार्जन (की) तरीके से लोक व्यवहार में प्रवीण बन सकते हैं।

7. लोक-(व्यवहार) में प्रवीण ---- बनने ---- के संबंध में - एक - (औ) जीविकोपार्जन के संबंध में - दो - जो जानकारियाँ हमको मिलती हैं (उसका) नाम शिक्षा है।

आवश्यक है?

8. शिक्षा (आव) आवश्यक है - शिक्षा न होगी तो आदमी अपने शरीर को (सम्हाल) किस तरीके से पाएगा, समाज के साथ में तालमेल बिठा किस तरीके से पाएगा, अपनी (अकल) का उपयोग किस तरीके से कर पाएगा - ये (सब) सब ---- जानकारियों ---- के लिए शिक्षा तो आवश्यक है।

9. लेकिन शिक्षा से ही काम चलने वाला नहीं है - (शरीर) शरीर के ---- जीवन ---- के लिए, भौतिक जीवन को ठीक बनाए रहने के लिए, शिक्षा बेहद जरूरी है।

10. लेकिन (एक) केवल भौतिक जीवन ही तो नहीं है - एक और भी तो ----हमारा ---- जीवन है जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं।

11. चेतना भी तो कोई हमारे भीतर है, ---- आत्मा ---- भी तो कोई (अंद) हमारे भीतर है, विवेक भी तो (कोई) कोई हमारे (भीतर) है, संवेदनाएँ भी तो हमारे कोई भीतर हैं - इन सबको ठीक रखने के लिए एक और चीज़ की ज़रूरत है जिसका नाम है विद्या।

12. ज्ञान की ---- धारा ---- उसी को कहते हैं जिसको विद्या कहा गया है। विद्या का (नाम) पूरा नाम, अध्यात्म-विद्या आप मानें तो भी हर्ज़ नहीं (है)।

ॠतम्भरा प्रज्ञा इसको कहें तो भी कोई हर्ज़ नहीं है - विवेक आप इसको कहें तो भी हर्ज़ नहीं है - इसको आप गायत्री कहें, प्रज्ञा कहें तो भी हर्ज़ नहीं है - वास्तव में महत्व उसी का (है)।

जानकारियों के बारे में, दुनियावी जानकारियों के बारे में तो ढेरों आदमी ऐसे हैं जिनकी (जा) जानकारियाँ बहुत हैं, होशियार बहुत हैं - आदमी विद्यावान कम हैं क्या दुनिया में? कलाकार कम हैं क्या दुनिया में? चतुर आदमी दुनिया में कम हैं क्या? (क्रिया-कु) क्रिया-कुशल लोगों की कमी है क्या? पर वो स्वयं के लिए, और दूसरों के लिए क्या (मु कि) साबित हुए? आप बताइए ना -

जेलखाने में पड़े हुए लोगों को (आप नहीं) देखा है? एक से एक होशियार (आदमी), (एक से एक अ) एक से एक समझदार आदमी वहीं कैदखाने में हैं - जालसाज़ों में पढ़े-लिखे ही आदमी ज्यादा होते (हैं) - नासमझ आदमी जालसाज़ी नहीं कर सकते - नासमझ आदमी जेबकटी कर सकते हैं, और छोटे-मोटे काम कर सकते हैं - पर दुनिया में जो (बड़े-बड़े) जालसाज़ियाँ हुई हैं, ये पढ़े-लिखे लोगों ने की हैं।

तो शिक्षा की बात मैं नहीं कहता - शिक्षा अपनी जगह पे (मुबारिक), मुझे कुछ लेना-देना नहीं - लेकिन (जहाँ) आप लोगों की सेवा में मैं कुछ बात कह रहा हूँ, विद्या के बारे में कह रहा हूँ। आपको विद्या का (महत्व) समझना चाहिए - विद्या का अगर (म) महत्व समझ सकें, तो मज़ा आए।

13. विद्या से क्या मतलब? विद्या से मतलब ये है (कि) आप (अपने) विचारों का इस्तेमाल (कि) किस तरीके से करें? आप अपने शरीर का इस्तेमाल किस तरीके से करें? ---- साधनों ---- का इस्तेमाल कैसे करें?

