आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

21. तपश्चर्या का ज्ञान विज्ञान

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

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प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1. आप इस कल्प साधना के शिविर में जो ------- कर रहे हैं, उसमें से तपश्चर्या (मुख्य है), तपश्चर्या मुख्य है। 

2. आपको खानपान के बारे में तपश्चर्या, ------- उठने के बारे में तपश्चर्या, पालथी (में) (बार) के बैठने के बारे में तपश्चर्या, (बाहर) कहीं घर से बाहर न जाने के बारे में तपश्चर्या

3. पूरे के पूरे बंधन, आपको यहाँ ऐसा अनुशासन लगाया गया है, जिसको आप ------- सकते हैं कि आपको तपश्चर्या कराई जा रही है। 

4. तप का बड़ा महत्व है - आपको इसीलिए नहीं कराया जा रहा है कि आपको ------- किया जाए - बल्कि इसीलिए कराया जा रहा है कि आपको मज़बूत बना दिया जाए।

5. तपश्चर्या की ------- में तपे बिना आप मज़बूत नहीं हो सकते। कोई भी आदमी, कोई भी आदमी जिसने कठिनाइयों का सामना नहीं किया है, सिद्धांतों के लिए (आ) आदर्शों के लिए कष्ट नहीं सहा है, वो आदमी मज़बूत कैसे हो पाएगा

6. फिर वो ------- कच्चा रहेगा - समय आते ही, जब मुसीबत आ जाएगी, तभी भाग खड़ा होगा - तब अपने संकल्पों और सिद्धांतों को छोड़ (देगा)।

7. ईंटें आप देखते हैं! ईंटें क्या (है)? ------- मिट्टी है, जो पानी बरसते ही बह जाती है - लेकिन जब उसको तपा देते हैं, आग में, तो ईंट कैसी मज़बूत बन जाती है।

8. पानी यही होता है न, जो (आप) लोग पीते हैं - लेकिन अगर इसको आग के ऊपर तपा दें तब - तब फिर स्टीम (steam) बन जाती है, भाप बन जाती है - भाप से ------- कुकर चल जाते हैं, भाप से रेलगाड़ियाँ चल जाती हैं

9. आपका व्यक्तित्व भी ऐसा है जो तपाने की ------- करता है - आपको तपना चाहिए, और आपको तपाया जाना चाहिए। यही तप है जो आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में कराया जा रहा है, और आगे भी कराया जाएगा। अपने (आपको) संचित कुसंस्कारों के विरुद्ध बगावत (औ) लड़ाई लड़नी चाहिए।

10. महाभारत में भाई-भाईयों की लड़ाई का किस्सा नहीं है - असल में ये भीतर हमारे जो अंतर्द्वन्द्व हैं, हमारे जो कषाय और कल्मष हैं, यही वास्तव में दुर्योधन और कौरव हैं - (इनको हमने) पंच प्राणों की सहायता से इनसे लड़ाई लड़नी चाहिए, और इनके सामने झुकना नहीं चाहिए, इनको ------- देना चाहिए।

11. अपनेआप को अगर तपस्वी ------- बना सकते हों, तो फिर आपको ढेरों की ढेरों शक्तियाँ मिल सकती हैं - सिद्धियाँ जिनको (कहती) हैं वो तपश्चर्या के बिना नहीं मिल सकती (हैं)।

12. साधना से ------- मिलती है - साधना का मतलब आत्म-संयम होता है, अपनेआप का परिष्कार करना होता है।

13. (अध्यात्मिक) जीवन, महानता का जीवन, शालीनता का जीवन उन्हीं के लिए ------- है जो आत्म-विजय प्राप्त कर लें, अर्थात अपने दोष और दुर्गुणों पे नियंत्रण प्राप्त कर लें।

14. किसी आदमी को हम कैसे जान पाएँ - ये अच्छा आदमी है कि नहीं, प्रामाणिक है कि नहीं - इसका एक ही सबूत है, (कि उनने) ऊँचे सिद्धांतों के लिए ------- मुसीबत (उठी) उठाई है, तो हम ये कह सकते हैं कि ये तपस्वी है।

15. आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में इसीलिए ------- गया है, कि आप अपनेआप को मज़बूत बनाएँ और तपाएँ। 

16. तपाना न केवल ------- प्राप्त करने के लिए, बल्कि इसलिए भी (ज़रूरत) है, कि चारों ओर से आपके ऊपर जो हमले होते हैं, उनके विरुद्ध आप लड़ाई लड़ें, और अपनी बहादुरी का सबूत दें।

17. गंदगी से आप नहीं लड़ेंगे तब, गंदगी को बुहारेंगे नहीं तब - तब आपका शरीर, मन, कपड़ा, और -------, इमारत, सब गंदगी से भर जाएंगे।

18. ये क्या है? ये तपश्चर्या है - बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई ------- - तपश्चर्या - और, अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने का (अर्थ) - तपश्चर्या।

19. आपको उन्नति के लिए, आपको ------- करने के लिए, अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी, (और सामर्थ्य) संग्रह करनी पड़ेगी - ये कैसे हो सकता है? ये भी तपश्चर्या से होगा।

20. अगर आप तपश्चर्या नहीं कर सकते, अर्थात अपनेआप (पे) संयम नहीं लगा सकते, अपनेआप को पुरुषार्थी नहीं बना सकते, अपनेआप को संघर्षशील नहीं बना सकते, तो फिर ------- लिए सफलताएँ कहाँ से आएंगी?

21. धन, बल, विद्या, कला, वगैरह ------- क्या किसी ने बिना परिश्रम के कमा ली हैं? बिना पुरुषार्थ के कमाई जा सकीं? ना! कमाई नहीं जा (सकेंगी)। (नी) जब पुरुषार्थ करना पड़ता है उन्नति के लिए, उस उन्नति के लिए (हुए) (किए) हुए पुरुषार्थ का नाम भी तप है।

22. आपको अपनी उपेक्षावृत्ति से लड़ना पड़ेगा। (अपने) भीतर बार-बार निराशा जो आपको ------- लेती है, उसके विरुद्ध आपको लड़ना पड़ेगा।

23. चिंतन में जो चिंताएँ तरह-तरह की, और आशंकाएँ, भय ------- रहते हैं, इनसे आपको अपने (म) मन को (सुधारना) पड़ेगा, इन चीज़ों को (खतम) करना पड़ेगा।

24. अनीति के विरुद्ध आप अगर ------- के नहीं खड़े (गे), तो अनीति दिन-दिन बढ़ती चली जाएगी, और आपको ही नहीं, बल्कि आपके सारे समाज को धीरे-धीरे कर के निगलती चली जाएगी।

25. इसीलिए - तपश्चर्या - जिसका अर्थ होता है अपनेआप को तपा (डा), (त) तपा डालना, ------- बना देना, लड़ाकू बना देना, संघर्षशील बना (देना), साहसी बना (देना) - ये गुण अपने भीतर (तो) आप पैदा कीजिए।

26. प्राचीनकाल में तपश्चर्या को ------- महत्व दिया (जा) जाता था। विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल खुले हुए थे। गुरुकुलों में केवल पढ़ाई नहीं होती थी - आप ये सोचते हैं केवल पढ़ते (ही) रहते थे। नहीं! वहाँ तपस्वी जीवन का (आरम्य) से अभ्यास कराते थे।

