आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

7. बंधन से मुक्ति

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1 - मनुष्य को दो दु:ख - एक दु:ख का नाम -------, और एक दु:ख का नाम बंधन। दो चीज़ों से आदमी निकल जाए तो सारे संसार में सुख ही सुख है।

2 - तब क्या करना चाहिए? हमारे यहाँ ------- ने आदमी के लिए सबसे बड़ा पुरुषार्थ ये बताया (गया) है, (और एक पुरुषार्थ बताया गया है) - बंधनों से मुक्ति। 

3 - सामीप्य मुक्ति - इसकी (कल्पना) इस तरीके से लोगों ने अपने मन में बिठा रखी है कि भगवान नाम का कोई व्यक्ति है, उसका एक बड़ा सा - कोई सा - एक ------- नाम का गाँव है, गाँव में फाल्तू-फंड के आदमी बैठे रहते हैं, बस भगवान के (के) समीप बैठे रहते हैं, बस न कुछ करते हैं, न करने देते हैं। 

4 - बंधनों से मुक्ति क्या? बंधनों से मुक्ति ये कि (हम) जिस तरीके से हमारी , भावनाएँ, और हमारी क्रियाशीलताएँ जिन बंधनों से जकड़ गई (है), उन बंधनों को हम छोड़ डालें, तोड़ डालें, तो हम जीवन-मुक्त हो जाते हैं। 

5 - असल में जीवन-मुक्त होता है आदमी। जो ये ख्याल है कि स्वर्ग में जा कर के ------- में कहीं बैठा रहता है, माल गोदाम में जमा हो जाता है, भगवान जी के माल गोदाम में - नहीं, न कोई भगवान जी का माल गोदाम है, न कहीं आदमी बैठे रहते हैं। 

6 - मुक्ति केवल जीवन में ही होती है। जीवन-मुक्त आदमी होते हैं - जीवन मुक्त आदमी होते हैं जिनको ॠषि कहते हैं, जिनको ------- कहते हैं, जिनको मनीषी कहते हैं। 

7 - ये हमारा बंधन जो चारों ओर से हमको जकड़े हुए है, असल में किसी और बाहर के (आदमी की) शक्ति में इतनी गुंजाइश और दम नहीं है कि आदमी को जकड़ सके। भगवान के बेटे को कौन (जकड़ेगा)? बंधनों में कौन जकड़ सकता है? बंधनों में जकड़ने के लिए उसका अपना ही -------, और अपनी ही बेवकूफी, और अपने ही कुसंस्कार हैं, (जिसने) आपको जकड़ लिया है।

8 - कौन-कौन से बंधन हैं तीन? हाँ सुनिए - एक का नाम है लोभ, एक का नाम है मोह, और एक का नाम है अहंकार। ये तीन हमारे ------- हैं।

9 - आदमी का पेट बहुत छोटा है - जरा सा - (छोटा है), जरा सा - (छोटा है) - उसके लिए (थोड़ी सी) ------- मुट्ठी अनाज काफी होना चाहिए; लेकिन आदमी का लोभ देखा न आपने - कितना संग्रही, कितना लालची, कितना विलासी

10 - आपको अपने लोभ को छोड़ना पड़ेगा। क्या करेंगे? तब आप 'सादा जीवन उच्च विचार' के ------- को स्वीकार कीजिए। ऊँचे विचार सिर्फ उस आदमी के पास आ सकते हैं जो सादा जीवन जिए।

11 - (इसका) मतलब ठाट-बाट से नहीं है - सादा जीवन से मतलब है - लोभ से, लालच से, आप (लाभ) लोभ और लालच निकाल दें, और ------- की बात सोचें, तो आप थोड़े से घंटे मेहनत करने के बाद में अपना पेट बड़े मजे में भर सकते हैं।

12 - जिसको मोह कहते हैं, वो कुटुम्बियों के नाम पर लोभ है। लोभ का बढ़ा हुआ दायरा, जो ------- तक फैल जाता है, उसका नाम मोह है।

13 - आपके शरीर के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, आपके मस्तिष्क के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, आपके भगवान के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, ------- के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है - आपकी बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं - और (उस) ज़िम्मेदारियों में से हर एक को निभाइए, जिसमें आपका कुटुम्ब भी शामिल है।

14 - अगर वो मांगते हैं तो भी, और नहीं मांगते हैं तो भी, ज़रूरत जिस चीज़ की है, उनको आप दीजिए। किसकी ज़रूरत है? तीन चीज़ों की जरूरत है आपके कुटुम्बियों को - एक आपके कुटुम्बियों की ज़रूरत है (एक कुटुम्बियों की ज़रूरत है) - -------।