14. परिस्थितियों का उपयोग किस तरीके से करें? अपने पास जो सामान और साधन मिला हुआ है, या मिल सकता है, आप (इसका) ठीक तरीके से इस्तेमाल किस तरीके से कर ---- पाएँगे ---- - बस इसी का नाम विद्या है।

इसी का नाम विद्या है - इसके लिए सामान्य लोक-ज्ञान से काम नहीं चलता -

15. इसके लिए आदमी को थोड़ा ऊँचे स्तर पे ---- बैठ ---- कर के विचार करना होता है, और ये (देखने) पड़ता है कि इंसान की गरिमा, (और) इंसान की महत्ता की सुरक्षा किस तरीके से की जाए? उसके लिए क्या करना चाहिए? - बस इसी का नाम विद्या है।

(अगर) विद्या किसी को मिल जाए तब - तब फिर धन्य हो जाते हैं। शास्त्रों में विद्या की महत्ता के लिए न जाने क्या (से कहा) गया है -

16. विद्या को अमृत कहा गया है - जिसने विद्या प्राप्त कर ली उसको अमृत मिल गया। जो ठीक ---- तरीके ---- से उचित और (अनु) अनुचित का (फल) जानता है, उसके लिए फिर दुनिया में कोई चीज़ मुश्किल नहीं रह (जाती)। जिसको ये मालूम है - समस्याएँ किस तरीके से पैदा होती हैं - उनके समाधान क्या हैं।

ये लोगों को मालूम नहीं है - लोगों का ये ख्याल है कि परिस्थितियों की वजह से समस्याएँ उत्पन्न होतीं हैं - लेकिन सही बात ये नहीं है -

17. परिस्थितियों की वजह (से) से समस्याएँ उत्पन्न नहीं होतीं - दूसरों की वजह से परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं होतीं - ---- बल्कि ---- आदमी की मन:स्थिति इसकी ज़िम्मेदार है।

ये बात आमतौर से लोगों की समझ में नहीं (आ)। 

18. महापुरुषों के इतिहास को जब आप पढ़ें, तो आप ---- आसानी ---- से जान सकते हैं, कि समस्याएँ कहाँ से उत्पन्न हुईं, और आदमी किस तरीके से बढ़े।

आपने अब्राहम लिंकन का नाम पढ़ा है ना - जार्ज वाशिंगटन को जानते है ना - गाँधी जी के जीवन का इतिहास पढ़ा है (ना) - बुद्ध का इतिहास पढ़ा है (ना) - इनकी परिस्थितियों में क्या खास बात थी - बताइए? बल्कि (स) सामान्य लोगों के बराबर, अथवा उससे भी गई-बीती परिस्थितियाँ थीं - लेकिन

19. गई-बीती परिस्थितियों में से भी उनकी मन:स्थिति, इतनी शानदार, (इतनी) शानदार मन:स्थिति हुई, कि न जाने कहाँ से कहाँ उठते, और कहाँ से कहाँ बड़े होते हुए ---- चले ---- गए।

शंकराचार्य में क्या विशेषता थी, आप बताइए? समर्थ गुरु रामदास में क्या विशेषता थी, बताइए? कबीर में (क्या) क्या परिस्थितियाँ थीं, बताइए? कबीर को कौन कंधे पे उठा के ले गया था, आप बताइए? केवल मनःस्थिति थी, जिसमें विवेकशीलता मुख्य है -

20. मन:स्थिति में एक चीज़ (अगर) आ जाए - विवेक - आदमी के भीतर आ जाए, तो (वो) अपनी समस्याओं (को) हल कर सकता है, और दूसरों की समस्या को हल कर सकता है, और अपने पास जो ---- साधन ---- सामग्री मिली हुई है, इसका ठीक तरीके से इस्तेमाल कर सकता है।

आदमी को समय मिला हुआ है, 

21. आदमी को ---- श्रम ---- मिला हुआ है, आदमी को समय मिला हुआ है, (आ) आदमी को कैसा अच्छा-खासा शरीर मिला हुआ है, आदमी को कैसा बढ़िया वाला दिमाग मिला हुआ है

आदमी को कैसा वाला कुटुम्ब मिला हुआ है - और आदमी को कैसा कार्यक्षेत्र मिला हुआ है। इस सारे के सारे क्षेत्र का उचित और (अन) अनुचित का समाधान हम निकाल नहीं पाते - क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, बस यहीं भटक जाते - (और) यहीं भटक जाने की वजह से कहीं के मारे (कहीं) कहीं जा पहुँचते हैं।

