आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

12. पूजन कृत्यों का उद्देश्य

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

इसे डाउनलोड भी कर सकते हैं -     प्रश्नोत्तरी (.doc फाइल)     प्रश्नोत्तरी (.pdf फाइल)

प्रश्नोत्तरी

1. आप लोग जिस कल्प साधना सत्र में आए हुए हैं, उसमें महत्वपूर्ण काम आपको ये करना पड़ रहा है, किसी ऐसी सत्ता के साथ में अपनेआप को जोड़ दें, जो बड़ी ------- है।

2. इससे ज्यादा की जरूरत पड़े, तो फिर आपको भगवान का सहारा लेना पड़ेगा। ऐसे शक्तिपुंज (के साथ) सहारा लेना पड़ेगा जिसके साथ शक्तियों के ------- भरे पड़े हैं।

3. भगवान कौन? भगवान आप ये मान के चल सकते हैं कि एक बहुत बड़ा (एक) बिजलीघर है, जिसके साथ-साथ में बल्ब लगे रहते हैं, पंखे लगे रहते हैं, छोटी-छोटी ------- लगी होती हैं

4. अगर वो जुड़ें नहीं तब - पंखा कैसे चले? बल्ब कैसे जलें? दूसरे काम कैसे बनें? इसीलिए इसको जुड़ जाना ------- है। जुड़े बिना बड़ी शक्ति प्राप्त नहीं हो सकती, बड़े काम संभव नहीं हो सकते।

5. इस जुड़े रहने की प्रक्रिया का नाम है 'उपासना'। उपासना माने? नजदीक बैठना, पास बैठना। अगर आप पास बैठ जाएँ किसी के, तो उसका गुण, और उसके कर्म, और उसके स्वभाव, और उसकी ------- आपके भीतर आना शुरू हो जाएंगी। 

6. यही बात भगवान के संबंध में भी है। भगवान को कल्पवृक्ष बताया गया है, भगवान को ------- बताया गया है, (भ) भगवान को अमृत बताया गया है।

7. मनुष्य के बारे में भी यही बात है - भगवान को छू (ओ) तब, तब फिर सोना हो जाएगा आदमी; फिर लोहे का नहीं रहता, घटिया नहीं रहेगा, बल्कि ------- बन जाएगा। 

8. कल्पवृक्ष, अर्थात भगवान के नीचे अगर आदमी बैठ जाए तब, तब (वो) उसकी वो कामनाएँ जिनकी वजह से आदमी हर (वखत) हैरान बना रहता है, उन हैरानियों से ------- पा सकता है

9. भगवान के नजदीक जा कर के आदमी ये अनुभव कर ले कि हमारा जीवात्मा भगवान का ही एक ------- है - फिर, फिर क्यों मरेगा आदमी? जीवात्मा कहीं मरता है क्या? 

10. भय से आदमी की निवृत्ति, मृत्यु के भय से निवृत्ति, कामनाओं की पूर्ति के अभाव में जो आदमी को विक्षोभ उत्पन्न होते हैं उससे निवृत्ति, आदमी को अपनी कुरूपता और ------- पर जो हैरानी होती रहती है, (उसको) (पारस) को छू कर के उसकी निवृत्ति।

11. ये अनेक निवृत्तियाँ हो जाती हैं भगवान (को) नजदीक जाने से - इसीलिए उपासना का बहुत ------- बताया गया है।

12. इसीलिए भगवान के नजदीक जाने के लिए सबसे पहला काम जो करना पड़ता है, वो अपनी ------- करनी पड़ती है।

13. पूजा करते हैं तो क्या करते हैं? बताइए। आप क्या करते हैं, आप पंच-कर्म करते हैं - (पवित्रीकरण) एक, आचमन दो, प्राणायाम तीन, ------- चार, शिखा-वंदन पाँच

14. पवित्रीकरण में जल हथेली पे ले कर के (श) शरीर पे ------- हैं, और ये भावना करते हैं कि हमारी मलीनताएँ, जो बाहर की (मलीनताएँ) हैं वो दूर हो जाएँ।

