आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान 

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620102 - आंतरिक उत्कृष्टता का विकास

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

24. दिव्य अनुदान (उच्चस्तरीय प्रेरणाओं के रूप में)

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 'कल्प साधना शिविर' में दिया गया उद्बोधन

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प्रश्नोत्तरी नीचे दी गई है

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प्रश्नोत्तरी

1. देवताओं के वरदान हमेशा (सत्प्रवृत्तियों) के रूप में, सत्प्रेरणाओं के रूप में मिले हैं। देवताओं ने, ॠषियों ने कभी किसी आदमी को ------- बाँध कर के रुपयों के बंडल नहीं दिए हैं

2. न किसी को बेटी-बेटे दिए हैं, न मुकदमे (से) जीत कराई है, न (इसकी) नौकरी में उन्नति कराई है - ये काम अपने पुरुषार्थ का है, ------- का नहीं है, संत और ॠषियों का नहीं है।

3. संत और ॠषि जो अनुदान और ------- देते हैं, उससे आदमी के अंतराल में उच्चस्तरीय प्रेरणाएँ उत्पन्न होती हैं - बस - और कुछ नहीं (होता)।

4. संत और ॠषि, देवता जो किसी आदमी को दे सकते हैं, और देना चाहिए, वो केवल प्रेरणाएँ‌ होती हैं, दृष्टिकोण होता है, सोचने के ------- होते हैं।

5. हमारा महान गुरु, (जब) हमसे जिस दिन मिला, उसने हमारा चिंतन बदल दिया, हमारी प्रेरणाएँ बदल दीं, हमारी दिशाधाराएँ बदल दीं, हमारे सोचने के ------- बदल दिए

6. और (बदलने) की भी प्रेरणाएँ दीं - असल में बदला तो हमने ही है, मेहनत तो हमने ही की (है) - अगर हम न मेहनत किए होते तो इनकी प्रेरणाओं की क्या ------- थी - अगर हम उसका सहयोग न करते तब

7. आपको यहाँ से जाने के बाद में बदलना है। हम आपको प्रेरणाएँ‌ देंगे - हमारा आशीर्वाद केवल प्रेरणा के ------- में हो सकता है

8. भगवान मालदार नहीं बनाते - मालदारों को गरीब बना देते हैं - आपने देखे हैं न ------- से ले कर के जितने भी आदमी थे, भगवान की भक्ति में आए हैं

9. आप उल्टे को (उ उल् उल्) उलट दीजिए, और सीधे हो के जाइए, सीधे हो के जाइए। यहाँ‌ से जब जाएँ, तो क्या होते हुए जाएँ? आपका अंतराल बदला हुआ हर एक को ------- पड़े।

10. पहले ये कड़ुवे ------- बोलता था, पहले हर (वखत) रौब गालिब करता था, हर (वखत) दबाव डालता था - अब ये दबाव नहीं डालता

11. बल्कि ये मान के चलता है कि भगवान की एक बेटी हमारे घर में आ के रखी गई है, और उसकी हिफाजत करना, उसको उन्नतिशील बनाना, (उसके सुख) उसको सम्मान ------- करना हमारा काम है।

12. आप अधिकार को त्याग दीजिए, आप कर्तव्यों को ग्रहण कर लीजिए। आप हर एक के प्रति कर्तव्यों को ------- कीजिए।

13. आपका ------- के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका शरीर के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका (अपने) मन:सम्पदा के प्रति क्या कर्तव्य है? (आपके) अपने बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य है?

14. आपको जो धन मिला हुआ है, ------- मिले हुए हैं, उसके प्रति क्या कर्तव्य है? (आपको) अपने समाज के प्रति क्या कर्तव्य है? आत्मा, परमात्मा के प्रति क्या कर्तव्य है?