जो हमको करना चाहिए वो हम कर नहीं पाते, और जो हमको नहीं करना चाहिए (वो हम) कर पाते हैं - तो (इसकी) क्या वजह है? (इसका) वजह ये है कि हमारे पास एक खास (किस्म) का (पुर् पुर् पुर्जा) नहीं है। 

22. (जिसको) हम विवेक कहते हैं - ज्ञान का अर्थ ---- यहाँ ---- विवेक - ज्ञान का अर्थ वो नहीं है, नॉलेज (knowledge) नहीं है - ज्ञान का अर्थ है (बिज़) बिज़डम (wisdom)

23. बिज़डम (wisdom) अगर आपके पास है तो आप हर चीज़ को उचित और अनुचित (के) कसौटी (पर) कस सकते हैं, और ---- सिर्फ ---- उसी बात को अपने जीवन में धारण कर सकते हैं जो आपको करनी चाहिए।

(इसके लिए) सबसे बड़ी कमज़ोरी (और) सबसे बड़ी कठिनाई ये है कि हम दूसरों को काम करते देख कर, दूसरों (को) के रास्ते पर चलने लगते है - ये (काम ए) तो अंधी भेड़ों का है, इंसान का (थोड़ी है) - (इंसान) जहाँ ज्यादा लोग चलें वहीं हम चलें, जो दूसरे लोग करें वही हम करें, दूसरे लोग कहें वही हम करें, दूसरे लोग जिस तरीके से मरें (वही) मरें - ये भी कोई (ढंग)? ये कोई ढंग (नहीं)।

24. समझदारी का और आध्यात्मिकता का तकाज़ा आदमी को ये है कि प्रत्येक परिस्थिति के बारे में गुण के (हिसाब) से, उसके परिणाम के हिसाब से, ---- स्वयं ---- विचार करना चाहिए - (स्व) स्वतंत्र चिंतन इसी का नाम (है) - स्वतंत्र चिंतन अगर आपके पास है तो आप उचित और अनुचित का निर्धारण कर सकते हैं।

अपने यहाँ गायत्री माता (का) का आपको शिक्षण दिया जाता है - आप यहाँ (इस) उपासना में गायत्री (के) शिक्षण प्राप्त करते रहे (हैं) - गायत्री की उपासना में भी लगे हुए हैं - लेकिन आप भूल जाते हैं - गायत्री किसके कंधे पे सवार होती है, और कौन गायत्री को अपने इशारे पर नचाए-नचाए फिरता है?

(आपने) गायत्री माता की तस्वीर (को) आप रोज़ ध्यान करते हैं - इस तस्वीर में उसका वाहन देखा है ना आपने - (एक) वाहन का नाम है हंस।

हंस किसे कहते हैं? हंस के ऊपर गायत्री माता सवारी करती हैं, ये बात शायद आपकी समझ में ना आए, (क्योंकि) इंसान के बराबर शरीर जिनका है, वो जानवर (पे), पशुओं (पे) सवारी तो कर सकते हैं, लेकिन पक्षियों (पे) सवारी नहीं कर सकते।

घोड़े (पे) आप बैठ सकते हैं, गधे (पे) बैठ सकते हैं, हाथी (पे) बैठ सकते हैं, ऊँट पर बैठ सकते हैं, भैसें पर बैठ सकते हैं - (इन पे) तो  बैठ सकते हैं - लेकिन आप बताइए, किसी पक्षी (पे), जिसका (वजन) बेचारे का नहीं (के) बराबर है, उसके ऊपर (आप) कैसे आदमी बैठ पाएगा? मुश्किल है - लंबाई-चौढ़ाई इतनी (ही) नहीं है।

बहुत छोटी चीज़, गेंद पीठ (पे) बांध दे हंस की, तो बात अलग है, लेकिन इंसान के बराबर कोई (आदमी) देवता (बढ़ा-चढ़ा) बैठेगा तो कैसे बैठेगा?

25. ये ---- एक ---- अलंकार है, जिसमें ये बात (बताया गया) है कि हंस उस व्यक्ति का नाम है जो उचित और अनुचित का फर्क करना जानता है।

आपको उचित और अनुचित का फर्क करना चाहिए।

26. लोगों के रास्ते (पे) चलने (की) बनस्पत, आपको अलग खड़े हो कर के देखना चाहिए कि मुनासिब रास्ता क्या है? मुनासिब ---- तरीके ---- क्या हैं?

