आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

14. तीर्थ कैसे होने चाहिए?

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

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प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1. तीर्थ शब्द याद कर के कितना आनन्द आता है, कितनी प्रसन्नता होती है, कि प्राचीनकाल में जब तीर्थ अपने वास्तविक तीर्थ रूप में रहे होंगे, तब कितना ------- आता होगा! वहाँ जाने के बाद में लोग अपने (क) कलुष और कषायों को धो कर के, पुनीत और पवित्र हो के कैसे निकलते होंगे!

2. ज्ञान-गंगा की (बाबत) मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ, (तीर्थ) जिन्हें कहते थे, उस ज्ञान-गंगा में अगर आपको वास्तविक मौका मिल जाए, और कहीं आपको किसी वास्तविक तीर्थ में रहने का मौका मिल जाए, तो आप ये ------- रखिए, आप अपनेआप को धो कर के तो जाएंगे ही।

3. आपने जो गल्तियाँ की हैं उनका प्रायश्चित कैसे (होगा)? भरपाई कैसे होगी? आप उसके लिए ------- सहयोग क्या करेंगे? आप उसके लिए जनसेवा के लिए क्या कदम उठाएंगे?

4. इसके लिए आप अपने गुण, कर्म और स्वभाव में ------- का समावेश करने के लिए ऐसी (ग) गतिविधियाँ क्या अपनाएंगे जो आपके संस्कारों के रूप में परिणित (बन) सकें? 

5. विचार और कृत्यों का, दोनों का समावेश करने के बाद ही ये संभव है कि एक समग्र प्रक्रिया पूर्ण हो जाए। ------- में अध्यात्म का मतलब संस्कार पैदा करना है, और संस्कार ज्ञान और कर्म दोनों के समन्वय से ही होते हैं। 

6. ज्ञान में पूजा आती है, ------- आता है, रामायण पाठ (आती) है, सत्संग आता है, स्वाध्याय आता है - ये ज्ञान पक्ष है।

7. और कर्म पक्ष? कर्म पक्ष उसे कहते हैं जिसमें सेवा का समावेश होता है, ------- का समावेश होता है, पुण्य कर्मों का समावेश होता है, जन-कल्याण का समावेश होता है। इन दोनों बातों को अगर आप मिला देंगे तो आपकी प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी।

8. अपना जो समय है, इसको एक सुव्यवस्थित रूप से व्यय कीजिए। यहाँ एक सुव्यवस्थित रूप से व्यय करने का ------- बैठा हुआ है।

9. सबेरे से उठने से लेकर के, सायंकाल को सोने तक का एक टाइम-टेबल (time-table) बना हुआ है। ये पूरे का पूरा टाइम-टेबल इस बात पर ------- रहता है कि आपकी गतिविधियाँ क्या होनी चाहिए?

10. आपको अनुशासित कैसे होना चाहिए? आपको संयमी कैसे रहना चाहिए? आपको तपस्वी की तरह जीवनयापन कैसे करना चाहिए? ये जीवनयापन करने की -------, (दिनचर्या) का प्रावधान ऐसा है, इसको आप ग्रहण कर लेते हैं तो भी (आपको) अपनेआप को प्रशिक्षित करने में बहुत कुछ सफल होते हैं।

11. बड़ी (उ) (उमर) के आदमी आरण्यकों में रहते थे। आरण्यक बड़े आदमियों (की) के लिए सेवा-साधना के ------- को कहते हैं।

12. तीर्थ-यात्रा की गहराई ये है, कि आप (उ) उतने समय, जितने समय कि तीर्थसेवन करें, उतने समय में अपनेआप (को) परिशोधन के लिए कोशिश करें, ------- के गड्ढे भरने की कोशिश करें, और भावी योजनाओं को बनाने की कोशिश करें।

13. भविष्य में हम क्या बनेंगे, इसके लिए आज के वर्तमान में हमको तपश्चर्या करनी चाहिए। आज के वर्तमान की तपश्चर्या का मतलब है, भावी जीवन के लिए ------- निर्धारण करने का संकल्प। ऐसे करेंगे तो आपका तीर्थसेवन सशक्त हो जाएगा।

14. आप यहाँ आए हैं तो आप ये मान के चलिए कि यहाँ कल्प साधना ------- में बुड्ढे (को) जवान बनने के लिए नहीं, बल्कि (आपना) अंतरंग परिष्कार करने के लिए आए हैं।