15. आचमन तीन बार करते हैं, उसके पीछे क्या संकल्प होता है? उसके पीछे (ये) संकल्प होता है कि हमारी (मन, वाणी) मन, ------- और कर्म, इन तीनों में (शु) शुद्धता आए।

16. प्राणायाम - जो साँस हम ग्रहण करते हैं, साँस हमारे अंग-प्रत्यंगों में चली जाती है - उसमें भी हम ये भावना करते हैं, प्राणायाम में, कि भगवान का ------- ले कर के, भगवान की शक्ति ले कर के, ये हवा हमारे भीतर आए, और धो कर के साफ कर दे।

17. न्यास में पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, कर्मेन्द्रियाँ हैं - इनको हमको (शु) शुद्ध (रहना) चाहिए, अर्थात इनके द्वारा किए हुए ------- शुद्ध और पवित्र होने चाहिए - न्यास का ये उद्देश्य है।

18. शिखा-वंदन - (शिखा का) शिखा का वंदन, संस्कृति का वंदन - सिर के ऊपर जो ध्वजा फहरा रखी है, ज्ञान की देवी गायत्री माता की, उसके प्रति अपनी ------- का (व्यक्त) करना।

19. जो पंच-कर्म कहलाते हैं, ये सिर्फ इस उद्देश्य के लिए हैं कि, साधक को ये मान के चलना चाहिए कि अपनेआप को जितना पुनीत और जितना पवित्र बना सकेगा, उतना ही भगवान की ------- उसके भीतर प्रवेश करेंगी।

20. जीवन का स्नान करना भी - शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी - आत्मा का स्नान कराना, अर्थात आत्मा के ऊपर चढ़ाए हुए ------- और कल्मषों को हमको दूर करना चाहिए।

21. यही भजन का भी उद्देश्य है - बुहारी से आप देखते हैं, बुहारी से (बा) बार-बार झाड़ू लगाते हैं - बर्तन मांजते हैं न, रिपिटीशन (repetition) करते हैं - रिपिटीशन (repetition) करना जप करने का उद्देश्य है - एक तरह का ------- लगाना है

22. घिसाव देने से (हमारे) जो खुरदरापन है, रूखापन है, वो सब ------- में, स्नेह में, सद्भावना में बदल जाता है - ये है रिहर्सल 'जप' का।

23. जप को आप ये मान के मत चलिए कि भगवान को अपनी खुशामद की जरूरत है, (और) खुशामद जो कोई करता है उससे भगवान प्रसन्न हो जाता है - आप ऐसा कभी ख्याल मत करना। भगवान को न खुशामद कराने की ------- है, और न कोई शानदार (श) शक्ति खुशामद पसन्द करती है।

24. भगवान की (कौन) खुशामद नहीं करते तो क्या देखभाल नहीं करता? (चिड़ियाएँ) कहाँ खुशामद करती हैं? जानवर कहाँ उनकी प्रार्थना, पूजा करते हैं? इतने सृष्टि के जीव-जन्तु हैं, इसमें से कौन पूजा, प्रार्थना करता है? तो क्या भगवान ध्यान नहीं रखता? तो क्या भगवान ------- हो जाता है? 

25. भगवान को न किसी की खुशामद की जरूरत है, न किसी के इनाम, उपहार की जरूरत है। भेंट देंगे, पूजा देंगे, नैवेद्य चढ़ाएंगे, प्रसाद बाटेंगे - आप क्या ------- की सी बात करते हैं। 

26. तब, ये पूजा, उपासना (का इतना) कृत्य जो आप रोज करते हैं, (ये) किसलिए कराया जाता है? ये ------- में अपने मन की धुलाई है।

27. पहले आप अपनेआप को धो के रखेंगे तो (रंगा) रंगना संभव हो जाएगा, फिर आप उपासनाएँ जो करेंगे वो ------- हो सकती हैं, साधनाएँ (सा) सार्थक हो सकती हैं। 