15. आप केवल कर्तव्यों पे विचार करें, और अधिकारों की उपेक्षा करने लगें, तो मैं ये कहूँगा कि (आपका कायाकल्प) आप सच्चे ------- में कायाकल्प के अधिकारी हो गए।

16. आप बदलिए, कृपा कर के बदलिए, कृपा कर के बदलिए - अपनी मन:स्थिति को बदल (दीजिए)। आप (कर्तव्यों को) कर्तव्यपालन कीजिए, और अपने (अ) अधिकारों से ------- हट जाइए।

17. आपने कमियों की लिस्ट बनाई है, और जहाँ-तहाँ पल्ला पसारा है, पल्ला पसारा है। कमियों को अनुभव करना, और जहाँ-तहाँ, ------- के सामने पल्ला पसारना - यही तो नीति रही है - अब कृपा कर के नीति बदल दीजिए।

18. क्या काम करें? आप ये विचार कीजिए कि आपके पास जो मिला हुआ है, वो कितना ज्यादा है। भगवान ने कितना ------- आपको दिया है। 

19. जो किसी प्राणी को नहीं मिला है, वो ------- आपको मिला हुआ है - (आपको) इंसानी जिंदगी (को) आप कीमत समझते हैं क्या? नहीं समझते - समझिए जरा

20. आपके जैसी वाणी, आपके जैसा मस्तिष्क, आपके (जैसे) जीवन की सुनिश्चितता, आपका जैसा गृहस्थ - क्या सारे ------- भर के किसी और प्राणी को मिला हुआ है? 

21. आप क्यों प्रसन्न नहीं हो सकते? आप अपनेआप को क्यों मालदार अनुभव नहीं कर सकते? क्यों आप ------- अनुभव नहीं कर सकते? आप गरीबी को छोड़ दीजिए, और अमीरी यहाँ से ले के जाइए।

22. उस लिस्ट को ------- के फेंक दीजिए जिसमें आपने ऐसी बातों की सूची बना रखी है जो हमारे पास नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं - आप नहीं वाली लिस्ट को फेंक दीजिए।

23. आप ये सोच के चलिए आपके पास है क्या - आपके पास श्रम है, आपके पास जीवन है, आपके पास मनुष्य की काया है, आपके पास ------- है, आपके पास परिस्थितियाँ हैं, आपके पास जीविका के माध्यम हैं

24. जो है उस पे संतोष व्यक्त कीजिए, आप इनसे प्रसन्न रहा (कीजिए), आप इन पे गर्व कीजिए, गौरव (अन) कीजिए, और याचना के स्थान पर देने की बात ------- कीजिए।

25. पैसे को तो मरना ही चाहिए। पहले भी पैसा नहीं था और आगे भी पैसा नहीं रहेगा। आदमी की ------- दौलत उसका श्रम है।

26. दे नहीं सकते आप? आप मीठे वचन नहीं बोल सकते? आप दूसरों को प्रोत्साहन नहीं दे सकते? आप क्या अच्छे परामर्श देने की ------- में नहीं हैं? क्या आप (आपको) मुस्कान नहीं बाँट सकते?

27. आप देने वाले बन जाइए। आप (से) सेवा दीजिए, सहानुभूति दीजिए, स्नेह दीजिए - फिर देखिए, आप जो चीज़ बाँटते हैं वो ब्याज समेत कितनी ज्यादा उठ कर के ------- हो जाती है।

28. अभावों की सूची वहीं फाड़ के फेंक जाइए। आपके पास क्या है, क्या है, इस पर खुशी मनाना ------- के जाइए।

29. और आप एक नई लिस्ट ये बना (के) के जाइए कि मांगना क्या, देना, मांगना क्या, देना - किसको आप क्या देंगे - मित्रों को क्या देंगे? ------- को क्या देंगे? 

30. धन नहीं - आपको अपनी भावनाएँ, और अपनी विचारणाएँ, और उनको ऊँचा उठाने, और, और ------- उछाल देने वाली सलाहें।

31. प्रोत्साहन की कीमत नहीं समझते आप? परामर्शों की कीमत (नहीं) नहीं समझते? सलाह ------- की कीमत नहीं समझते?