27. कठिन जीवन था, कठोर जीवन था - बच्चे गौएँ चराते थे, बच्चे लकड़ी ------- के लाते थे, बच्चे सब मिलजुल कर के अपने गुरु के आश्रम के खेतों को और बगीचे (को) रखवाली करते थे, उगाते थे - ये उनकी मेहनत की (र) थी - ये क्या है? ये तपश्चर्या है।

28. आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले को भी ये करना पड़ता था - आरण्यक जितने बने हुए थे, वो, ढलती अवस्था में, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए, ------- करने के लिए आरण्यक बने हुए थे।

29. इन आरण्यकों में क्या होता था? आरण्यकों में तपस्वी जीवन ------- पड़ता था - निग्रहित जीवन, (अनु) अनुशासित जीवन

30. फिर आप ये ख्याल निकाल दीजिए - कि हमको ये पूजा करने से ये लाभ मिल जाएगा, और भजन करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ध्यान करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ------- कुण्डलिनी जग जाएगी - (आप) ये कुछ नहीं (मिलेगा)

31. आप (ज) जिंदगी को ठीक नहीं करते हैं, आप समझते नहीं हैं - सारे का सारा अध्यात्म सिर्फ इस बात पे टिका हुआ है, (कि) साधक का ------- जीवन, पवित्र जीवन

32. थोड़ी सी पूजा से अगर ये सब ------- मिल गई होतीं, तो फिर किसी आदमी को अपने जीवन को परिष्कृत करने की ज़रूरत क्या पड़ती? कोई संयमी बनता क्यों? कोई (त) तपस्वी बनता क्यों? कोई (न) निग्रहित अपनेआप को करता क्यों? (क्यों) अपनी इंद्रियों को मारता क्यों?

33. आदमी के भीतर से ये शक्ति का उदय और (उ उभय) होता है, ये केवल आदमी की तपश्चर्या की ------- से होता है।

34. कई तरह की आदमी तितीक्षा करता रहता है - ये अभ्यास है कि हम सिद्धांतों के लिए कठिनाई का ------- करेंगे

35. आप मन को रोकिए, और रोकने के बाद में भगवान से लगा दीजिए - यही तो योगाभ्यास है - तपश्चर्या और योगाभ्यास, दोनों की (एक) जोड़ी है - तपश्चर्या का अर्थ है (निकाल) देना, और योग का अर्थ, योग का अर्थ है ------- के साथ में जोड़ देना - भगवान के साथ जोड़ देना - उपासना उसी का नाम (है)

36. अपनेआप को, अपने संयम को, तपा देने का नाम, ------- देने, और झुका देने, मिटा देने का नाम तप है - तप और योग, इन दोनों की जोड़ी है - इन दोनों की जोड़ी है - आध्यात्मिक (उ) प्रगति के मार्ग पे दोनों कदम साथ-साथ बढ़ाने पड़ते हैं।

37. आदमी को आध्यात्मिक जीवन में उन्नति के लिए - पूजा-पाठ तो प्रारम्भिक है, ------- का है - लेकिन असल में योग और तप का रास्ता (अख्तियार) करना पड़ता (है)।

38. योग का अर्थ फिर एक बार समझिए - अपनेआप को भगवान के साथ में जोड़ (देना) - भगवान के साथ जोड़ देने का ------- है सिद्धांतों के साथ जोड़ देना, आदर्शों के साथ जोड़ (देना) 

39. एक और भी काम करना पड़ता है आध्यात्मिक जीवन के लिए - उसका नाम है तप - अपनेआप को तपाइए, अपनेआप को गलाइए, अपनेआप को ------- जैसा बनाइए, अपनेआप को ठीक कीजिए

40. अपनेआप को मुसीबतों को सहने की आदत डालिए, सिद्धांतों के लिए मुसीबत सहिए, अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ------- मुसीबत सहिए, अपनी (योग्यताओं) को ऊँचे उभारने और अपनी क्षमता को उछालने के लिए व्यायाम जैसे बहुत सारे काम करने को तैयार रहिए।

41. आप उसी तरीके से अपनेआप को महान सत्ता के साथ में, समष्टि के साथ में, ------- के साथ में, विराट ब्रह्म के साथ-साथ में, या जो कुछ भी इस दुनिया में महान है (इस) उसके साथ में अपनेआप को जोड़ दीजिए, (अपना) घुला दीजिए - फिर देखिए आप योगी होते हैं कि नहीं, और आप तपस्वी होते हैं कि नहीं।

42. आप योगी बनिए, तपस्वी बनिए - आप सिद्धांतों के साथ में (अपने) अपनेआप का तालमेल बिठाइए, आप अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ------- तैयार रहिए, झुकिए नहीं, कठिनाई उठाइए, गरीबी में रहिए, मुसीबत सहिए, लेकिन ऐसे काम मत कीजिए जो इंसान को शोभा नहीं देते।

43. तपस्वी जीवन के यही मौलिक सिद्धांत और मूलभूत सिद्धांत हैं - आप (इन तप) इन सिद्धांतों को समझें, तपस्वी बनें, और जिस कल्प साधना में आपको तपश्चर्या की ओर प्रेरणा दिलाई जा रही है, और स्मरण दिलाया जा रहा है, (उसको) सच्चे (अर्थों) से ------- करने की कोशिश करें।

1. आप इस कल्प साधना के शिविर में जो ----कार्य--- कर रहे हैं, उसमें से तपश्चर्या (मुख्य है), तपश्चर्या मुख्य है।

2. आपको खानपान के बारे में तपश्चर्या, ----सबेरे --- उठने के बारे में तपश्चर्या, पालथी (में) (बार) के बैठने के बारे में तपश्चर्या, (बाहर) कहीं घर से बाहर न जाने के बारे में तपश्चर्या

3. पूरे के पूरे बंधन, आपको यहाँ ऐसा अनुशासन लगाया गया है, जिसको आप ----सोच --- सकते हैं कि आपको तपश्चर्या कराई जा रही है।

4. तप का बड़ा महत्व है - आपको इसीलिए नहीं कराया जा रहा है कि आपको ----हैरान --- किया जाए - बल्कि इसीलिए कराया जा रहा है कि आपको मज़बूत बना दिया जाए।

5. तपश्चर्या की ----आग --- में तपे बिना आप मज़बूत नहीं हो सकते। कोई भी आदमी, कोई भी आदमी जिसने कठिनाइयों का सामना नहीं किया है, सिद्धांतों के लिए (आ) आदर्शों के लिए कष्ट नहीं सहा है, वो आदमी मज़बूत कैसे हो पाएगा

6. फिर वो ---बिल्कुल ---- कच्चा रहेगा - समय आते ही, जब मुसीबत आ जाएगी, तभी भाग खड़ा होगा - तब अपने संकल्पों और सिद्धांतों को छोड़ (देगा)।

7. ईंटें आप देखते हैं! ईंटें क्या (है)? ----मामूली --- मिट्टी है, जो पानी बरसते ही बह जाती है - लेकिन जब उसको तपा देते हैं, आग में, तो ईंट कैसी मज़बूत बन जाती है।

8. पानी यही होता है न, जो (आप) लोग पीते हैं - लेकिन अगर इसको आग के ऊपर तपा दें तब - तब फिर स्टीम (steam) बन जाती है, भाप बन जाती है - भाप से ----प्रेशर --- कुकर चल जाते हैं, भाप से रेलगाड़ियाँ चल जाती हैं