28. जप करना, ध्यान करना, पूजा करना - ये अपनेआप की खुदाई करने के बराबर है, ताकि वहाँ राम के नाम की नींव चुनी जा सके। जुताई और बुवाई के तरीके से है, रंगाई और धुलाई के तरीके से है - ये बात समझ में आ जाए, तो फिर आपको उपासना कृत्यों का ------- मालुम हो गया ये समझना चाहिए।

29. नमन हम करते हैं, वंदन करते हैं, सूर्य नारायण को हम जल चढ़ाते हैं, इसका क्या मतलब है? हम अपनेआप को समर्पित करते हैं; अपने छोटे से बर्तन में (र) भरा हुआ जल, हम सूर्य भगवान के सामने चढ़ा देते हैं। इसका अर्थ ये होता है, प्रकारांतर से, कि (हमा) हमारे शरीर में जो भी जल भरा हुआ है, जीवन ------- भरा हुआ है, उसको हम विराट के (तईं), भगवान के तईं समर्पित करते हैं

30. ये आशा करते हैं कि हमारे जल को एक केंद्रित न रखा जाए, बल्कि इसको हवा में (बखेर) दिया जाए, ओस के रूप में, ठंडक के रूप में, ------- के रूप में, ये हमारा छोटा सा जल, जो अर्घ्य के रूप में चढ़ाया गया है, सारे समाज के काम आए, देश के काम आ जाए - (ये उद्देश्य) (यही) उद्देश्य को ले कर के सूर्य अर्घ्य चढ़ाया जाता है।

31. हमको विसर्जन करना होगा - जैसे जल को सूर्य नारायण के सामने विसर्जित कर देते हैं, आपको भी वैसे ही विसर्जित करना पड़ेगा अपनेआप को। इसका अर्थ है कि उनका ------- अपने ऊपर धारण करना पड़ेगा।

32. इष्ट भगवान का स्थापित करते हैं न - इष्ट माने लक्ष्य - हमारा लक्ष्य क्या है? लक्ष्य का मतलब है इष्ट। इष्ट अगर आपने कोई तय कर लिया - (अर्थात) आपका 'शिव' इष्ट है, इसका ------- ये हो गया 'कल्याण' आपका इष्ट है।

33. ये जो है गायत्री, ये प्रज्ञा की देवी, (सदाशयता) की देवी, ------- की देवी - इसके प्रति अगर आपको समर्पित करते हैं, तो आप मान लीजिए कि आपने इष्ट निर्धारित कर लिया।

34. अध्यात्म का अर्थ केवल एक होता है, कि हम भगवान (के मय) हो जाएँ, भगवान में ------- हो जाएँ, भगवान (के) साथ ले के चलें। ये (इन्हीं को) इन्हीं को (हमने) पूजा के प्रतीकों के माध्यम से चरितार्थ करते हैं। 

35. जल चढ़ाते हैं - भगवान को पानी की जरूरत थोड़े ही है कोई - बल्कि उसका ये अर्थ है कि हम अपनेआप को जल जैसा पुनीत, जल जैसा बहने वाला, (ज) (जल जैसे) जल जैसा ------- बनाते हैं।

36. पुष्प हम भगवान के ऊपर चढ़ाते हैं - उसका अर्थ ये होता है कि हम फूल जैसा जीवन जिएँगे, ------- जीवन जिएँगे, (समुन्नत) जीवन जिएँगे, हँसता और हँसाता हुआ जीवन जिएँगे।

37. अपनेआप को शिक्षण है - आत्म-शिक्षण के लिए हम फूल चढ़ाते हैं - हमार फूल जैसा जीवन ही भगवान के चरणों पे चढ़ने का ------- बन सकता है।