15. जितना भी समय है आप इसको स्वाध्याय में लगाइए, आत्म-चिंतन में लगाइए, चिंतन में लगाइए, मनन में लगाइए, ------- में लगाइए, उपासना में लगाइए, और अच्छे लोगों के सम्पर्क में लगाइए, अच्छे वातावरण में रहने में लगाइए, गंगा के किनारे पे (जा) जा के रहिए।

16. पूरे का पूरा समय आपका ऐसा हो जिसमें कहीं अवांछनीयता के लिए ------- न हो। आपका चिंतन ऐसा हो जिसमें अवांछनीयता के लिए (कहीं) गुंजाइश न हो।

17. बस मूर्तियाँ बन के तैयार हो गईं। तब फिर क्या हुआ उनका? वहाँ लोग पूजा तो करते थे, पर पूजा 'भी' करते थे, पूजा 'ही' नहीं करते थे। आज (आज) की ------- ये है, आज हमारे मंदिरों में केवल पूजा 'ही' होती है, होना ये चाहिए कि पूजा 'भी' हो, बाकी समय में कुछ (औ) और भी हो। 

18. हर महावीर मंदिर के साथ में एक व्यायामशाला ------- रूप से जुड़ी रखी। स्वास्थ्य संवर्धन, (साहस) का संवर्धन, स्वास्थ्य का संवर्धन, संतुलन का संवर्धन, और (अ) अनुशासन का (प) परिपालन।

19. हर महावीर मंदिर के साथ-साथ में एक पाठशाला, जिसमें गाँव के बच्चे, बड़े आदमी, छोटे आदमी, औरतें, जो कोई भी, जिनको विद्या का शौक था, वो जाएँ और वहाँ के ------- से विद्या प्राप्त करें।

20. कथाओं का अर्थ है प्राचीनकाल (के) ------- घटनाक्रमों को सुना कर के आज की समस्याओं का समाधान।

21. दास बोध की कथाएँ हर महावीर मंदिर में ------- को होती थीं। (उ) उनको एक नया ही शास्त्र बनाना पड़ा, नया ही पुराण बनाना पड़ा, नया ही वेद बनाना पड़ा।

22. इसी तरीके से पुनरावृत्ति आज हुई है - हमने दो धाम ------- बनाए थे - (मथुरा का धाम बनाया) मथुरा का धाम बनाया, और एक यहाँ का बनाया। एक संगठन के लिए बनाया, एक शिक्षण के लिए बनाया।

23. आज हमारे भी मंदिरों की बहुत बड़ी संख्या है - बनती हुई चली जा रही (हैं) - गायत्री शक्तिपीठों के नाम से ------- सौ मंदिर बना दिए। अभी और भी बहुत सारे मंदिर (बनाने) बनने जा रहे हैं।

24. इनको कोशिश हमारी यही थी कि इनको गायत्री तीर्थों का रूप दिया जाए, और तीर्थों में मंदिर नहीं, बल्कि वहाँ (इसके) शिक्षण (संस्थाओं) का रूप दिया जाए। वहाँ शिक्षण संस्थाएँ चलें, (ज्ञान) ज्ञान वृद्धि के (उद्देश्य) चलें, (रच) रचनात्मक कार्यक्रमों का ------- चले।

25. जहाँ तीर्थ यात्रा करनी है, वहाँ तीर्थों की स्थापना करने में भी ------- देना है। तीर्थ यात्रा, तीर्थों की मरी हुई परम्परा को पुनर्जीवित भी करना है।

26. असली बात तीर्थ की अलग होती है, जिसमें ज्ञान ------- बहती है, जहाँ (प्रेरणा) मिलती है, जहाँ (दिशा) मिलती है, भावनाओं को उकसाया जाता है, आदमी को (समुन्नत) स्तर का बनाया जाता है।

27. ऐसे तीर्थों की स्थापना की आज (नई) सिरे से ------- पड़ गई, तीर्थों का पुनर्जीवन आवश्यक पड़ गया, इसीलिए हमने तीर्थों की स्थापना की है।