9. आपका व्यक्तित्व भी ऐसा है जो तपाने की ---अपेक्षा ---- करता है - आपको तपना चाहिए, और आपको तपाया जाना चाहिए। यही तप है जो आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में कराया जा रहा है, और आगे भी कराया जाएगा। अपने (आपको) संचित कुसंस्कारों के विरुद्ध बगावत (औ) लड़ाई लड़नी चाहिए।

10. महाभारत में भाई-भाईयों की लड़ाई का किस्सा नहीं है - असल में ये भीतर हमारे जो अंतर्द्वन्द्व हैं, हमारे जो कषाय और कल्मष हैं, यही वास्तव में दुर्योधन और कौरव हैं - (इनको हमने) पंच प्राणों की सहायता से इनसे लड़ाई लड़नी चाहिए, और इनके सामने झुकना नहीं चाहिए, इनको ---भगा ---- देना चाहिए।

11. अपनेआप को अगर तपस्वी ---आप ---- बना सकते हों, तो फिर आपको ढेरों की ढेरों शक्तियाँ मिल सकती हैं - सिद्धियाँ जिनको (कहती) हैं वो तपश्चर्या के बिना नहीं मिल सकती (हैं)।

12. साधना से ---सिद्धि ---- मिलती है - साधना का मतलब आत्म-संयम होता है, अपनेआप का परिष्कार करना होता है।

13. (अध्यात्मिक) जीवन, महानता का जीवन, शालीनता का जीवन उन्हीं के लिए ---संभव ---- है जो आत्म-विजय प्राप्त कर लें, अर्थात अपने दोष और दुर्गुणों पे नियंत्रण प्राप्त कर लें।

14. किसी आदमी को हम कैसे जान पाएँ - ये अच्छा आदमी है कि नहीं, प्रामाणिक है कि नहीं - इसका एक ही सबूत है, (कि उनने) ऊँचे सिद्धांतों के लिए ----अगर --- मुसीबत (उठी) उठाई है, तो हम ये कह सकते हैं कि ये तपस्वी है।

15. आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में इसीलिए ----बुलाया --- गया है, कि आप अपनेआप को मज़बूत बनाएँ और तपाएँ।

16. तपाना न केवल ----शक्ति --- प्राप्त करने के लिए, बल्कि इसलिए भी (ज़रूरत) है, कि चारों ओर से आपके ऊपर जो हमले होते हैं, उनके विरुद्ध आप लड़ाई लड़ें, और अपनी बहादुरी का सबूत दें।

17. गंदगी से आप नहीं लड़ेंगे तब, गंदगी को बुहारेंगे नहीं तब - तब आपका शरीर, मन, कपड़ा, और ---घर ----, इमारत, सब गंदगी से भर जाएंगे।

18. ये क्या है? ये तपश्चर्या है - बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई --- लड़ना ----- - तपश्चर्या - और, अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने का (अर्थ) – तपश्चर्या।

19. आपको उन्नति के लिए, आपको ---तरक्की ---- करने के लिए, अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी, (और सामर्थ्य) संग्रह करनी पड़ेगी - ये कैसे हो सकता है? ये भी तपश्चर्या से होगा।

20. अगर आप तपश्चर्या नहीं कर सकते, अर्थात अपनेआप (पे) संयम नहीं लगा सकते, अपनेआप को पुरुषार्थी नहीं बना सकते, अपनेआप को संघर्षशील नहीं बना सकते, तो फिर ---आपके ---- लिए सफलताएँ कहाँ से आएंगी?

21. धन, बल, विद्या, कला, वगैरह ----सम्पदाएँ --- क्या किसी ने बिना परिश्रम के कमा ली हैं? बिना पुरुषार्थ के कमाई जा सकीं? ना! कमाई नहीं जा (सकेंगी)। (नी) जब पुरुषार्थ करना पड़ता है उन्नति के लिए, उस उन्नति के लिए (हुए) (किए) हुए पुरुषार्थ का नाम भी तप है।

22. आपको अपनी उपेक्षावृत्ति से लड़ना पड़ेगा। (अपने) भीतर बार-बार निराशा जो आपको ----दबोच --- लेती है, उसके विरुद्ध आपको लड़ना पड़ेगा।

23. चिंतन में जो चिंताएँ तरह-तरह की, और आशंकाएँ, भय ---छाए ---- रहते हैं, इनसे आपको अपने (म) मन को (सुधारना) पड़ेगा, इन चीज़ों को (खतम) करना पड़ेगा।

24. अनीति के विरुद्ध आप अगर ---तन ---- के नहीं खड़े (गे), तो अनीति दिन-दिन बढ़ती चली जाएगी, और आपको ही नहीं, बल्कि आपके सारे समाज को धीरे-धीरे कर के निगलती चली जाएगी।

25. इसीलिए - तपश्चर्या - जिसका अर्थ होता है अपनेआप को तपा (डा), (त) तपा डालना, ---मज़बूत ---- बना देना, लड़ाकू बना देना, संघर्षशील बना (देना), साहसी बना (देना) - ये गुण अपने भीतर (तो) आप पैदा कीजिए।

26. प्राचीनकाल में तपश्चर्या को ---बहुत ---- महत्व दिया (जा) जाता था। विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल खुले हुए थे। गुरुकुलों में केवल पढ़ाई नहीं होती थी - आप ये सोचते हैं केवल पढ़ते (ही) रहते थे। नहीं! वहाँ तपस्वी जीवन का (आरम्य) से अभ्यास कराते थे।

27. कठिन जीवन था, कठोर जीवन था - बच्चे गौएँ चराते थे, बच्चे लकड़ी ---लाद ---- के लाते थे, बच्चे सब मिलजुल कर के अपने गुरु के आश्रम के खेतों को और बगीचे (को) रखवाली करते थे, उगाते थे - ये उनकी मेहनत की (र) थी - ये क्या है? ये तपश्चर्या है।

28. आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले को भी ये करना पड़ता था - आरण्यक जितने बने हुए थे, वो, ढलती अवस्था में, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए, ----निवास --- करने के लिए आरण्यक बने हुए थे।

29. इन आरण्यकों में क्या होता था? आरण्यकों में तपस्वी जीवन ---जीना ---- पड़ता था - निग्रहित जीवन, (अनु) अनुशासित जीवन

30. (फिर) आप ये ख्याल निकाल दीजिए - कि हमको ये पूजा करने से ये लाभ मिल जाएगा, और भजन करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ध्यान करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ----हमारी --- कुण्डलिनी जग जाएगी - (आप) ये कुछ नहीं (मिलेगा)

31. आप (ज) जिंदगी को ठीक नहीं करते हैं, आप समझते नहीं हैं - सारे का सारा अध्यात्म सिर्फ इस बात पे टिका हुआ है, (कि) साधक का --पुनीत ----- जीवन, पवित्र जीवन

32. थोड़ी सी पूजा से अगर ये सब ---चीज़ें ---- मिल गई होतीं, तो फिर किसी आदमी को अपने जीवन को परिष्कृत करने की ज़रूरत क्या पड़ती? कोई संयमी बनता क्यों? कोई (त) तपस्वी बनता क्यों? कोई (न) निग्रहित अपनेआप को करता क्यों? (क्यों) अपनी इंद्रियों को मारता क्यों?