32. आप अपनी खीज को प्रसन्नता में बदल दीजिए। क्यों? कल कहा था न (हमने) कि आप अपने कर्तव्य (को अधिक) को ये पर्याप्त मान लें, और ये सोचने लगें - हमने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया, और फर्ज़ पूरे कर दिए, तो आपको खुश रहने का हक है, ------- हक है।

33. आप (पूरी) तरीके से सफल अनुभव कीजिए, अगर आप अपने फर्ज़ और ------- अंजाम देते रहते हैं तब; आप मुस्करा सकते हैं, (अगर) फर्ज़ों पर केंद्रित रहेंगे तब।

34. अपनी नम्रता, हर चीज़ में अपनी नम्रता, शिष्टाचार जिसे कहते हैं, शालीनता जिसे कहते हैं, सज्जनता कहते हैं, ------- कहते हैं 

35. आप एक शरीफ आदमी (की) तरीके से, सज्जन आदमी (की) तरीके से, ज़िम्मेदार आदमी (की) तरीके से, विनयशील आदमी (की) तरीके से, ------- आदमी के (होने) तरीके से, और एक श्रेष्ठ नागरिक (हो) होने के नाते 

36. अपनेआप (के) बोलचाल से ले कर के, व्यवहार ------- में सज्जनता को घोल दीजिए, मिठास को घोल (दीजिए), सेवा को घोल दीजिए, आत्मीयता को घोल दीजिए।

37. दूसरों को सम्मान देना सीखिए, हर एक की इज़्ज़त कीजिए, छोटे बच्चों की इज़्ज़त कीजिए, धर्मपत्नी की इज़्ज़त कीजिए, माताजी की इज़्ज़त कीजिए, छोटी बहन की इज़्ज़त कीजिए, ------- की इज़्ज़त कीजिए 

38. पड़ोसी की इज़्ज़त कीजिए, ------- की इज़्ज़त कीजिए, समाज की इज़्ज़त कीजिए - आप दूसरों का सम्मान करना सीखेंगे तो आपका अहंकार गल जाएगा।

39. अगर आपका अहंकार गल गया, और दूसरों को सम्मान देना शुरू कर दिया, तो आप देखना, उस सम्मान की प्रतिक्रिया क्या होती है - आप जितना सम्मान दूसरों को देंगे, उससे ------- गुना सम्मान आपके हिस्से में आएगा।

40. वास्तविकता (थोड़ी) है कोई, आपने कल्पना कर रखी हैं - भय की कल्पनाएँ, आशंका की कल्पनाएँ, चिंता की कल्पनाएँ, ------- की कल्पनाएँ, बुढ़ापे की कल्पनाएँ, मौत की कल्पनाएँ - आप क्यों करते रहते हैं? उज्ज्वल कल्पनाएँ आपको करना नहीं आता?

41. आप अच्छी से अच्छी उम्मीदें कीजिए, लेकिन साथ-साथ में आप भूल मत जाइए - बुरी से बुरी परिस्थितियों के लिए तैयार रहिए। दोनों बातों के लिए (समान) समान रूप से आपको पैर ------- हैं।

42. अपनेआप को इतना समर्थ और स्वावलम्बी (बना) रखिए, किसी भी खतरे के समय पर आप अपने पैरों पे (खड़ा) रह सकें। इतने आप ------- बनिए, इतने आप (बहा) बहादुर बनिए।

43. उदारता तो कीजिए, सहायता तो कीजिए, पर (ये) ये ------- को मत भूलिए - कहाँ उदारता करनी हैं, कहाँ नहीं करनी है। जहाँ ज़रूरत हो वहीं उदारता कीजिए

44. हर व्यक्ति को देखिए, हर परिस्थिति को देखिए - हर काम में सहयोग देना कोई ज़रूरी नहीं है, हर आदमी की सेवा करना ------- ज़रूरी नहीं है - केवल जो श्रेष्ठ है उसी की सेवा कीजिए, जो सत्प्रवृत्तियाँ उन्हीं में सहयोग दीजिए।

45. इसीलिए आपको जागरूक भी रहना चाहिए। आपको ------- जहाँ बनना है, सेवाभावी बनना है, वहाँ संघर्षशील भी बनना है।