28. आप इन तीर्थों की स्थापना में योगदान दीजिए। जहाँ बन चुके हैं, आप उनको ------- बनाने (में) कोशिश कीजिए। जहाँ बन नहीं चुके हैं, वहाँ बनाने के लिए कोशिश कीजिए।

29. एक बात ध्यान रखिए कि यहाँ वो प्रक्रिया जुड़ी रहनी चाहिए, (जो) जो पूजा (उस) से भिन्न हैं - यहाँ, इन सारे के सारे गायत्री तीर्थों में हमने शिक्षण का प्रबंध करने के लिए ------- रखा है - यहाँ बच्चों की पाठशाला, बुड्ढों की पाठशाला, प्रौढ़ों की पाठशाला, महिलाओं की पाठशाला चलनी चाहिए।

30. यहाँ आसन और प्राणायाम के केंद्र होने चाहिए, यहाँ जड़ी-बूटियों के द्वारा चिकित्सालय चलने चाहिए, यहाँ रात्रि को कथाएँ होनी चाहिए - ये सारे काम होने चाहिए - तब तो हम ये कहेंगे कि ये तीर्थ - गायत्री मंदिर कहिए, तीर्थ कहिए, बात तो एक ही है - ये ------- चालू हो गए।

31. आप (तीर्थ यात्रा को) न केवल तीर्थ यात्रा पर निकलें, बल्कि (नए) आदमियों के लिए ये ------- भी बनाएँ - तीर्थ यात्रा के लिए कोई आदमी जाने वाला हो (त) (ये तो) उसको ये तो मौका मिल (जाए) - तीर्थ कहाँ हैं? किस जगह जाएँ? किसके पास जाएँ? क्या करें वहाँ जा कर के? 

32. इसीलिए फर्क करने वाले तीर्थ तो बनाने पड़ेंगे, इनको ------- देना पड़ेगा, (इसको) नए प्राण संचार करने पड़ेंगे - हमने (इसके लिए) कदम बढ़ाया है

33. आप हमारा कंधा मिलाइए, आप हमारे हाथ में हाथ मिलाइए, आप हमारे कदम से कदम मिलाइए - थोड़ा सा प्रयत्न किया है - आप इसमें सहयोग कर सकते हैं? आप ------- कर सकते हैं।

34. तीर्थों का पुनर्जीवन उससे भी ज्यादा जरूरी है। आप (लोगों) दूसरे लोगों को तीर्थ यात्रा करने के लिए ऐसे मौके दें, ------- बनाएँ, यहाँ का वातावरण बनाएँ - आपको ये काम बहुत बड़ा करना है।

35. वातावरण बनाना नौकरों का काम नहीं है, ------- का काम नहीं है, पुजारियों का काम नहीं है - प्राणवानों का काम है।

36. त्याग कौन करता है? ------- कौन रहता है? अपना घर का काम कौन छोड़ता है? आपके अंदर वो शराफत मालुम पड़ती है, और वो जिंदगी मालुम पड़ती है, जिससे कि आध्यात्मिकता का परिचय मालुम पड़ता है।

37. अपने जीवन को न केवल परिष्कृत करें, बल्कि उस क्षेत्र को जगा देने की ------- साधना में भी संलग्न हो जाएँ - ये भी आपका बढ़िया वाला प्रायश्चित है।

38. तीर्थों का हमको पुनर्जीवन करना है। तीर्थ हमारे ------- पड़े (हुए हैं)। (तीर्थ) तीर्थों को (ह) देश और विदेशों में स्थापना करने के लिए हमारा बड़ा मन है - आप हमारा हाथ बँटा (दीजिए)।

39. समयदान का दूसरा रूप है अर्थ-दान। (समयदान) समयदान जो आदमी नहीं कर सकते, वो अर्थ-दान कर सकते हैं। समयदान और अर्थ-दान दोनों ------- हो सकें तो क्या कहना।

40. आपके स्थान पर कोई और आदमी काम कर देगा, आप उसके गुजारे का प्रबंध कर दीजिए - गुजारे का प्रबंध आप कर देते हैं तो ------- काम करने के बराबर बात बन गई।

1. तीर्थ शब्द याद कर के कितना आनन्द आता है, कितनी प्रसन्नता होती है, कि प्राचीनकाल में जब तीर्थ अपने वास्तविक तीर्थ रूप में रहे होंगे, तब कितना ---आनन्द ---- आता होगा! वहाँ जाने के बाद में लोग अपने (क) कलुष और कषायों को धो कर के, पुनीत और पवित्र हो के कैसे निकलते होंगे!