33. आदमी के भीतर से ये शक्ति का उदय और (उ उभय) होता है, ये केवल आदमी की तपश्चर्या की ----वजह --- से होता है।

34. कई तरह की आदमी तितीक्षा करता रहता है - ये अभ्यास है कि हम सिद्धांतों के लिए कठिनाई का ---सामना ---- करेंगे

35. आप मन को रोकिए, और रोकने के बाद में भगवान से लगा दीजिए - यही तो योगाभ्यास है - तपश्चर्या और योगाभ्यास, दोनों की (एक) जोड़ी है - तपश्चर्या का अर्थ है (निकाल) देना, और योग का अर्थ, योग का अर्थ है ----किसी --- के साथ में जोड़ देना - भगवान के साथ जोड़ देना - उपासना उसी का नाम (है)

36. अपनेआप को, अपने संयम को, तपा देने का नाम, ---गला ---- देने, और झुका देने, मिटा देने का नाम तप है - तप और योग, इन दोनों की जोड़ी है - इन दोनों की जोड़ी है - आध्यात्मिक (उ) प्रगति के मार्ग पे दोनों कदम साथ-साथ बढ़ाने पड़ते हैं।

37. आदमी को आध्यात्मिक जीवन में उन्नति के लिए - पूजा-पाठ तो प्रारम्भिक है, -----बच्चों -- का है - लेकिन असल में योग और तप का रास्ता (अख्तियार) करना पड़ता (है)।

38. योग का अर्थ फिर एक बार समझिए - अपनेआप को भगवान के साथ में जोड़ (देना) - भगवान के साथ जोड़ देने का ----मतलब --- है सिद्धांतों के साथ जोड़ देना, आदर्शों के साथ जोड़ (देना)

39. एक और भी काम करना पड़ता है आध्यात्मिक जीवन के लिए - उसका नाम है तप - अपनेआप को तपाइए, अपनेआप को गलाइए, अपनेआप को ----सोने --- जैसा बनाइए, अपनेआप को ठीक कीजिए

40. अपनेआप को मुसीबतों को सहने की आदत डालिए, सिद्धांतों के लिए मुसीबत सहिए, अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ---आप ---- मुसीबत सहिए, अपनी (योग्यताओं) को ऊँचे उभारने और अपनी क्षमता को उछालने के लिए व्यायाम जैसे बहुत सारे काम करने को तैयार रहिए।

41. आप उसी तरीके से अपनेआप को महान सत्ता के साथ में, समष्टि के साथ में, ----भगवान --- के साथ में, विराट ब्रह्म के साथ-साथ में, या जो कुछ भी इस दुनिया में महान है (इस) उसके साथ में अपनेआप को जोड़ दीजिए, (अपना) घुला दीजिए - फिर देखिए आप योगी होते हैं कि नहीं, और आप तपस्वी होते हैं कि नहीं।

42. आप योगी बनिए, तपस्वी बनिए - आप सिद्धांतों के साथ में (अपने) अपनेआप का तालमेल बिठाइए, आप अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ----हमेशा --- तैयार रहिए, झुकिए नहीं, कठिनाई उठाइए, गरीबी में रहिए, मुसीबत सहिए, लेकिन ऐसे काम मत कीजिए जो इंसान को शोभा नहीं देते।

43. तपस्वी जीवन के यही मौलिक सिद्धांत और मूलभूत सिद्धांत हैं - आप (इन तप) इन सिद्धांतों को समझें, तपस्वी बनें, और जिस कल्प साधना में आपको तपश्चर्या की ओर प्रेरणा दिलाई जा रही है, और स्मरण दिलाया जा रहा है, (उसको) सच्चे (अर्थों) से ---सार्थक ---- करने की कोशिश करें।

1. आप इस कल्प साधना के शिविर में जो ---- कार्य ---- कर रहे हैं, उसमें से तपश्चर्या (मुख्य है), तपश्चर्या मुख्य है।

आप देखते हैं न जो कुछ भी (आपके) क्रिया (कृत्य) हैं, ये सारे के सारे तपश्चर्या से संबंधित हैं । 

2. आपको खानपान के बारे में तपश्चर्या, ---- सबेरे ---- उठने के बारे में तपश्चर्या, पालथी (बार) के बैठने के बारे में तपश्चर्या, (बाहर) कहीं घर से बाहर न जाने के बारे में तपश्चर्या

3. पूरे के पूरे बंधन, आपको यहाँ ऐसा अनुशासन लगाया गया है, जिसको आप ---- सोच ---- सकते हैं कि आपको तपश्चर्या कराई जा रही है।

4. तप का बड़ा महत्व है - आपको इसीलिए नहीं कराया जा रहा है कि आपको ---- हैरान ---- किया जाए - बल्कि इसीलिए कराया जा रहा है कि आपको मज़बूत बना दिया जाए।

5. तपश्चर्या की ---- आग ---- में तपे बिना आप मज़बूत नहीं हो सकते। कोई भी आदमी, कोई भी आदमी जिसने कठिनाइयों का सामना नहीं किया है, सिद्धांतों के लिए (और) आदर्शों के लिए कष्ट नहीं सहा है, वो आदमी मज़बूत कैसे हो पाएगा

6. फिर वो ---- बिल्कुल ---- कच्चा रहेगा - समय आते ही, जब मुसीबत आ जाएगी, तभी भाग खड़ा होगा - (और) अपने संकल्पों और सिद्धांतों को छोड़ (देगा)।

आपको इस तपश्चर्या में यही कराया जा रहा है।

आप जानते हैं ना - कच्ची धातुओं को, कच्ची धातुओं को परिशोधन करने के लिए भट्टी में तपाते हैं - भट्टी में नहीं तपाएँ तब - तब कच्ची धातुएँ पक्की धातु,शुद्ध धातु नहीं बन सकतीं।

जमीन में से लोहा निकलता है, मिट्टी मिला हुआ लोहा निकलता है, आप जैसा लोहा देखते हैं वैसा थोड़ी निकलता है। इसको भट्टी में डालना पड़ता है, तपाना पड़ता है, मिट्टी जल जाती है, और साफ-सुथरा लोहा बाहर निकल के आ जाता है - तब उसमें से और चीज़ें बनती हैं, काम की चीज़ें। (अगर) न तपाएँ तब, तब लोहा कच्चा रहेगा, कोई चीज़ नहीं बन सकेगी।  

7. ईंटें आप देखते हैं - ईंटें क्या (है)? ---- मामूली ---- मिट्टी है, जो पानी बरसते ही बह जाती है - लेकिन जब उसको तपा देते हैं, आग में, तो ईंट कैसी मज़बूत बन जाती है।

इमारतें बनाते हैं मुद्दतों तक टिकी रहती हैं

8. पानी यही होता है ना, जो (आप) लोग पीते हैं - लेकिन अगर इसको आग के ऊपर तपा दें तब - तब फिर स्टीम (steam) बन जाती है, भाप बन जाती है - भाप से ---- प्रेशर ---- कुकर चल जाते हैं, भाप से रेलगाड़ियाँ चल जाती हैं