46. आप ------- भी हो कर के जाइए, शूरवीर भी हो कर के जाइए - उदार बनिए, संयमी बनिए, सज्जन बनिए, भगवान का नाम लीजिए, भगवान का नाम लीजिए, अच्छे काम कीजिए

47. हितसाधन के लिए ये ज़रूरी नहीं है - किसी की हाँ में हाँ ही (मिलाया) जाए, या दूसरे आदमी जो चाहते हों वही किया जाए। ये हो सकता है कि हित ------- के लिए किसी आदमी को ठीक उल्टा (ग) करना पड़े।

48. आप विवेकशील बनिए और दूरदर्शी बनिए - हर ------- में ये सोचिए इसके परिणाम क्या होंगे। (अगर) आप परिणामों पे विचार करेंगे तो बहुत सी बुराइयों से बच जाएंगे।

49. आप परिणामों पे विचार करेंगे तो वो काम जो आज छोटे मालुम पड़ते हैं, बेकार मालुम पड़ते हैं, आप उन कामों को खुशी से करने के लिए तैयार हो जाएंगे, जो आपके और आपके समाज के हित में ------- आवश्यक हैं।

50. कल्पवृक्ष के नीचे ------- कर के आदमी अपनी कामनाओं (को) समापन (कर कर) कर लेता है। (आप) ये कल्पवृक्ष है - आप अपनी कामनाओं को पूरा तो नहीं करा पाएंगे, लेकिन अनावश्यक (कामनाओं) को (अगर खतम) कर दें, तो आप कल्पवृक्ष का आनन्द ले पाएंगे।

51. अगर आप (अपनी) मन को (अगर) आप ------- लें, ऊँचे आदर्शों के साथ, अर्थात पारस के साथ में जोड़ लें, तो आप सोना बन सकते हैं।

1. देवताओं के वरदान हमेशा (सत्प्रवृत्तियों) के रूप में, सत्प्रेरणाओं के रूप में मिले हैं। देवताओं ने, ॠषियों ने कभी किसी आदमी को -----पोटले -- बाँध कर के रुपयों के बंडल नहीं दिए हैं

2. न किसी को बेटी-बेटे दिए हैं, न मुकदमे (से) जीत कराई है, न (इसकी) नौकरी में उन्नति कराई है - ये काम अपने पुरुषार्थ का है, ---देवताओं ---- का नहीं है, संत और ॠषियों का नहीं है।

3. संत और ॠषि जो अनुदान और ---वरदान ---- देते हैं, उससे आदमी के अंतराल में उच्चस्तरीय प्रेरणाएँ उत्पन्न होती हैं - बस - और कुछ नहीं (होता)।

4. संत और ॠषि, देवता जो किसी आदमी को दे सकते हैं, और देना चाहिए, वो केवल प्रेरणाएँ‌ होती हैं, दृष्टिकोण होता है, सोचने के ---तरीके ---- होते हैं।

5. हमारा महान गुरु, (जब) हमसे जिस दिन मिला, उसने हमारा चिंतन बदल दिया, हमारी प्रेरणाएँ बदल दीं, हमारी दिशाधाराएँ बदल दीं, हमारे सोचने के ---तरीके ---- बदल दिए

6. और (बदलने) की भी प्रेरणाएँ दीं - असल में बदला तो हमने ही है, मेहनत तो हमने ही की (है) - अगर हम न मेहनत किए होते तो इनकी प्रेरणाओं की क्या ---कीमत ---- थी - अगर हम उसका सहयोग न करते तब

7. आपको यहाँ से जाने के बाद में बदलना है। हम आपको प्रेरणाएँ‌ देंगे - हमारा आशीर्वाद केवल प्रेरणा के ----रूप --- में हो सकता है

8. भगवान मालदार नहीं बनाते - मालदारों को गरीब बना देते हैं - आपने देखे हैं न ---हरीश्चंद्र ---- से ले कर के जितने भी आदमी थे, भगवान की भक्ति में आए हैं