2. ज्ञान-गंगा की (बाबत) मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ, (तीर्थ) जिन्हें कहते थे, उस ज्ञान-गंगा में अगर आपको वास्तविक मौका मिल जाए, और कहीं आपको किसी वास्तविक तीर्थ में रहने का मौका मिल जाए, तो आप ये --यकीन ----- रखिए, आप अपनेआप को धो कर के तो जाएंगे ही।

3. आपने जो गल्तियाँ की हैं उनका प्रायश्चित कैसे (होगा)? भरपाई कैसे होगी? आप उसके लिए --उदार ----- सहयोग क्या करेंगे? आप उसके लिए जनसेवा के लिए क्या कदम उठाएंगे?

4. इसके लिए आप अपने गुण, कर्म और स्वभाव में ---शालीनता ---- का समावेश करने के लिए ऐसी (ग) गतिविधियाँ क्या अपनाएंगे जो आपके संस्कारों के रूप में परिणित (बन) सकें?

5. विचार और कृत्यों का, दोनों का समावेश करने के बाद ही ये संभव है कि एक समग्र प्रक्रिया पूर्ण हो जाए। -----वास्तव -- में अध्यात्म का मतलब संस्कार पैदा करना है, और संस्कार ज्ञान और कर्म दोनों के समन्वय से ही होते हैं।

6. ज्ञान में पूजा आती है, ----पाठ --- आता है, रामायण पाठ (आती) है, सत्संग आता है, स्वाध्याय आता है - ये ज्ञान पक्ष है।

7. और कर्म पक्ष? कर्म पक्ष उसे कहते हैं जिसमें सेवा का समावेश होता है, ---परोपकार ---- का समावेश होता है, पुण्य कर्मों का समावेश होता है, जन-कल्याण का समावेश होता है। इन दोनों बातों को अगर आप मिला देंगे तो आपकी प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी।

8. अपना जो समय है, इसको एक सुव्यवस्थित रूप से व्यय कीजिए। यहाँ एक सुव्यवस्थित रूप से व्यय करने का ----क्रम --- बैठा हुआ है।

9. सबेरे से उठने से लेकर के, सायंकाल को सोने तक का एक टाइम-टेबल (time-table) बना हुआ है। ये पूरे का पूरा टाइम-टेबल इस बात पर ----निर्भर --- रहता है कि आपकी गतिविधियाँ क्या होनी चाहिए?

10. आपको अनुशासित कैसे होना चाहिए? आपको संयमी कैसे रहना चाहिए? आपको तपस्वी की तरह जीवनयापन कैसे करना चाहिए? ये जीवनयापन करने की ---पद्धति ----, (दिनचर्या) का प्रावधान ऐसा है, इसको आप ग्रहण कर लेते हैं तो भी (आपको) अपनेआप को प्रशिक्षित करने में बहुत कुछ सफल होते हैं।

11. बड़ी (उ) (उमर) के आदमी आरण्यकों में रहते थे। आरण्यक बड़े आदमियों (की) के लिए सेवा-साधना के --विद्यालयों ----- को कहते हैं।

12. तीर्थ-यात्रा की गहराई ये है, कि आप (उ) उतने समय, जितने समय कि तीर्थसेवन करें, उतने समय में अपनेआप (को) परिशोधन के लिए कोशिश करें, ---भूतकाल ---- के गड्ढे भरने की कोशिश करें, और भावी योजनाओं को बनाने की कोशिश करें।

13. भविष्य में हम क्या बनेंगे, इसके लिए आज के वर्तमान में हमको तपश्चर्या करनी चाहिए। आज के वर्तमान की तपश्चर्या का मतलब है, भावी जीवन के लिए ---नीति ---- निर्धारण करने का संकल्प। ऐसे करेंगे तो आपका तीर्थसेवन सशक्त हो जाएगा।

14. आप यहाँ आए हैं तो आप ये मान के चलिए कि यहाँ कल्प साधना ---शिविर ---- में बुड्ढे (को) जवान बनने के लिए नहीं, बल्कि (आपना) अंतरंग परिष्कार करने के लिए आए हैं।