15 - जिसको शालीनता कहते हैं, सभ्यता कहते हैं, सज्जनता कहते हैं - ------- का मतलब सभ्यता, शालीनता और सज्जनता से है। 

16 - हर आदमी के अंदर उपार्जन की क्षमता उत्पन्न होनी चाहिए। (आपको) अपने कुटुम्बियों में से हर एक (को) उपार्जन की क्षमता उत्पन्न होने (दीजिए) - ------- दीजिए।

17 - घर का पानी भरना सिखाइए, (थोड़ी सी) साग ------- बनाना सिखाइए, (कपड़े) धोना सिखाइए, ताकि अपने घर में आर्थिक स्थिति से कुछ मदद (मदद) कर सकें।

18 - संस्कारवान बनाइए, शिक्षित बनाइए, स्वावलम्बी बनाइए - और ये तीन काम करने के लिए आप जितनी ------- करते हैं, ये हम समझते हैं आप (के लिए) अपने कुटुम्ब के लिए कर्तव्य पालन कर रहे हैं।

19 - अगर आप अपने दिमाग को खाली कर लें कि हमको गुजारे भर के लिए कमाना है, तो आपका दिमाग, और आपकी स्कीम, और आपकी योजनाएँ, और आपका -------, और आपका पुरुषार्थ, सब बच जाएगा। 

20 - सब बच जाएगा - फिर आप उन (कामों) में लगा सकेंगे जिससे (आपकी) आत्मा की उन्नति होती है, और समाज के प्रति अपना कर्तव्य पालन होता है, और भगवान के ------- का निर्वाह होता है।

21 - ये आपका लोभ और मोह - ये व्यामोह के दो बंधन हैं, जो न आपकी अक्ल को चलने देते हैं, न आपके परिश्रम को (चलने देते हैं)। आपका परिश्रम लोभ के लिए (वि) विसर्जित हो गया, और (आपका) आपकी अक्ल और आपकी ------- मोह के लिए विसर्जित हो गई। 

22 - तोड़िए न इन (बंधनों) को - आप यहाँ रह कर के, इस कल्प साधना में अपनेआप को बदल दीजिए, और लोभ और मोह से अपनेआप को ------- हटाइए।

23 - फिर आप एक माली की तरीके से अपने गृहस्थ का पालन कर रहे (होंगे)। तब आप एक ------- और संयमी की तरीके से अपना गुजारा कर रहे (होंगे)।

24 - आप अहंकार को भी हटाइए - आदमी आत्म-विज्ञापन करने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा आदमी बनने के लिए जाने कितने ------- बनाता रहता है। लिबास, फैशन, ठाट-बाट - ये सब अहंकार

25 - इस अहंकार (को) दिशा मोड़ दीजिए। फिर काहे में लगावें? आप इस अहंकार को महानता की दिशा में (बढ़िए) - हम ------- बनेंगे - दूसरों की तुलना में हमारे गुण, हमारे कर्म और हमारे स्वभाव (बनेंगे)।

26 - लोक सम्मान (अ) अर्जित कीजिए न, ------- अर्जित कीजिए न, भगवान का अनुग्रह (अ) अर्जित कीजिए न।

27 - हम महापुरुष बनते हैं, और महामानव बनते हैं, और अपनी ------- और अपने चाल-चलन (ऐसी) शानदार बनाते हैं, जिससे कि भगवान का अनुग्रह भी हमको प्राप्त हो सके।

28 - एक कदम आगे बढ़ा दें - महानता की ओर (चल) चल पड़ें - तब, तब फिर आपको दूसरा काम करना पड़ेगा - तब फिर आपको, तब आपको अपनेआप को, औसत भारतीय की तरीके से, ------- में निर्वाह करना पड़ेगा।

29 - हम महान बनेंगे, दूसरों के सामने उदाहरण पेश करेंगे, अपनी जिंदगी का ------- पेश करेंगे, और लोगों को अपने रास्ते पे चलने के लिए, पीछे चलने के लिए हम नया रास्ता बना के जाएंगे - ये महानता के रास्ते हैं।

30 - अगर आप महानता के रास्ते पे चल पड़ें, तो आपके जीवन की मुक्ति हो गई - मुक्ति हो गई - जीवन-मुक्त जेसे इसी जिंदगी में ------- उठाते हैं

31 - आप जरा हिम्मत कीजिए - लोभ, और मोह, और अहंकार का तिरस्कार कीजिए, फिर देखिए आपकी मुक्ति आपके ------- में आती है कि नहीं।

1 - मनुष्य को दो दु:ख - एक दु:ख का नाम ----नरक ---, और एक दु:ख का नाम बंधन। दो चीज़ों से आदमी निकल जाए तो सारे संसार में सुख ही सुख है।