मुनासिब क्या है? (लोग) लोग गल्ती करें तो आप क्या कर सकते हैं? (लोग तो) गल्तियों का ही ज़माना है। आप पानी के बहाव में तिनके की तरीके से बहते चले जाएँ, भला ये भी कोई समझदारी (हुई)? आप हवा में उड़ते हुए पत्तों की तरीके से उड़ते हुए चले जाएँ, भला ये भी कोई समझदारी हुई?

आपको वजनदार होना चाहिए – (आपका) आपका गौरव होना चाहिए - आपका वजन होना चाहिए - गौरव का मतलब वजन होता है, भारीपन होता है - भारी-भरकम होना चाहिए। भारी-भरकम का मतलब ये है कि आपको अपनी ज़िंदगी के बारे में फैसले स्वयं करने चाहिए। अपने रास्ते का चुनाव करने (बारे) में आपकी हिम्मत आपकी सहायक होनी चाहिए।  

27. भगवान और आपका ईमान - ईमान और भगवान - दो ---- चीज़ें ---- ऐसी हैं जिनकी सहायता से आप बड़े (से बड़े) फैसले कर सकते हैं।

दुनिया में तो आमतौर से गलत काम होते हैं - लोग तो सिर्फ अपनेआप को शरीर समझते हैं और शरीर की खुशहाली के लिए जो भी बुरे से बुरा काम हो सकता है सब (करते)। लोग तो ऐसे बेअकल हैं कि लोगों को तो आज का फायदा दिखाई पड़ता है, (कल का फायदा) कल का नुकसान कहाँ दिखाई पड़ता है?

जितनी भी सामाजिक कुरीतियाँ हैं (इसमें) क्या बात है - आप ज़रा बताइए? आज का फायदा कल का नुकसान - आप भी यही करेंगे? ना, लोगों के रास्ते से हटिए - लोगों के रास्ते से हट कर के, अलग खड़े हो कर के, नए ढंग से विचार करना शुरू कीजिए कि क्या मुनासिब है और क्या मुनासिब नहीं है - आपका भविष्य (किन) किन बातों से बनता है (और) किन बातों से बनता नहीं है।

अगर आप ये बात तय करने लगेंगे तो मैं आपको ज्ञानवान कहूँगा। ज्ञानवानों की आपने (तवारीख) पढ़ी है ना? भगवान बुद्ध का नाम सुना है ना? भगवान बुद्ध में क्या विशेषता हुई? भगवान से क्या वरदान मिला? उनको क्या विशेष सम्पदा मिली? आप उनके जीवन को पढ़िए -

28. बोधिवृक्ष के नीचे, एक ---- पेड़ ---- के नीचे, जिसके नीचे उन्होंने तप किया था, उनको एक खास चीज़ मिल गई - उस (चीज़) खास चीज़ का नाम था - विवेक।

दूर की बात समझने का उनको माद्दा मिल गया - उन्होंने कहा, (सारी दुनिया से) सारी दुनिया से प्रभावित हमको (नहीं है) होना नहीं है - हमको दूसरों को प्रभावित करना है। दूसरे जो मुनासिब कहें मान भी सकते हैं - लेकिन अधिकांश बातें, खास तौर से जीवन यापन करने के संबंध में, जीवन की सम्पदाओं को उपयोग करने के सम्बंध में, अधिकांश लोगों की राय गलत, लोगों के ढर्रे गलत हैं।

उन्होंने अपनेआप को (भगवान बुद्ध ने) अलग से खड़ा कर के शुरू किया, और ज़माने की ओर से आँखें बन्द कर लीं। आपने ध्यान मुद्रा देखी है ना भगवान की?