भाप से क्या नहीं हो जाता। ये क्या है? ये तपाने का परिणाम।

रस और भस्में बनती हैं - (उसमें) क्या करना पड़ता है? अभ्रक भस्म, लोहा भस्म, सोना भस्म, चाँदी भस्म, मकरध्वज, वगैरह - ये सब क्या चीज हैं? ये रासानिक पदार्थों को जला कर के, गरम कर के, तपाने के बाद में, इनकी शक्ति को उछाला जाता है, और उभारा जाता है - ये तपाने की बात हुई।

सोने को तपाएँ नहीं तब - सोना कच्चा (रहेगा), कोई कीमत ही नहीं मिलेगी - कोई मना करे - साहब, तपाने नहीं देंगे - तो बाज़ार में आप जाइए, कोई लेगा ही नहीं

सोने को तपा देने के बाद में न केवल उसकी चमक बढ़ जाती है, बल्कि उसकी मलीनताएँ दूर भी हो जाती हैं - न केवल दूर हो जाती हैं, (बल्कि) साख बढ़ जाती है, और तपाए हुए सोने का नकद पैसा मिल जाता है। (बिना) तपाए बिना संभव नहीं है। 

9. आपका व्यक्तित्व भी ऐसा है जो तपाने की ---- अपेक्षा ---- करता है - आपको तपना चाहिए, और आपको तपाया जाना चाहिए। यही तप है जो आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में कराया जा रहा है, और आगे भी कराया जाएगा। अपने (आपको) संचित कुसंस्कारों के विरुद्ध बगावत (और) लड़ाई लड़नी चाहिए।

यही तो है गीता का महाभारत

10. महाभारत में भाई-भाईयों की लड़ाई का किस्सा नहीं है, असल में - ये भीतर हमारे जो अंतर्द्वन्द्व हैं, हमारे जो कषाय और कल्मष हैं, यही वास्तव में दुर्योधन और कौरव हैं - (इनको हमने) पंच प्राणों की सहायता से इनसे लड़ाई लड़नी चाहिए, और इनके सामने झुकना नहीं चाहिए, इनको ---- भगा ---- देना चाहिए।

चाकू पर धार रखने से चाकू तेज हो जाता है ना - आदमी के ऊपर तपश्चर्या की धार रखने से, (वो) चाकू की तरीके से पैना और तीखा हो जाता है।

धुलाई-रंगाई  की बात कल कही थी - (आपको) धुलाई नहीं करेंगे, कपड़े की पिटाई नहीं करेंगे, तो रंग कहाँ से आ (जाएगा)। बुआई-जुताई की बात कही थी ना - ये सब आत्म विजय।

11. अपनेआप को अगर तपस्वी ---- आप ---- बना सकते हों, तो फिर आपको ढेरों की ढेरों शक्तियाँ मिल सकती हैं - सिद्धियाँ जिनको (कहती) हैं वो तपश्चर्या के बिना नहीं मिल सकती (हैं)।

12. साधना से ---- सिद्धि ---- मिलती है - साधना का मतलब आत्म-संयम होता है, अपनेआप का परिष्कार करना होता है।

संसार में (कितना) कितने बड़े काम हुए हैं - ये सब काम बड़े-बड़े विजय जिन्होंने प्राप्त की हैं, वास्तव में आत्म विजय का परिणाम है। जो अपने ऊपर जीत सकता है, (आध्यात्मिक) क्षेत्र में वही विश्व विजयी माना जाता है। संसार में तो चोर डाकू भी अपने-अपने ढंग से तुक बिठा लेते हैं, पर

13. (आध्यात्मिक) जीवन, महानता का जीवन, शालीनता का जीवन उन्हीं के लिए ---- संभव ---- है जो आत्म-विजय प्राप्त कर लें, अर्थात अपने दोष और दुर्गुणों (पे) नियंत्रण प्राप्त कर लें।

जो उसको नहीं कर सकेंगे उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। आप भागीरथ (को नाम) जानते हैं? भागीरथ एक सामान्य से राजकुमार थे, लेकिन जब उन्होंने तपस्वी जीवन जिया, तब उनके चमत्कारों को देखा - गंगाजी को स्वर्ग से उतार कर के ज़मीन (पे) ले आए, ज़मीन (पे) ले आए, और (उनका नाम) गंगा का नाम भागीरथी कहलाया।

महान भागीरथ - महान भागीरथ का अर्थ है - राजकुमार भागीरथ नहीं, तपस्वी भागीरथ - तपस्वी भागीरथ बहुत शानदार था - राजकुमार भागीरथ बिल्कुल मामूली आदमी था।

आपने दधीचि का नाम सुना है? मामूली संत बाबाजी थे - लेकिन जब उन्होंने अपनी तपश्चर्या से तपा लिया, तो उनकी हड्डियाँ इतनी मज़बूत हो गईं, (उससे) इन्द्र का वज्र बनाया जा सका, और जो वृत्रासुर किसी भी हथियार से मरने वाला नहीं था, वो उससे मरा - किससे? - दधीचि की हड्डियों से - ये कैसे बात बनी? ये तपस्वी की बात कह रहा हूँ मैं।

आपने श्रृंगी ॠषि का नाम सुना है? श्रृंगी ॠषि उन महात्मा का नाम है जिनके (कि) आशीर्वाद से राजा दशरथ सन्तानहीन थे, और उन्होंने वेद मंत्र पढ़े थे और यज्ञ कराया था, तो चार बच्चे पैदा हो गए थे। चार बच्चे किसने पैदा किए थे? यज्ञ ने - नहीं यज्ञ ने नहीं किए थे - मंत्र शक्ति ने - मंत्र शक्ति ने - अरे भाई मंत्र शक्ति से भी नहीं

(वो ॠषि) श्रृंगी ॠषि (के) बंदूक के ऊपर जब वेद मंत्रों के कारतूस रख के चलाए गए, तो ही चले - बंदूक न हो तो तब क्या कारतूस चलेगा -तपस्वी न हो तो क्या मंत्र सिद्ध हो जाएगा - मंत्र सिद्ध होने के लिए, भगवान की उपासना करने के लिए, आदमी का तपस्वी जीवन आवश्यक है।

श्रृंगी ॠषि तपस्वी थे - ज़िंदगी भर ये नहीं जाना - जायकेदार पदार्थ क्या होते हैं? आश्रम में जो कन्द मूल बन जाते थे, उसी को खाते थे। ऐसे श्रृंगी ॠषि जिनकी वाणी, जिनकी इन्द्रियाँ, (जिसका) मन सब ओर से निग्रहीत था - उनमें ही शक्ति थी, कि वो यज्ञ कराएँ, और उनके बच्चे पैदा हो जाएँ।

महर्षि वशिष्ठ वो काम नहीं कर सकते - क्योंकि उनकी शादी हो गई थी और बहुत सारे बच्चे भी हो गए थे, राजा का अन्न खाते थे - जिसने राजा का अन्न खाया और जिसके ढेरों के ढेरों बच्चे पैदा हो गए, उससे क्या आशा की जाए कि (उसके) श्राप और वरदान सफल होंगे - श्राप और वरदान होने के लिए आदमी का तपस्वी जीवन होना बहुत ज़रूरी है।

पार्वती जी (की) तो आप जानते हैं - पार्वती जी एक साधारण से राजा की बेटी थीं, हिमांचल राजा की - लेकिन जब उनको तीनों लोकों के स्वामी भगवान शंकर जी से ब्याह करने का मन हुआ, एक ही तरीका था - तपस्वी - तपश्चर्या से आदमी को ये साबित करना होता है कि हम इस लायक हैं - लायक आप किस तरीके से (पहचानेंगे)?