2 - तब क्या करना चाहिए? हमारे यहाँ ---शास्त्रकारों ---- ने आदमी के लिए सबसे बड़ा पुरुषार्थ ये बताया (गया) है, (और एक पुरुषार्थ बताया गया है) - बंधनों से मुक्ति। 

3 - सामीप्य मुक्ति - इसकी (कल्पना) इस तरीके से लोगों ने अपने मन में बिठा रखी है कि भगवान नाम का कोई व्यक्ति है, उसका एक बड़ा सा - कोई सा - एक ----बैकुण्ठ --- नाम का गाँव है, गाँव में फाल्तू-फंड के आदमी बैठे रहते हैं, बस भगवान के (के) समीप बैठे रहते हैं, बस न कुछ करते हैं, न करने देते हैं। 

4 - बंधनों से मुक्ति क्या? बंधनों से मुक्ति ये कि (हम) जिस तरीके से हमारी ----विचारणा ----, भावनाएँ, और हमारी क्रियाशीलताएँ जिन बंधनों से जकड़ गई (है), उन बंधनों को हम छोड़ डालें, तोड़ डालें, तो हम जीवन-मुक्त हो जाते हैं। 

5 - असल में जीवन-मुक्त होता है आदमी। जो ये ख्याल है कि स्वर्ग में जा कर के ---मुक्ति ---- में कहीं बैठा रहता है, माल गोदाम में जमा हो जाता है, भगवान जी के माल गोदाम में - नहीं, न कोई भगवान जी का माल गोदाम है, न कहीं आदमी बैठे रहते हैं। 

6 - मुक्ति केवल जीवन में ही होती है। जीवन-मुक्त आदमी होते हैं - जीवन मुक्त आदमी होते हैं जिनको ॠषि कहते हैं, जिनको ----तत्वदर्शी --- कहते हैं, जिनको मनीषी कहते हैं। 

7 - ये हमारा बंधन जो चारों ओर से हमको जकड़े हुए है, असल में किसी और बाहर के (आदमी की) शक्ति में इतनी गुंजाइश और दम नहीं है कि आदमी को जकड़ सके। भगवान के बेटे को कौन (जकड़ेगा)? बंधनों में कौन जकड़ सकता है? बंधनों में जकड़ने के लिए उसका अपना ही ---अज्ञान ----, और अपनी ही बेवकूफी, और अपने ही कुसंस्कार हैं, (जिसने) आपको जकड़ लिया है।

8 - कौन-कौन से बंधन हैं तीन? हाँ सुनिए - एक का नाम है लोभ, एक का नाम है मोह, और एक का नाम है अहंकार। ये तीन हमारे ---शत्रु ---- हैं।

9 - आदमी का पेट बहुत छोटा है - जरा सा - (छोटा है), जरा सा - (छोटा है) - उसके लिए (थोड़ी सी) ----चार --- मुट्ठी अनाज काफी होना चाहिए; लेकिन आदमी का लोभ देखा न आपने - कितना संग्रही, कितना लालची, कितना विलासी

10 - आपको अपने लोभ को छोड़ना पड़ेगा। क्या करेंगे? तब आप 'सादा जीवन उच्च विचार' के ----सिद्धांतों --- को स्वीकार कीजिए। ऊँचे विचार सिर्फ उस आदमी के पास आ सकते हैं जो सादा जीवन जिए।

11 - (इसका) मतलब ठाट-बाट से नहीं है - सादा जीवन से मतलब है - लोभ से, लालच से, आप (लाभ) लोभ और लालच निकाल दें, और ----निर्वाह --- की बात सोचें, तो आप थोड़े से घंटे मेहनत करने के बाद में अपना पेट बड़े मजे में भर सकते हैं।

12 - जिसको मोह कहते हैं, वो कुटुम्बियों के नाम पर लोभ है। लोभ का बढ़ा हुआ दायरा, जो ---कुटुम्ब ---- तक फैल जाता है, उसका नाम मोह है।

13 - आपके शरीर के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, आपके मस्तिष्क के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, आपके भगवान के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है, ----जीवन --- के प्रति भी आपकी ज़िम्मेदारी है - आपकी बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं - और (उस) ज़िम्मेदारियों में से हर एक को निभाइए, जिसमें आपका कुटुम्ब भी शामिल है।

14 - अगर वो मांगते हैं तो भी, और नहीं मांगते हैं तो भी, ज़रूरत जिस चीज़ की है, उनको आप दीजिए। किसकी ज़रूरत है? तीन चीज़ों की जरूरत है आपके कुटुम्बियों को - एक आपके कुटुम्बियों की ज़रूरत है (एक कुटुम्बियों की ज़रूरत है) - ----शिक्षा ---।