29. ध्यान मुद्रा का मतलब यही है कि उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं - आँखें बंद कर के, और फिर ---- स्वयं ---- अपने भीतर देखा - और अपनी ज़िम्मेदारियों को देखा, अपने भविष्य को देखा, अपने कर्तव्यों को देखा

और उन्होंने वे फैसले किये जिसके आधार पर एक सामान्य राजकुमार भगवान का अवतार कहलाने में समर्थ हुआ।

उस ज़माने में क्या होता था, उन्होंने ज़रा भी विचार नहीं किया - उन्होंने ये कहा (कि) मुनासिब क्या है? जो मुनासिब था वही लोगों से कहा।

(यज्ञों में) यज्ञों में हिंसा होती है - ना, हम हिंसा नहीं करेंगे - (यज्ञ तो) यज्ञ की बात वेदों में लिखी है (तब) - भगवान बुद्ध वेदों के बारे में जानकर नहीं थे - तो उन्होंने कहा, वेद में ऐसा लिखा है तो (वेद) वेद को आपको नहीं मानना चाहिए।

फिर लोगों ने कहा वेद तो भगवान बनाए हैं - तो (उन्होंने) ये कहा कि अगर भगवान ने ऐसे वेद बनाए हैं जिसमें कि नैतिक सिद्धान्तों का परिपालन नहीं हुआ है, तो फिर ऐसे भगवान को मानने की आवश्यकता क्या है? फिर उन्होंने भगवान (के) मानने से ही इंकार कर दिया।

कहने का अर्थ ये है - उन्होंने विवेक को - बुद्धम शरणम् गच्छामि - नाम ही उनका बुद्ध रखा गया - जन्मजात नाम बुद्ध नहीं था उनका - लेकिन विवेक,  

30. बुद्ध का अर्थ है यहाँ विवेक - ठीक - वास्तविकता - वास्तविकता को उन्होंने अंगीकार कर लिया। उन्होंने ये फैसला किया - जो वास्तविकता होगी, सच्चाई होगी, हम ---- सिर्फ ---- उसी बात को मानेंगे - और बातों को नहीं मानेंगे।

31. इसी का नाम है आत्मज्ञान, इसी का नाम है ब्रह्मविद्या, इसी का नाम है प्रज्ञा, इसी का नाम है ॠतम्भरा, ---- ॠतम्भरा ---- है - इसी को (विद्या) विद्या कहा गया है।

मैं आपसे यही निवेदन है कर रहा था कि (आपको) शिक्षा प्राप्त कर ली होगी, बहुत कर ली होगी (और) करनी चाहिए - लेकिन आप विद्या के बारे में वंचित न रहिए।

32. गायत्री की महत्ता आपने जानी है तो (आ) आप (बाहन) बनना शुरू कीजिए। उसके (बाहन) की (दो) दो ही ---- तो ---- विशेषताएँ हैं - एक तो ये है कि नीर और क्षीर को अलग कर देता है, पानी और दूध को अलग कर देता है।

इस दुनिया में जो कुछ भी मिला हुआ है, घपला है, सब गुड़-गोबर मिला हुआ है - कहीं सच्चाई की झलक दिखाई पड़ती है, और उसी के साथ में ढिठाई और बेइमानी का कितना गहरा पुट दिखाई पड़ता है।

33. आप अलग किस तरीके से करेंगे? आपकी विवेकशीलता के ---- माध्यम ---- से संभव है कि आप दोनों को अलग कर दें।

नहीं तो अलग नहीं हो सकेंगे, दूध और पानी मिला ही चला जाएगा - सच्चाई की थोड़ी सी झलक, और बेइमानी का अधिक से अधिक माद्दा - यही तो लोकव्यवहार है, दुनिया यही तो है - आप अलग कीजिए और हंस बनने की कोशिश कीजिए। ये तो आपकी समझ की बात हुई - (अकल आपको) उचित और अनुचित का फर्क करना जाने - और    

34. एक और, इससे आगे वाली बात, ---- आगे ---- आती है - ग्रहण आप क्या करें? छोड़ें क्या? फैसला करना - काम नम्बर एक - और व्यवहार में उतारना - काम नम्बर दो।

35. व्यवहार में उतारने के बारे में भी हंस का जो ---- प्रतीक ---- बनाया गया है, वो ये बनाया गया है, कि मोती खाता है, कीड़े नहीं खाता - अर्थात जो चीज़ें मुनासिब हैं, जो चीज़ें सही हैं, वो सिर्फ उन्हीं को (अपने) जिंदगी में ग्रहण कर लेता है