38. इसका अर्थ है भगवान के सिर पर अगर (आपको) विराजमान हैं, भगवान के हृदय (पर) अगर आपको लगना है, भगवान के चरणों (पे) स्थान प्राप्त करना है - उसका फिर (ए) एक ही तरीका रह गया - कौन (से आपको)? कि आप फूल की तरीके से -------।

39. हम भगवान को दीपक नहीं (दिखाते) हैं। दीपक दिखाने का अर्थ केवल अपनेआप को ये सिखाने का है, ये आत्म-शिक्षण है कि हमको दीपक की तरीके से जिंदगी जीनी चाहिए, हमको प्रकाशवान जिंदगी जीनी चाहिए, हमको ------- जिंदगी जीनी चाहिए, हमको अच्छी वाली जिंदगी जीनी चाहिए।

40. नैवेद्य का अर्थ है मिठास - हम अपनेआप (को मिठास) (मीठा) मीठा जीवन जिएँ। (हम) हमारे (व्यवहार) में मिठास हो, हमारे में नम्रता हो, ------- हो, दूसरों का सम्मान करना सीखें।

41. आप चावल चढ़ाते हैं भगवान के ऊपर - इसका अर्थ होता है अपनी कमाई का एक (हि) हिस्सा भगवान के तईं, अर्थात श्रेष्ठ कामों के तईं, (हम) ------- रूप से लगाते चलें

42. काम का पत्थर, क्रोध का पत्थर, लोभ का पत्थर, मोह का पत्थर, मद और मत्सर का पत्थर - ये सारे के सारे पत्थर ऐसे घिनौने पत्थर हैं जो हमारे लिए नाक में दम करते रहते हैं, जो हमको ------- करते रहते हैं।

43. उपासना का आप उद्देश्य बार-बार ध्यान रखिए - इसका एक ही उद्देश्य है कि हम अपनेआप को पुनीत बनाएँ, हम धो कर के साफ करें, ------- करें।

1. आप लोग जिस कल्प साधना सत्र में आए हुए हैं, उसमें महत्वपूर्ण काम आपको ये करना पड़ रहा है, किसी ऐसी सत्ता के साथ में अपनेआप को जोड़ दें, जो बड़ी ---सामर्थ्यवान ---- है।

2. इससे ज्यादा की जरूरत पड़े, तो फिर आपको भगवान का सहारा लेना पड़ेगा। ऐसे शक्तिपुंज (के साथ) सहारा लेना पड़ेगा जिसके साथ शक्तियों के ----भंडार --- भरे पड़े हैं।

3. भगवान कौन? भगवान आप ये मान के चल सकते हैं कि एक बहुत बड़ा (एक) बिजलीघर है, जिसके साथ-साथ में बल्ब लगे रहते हैं, पंखे लगे रहते हैं, छोटी-छोटी ----मशीनें --- लगी होती हैं

4. अगर वो जुड़ें नहीं तब - पंखा कैसे चले? बल्ब कैसे जलें? दूसरे काम कैसे बनें? इसीलिए इसको जुड़ जाना ----आवश्यक --- है। जुड़े बिना बड़ी शक्ति प्राप्त नहीं हो सकती, बड़े काम संभव नहीं हो सकते।

5. इस जुड़े रहने की प्रक्रिया का नाम है 'उपासना'। उपासना माने? नजदीक बैठना, पास बैठना। अगर आप पास बैठ जाएँ किसी के, तो उसका गुण, और उसके कर्म, और उसके स्वभाव, और उसकी ----विशेषताएँ --- आपके भीतर आना शुरू हो जाएंगी।

6. यही बात भगवान के संबंध में भी है। भगवान को कल्पवृक्ष बताया गया है, भगवान को --पारस ----- बताया गया है, (भ) भगवान को अमृत बताया गया है।

7. मनुष्य के बारे में भी यही बात है - भगवान को छू (ओ) तब, तब फिर सोना हो जाएगा आदमी; फिर लोहे का नहीं रहता, घटिया नहीं रहेगा, बल्कि ----महान --- बन जाएगा।

8. कल्पवृक्ष, अर्थात भगवान के नीचे अगर आदमी बैठ जाए तब, तब (वो) उसकी वो कामनाएँ जिनकी वजह से आदमी हर (वखत) हैरान बना रहता है, उन हैरानियों से ----छुट्टी--- पा सकता है

9. भगवान के नजदीक जा कर के आदमी ये अनुभव कर ले कि हमारा जीवात्मा भगवान का ही एक ---अंश ---- है - फिर, फिर क्यों मरेगा आदमी? जीवात्मा कहीं मरता है क्या?