15 - जिसको शालीनता कहते हैं, सभ्यता कहते हैं, सज्जनता कहते हैं - --शिक्षा ----- का मतलब सभ्यता, शालीनता और सज्जनता से है। 

16 - हर आदमी के अंदर उपार्जन की क्षमता उत्पन्न होनी चाहिए। (आपको) अपने कुटुम्बियों में से हर एक (को) उपार्जन की क्षमता उत्पन्न होने (दीजिए) - ----बढ़ने --- दीजिए।

17 - घर का पानी भरना सिखाइए, (थोड़ी सी) साग -----वाटिका -- बनाना सिखाइए, (कपड़े) धोना सिखाइए, ताकि अपने घर में आर्थिक स्थिति से कुछ मदद (मदद) कर सकें।

18 - संस्कारवान बनाइए, शिक्षित बनाइए, स्वावलम्बी बनाइए - और ये तीन काम करने के लिए आप जितनी ---मेहनत ---- करते हैं, ये हम समझते हैं आप (के लिए) अपने कुटुम्ब के लिए कर्तव्य पालन कर रहे हैं।

19 - अगर आप अपने दिमाग को खाली कर लें कि हमको गुजारे भर के लिए कमाना है, तो आपका दिमाग, और आपकी स्कीम, और आपकी योजनाएँ, और आपका ----परिश्रम ---, और आपका पुरुषार्थ, सब बच जाएगा। 

20 - सब बच जाएगा - फिर आप उन (कामों) में लगा सकेंगे जिससे (आपकी) आत्मा की उन्नति होती है, और समाज के प्रति अपना कर्तव्य पालन होता है, और भगवान के ----आदेशों--- का निर्वाह होता है।

21 - ये आपका लोभ और मोह - ये व्यामोह के दो बंधन हैं, जो न आपकी अक्ल को चलने देते हैं, न आपके परिश्रम को (चलने देते हैं)। आपका परिश्रम लोभ के लिए (वि) विसर्जित हो गया, और (आपका) आपकी अक्ल और आपकी --भावना ----- मोह के लिए विसर्जित हो गई। 

22 - तोड़िए न इन (बंधनों) को - आप यहाँ रह कर के, इस कल्प साधना में अपनेआप को बदल दीजिए, और लोभ और मोह से अपनेआप को ---पीछे ---- हटाइए।

23 - फिर आप एक माली की तरीके से अपने गृहस्थ का पालन कर रहे (होंगे)। तब आप एक ---सदाचारी ---- और संयमी की तरीके से अपना गुजारा कर रहे (होंगे)।

24 - आप अहंकार को भी हटाइए - आदमी आत्म-विज्ञापन करने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा बनने के लिए, बड़ा आदमी बनने के लिए जाने कितने ----ढोंग --- बनाता रहता है। लिबास, फैशन, ठाट-बाट - ये सब अहंकार

25 - इस अहंकार (को) दिशा मोड़ दीजिए। फिर काहे में लगावें? आप इस अहंकार को महानता की दिशा में (बढ़िए) - हम ----महान --- बनेंगे - दूसरों की तुलना में हमारे गुण, हमारे कर्म और हमारे स्वभाव (बनेंगे)।

26 - लोक सम्मान (अ) अर्जित कीजिए न, ----आत्मसंतोष --- अर्जित कीजिए न, भगवान का अनुग्रह (अ) अर्जित कीजिए न।

27 - हम महापुरुष बनते हैं, और महामानव बनते हैं, और अपनी ---चाल-ढाल ---- और अपने चाल-चलन (ऐसी) शानदार बनाते हैं, जिससे कि भगवान का अनुग्रह भी हमको प्राप्त हो सके।

28 - एक कदम आगे बढ़ा दें - महानता की ओर (चल) चल पड़ें - तब, तब फिर आपको दूसरा काम करना पड़ेगा - तब फिर आपको, तब आपको अपनेआप को, औसत भारतीय की तरीके से, ----सीमित ---- में निर्वाह करना पड़ेगा।

29 - हम महान बनेंगे, दूसरों के सामने उदाहरण पेश करेंगे, अपनी जिंदगी का ----नमूना --- पेश करेंगे, और लोगों को अपने रास्ते पे चलने के लिए, पीछे चलने के लिए हम नया रास्ता बना के जाएंगे - ये महानता के रास्ते हैं।

30 - अगर आप महानता के रास्ते पे चल पड़ें, तो आपके जीवन की मुक्ति हो गई - मुक्ति हो गई - जीवन-मुक्त जैसे इसी जिंदगी में ---आनन्द ---- उठाते हैं

31 - आप जरा हिम्मत कीजिए - लोभ, और मोह, और अहंकार का तिरस्कार कीजिए, फिर देखिए आपकी मुक्ति आपके ----चरणों --- में आती है कि नहीं।