बाकि चीज़ों के बारे में इंकार कर देता है - नहीं, ये हमको चाहिए नहीं। राजहंस के बारे में ये बताया गया है कि वो - (या) हंसा मोती चरे, या लंघन मर जाएँ - लघंन मरना ठीक है - अगर आप ईमानदारी से नहीं कमा सकते, मुनासिब ज़िंदगी नहीं जी सकते, तो ऐसी ज़िंदगी जीने से क्या फायदा - आप नहीं जिएँ - नहीं जीने से मेरा मतलब ये है - आप गरीबी में गुज़ारा कर लें, कंगाली में  गुज़ारा कर लें, तकलीफ में गुज़ारा कर लें

तकलीफ में गुज़ारा ढेरों आदमी करते हैं - कोई हारी बीमारी से करता है, कोई जेलखाने चला जाता है, किसी के बाल बच्चे खराब हो जाते हैं, किसी के ऊपर और मुसीबतें आ जाती हैं - ढेरों आदमी इस दुनिया में ऐसे हैं जो किसी वजह से मुसीबत उठाते हैं 

36. आप सच्चाई की वजह से, ईमानदारी की वजह से, और दयानतदारी की वजह से (अगर) मुसीबत उठा लें तो क्या हर्ज़ की बात है? यहाँ तक कि आप मुसीबत उठाने ---- तक ---- के लिए तैयार रहें।

37. आमतौर से इसमें मुसीबत उठाने (की) जैसी कोई बात है नहीं - आप किफायतशारी से रहें, खर्च अपना (कम) मान के चलें, (महत्वाकांक्षाएँ) को आप गिरा कर के रहें - तो आपकी जिंदगी में ---- फिर ---- कोई दिक्कत नहीं आ सकती।

ज्ञान यही सिखाता है आपको कि हम अपना रवइया बदल दें, तो जिसके बारे में हमको शिकायतें हैं, दुनिया हमको ऐसे हैरान करती है, दुनिया (ऐसा) हैरान करती है, दुनिया ऐसा हैरान करती है -अगर

38. आप दुनिया के बारे में ---- गौर ---- करने की (अ) बनस्पत, (अपनी) गुण-कर्म-स्वभाव के बारे में विचार करना शुरू करें, अपनी आदतों की देखभाल करना शुरू करें, और ये विचार करें - कोई कमियाँ हमारे भीतर तो नहीं हैं

39. अगर आप (अप) अपनी कमियों को सुधारने की (की आप) बाबत तैयार हो जाएँ, तो आप देखेंगे सारी दुनिया किस ---- तरीके ---- से (बद) बदल गई

जो दुनिया आपको गंदी मालूम पड़ती थी, जलील-गलीज मालूम पड़ती थी, वही जलील और गलीज दुनिया, आपको अपना दृष्टिकोण बदल देने के बाद में, कैसी खूबसूरत मालूम पड़ेगी।

(आप  गुलाब के फूल) आप भौंरे की तरीके से किसी बगीचे में जाएँ, तो बगीचा कितना सुहावना मालूम पड़ेगा - (अगर) उसी अपनी दृष्टि को गुबरीले कीड़े के तरीके से जाएँ, तो उसी बगीचे में आपको ढेरों (के) ढेरों (गलाजत) पड़ी हुई मालूम पड़ेगी, गंदगी  मालूम पड़ेगी। 

40. आप अपना दृष्टिकोण क्यों नहीं बदल लेते? इस दुनिया में क्या चीज़ नहीं (है)? इस दुनिया में संतों की कमी है? सज्जनों की कमी है? ---- शराफत ---- की कमी है? भलमनसाहत की कमी है? नेक कामों की कमी है? नहीं, कहीं कमी नहीं है।

लेकिन आपका दृष्टिकोण जो गंदा है - दृष्टिकोण की वजह से आपका मन वहीं जा पहुँचता है जहाँ  दुनिया में गन्दगी है। ये तो नहीं कहते कि दुनिया में गन्दगी नहीं है, दुनिया में पाप नहीं है, दुनिया में असहयोग नहीं है, दुनिया में गैर वफादारी नहीं है - ये तो मैं नहीं कहता -

लेकिन आप सम्पर्क रखिए ना - जिनसे आप सम्पर्क रखेंगे वो ही चीज़ तो खिंचती हुई चली आएगी - जिन लोगों ने गन्दे लोगों से सम्पर्क रखा है उनको जुआरी दिखाई पड़ते, चोर दिखाई पड़ते हैं, लफंगे-उचक्के दिखाई पड़ते है - और