10. भय से आदमी की निवृत्ति, मृत्यु के भय से निवृत्ति, कामनाओं की पूर्ति के अभाव में जो आदमी को विक्षोभ उत्पन्न होते हैं उससे निवृत्ति, आदमी को अपनी कुरूपता और ----कमज़ोरियों--- पर जो हैरानी होती रहती है, (उसको) (पारस) को छू कर के उसकी निवृत्ति।

11. ये अनेक निवृत्तियाँ हो जाती हैं भगवान (को) नजदीक जाने से - इसीलिए उपासना का बहुत ---महत्व ---- बताया गया है।

12. इसीलिए भगवान के नजदीक जाने के लिए सबसे पहला काम जो करना पड़ता है, वो अपनी ---सफाई ---- करनी पड़ती है।

13. पूजा करते हैं तो क्या करते हैं? बताइए - आप क्या करते हैं, आप पंच-कर्म करते हैं - (पवित्रीकरण) एक, आचमन दो, प्राणायाम तीन, ---न्यास ---- चार, शिखा-वंदन पाँच

14. पवित्रीकरण में जल हथेली पे ले कर के (श) शरीर पे ---छिड़कते ---- हैं, और ये भावना करते हैं कि हमारी मलीनताएँ, जो बाहर की (मलीनताएँ) हैं वो दूर हो जाएँ।

15. आचमन तीन बार करते हैं, उसके पीछे क्या संकल्प होता है? उसके पीछे (ये) संकल्प होता है कि हमारी (मन, वाणी) मन, ---वचन ---- और कर्म, इन तीनों में (शु) शुद्धता आए।

16. प्राणायाम - जो साँस हम ग्रहण करते हैं, साँस हमारे अंग-प्रत्यंगों में चली जाती है - उसमें भी हम ये भावना करते हैं, प्राणायाम में, कि भगवान का ---प्राण ---- ले कर के, भगवान की शक्ति ले कर के, ये हवा हमारे भीतर आए, और धो कर के साफ कर दे।

17. न्यास में पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, कर्मेन्द्रियाँ हैं - इनको हमको (शु) शुद्ध (रहना) चाहिए, अर्थात इनके द्वारा किए हुए ---कृत्य ---- शुद्ध और पवित्र होने चाहिए - न्यास का ये उद्देश्य है।

18. शिखा-वंदन - (शिखा का) शिखा का वंदन, संस्कृति का वंदन - सिर के ऊपर जो ध्वजा फहरा रखी है, ज्ञान की देवी गायत्री माता की, उसके प्रति अपनी ----निष्ठा --- का (व्यक्त) करना।

19. जो पंच-कर्म कहलाते हैं, ये सिर्फ इस उद्देश्य के लिए हैं कि, साधक को ये मान के चलना चाहिए कि अपनेआप को जितना पुनीत और जितना पवित्र बना सकेगा, उतना ही भगवान की ----किरणें --- उसके भीतर प्रवेश करेंगी।

20. जीवन का स्नान करना भी - शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी - आत्मा का स्नान कराना, अर्थात आत्मा के ऊपर चढ़ाए हुए ---कषाय ---- और कल्मषों को हमको दूर करना चाहिए।

21. यही भजन का भी उद्देश्य है - बुहारी से आप देखते हैं, बुहारी से (बा) बार-बार झाड़ू लगाते हैं - बर्तन मांजते हैं न, रिपिटीशन (repetition) करते हैं - रिपिटीशन (repetition) करना जप करने का उद्देश्य है - एक तरह का ---साबुन ---- लगाना है