15. जितना भी समय है आप इसको स्वाध्याय में लगाइए, आत्म-चिंतन में लगाइए, चिंतन में लगाइए, मनन में लगाइए, ----पूजा --- में लगाइए, उपासना में लगाइए, और अच्छे लोगों के सम्पर्क में लगाइए, अच्छे वातावरण में रहने में लगाइए, गंगा के किनारे पे (जा) जा के रहिए।

16. पूरे का पूरा समय आपका ऐसा हो जिसमें कहीं अवांछनीयता के लिए -----गुंजाइश -- न हो। आपका चिंतन ऐसा हो जिसमें अवांछनीयता के लिए (कहीं) गुंजाइश न हो।

17. बस मूर्तियाँ बन के तैयार हो गईं। तब फिर क्या हुआ उनका? वहाँ लोग पूजा तो करते थे, पर पूजा 'भी' करते थे, पूजा 'ही' नहीं करते थे। आज (आज) की --खराबी ----- ये है, आज हमारे मंदिरों में केवल पूजा 'ही' होती है, होना ये चाहिए कि पूजा 'भी' हो, बाकी समय में कुछ (औ) और भी हो।

18. हर महावीर मंदिर के साथ में एक व्यायामशाला ----अविच्छिन्न --- रूप से जुड़ी रखी। स्वास्थ्य संवर्धन, (साहस) का संवर्धन, स्वास्थ्य का संवर्धन, संतुलन का संवर्धन, और (अ) अनुशासन का (प) परिपालन।

19. हर महावीर मंदिर के साथ-साथ में एक पाठशाला, जिसमें गाँव के बच्चे, बड़े आदमी, छोटे आदमी, औरतें, जो कोई भी, जिनको विद्या का शौक था, वो जाएँ और वहाँ के ---पुजारी ---- से विद्या प्राप्त करें।

20. कथाओं का अर्थ है प्राचीनकाल (के) ----ऐतिहासिक --- घटनाक्रमों को सुना कर के आज की समस्याओं का समाधान।

21. दास बोध की कथाएँ हर महावीर मंदिर में ----रात --- को होती थीं। (उ) उनको एक नया ही शास्त्र बनाना पड़ा, नया ही पुराण बनाना पड़ा, नया ही वेद बनाना पड़ा।

22. इसी तरीके से पुनरावृत्ति आज हुई है - हमने दो धाम ----पहले--- बनाए थे - (मथुरा का धाम बनाया) मथुरा का धाम बनाया, और एक यहाँ का बनाया। एक संगठन के लिए बनाया, एक शिक्षण के लिए बनाया।

23. आज हमारे भी मंदिरों की बहुत बड़ी संख्या है - बनती हुई चली जा रही (हैं) - गायत्री शक्तिपीठों के नाम से ----चौबीस --- सौ मंदिर बना दिए। अभी और भी बहुत सारे मंदिर (बनाने) बनने जा रहे हैं।

24. इनको कोशिश हमारी यही थी कि इनको गायत्री तीर्थों का रूप दिया जाए, और तीर्थों में मंदिर नहीं, बल्कि वहाँ (इसके) शिक्षण (संस्थाओं) का रूप दिया जाए। वहाँ शिक्षण संस्थाएँ चलें, (ज्ञान) ज्ञान वृद्धि के (उद्देश्य) चलें, (रच) रचनात्मक कार्यक्रमों का ---प्रयोग ---- चले।

25. जहाँ तीर्थ यात्रा करनी है, वहाँ तीर्थों की स्थापना करने में भी ----योगदान --- देना है। तीर्थ यात्रा, तीर्थों की मरी हुई परम्परा को पुनर्जीवित भी करना है।

26. असली बात तीर्थ की अलग होती है, जिसमें ज्ञान ---गंगा ---- बहती है, जहाँ (प्रेरणा) मिलती है, जहाँ (दिशा) मिलती है, भावनाओं को उकसाया जाता है, आदमी को (समुन्नत) स्तर का बनाया जाता है।

27. ऐसे तीर्थों की स्थापना की आज (नई) सिरे से ---ज़रूरत ---- पड़ गई, तीर्थों का पुनर्जीवन आवश्यक पड़ गया, इसीलिए हमने तीर्थों की स्थापना की है।