14. किसी आदमी को हम कैसे जान पाएँ - ये अच्छा आदमी है कि नहीं, प्रामाणिक है कि नहीं - इसका एक ही सबूत है, (कि उनने) ऊँचे सिद्धांतों के लिए ---- अगर ---- मुसीबत (उठी) उठाई है, तो हम ये कह सकते हैं कि ये तपस्वी है।

ऊँचे सिद्धान्तों के लिए जिसने मुसीबत नहीं उठाई है, उसके बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि ये प्रामाणिक है। इस तरीके से पार्वती जी ने अपनी तपश्चर्या के द्वारा शंकर भगवान के सामने ये साबित कर दिया कि वो इस लायक हैं कि उनकी अर्धांगिनी बनें - ये तपश्चर्या से संभव हुआ।

और आपने कितनों के नाम सुने (हैं) - ध्रुव का नाम सुना है ना - ध्रुव क्या हो गए थे? (ध्रुव) बहुत तेज हो गए थे, तीनों लोक के स्वामी हो गए थे, आकाश में रहते थे, भगवान के प्यारे हो गए थे - कैसे संभव हुआ? तपश्चर्या के द्वारा।

आपने परशुराम जी (की) बाबत में सुना है - उनके पास एक ऐसा कुल्हाड़ा था, उस कुल्हाड़े को ले कर के के, इक्कीस बार उन्होंने अन्यायी लोगों का सिर काट डाला - और फिर उन्होंने सारे संसार में नई स्थापना करने के लिए संसार को हरा-भरा बना दिया। ये कैसे बना सकता था एक छोटा सा आदमी? इसमें तपश्चर्या की शक्ति थी।

अगर भगवान परशुराम तपस्वी नहीं रहे होते तब, तब वो बिल्कुल मामूली, जैसे बाबाजी, ब्राह्मण, पंडित रहते, यहाँ वहाँ कथा वार्ता करते रहते - परशुराम जी का ऐसा कुल्हाड़ा लोहार के यहाँ से नहीं खरीदा गया था - ये (तपश्चर्या) तपश्चर्या की शक्ति से उनको प्राप्त हुआ था।

और भी कितने ॠषि हैं - आपको कहाँ-कहाँ तक बताएँ - अच्छा, अगस्त्य ॠषि को आप जानते हैं? अगस्त्य ॠषि ने तीन चुल्लू में समुद्र का पानी पी लिया था - अगस्त्य ॠषि में शक्ति कहाँ से आ गई थी? ये अगस्त्य ॠषि की शक्ति तपश्चर्या की शक्ति है।

तपश्चर्या अगर आदमी कोई न करे तब - शक्तिवान हो जाएगा? नहीं, तपश्चर्या जो नहीं कर सकता, वो सामर्थ्यवान नहीं हो सकता, शक्तिशाली नहीं हो सकता - इसीलिए

15. आपको यहाँ इस कल्प साधना शिविर में इसीलिए ---- बुलाया ---- गया है, कि आप अपनेआप को मज़बूत बनाएँ और तपाएँ।

16. तपाना न केवल ---- शक्ति ---- प्राप्त करने के लिए, बल्कि (इसलिए) भी (ज़रूरत) है, कि चारों ओर से आपके ऊपर जो हमले होते हैं, उनके विरुद्ध आप लड़ाई लड़ें, और अपनी बहादुरी का सबूत दें।

आप देखते हैं ना, चारों ओर का वातारण कैसा घिरा हुआ है - अगर आप लड़ाई नहीं लड़ें, और हिम्मत नहीं दिखाएँ,और संघर्ष न करें तब, (और) तपस्वी न हों तब - तपस्वी का एक अर्थ लड़ने वाला भी होता है, संघर्षशील भी (है) - आपको ज़िंदगी में पग-पग पर लड़ना पड़ेगा।

मक्खियों से अगर आप नहीं लड़ें तब - मक्खियाँ आपकी सब चीज़ को ज़हरीली कर देंगी और मुसीबत पैदा करेंगी। मच्छरों को भगाने का आप इंतजाम न करें तब - मच्छर आपको काट खाएँगे और सारे शरीर को मलेरिया से (ग्रसित) कर देंगे।

खटमल देखते हैं ना, पिस्सुओं को आप जानते हैं ना, (जुएँ) घर में रहते हैं, दीमक के बारे में आप जानते हैं कितना नुकसान करती है, (जो) अनाज को खाने वाले घुन, शरीर को खाने वाले विषाणु, फसल को खाने वाले कीड़े, जंगली जानवर, बिच्छू, साँप, बर्र - अगर आप इनका मुकाबला न करें, (इनको) भगाने की कोशिश न करें, और इनके साथ चुप बैठे रहें तब, तब ये सब मिल कर के आपके जिन्दा रहना मुश्किल कर देंगे, और आप जी नहीं पाएँगे।

लड़ना तो पड़ता ही है आपको - ये तपस्वी का एक अर्थ अपने आपको लड़ाकू बना देना भी है। चोर और उच्चक्के, दुराचारी और व्याभिचारी - अगर आप सामना न करें, उनका मुकाबला न करें, और उनको रौंदते हुए नहीं आगे चलें, तो ये आप समझ लीजिए - ये सब मिल कर के आपके ऊपर हमला बोल देंगे, और आपको जिंदा नहीं रहने देंगे।

इस दुनिया में जिंदा रहने के लिए बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिनसे हमको लड़ाई करनी पड़ती है - आलस्य और प्रमाद को ही लीजिए, आलस्य और प्रमाद से आप अगर लड़ाई नहीं लड़ेंगे तब, तब फिर (आपका) बहुत मुश्किल हो जाएगी, आलस्य और प्रमाद आपको खा (जाएँगे)। 

17. गंदगी से आप नहीं लड़ेंगे तब, गंदगी को बुहारेंगे नहीं तब - तब आपका शरीर, मन, कपड़ा, और ---- घर ----, इमारत, सब गंदगी से भर जाएँगे।

18. ये क्या है? ये तपश्चर्या है - बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई ---- लड़ना ---- - तपश्चर्या - और, अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने का (अर्थ) – तपश्चर्या।

इसके अलावा एक और बात भी है - क्या चीज़?

19. आपको उन्नति के लिए, आपको ---- तरक्की ---- करने के लिए, अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी, (और सामर्थ्य) संग्रह करनी पड़ेगी - ये कैसे हो सकता है? ये भी तपश्चर्या से होगा।

20. अगर आप तपश्चर्या नहीं कर सकते, अर्थात अपनेआप (पे) संयम नहीं लगा सकते, अपनेआप को पुरुषार्थी नहीं बना सकते, अपनेआप को संघर्षशील नहीं बना सकते, तो फिर ---- आपके ---- लिए सफलताएँ कहाँ से आएँगी?