22. घिसाव देने से (हमारे) जो खुरदरापन है, रूखापन है, वो सब ----चिकनाई --- में, स्नेह में, सद्भावना में बदल जाता है - ये है रिहर्सल 'जप' का।

23. जप को आप ये मान के मत चलिए कि भगवान को अपनी खुशामद की जरूरत है, (और) खुशामद जो कोई करता है उससे भगवान प्रसन्न हो जाता है - आप ऐसा कभी ख्याल मत करना। भगवान को न खुशामद कराने की -----दरकार -- है, और न कोई शानदार (श) शक्ति खुशामद पसन्द करती है।

24. भगवान की (कौन) खुशामद नहीं करते तो क्या देखभाल नहीं करता? (चिड़ियाएँ) कहाँ खुशामद करती हैं? जानवर कहाँ उनकी प्रार्थना, पूजा करते हैं? इतने सृष्टि के जीव-जन्तु हैं, इसमें से कौन पूजा, प्रार्थना करता है? तो क्या भगवान ध्यान नहीं रखता? तो क्या भगवान -----नाराज -- हो जाता है?

25. भगवान को न किसी की खुशामद की जरूरत है, न किसी के इनाम, उपहार की जरूरत है। भेंट देंगे, पूजा देंगे, नैवेद्य चढ़ाएंगे, प्रसाद बाटेंगे - आप क्या ----बच्चों --- की सी बात करते हैं।

26. तब, ये पूजा, उपासना (का इतना) कृत्य जो आप रोज करते हैं, (ये) किसलिए कराया जाता है? ये --वास्तव ----- में अपने मन की धुलाई है।

27. पहले आप अपनेआप को धो के रखेंगे तो (रंगा) रंगना संभव हो जाएगा, फिर आप उपासनाएँ जो करेंगे वो ----सफल --- हो सकती हैं, साधनाएँ (सा) सार्थक हो सकती हैं।

28. जप करना, ध्यान करना, पूजा करना - ये अपनेआप की खुदाई करने के बराबर है, ताकि वहाँ राम के नाम की नींव चुनी जा सके। जुताई और बुवाई के तरीके से है, रंगाई और धुलाई के तरीके से है - ये बात समझ में आ जाए, तो फिर आपको उपासना कृत्यों का ---रहस्य ---- मालुम हो गया ये समझना चाहिए।

29. नमन हम करते हैं, वंदन करते हैं, सूर्य नारायण को हम जल चढ़ाते हैं, इसका क्या मतलब है? हम अपनेआप को समर्पित करते हैं; अपने छोटे से बर्तन में (र) भरा हुआ जल, हम सूर्य भगवान के सामने चढ़ा देते हैं। इसका अर्थ ये होता है, प्रकारांतर से, कि (हमा) हमारे शरीर में जो भी जल भरा हुआ है, जीवन ---रस ---- भरा हुआ है, उसको हम विराट के (तईं), भगवान के तईं समर्पित करते हैं

30. ये आशा करते हैं कि हमारे जल को एक केंद्रित न रखा जाए, बल्कि इसको हवा में (बखेर) दिया जाए, ओस के रूप में, ठंडक के रूप में, ----नमी --- के रूप में, ये हमारा छोटा सा जल, जो अर्घ्य के रूप में चढ़ाया गया है, सारे समाज के काम आए, देश के काम आ जाए - (ये उद्देश्य) (यही) उद्देश्य को ले कर के सूर्य अर्घ्य चढ़ाया जाता है।

31. हमको विसर्जन करना होगा - जैसे जल को सूर्य नारायण के सामने विसर्जित कर देते हैं, आपको भी वैसे ही विसर्जित करना पड़ेगा अपनेआप को। इसका अर्थ है कि उनका ---अनुशासन ---- अपने ऊपर धारण करना पड़ेगा।