9. आप उल्टे को (उ उल् उल्) उलट दीजिए, और सीधे हो के जाइए, सीधे हो के जाइए। यहाँ‌ से जब जाएँ, तो क्या होते हुए जाएँ? आपका अंतराल बदला हुआ हर एक को ---दिखाई ---- पड़े।

10. पहले ये कड़ुवे ---वचन ---- बोलता था, पहले हर (वखत) रौब गालिब करता था, हर (वखत) दबाव डालता था - अब ये दबाव नहीं डालता

11. बल्कि ये मान के चलता है कि भगवान की एक बेटी हमारे घर में आ के रखी गई है, और उसकी हिफाजत करना, उसको उन्नतिशील बनाना, (उसके सुख) उसको सम्मान ----प्रदान --- करना हमारा काम है।

12. आप अधिकार को त्याग दीजिए, आप कर्तव्यों को ग्रहण कर लीजिए। आप हर एक के प्रति कर्तव्यों को --ग्रहण ----- कीजिए।

13. आपका ---धर्मपत्नी---- के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका शरीर के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका (अपने) मन:सम्पदा के प्रति क्या कर्तव्य है? (आपके) अपने बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य है?

14. आपको जो धन मिला हुआ है, ----साधन --- मिले हुए हैं, उसके प्रति क्या कर्तव्य है? (आपको) अपने समाज के प्रति क्या कर्तव्य है? आत्मा, परमात्मा के प्रति क्या कर्तव्य है?

15. आप केवल कर्तव्यों पे विचार करें, और अधिकारों की उपेक्षा करने लगें, तो मैं ये कहूँगा कि (आपका कायाकल्प) आप सच्चे ---अर्थों ---- में कायाकल्प के अधिकारी हो गए।

16. आप बदलिए, कृपा कर के बदलिए, कृपा कर के बदलिए - अपनी मन:स्थिति को बदल (दीजिए)। आप (कर्तव्यों को) कर्तव्यपालन कीजिए, और अपने (अ) अधिकारों से ----पीछे --- हट जाइए।

17. आपने कमियों की लिस्ट बनाई है, और जहाँ-तहाँ पल्ला पसारा है, पल्ला पसारा है। कमियों को अनुभव करना, और जहाँ-तहाँ, ---जिस-तिस ---- के सामने पल्ला पसारना - यही तो नीति रही है - अब कृपा कर के नीति बदल दीजिए।

18. क्या काम करें? आप ये विचार कीजिए कि आपके पास जो मिला हुआ है, वो कितना ज्यादा है। भगवान ने कितना ----ज्यादा --- आपको दिया है।

19. जो किसी प्राणी को नहीं मिला है, वो --सिर्फ ----- आपको मिला हुआ है - (आपको) इंसानी जिंदगी (को) आप कीमत समझते हैं क्या? नहीं समझते - समझिए जरा

20. आपके जैसी वाणी, आपके जैसा मस्तिष्क, आपके (जैसे) जीवन की सुनिश्चितता, आपका जैसा गृहस्थ - क्या सारे ---विश्व ---- भर के किसी और प्राणी को मिला हुआ है?

21. आप क्यों प्रसन्न नहीं हो सकते? आप अपनेआप को क्यों मालदार अनुभव नहीं कर सकते? क्यों आप ----सम्पन्न --- अनुभव नहीं कर सकते? आप गरीबी को छोड़ दीजिए, और अमीरी यहाँ से ले के जाइए।

22. उस लिस्ट को ----फाड़ --- के फेंक दीजिए जिसमें आपने ऐसी बातों की सूची बना रखी है जो हमारे पास नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं - आप नहीं वाली लिस्ट को फेंक दीजिए।

23. आप ये सोच के चलिए आपके पास है क्या - आपके पास श्रम है, आपके पास जीवन है, आपके पास मनुष्य की काया है, आपके पास ----गृहस्थ --- है, आपके पास परिस्थितियाँ हैं, आपके पास जीविका के माध्यम हैं