28. आप इन तीर्थों की स्थापना में योगदान दीजिए। जहाँ बन चुके हैं, आप उनको ----मजबूत --- बनाने (में) कोशिश कीजिए। जहाँ बन नहीं चुके हैं, वहाँ बनाने के लिए कोशिश कीजिए।

29. एक बात ध्यान रखिए कि यहाँ वो प्रक्रिया जुड़ी रहनी चाहिए, (जो) जो पूजा (उस) से भिन्न हैं - यहाँ, इन सारे के सारे गायत्री तीर्थों में हमने शिक्षण का प्रबंध करने के लिए ----प्रावधान --- रखा है - यहाँ बच्चों की पाठशाला, बुड्ढों की पाठशाला, प्रौढ़ों की पाठशाला, महिलाओं की पाठशाला चलनी चाहिए।

30. यहाँ आसन और प्राणायाम के केंद्र होने चाहिए, यहाँ जड़ी-बूटियों के द्वारा चिकित्सालय चलने चाहिए, यहाँ रात्रि को कथाएँ होनी चाहिए - ये सारे काम होने चाहिए - तब तो हम ये कहेंगे कि ये तीर्थ - गायत्री मंदिर कहिए, तीर्थ कहिए, बात तो एक ही है - ये ---बनना ---- चालू हो गए।

31. आप (तीर्थ यात्रा को) न केवल तीर्थ यात्रा पर निकलें, बल्कि (नए) आदमियों के लिए ये ---रास्ता ---- भी बनाएँ - तीर्थ यात्रा के लिए कोई आदमी जाने वाला हो (त) (ये तो) उसको ये तो मौका मिल (जाए) - तीर्थ कहाँ हैं? किस जगह जाएँ? किसके पास जाएँ? क्या करें वहाँ जा कर के?

32. इसीलिए फर्क करने वाले तीर्थ तो बनाने पड़ेंगे, इनको -----नवजीवन -- देना पड़ेगा, (इसको) नए प्राण संचार करने पड़ेंगे - हमने (इसके लिए) कदम बढ़ाया है

33. आप हमारा कंधा मिलाइए, आप हमारे हाथ में हाथ मिलाइए, आप हमारे कदम से कदम मिलाइए - थोड़ा सा प्रयत्न किया है - आप इसमें सहयोग कर सकते हैं? आप ---ज़रूर ---- कर सकते हैं।

34. तीर्थों का पुनर्जीवन उससे भी ज्यादा जरूरी है। आप (लोगों) दूसरे लोगों को तीर्थ यात्रा करने के लिए ऐसे मौके दें, ----स्थान --- बनाएँ, यहाँ का वातावरण बनाएँ - आपको ये काम बहुत बड़ा करना है।

35. वातावरण बनाना नौकरों का काम नहीं है, ----कर्मचारियों --- का काम नहीं है, पुजारियों का काम नहीं है - प्राणवानों का काम है।

36. त्याग कौन करता है? ---भूखा ---- कौन रहता है? अपना घर का काम कौन छोड़ता है? आपके अंदर वो शराफत मालुम पड़ती है, और वो जिंदगी मालुम पड़ती है, जिससे कि आध्यात्मिकता का परिचय मालुम पड़ता है।

37. अपने जीवन को न केवल परिष्कृत करें, बल्कि उस क्षेत्र को जगा देने की ----सेवा --- साधना में भी संलग्न हो जाएँ - ये भी आपका बढ़िया वाला प्रायश्चित है।

38. तीर्थों का हमको पुनर्जीवन करना है। तीर्थ हमारे ----सूने --- पड़े (हुए हैं)। (तीर्थ) तीर्थों को (ह) देश और विदेशों में स्थापना करने के लिए हमारा बड़ा मन है - आप हमारा हाथ बँटा (दीजिए)।

39. समयदान का दूसरा रूप है अर्थ-दान। (समयदान) समयदान जो आदमी नहीं कर सकते, वो अर्थ-दान कर सकते हैं। समयदान और अर्थ-दान दोनों ---संभव ---- हो सकें तो क्या कहना।

40. आपके स्थान पर कोई और आदमी काम कर देगा, आप उसके गुजारे का प्रबंध कर दीजिए - गुजारे का प्रबंध आप कर देते हैं तो ---अपने ---- काम करने के बराबर बात बन गई।