21. धन, बल, विद्या, कला, वगैरह ---- सम्पदाएँ ---- क्या किसी ने बिना परिश्रम के कमा ली हैं? बिना पुरुषार्थ के कमाई जा सकीं? ना! कमाई नहीं जा (सकेंगी)। (जो) पुरुषार्थ करना पड़ता है उन्नति के लिए, उस उन्नति के लिए (हुए) (किए) हुए पुरुषार्थ का नाम भी तप है।

तप कई तरह के होते हैं। 

22. आपको अपनी उपेक्षावृत्ति से लड़ना पड़ेगा। (अपने) भीतर बार-बार निराशा जो आपको ---- दबोच ---- लेती है, उसके विरुद्ध आपको लड़ना पड़ेगा।

23. चिंतन में जो चिंताएँ तरह-तरह की, और आशंकाएँ, भय ---- छाए ---- रहते हैं, इनसे आपको अपने (म) मन को (सुधारना) पड़ेगा, इन चीज़ों को (खतम) करना पड़ेगा।

अभ्यस्त ढर्रा, कैसा अभ्यस्त ढर्रा, जो ज़िंदगी हम जीते हैं, वो ऐसी ज़िंदगी है कि हम क्या कहें आपसे - ऐसी ज़िंदगी, ढर्रे की ज़िंदगी, जिसमें न बुराइयों से नाराज़गी है, न अच्छाइयों से मोहब्बत है - ऐसी एक घिसी-पिटी ज़िंदगी, वाहियात सी ज़िंदगी, फुहड़ सी ज़िंदगी हम जी रहे हैं -

इस ज़िंदगी की जो वर्तमान परिस्थितियाँ हैं, (इससे) आपको लड़ना पड़ेगा, और इसको तोड़-मरोड़ के एक ओर फेंकना पड़ेगा, और इसके स्थान पर नई विचारधाराएँ,नई योजनाएँ कार्यान्वित करनी पड़ेंगी - अगर आप नहीं किए तो, (तो) ढर्रे (पे) घूमते रहेंगे, (और) ढर्रे (पे) घूमते हुए कोल्हू (के) बैल की तरीके से जहाँ के तहाँ बने रहेंगे - संघर्ष नहीं करेंगे तो कैसे काम बनेगा।

अनीति से लड़ने के लिए आपको प्रत्याक्रमण करना ही चाहिए। काँटे को काँटे से ही निकाला जाता है, विष को विष से ही मारा जाता है, घूँसे का जबाव घूँसा हो सकता है - इसिलिए क्या करना चाहिए?

24. अनीति के विरुद्ध आप अगर ---- तन ---- के नहीं खड़े (गे), तो अनीति दिन-दिन बढ़ती चली जाएगी, और आपको ही नहीं, बल्कि आपके सारे समाज को धीरे-धीरे कर के निगलती चली जाएगी।

फिर आप ऐसी परिस्थिति में आ जाएँगे, पने समाज को, सबको हैरानी में डाल दें।

25. इसीलिए - तपश्चर्या - जिसका अर्थ होता है अपनेआप को तपा (डा), (त) तपा डालना, ---- मज़बूत ---- बना देना, लड़ाकू बना देना, संघर्षशील बना (देना), साहसी बना (देना) - ये गुण अपने भीतर (तो) आप पैदा कीजिए।

26. प्राचीनकाल में तपश्चर्या को ---- बहुत ---- महत्व दिया (जा) जाता था। विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल खुले हुए थे। गुरुकुलों में केवल पढ़ाई नहीं होती थी - आप ये सोचते हैं केवल पढ़ते (ही) रहते थे। नहीं! वहाँ तपस्वी जीवन का (आरम्य) से अभ्यास कराते थे।

27. कठिन जीवन था, कठोर जीवन था - बच्चे गौएँ चराते थे, बच्चे लकड़ी ---- लाद ---- के लाते थे, बच्चे सब मिलजुल कर के अपने गुरु के आश्रम के खेतों को और बगीचे (को) रखवाली करते थे, उगाते थे - ये उनकी मेहनत की (वृत्ति) थी - ये क्या है? ये तपश्चर्या है।

प्राचीनकाल में प्रत्येक बच्चे के लिए यही था - और आध्यात्मिक जीवन में

28. आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले को भी ये करना पड़ता था - आरण्यक जितने बने हुए थे, वो, ढलती अवस्था में, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए, ----निवास ---- करने के लिए आरण्यक बने हुए थे।

29. और इन आरण्यकों में क्या होता था? आरण्यकों में तपस्वी जीवन ---- जीना ---- पड़ता था - निग्रहित जीवन, (अनु) अनुशासित जीवन

(अनुशासन) अगर आप जीएँ तब, तब आरण्यक की तप साधना आपके लिए राम नाम और मंत्र, और जप, और तप, सबमें काम आ सकती है - लेकिन अगर आपने तपस्वी जीवन नहीं जिया, विलासिता का जीवन जिया, मौज-मजे का जीवन जिया, और ऐसा जीवन जिया जैसे कि बड़े आदमी, और संपन्न, और स्वार्थी, और निष्ठुर जीते रहते हैं -  फिर आप एक बात यकीन रखिए -

30. (फिर) आप ये ख्याल निकाल दीजिए - कि हमको ये पूजा करने से ये लाभ मिल जाएगा, और भजन करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ध्यान करने से ये लाभ मिल जाएगा, और ---- हमारी ---- कुण्डलिनी जग जाएगी - (आप) ये कुछ नहीं (मिलेगा)

31. आप (ज) ज़िंदगी को ठीक नहीं करते हैं, आप समझते नहीं हैं - सारे का सारा अध्यात्म सिर्फ इस बात (पे) टिका हुआ है, (कि) साधक का ---- पुनीत ---- जीवन, पवित्र जीवन

और साधक का जैसा जीवन आप जीना नहीं चाहते, पुनीत जीवन जीना नहीं चाहते, पवित्र जीवन  जीना नहीं चाहते - और जादूगरों की तरीके से थोड़े से खेल खिलवाड़ करने के बाद में तरह-तरह (के) आप चीज़ों को माँगने की कोशिश करते हैं - आप (ऐसी) गलत बात क्यों कहते हैं।  

32. थोड़ी सी पूजा से अगर ये सब ---- चीज़ें ---- मिल गई होतीं, तो फिर किसी आदमी को अपने जीवन को परिष्कृत करने की ज़रूरत क्या पड़ती? कोई संयमी बनता क्यों? कोई (त) तपस्वी बनता क्यों? कोई (न) निग्रहित अपनेआप को करता क्यों? (क्यों) अपनी इंद्रियों को मारता क्यों?