24. जो है उस पे संतोष व्यक्त कीजिए, आप इनसे प्रसन्न रहा (कीजिए), आप इन पे गर्व कीजिए, गौरव (अन) कीजिए, और याचना के स्थान पर देने की बात ----विचार --- कीजिए।

25. पैसे को तो मरना ही चाहिए। पहले भी पैसा नहीं था और आगे भी पैसा नहीं रहेगा। आदमी की ----असली --- दौलत उसका श्रम है।

26. दे नहीं सकते आप? आप मीठे वचन नहीं बोल सकते? आप दूसरों को प्रोत्साहन नहीं दे सकते? आप क्या अच्छे परामर्श देने की ----स्थिति --- में नहीं हैं? क्या आप (आपको) मुस्कान नहीं बाँट सकते?

27. आप देने वाले बन जाइए। आप (से) सेवा दीजिए, सहानुभूति दीजिए, स्नेह दीजिए - फिर देखिए, आप जो चीज़ बाँटते हैं वो ब्याज समेत कितनी ज्यादा उठ कर के ----ऊँची --- हो जाती है।

28. अभावों की सूची वहीं फाड़ के फेंक जाइए। आपके पास क्या है, क्या है, इस पर खुशी मनाना ---सीख ---- के जाइए।

29. और आप एक नई लिस्ट ये बना (के) के जाइए कि मांगना क्या, देना, मांगना क्या, देना - किसको आप क्या देंगे - मित्रों को क्या देंगे? ---दोस्तों ---- को क्या देंगे?

30. धन नहीं - आपको अपनी भावनाएँ, और अपनी विचारणाएँ, और उनको ऊँचा उठाने, और, और ----ऊँचा --- उछाल देने वाली सलाहें।

31. प्रोत्साहन की कीमत नहीं समझते आप? परामर्शों की कीमत (नहीं) नहीं समझते? सलाह ---मशवरे ---- की कीमत नहीं समझते?

32. आप अपनी खीज को प्रसन्नता में बदल दीजिए। क्यों? कल कहा था न (हमने) कि आप अपने कर्तव्य (को अधिक) को ये पर्याप्त मान लें, और ये सोचने लगें - हमने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया, और फर्ज़ पूरे कर दिए, तो आपको खुश रहने का हक है, ---पूरा ---- हक है।

33. आप (पूरी) तरीके से सफल अनुभव कीजिए, अगर आप अपने फर्ज़ और -----ड्यूटी-- अंजाम देते रहते हैं तब; आप मुस्करा सकते हैं, (अगर) फर्ज़ों पर केंद्रित रहेंगे तब।

34. अपनी नम्रता, हर चीज़ में अपनी नम्रता, शिष्टाचार जिसे कहते हैं, शालीनता जिसे कहते हैं, सज्जनता कहते हैं, ----शराफत --- कहते हैं

35. आप एक शरीफ आदमी (की) तरीके से, सज्जन आदमी (की) तरीके से, ज़िम्मेदार आदमी (की) तरीके से, विनयशील आदमी (की) तरीके से, ----विनम्र --- आदमी के (होने) तरीके से, और एक श्रेष्ठ नागरिक (हो) होने के नाते

36. अपनेआप (के) बोलचाल से ले कर के, व्यवहार ----तक --- में सज्जनता को घोल दीजिए, मिठास को घोल (दीजिए), सेवा को घोल दीजिए, आत्मीयता को घोल दीजिए।

37. दूसरों को सम्मान देना सीखिए, हर एक की इज़्ज़त कीजिए, छोटे बच्चों की इज़्ज़त कीजिए, धर्मपत्नी की इज़्ज़त कीजिए, माताजी की इज़्ज़त कीजिए, छोटी बहन की इज़्ज़त कीजिए, ----भाइयों --- की इज़्ज़त कीजिए

38. पड़ोसी की इज़्ज़त कीजिए, ----मित्रों --- की इज़्ज़त कीजिए, समाज की इज़्ज़त कीजिए - आप दूसरों का सम्मान करना सीखेंगे तो आपका अहंकार गल जाएगा।