32. इष्ट भगवान का स्थापित करते हैं न - इष्ट माने लक्ष्य - हमारा लक्ष्य क्या है? लक्ष्य का मतलब है इष्ट। इष्ट अगर आपने कोई तय कर लिया - (अर्थात) आपका 'शिव' इष्ट है, इसका ----अर्थ --- ये हो गया 'कल्याण' आपका इष्ट है।

33. ये जो है गायत्री, ये प्रज्ञा की देवी, (सदाशयता) की देवी, ----शालीनता --- की देवी - इसके प्रति अगर आपको समर्पित करते हैं, तो आप मान लीजिए कि आपने इष्ट निर्धारित कर लिया।

34. अध्यात्म का अर्थ केवल एक होता है, कि हम भगवान (के मय) हो जाएँ, भगवान में ----तन्मय --- हो जाएँ, भगवान (के) साथ ले के चलें। ये (इन्हीं को) इन्हीं को (हमने) पूजा के प्रतीकों के माध्यम से चरितार्थ करते हैं।

35. जल चढ़ाते हैं - भगवान को पानी की जरूरत थोड़े ही है कोई - बल्कि उसका ये अर्थ है कि हम अपनेआप को जल जैसा पुनीत, जल जैसा बहने वाला, (ज) (जल जैसे) जल जैसा ---नम्र ---- बनाते हैं।

36. पुष्प हम भगवान के ऊपर चढ़ाते हैं - उसका अर्थ ये होता है कि हम फूल जैसा जीवन जिएँगे, ----सुरभित --- जीवन जिएँगे, (समुन्नत) जीवन जिएँगे, हँसता और हँसाता हुआ जीवन जिएँगे।

37. अपनेआप को शिक्षण है - आत्म-शिक्षण के लिए हम फूल चढ़ाते हैं - हमारा फूल जैसा जीवन ही भगवान के चरणों पे चढ़ने का ----अधिकारी--- बन सकता है।

38. इसका अर्थ है भगवान के सिर पर अगर (आपको) विराजमान हैं, भगवान के हृदय (पर) अगर आपको लगना है, भगवान के चरणों (पे) स्थान प्राप्त करना है - उसका फिर (ए) एक ही तरीका रह गया - कौन (से आपको)? कि आप फूल की तरीके से ---खिलें ----।

39. हम भगवान को दीपक नहीं (दिखाते) हैं। दीपक दिखाने का अर्थ केवल अपनेआप को ये सिखाने का है, ये आत्म-शिक्षण है कि हमको दीपक की तरीके से जिंदगी जीनी चाहिए, हमको प्रकाशवान जिंदगी जीनी चाहिए, हमको ---शानदार  --- जिंदगी जीनी चाहिए, हमको अच्छी वाली जिंदगी जीनी चाहिए।

40. नैवेद्य का अर्थ है मिठास - हम अपनेआप (को मिठास) (मीठा) मीठा जीवन जिएँ। (हम) हमारे (व्यवहार) में मिठास हो, हमारे में नम्रता हो, ----सज्जनता --- हो, दूसरों का सम्मान करना सीखें।

41. आप चावल चढ़ाते हैं भगवान के ऊपर - इसका अर्थ होता है अपनी कमाई का एक (हि) हिस्सा भगवान के तईं, अर्थात श्रेष्ठ कामों के तईं, (हम) -----नियमित -- रूप से लगाते चलें

42. काम का पत्थर, क्रोध का पत्थर, लोभ का पत्थर, मोह का पत्थर, मद और मत्सर का पत्थर - ये सारे के सारे पत्थर ऐसे घिनौने पत्थर हैं जो हमारे लिए नाक में दम करते रहते हैं, जो हमको --हैरान ----- करते रहते हैं।

43. उपासना का आप उद्देश्य बार-बार ध्यान रखिए - इसका एक ही उद्देश्य है कि हम अपनेआप को पुनीत बनाएँ, हम धो कर के साफ करें, ----स्वच्छ --- करें।