फिर तो अपना मनमौजी जीवन जिया करते, विलासिता का जीवन जिया करते, और साथ-साथ में जप-तप कर के, एक-आध पूजा पाठ कर के, तरह-तरह (की) चीज़ें पा लेते, और भगवान को प्रसन्न कर लेते, और योगी बन जाते, और सिद्ध पुरुष बन जाते - ये संभव है? नहीं भाईसाहब, संभव नहीं है, आप क्यों नहीं मान पाते हैं, आप मानने की कोशिश कीजिए

33. आदमी के भीतर से (ये) शक्ति का उदय और (उद्भव) होता है, ये केवल आदमी की तपश्चर्या की ---- वजह ---- से होता है।

तपस्वी अगर आप हैं, तब फिर आप चाहे जो (कुछ)।

भगवान राम को तपश्चर्या करनी पड़ी थी - विश्वामित्र ॠषि के आश्रम में गए थे, वहाँ तपस्वी जीवन जिया - इसके बाद में चौदह वर्ष वनवास गए, फिर तपस्वी जीवन जिया - इसके बाद में भगवान राम को, उन्होंने,  गुरु वशिष्ठ जी ने देव प्रयाग बुला लिया था - जब तक जिए, तब तक वहीं देव प्रयाग में हिमालय में रहे, फिर क्या हुआ, ये भी तपस्वी जीवन।

सारा रामचन्द्र जी का जीवन तपस्वी जीवन, श्री कृष्ण भगवान का जीवन तपस्वी जीवन, भगवान बुद्ध का तपस्वी जीवन, भगवान महावीर का तपस्वी जीवन - जितने भी भगवान हुए हैं, आप समझिए (जितने) महामानव हुए हैं, (चलिए) यों कहिए, भगवान न सही महामानव कहिए - महामानव और भगवान में कोई फर्क पड़ता है, नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता, दोनों एक ही चीज़ के दो नाम (हैं)।

इसीलिए ये सब जो बने हैं, सब तपश्चर्या से बने हैं। इन्द्र से ले कर के जितने भी ऊँचे पदाधिकारी हुए हैं, अपनी तपश्चर्या के बल (पे) ही इतना ऊँचा (उठा) सकने में संभव हुए हैं। तितीक्षा इसीलिए कराई जाती है - उपवास करने से ले के, धूप में खड़े होने, और पानी में चलने से ले कर के,

34. कई तरह की आदमी तितीक्षा करता रहता है - ये अभ्यास है कि हम सिद्धांतों के लिए कठिनाई का ---- सामना ---- करेंगे

सिद्धांतो के लिए - आपको अनीति के सामने झुकने से इन्कार कर देना चाहिए - आपको अपने आपको तपाने (से), जो अपने मन का कच्चापन आता है, उसको मानने से इन्कार कर देना चाहिए - और क्या करना चाहिए? और ये करना चाहिए कि आपको पीड़ित और पददलित मानवता के लिए हिमायत करने के लिए कमर कस के आगे आना चाहिए।

आपको (अपनी) मानसिक तप करना चाहिए - (असंयम) मन, कभी इधर घूमता है, कभी (उधर) घूमता है, कभी इधर घूमता - इस सब को रोक कर के क्या करेंगे?

35. आप मन को रोकिए, और रोकने के बाद में भगवान से लगा दीजिए - यही तो योगाभ्यास है - तपश्चर्या और योगाभ्यास, दोनों की (एक) जोड़ी है - तपश्चर्या का अर्थ है (निकाल) देना, और योग का अर्थ, योग का अर्थ है ---- किसी ---- के साथ में जोड़ देना - भगवान के साथ जोड़ देना - उपासना उसी का नाम (है)

उपासना उसी का नाम है, उपासना का अर्थ जोड़ देना होता है - हम किसी के साथ में जोड़ देते हैं - अपने नल को टंकी के साथ में जोड़ देते हैं, अपने बल्ब को बिजलीघर के साथ में जोड़ देते हैं - ये जोड़ देना, इसी का नाम योग है।

36. अपनेआप को, अपने संयम को, तपा देने का नाम, ---- गला ---- देने, और झुका देने, मिटा देने का नाम तप है - तप और योग, इन दोनों की जोड़ी है - इन दोनों की जोड़ी है - आध्यात्मिक (उ) प्रगति के मार्ग (पे) दोनों कदम साथ-साथ बढ़ाने पड़ते हैं।

लैफ्ट-राइट (की) तरीके से - एक पैर से आप चलें तब, तब लम्बा सफर आप पूरा नहीं कर सकेंगे - एक पहिए की गाड़ी (पे) चलें तब, तब आप सर्कस में एक चकर तो काट भी सकते हैं, लेकिन आप लम्बा सफर नहीं कर पाएँगे - एक पहिए की गाड़ी किस तरीके से चलेगी? एक पहिए की गाड़ी नहीं चलती (है) - एक हाथ से ताली बजती नहीं (है), दोनों की ज़रूरत पड़ती है। 

37. आदमी को आध्यात्मिक जीवन में उन्नति के लिए - पूजा-पाठ तो प्रारम्भिक है, ---- बच्चों ---- का है - लेकिन असल में योग और तप का रास्ता (अख्तियार) करना पड़ता (है)।

38. योग का अर्थ फिर एक बार समझिए - अपनेआप को भगवान के साथ में जोड़ (देना) - भगवान के साथ जोड़ देने का ---- मतलब ---- है सिद्धांतों के साथ जोड़ देना, आदर्शों के साथ जोड़ (देना)

और इसके अलावा  

39. एक और भी काम करना पड़ता है आध्यात्मिक जीवन के लिए - उसका नाम है तप - अपनेआप को तपाइए, अपनेआप को गलाइए, अपनेआप को ---- सोने ---- जैसा बनाइए, अपनेआप को ठीक कीजिए

40. अपनेआप को मुसीबतों को सहने की आदत डालिए, सिद्धांतों के लिए मुसीबत सहिए, अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ---- आप ---- मुसीबत सहिए, अपनी (योग्यताओं) को ऊँचे उभारने और अपनी क्षमता को उछालने के लिए व्यायाम जैसे बहुत सारे काम करने को तैयार (रहिए)।

ये सिवाय कठिनाइयों का मुकाबला किए बिना और कोई तरीका नहीं है - आप कठिनाइयों से मुकाबला कीजिए, लड़िए कठिनाइयों से - बुलाइए, आमंत्रित कीजिए - आप तपस्वी हैं - आप अपनेआप को घुला दीजिए, जोड़ दीजिए - स्त्री अपनेआप को पति के साथ में घुला देती है,जोड़ देती है - बस

41. आप उसी तरीके से अपनेआप को महान सत्ता के साथ में, समष्टि के साथ में, ---- भगवान ---- के साथ में, विराट ब्रह्म के साथ-साथ में, या जो कुछ भी इस दुनिया में महान है (इस) उसके साथ में अपनेआप को जोड़ दीजिए, (अपना) घुला दीजिए - फिर देखिए आप योगी होते हैं कि नहीं, और आप तपस्वी होते हैं कि नहीं।

ये तपस्वी (और योग) (टैकनिक) नहीं है - नाक में से रस्सी निकालेंगे, और एक टांग से खड़े हो जाएँगे - भाईसाहब ये (टैकनिक) नहीं है - अपने मन को और जीवन को, एक ढर्रे में, खास तौर के ढर्रे में (ढाल) लेने का नाम, योग भी है और तपस्वी भी है।

42. आप योगी बनिए, तपस्वी बनिए - आप सिद्धांतों के साथ में (अपने) अपनेआप का तालमेल बिठाइए, आप अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए ---- हमेशा ---- तैयार रहिए, झुकिए नहीं, कठिनाई उठाइए, गरीबी में रहिए, मुसीबत सहिए, लेकिन ऐसे काम मत कीजिए जो इंसान को शोभा नहीं देते।

43. तपस्वी जीवन के यही मौलिक सिद्धांत और मूलभूत सिद्धांत हैं - आप (इन तप) इन सिद्धांतों को समझें, तपस्वी बनें, और जिस कल्प साधना में आपको तपश्चर्या की ओर प्रेरणा दिलाई जा रही है, और स्मरण दिलाया जा रहा है, (उसको) सच्चे (अर्थों) से ---- सार्थक ---- करने की कोशिश करें।

समाप्त।