41. बहुत से ऐसे आदमी हैं जिन्होंने कि (अपने) ऊँचे ख़यालातों से (रिश्ता) रखा है - उनके सामने अच्छी किताबें ही आती हैं, अच्छे सज्जन ही आते हैं, अच्छी परिस्थितियाँ ही आती हैं, अच्छे मौके ही ---- सामने ---- आते हैं।

42. आप अपनेआप को बदल लीजिए ना - अपनेआप को बदल देने के बारे में ----अगर ---- आपको जानकारी हो, तो इसका नाम विद्या है।

43. विद्या उस ---- चीज़ ---- का नाम है, जो दुनियावी जानकारियों के संबंध में नहीं, अपनी विशेषताओं के संबंध में ज्ञान कराती है।

44. न केवल विशेषताओं के बारे में ज्ञान कराती है, बल्कि ये ---- बताती ---- है - गुत्थियाँ भीतर से पैदा होती हैं, बाहर से नहीं।

जड़ों से पेड़ पैदा होता है हवा से नहीं - हवा से पेड़ को सहायता तो मिलती है - (पर) लेकिन असल में उसको खुराक जो मिलती है, जड़ों से मिलती है। आदमी के भीतर जो कुछ है वही उसकी जिन्दगी के विकास करने का मूलभूत आधार है - इस मूलभूत आधार (काम) स्वयं कीजिए ना -

बाहर के लोगों की क्यों आप खुशामद करते हैं? बाहर के आदमियों के लिए क्यों आप ये देखते हैं - इनका सहयोग हमको मिला कि नहीं मिला - दूसरों का सहयोग न मिला तो नहीं भी सही, दूसरे आदमी अच्छे नहीं हैं, तो (न) भी सही - आप अच्छे बन जाइए ना, आप अपना दृष्टिकोण ठीक कर लीजिए ना, आप अपना रवइया ठीक कर लीजिए ना, आप अपने पैरों (पे) खड़े हो जाइए ना - (फिर) आप देखेंगे, किस तरीके से जिसकी आपको शिकायतें थी, सारी शिकायतें दूर हो गईं - इसका नाम विद्या है। 

45. (अपना) समय का उपयोग करना (सीखिए), अपने शरीर का उपयोग करना (सीखिए), अपनी (अकल) का उपयोग करना सीखिए, अपने ---- प्रभाव ---- का उपयोग करना सीखिए। भगवान ने जो कुछ भी दिया है, उन सब चीज़ों का ठीक इस्तेमाल करना सीखिए - ज़रा सीखिए तो सही।

आप अपनेआप का, ठीक चीज़ों का इस्तेमाल कर लें, फिर 

46. फिर आपके ---- सामने ---- वो ढेरों की ढेरों समस्याएँ - जो कभी आपको आर्थिक तंगी के रूप में दिखाई पड़ती हैं, कभी बीमारी के रूप में दिखाई पड़ती है, कभी मान-अपमान के रूप में दिखाई पड़ती हैं, कभी लोगों के असहयोग के रूप में दिखाई पड़ती हैं

कभी क्या दिखाई पड़ती है, सब दिखाई पड़ती हैं -

47. आप उन सारी समस्याओं का मुकाबला कर सकते हैं, अगर आपने अपनेआप को सही करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, (और उ) उस समझदारी को अपने ---- जीवन ---- में धारण कर लिया है।

बुरे आदमी हैं - मान लिया बुरे आदमी हैं - तो बुरे आदमियों के साथ में दूसरे (सूलूक) कर सकते हैं, दिक्कत क्या है? आप एक डाक्टर के तरीके से उनके साथ में रवइया करना शुरू कर दीजिए।  

48. बुरे आदमी हैं - तो बीमार भी तो बुरे ---- आदमी ---- हैं - बीमारियों से आप (ल) लड़िए, और (उसके) बीमार की हिफ़ाजत कर दीजिए।

ये हो सकता है? ये बिल्कुल हो सकता है। आप बैर तो रखें -

49. आप केवल बुराइयों से बैर रखें - हमला जो आप पर हुआ है ---- चारों ---- ओर से, बुराइयों ने किया है - व्यक्ति को और बुराइयों को अगर फर्क करना सीख लें, तो आपको मैं ज्ञानवान कह सकता हूँ।