39. अगर आपका अहंकार गल गया, और दूसरों को सम्मान देना शुरू कर दिया, तो आप देखना, उस सम्मान की प्रतिक्रिया क्या होती है - आप जितना सम्मान दूसरों को देंगे, उससे ----असंख्य --- गुना सम्मान आपके हिस्से में आएगा।

40. वास्तविकता (थोड़ी) है कोई, आपने कल्पना कर रखी हैं - भय की कल्पनाएँ, आशंका की कल्पनाएँ, चिंता की कल्पनाएँ, ----हैरानी --- की कल्पनाएँ, बुढ़ापे की कल्पनाएँ, मौत की कल्पनाएँ - आप क्यों करते रहते हैं? उज्ज्वल कल्पनाएँ आपको करना नहीं आता?

41. आप अच्छी से अच्छी उम्मीदें कीजिए, लेकिन साथ-साथ में आप भूल मत जाइए - बुरी से बुरी परिस्थितियों के लिए तैयार रहिए। दोनों बातों के लिए (समान) समान रूप से आपको पैर ---बढ़ाने ---- हैं।

42. अपनेआप को इतना समर्थ और स्वावलम्बी (बना) रखिए, किसी भी खतरे के समय पर आप अपने पैरों पे (खड़ा) रह सकें। इतने आप ---शूरवीर ---- बनिए, इतने आप (बहा) बहादुर बनिए।

43. उदारता तो कीजिए, सहायता तो कीजिए, पर (ये) ये ----विचार --- को मत भूलिए - कहाँ उदारता करनी हैं, कहाँ नहीं करनी है। जहाँ ज़रूरत हो वहीं उदारता कीजिए

44. हर व्यक्ति को देखिए, हर परिस्थिति को देखिए - हर काम में सहयोग देना कोई ज़रूरी नहीं है, हर आदमी की सेवा करना ---कतई---- ज़रूरी नहीं है - केवल जो श्रेष्ठ है उसी की सेवा कीजिए, जो सत्प्रवृत्तियाँ उन्हीं में सहयोग दीजिए।

45. इसीलिए आपको जागरूक भी रहना चाहिए। आपको ----उदार --- जहाँ बनना है, सेवाभावी बनना है, वहाँ संघर्षशील भी बनना है।

46. आप ----संघर्षशील --- भी हो कर के जाइए, शूरवीर भी हो कर के जाइए - उदार बनिए, संयमी बनिए, सज्जन बनिए, भगवान का नाम लीजिए, भगवान का नाम लीजिए, अच्छे काम कीजिए

47. हितसाधन के लिए ये ज़रूरी नहीं है - किसी की हाँ में हाँ ही (मिलाया) जाए, या दूसरे आदमी जो चाहते हों वही किया जाए। ये हो सकता है कि हित ----चाहने --- के लिए किसी आदमी को ठीक उल्टा (ग) करना पड़े।

48. आप विवेकशील बनिए और दूरदर्शी बनिए - हर ----मामले --- में ये सोचिए इसके परिणाम क्या होंगे। (अगर) आप परिणामों पे विचार करेंगे तो बहुत सी बुराइयों से बच जाएंगे।

49. आप परिणामों पे विचार करेंगे तो वो काम जो आज छोटे मालुम पड़ते हैं, बेकार मालुम पड़ते हैं, आप उन कामों को खुशी से करने के लिए तैयार हो जाएंगे, जो आपके और आपके समाज के हित में ---नितांत ---- आवश्यक हैं।

50. कल्पवृक्ष के नीचे ---बैठ ---- कर के आदमी अपनी कामनाओं (को) समापन (कर कर) कर लेता है। (आप) ये कल्पवृक्ष है - आप अपनी कामनाओं को पूरा तो नहीं करा पाएंगे, लेकिन अनावश्यक (कामनाओं) को (अगर खतम) कर दें, तो आप कल्पवृक्ष का आनन्द ले पाएंगे।

51. अगर आप (अपनी) मन को (अगर) आप -----बदल -- लें, ऊँचे आदर्शों के साथ, अर्थात पारस के साथ में जोड़ लें, तो आप सोना बन सकते हैं।