ज्ञानवान आप रहेंगे, तो आप -

50. ज्ञानवान जिस दिन आप बनेंगे, उस दिन आपका (दरिद्र) दूर हो जाएगा - क्योंकि आप बड़ों के साथ में मुकाबला करने की तुलना में, अपने छोटों के साथ मुकाबला करना शुरू कर देंगे - फिर आपको ये मालूम पड़ेगा आप मालदार हैं, आप ---- अमीर ---- हैं, आप सम्पन्न हैं, और भाग्यवान हैं।

अगर आप बड़ों के साथ में मुकाबला करते रहेंगे तो ये मालूम (पड़ेंगे) हम उनकी बराबरी के नहीं हैं, उनकी तुलना में गरीब हैं, (उनके) तुलना में गए बीते हैं, (उनके) तुलना में दुखी हैं।

51. तुलना (भर) की तो बात है - न कोई गरीब है ---- दुनिया ---- में, न कोई अमीर है - जो आदमी (अपने) मुकाबला अमीरों से करता है, वो गरीब है - (औ) जो गरीबों से मुकाबला करता है, अमीर है।

जब अमीरी और गरीबी की कोई व्याख्या नहीं हो सकती, तो फिर आप ऐसा क्यों न करें 

52. अपनी (परि) परिभाषाओं को ही बदल दें, अपने सोचने के तरीके को ही बदल दें। आप अपनेआप को, सोचने के तरीके को ठीक ---- तरीके ---- से बदल दें, और अपनी रीति-नीति में आवश्यक सुधार कर लें, तो मैं आप से ये कहता हूँ, आपकी सारी की सारी गुत्थियों के समाधान होंगे

53. आप सुखी जीवन जिएँगे, आप शांति (का) जिंदगी जिएँगे, आप ---- खुशी ---- की जिंदगी जिएँगे, आप खुशहाली की जिंदगी जिएंगे - इसीलिए विद्या की ओर आपको गौर करना चाहिए।

आपको अपनी आंतरिक स्थितियों के बारे में देखभाल करनी चाहिए - अपने गुण, कर्म ,स्वभाव का पुनर्निरीक्षण और निर्धारण करना चाहिए - आपको (अपने) गतिविधियों के बारे में, दृष्टिकोण के बारे में विचार करना चाहिए - इसमें गल्तियाँ कहाँ है?

जहाँ कहीं गल्तियाँ हैं, अगर आप उसको सुधार पाएँ, फिर मैं आपको ये कहूँगा - आपको एक ऐसी चीज़ हाथ लग गई जिसके आधार पर आप खुशी की ज़िंदगी जिएँगे, शांति की ज़िंदगी जिएँगे, मोहब्बत की ज़िंदगी जिएँगे, प्यार की ज़िंदगी जिएँगे, और ऐसी ज़िंदगी जिएँगे जिसमें आपकी खुशी उन सब लोगों को मिले, जो आपके नज़दीक आते हों, जो आपसे संबंध रखते हों। आपके घरवाले आपसे बेहद खुश देखे जाएँगे अगर आप विवेकशीलता का (रस्ता अख्तियार) कर लें।  

54. आप अपनेआप को ढांचा बना लें, सांचा बना लें - जो कोई भी आपके नज़दीक आएगा, इसमें ढलता हुआ ---- चला ---- जाएगा।

आपके  

55. चंदन के नज़दीक आने के बाद में अगर झाड़-झंखाड़ खुशबूदार बन सकते हैं, तो कोई (बजह) नहीं कि (अगर) आप समुन्नत स्तर के व्यक्ति हैं, जो भी आपके ----नजदीक ---- आए, जो भी आपका सहयोगी बने, जो भी (आपका) सम्पर्क में आए, खुशहाल न बने, समुन्नत न हो।

56. आत्म-कल्याण का भी इसी में रास्ता है, (और) लोक-कल्याण का भी इसी में रास्ता है - ये दोनों ---- रास्ते ---- आपको विद्या के आधार पर, ज्ञान के आधार पर (आपको) मिल सकते हैं।

57. इसीलिए शिक्षा की तरीके से, विद्या (का) भी महत्व समझिए, (और) उसको प्राप्त करने के लिए निरंतर ---- कोशिश ---- करने में लगे रहिए।

समाप्त