आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620112 - ब्रह्मविद्या का ज्ञान विज्ञान (ब्रह्मविद्या द्वारा ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति) (जीवात्मा का विज्ञान Science of Soul)

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

गायत्री मंत्र का ज्ञान विज्ञान

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर चिंतन / मनन करें

उद्बोधन के कुछ अंश नीचे दिए गए हैं

इन्हें डाउनलोड भी कर सकते हैं - (.doc फाइल) (.pdf फाइल)

उद्बोधन के कुछ अंश

1. हमारा सत्तर वर्ष का जीवन सिर्फ एक काम में लगा है, और वो काम है - भारतीय धर्म और संस्कृति की आत्मा (का) की शोध।

2. भारतीय धर्म और संस्कृति का बीज - गायत्री मंत्र।

3. इन छोटे से चौबीस अक्षरों के मंत्र में वह ज्ञान और विज्ञान भरा हुआ पड़ा है, जिसके विस्तार में भारतीय तत्वज्ञान और भारतीय (तद्-विज्ञान) दोनों को खड़ा किया गया है।

4. ब्रह्माजी ने चार मुखों से, चार चरण गायत्री का व्याख्यान किया, चार वेदों के रूप में।

5. वेदों से अन्यान्य धर्मग्रंथ बने। जो कुछ भी हमारे पास है, उस सबका मूल, जड़, हम चाहें तो मंत्र के रूप में देख सकते हैं।

6. इसीलिए इसी का नाम गुरु रखा गया, बीज रखा गया।

7. भारतीय धर्म और विज्ञान को समझने की अपेक्षा, ये अच्छा है कि (इसके) बीज को समझ लिया जाए।

8. अब हम आपको ये बताना चाहेंगे कि गायत्री मंत्र, गायत्री मंत्र के ज्ञान और विज्ञान में, ज्ञान और विज्ञान जिसकी कि व्याख्या स्वरूप ॠषियों ने सारे का सारा तत्वज्ञान खड़ा किया है, क्या है?

9. गायत्री को त्रिपदा कहते हैं। त्रिपदा का अर्थ है - तीन चरण वाली, तीन टाँग वाली।

10. विज्ञान वाले पहलू में आते हैं - (तत्वदर्शन) - उसमें आते हैं तप, साधन, योगाभ्यास, अनुष्ठान, जप, ध्यान, इत्यादि।

11. विज्ञान वाला भाग है, इससे शक्ति पैदा होती है।

12. हमारा लंबे समय का जो (अ) अनुभव है, गायत्री उपासना के संबंध में, वो ये है कि मंत्र जप करने की विधियाँ और कर्मकाण्ड तो वही हैं, जो सामान्य पुस्तकों में लिखे हुए हैं।

13. किसी को फलित होने और किसी को न फलित होने का मूल कारण ये है कि (उनमें उ) उन तीन, उन तीन तत्वों का समावेश करना लोग भूल जाते हैं, जो किसी भी उपासना का प्राण हैं।

14. 1. एक तथ्य ये जुड़ा हुआ है कि अटूट श्रद्धा होनी चाहिए।

15. श्रद्धा की एक अपनेआप में शक्ति है।

16. अगर हमारा किसी मंत्र के ऊपर, जप उपासना के ऊपर, अटूट विश्वास है, प्रगाढ़, प्रगाढ़ निष्ठा और श्रद्धा है, तो मेरा अब तक का अनुभव ये है - उसको चमत्कार मिलना चाहिए, उसके लाभ सामने आने चाहिए।

17. लेकिन मन में श्रद्धा को, श्रद्धा उत्पन्न न कर सके, विश्वास (उत्पन्न) उत्पन्न न कर सके, ऐसे लोग खाली हाथ रह गए बहुत सारा जप करते हुए भी।

18. 2. उपासना को सफल बनाने के लिए परिष्कृत व्यक्तित्व होना नितांत आवश्यक है। परिष्कृत व्यक्तित्व का मतलब ये है, आदमी चरित्रवान हो, आदमी लोकसेवी हो, सदाचारी हो, संयमी हो, अपने व्यक्तिगत जीवन को श्रेष्ठ और समुन्नत बनाए रखने वाला हो।

19. अध्यात्म का लाभ स्वयं पाने और दूसरों को (दे) दे सकने में केवल वही साधक सफल हुए हैं जिन्होंने जप, उपासना के कर्मकाण्डों के सिवाय, अपने व्यक्तिगत जीवन को शालीन, समुन्नत, श्रेष्ठ, और परिष्कृत बनाने का प्रयत्न किया है।

20. संयमी व्यक्ति, सदाचारी व्यक्ति जो भी जप करते हैं, उपासना करते हैं, उनकी प्रत्येक उपासना सफल हो जाती है।

21. भगवान का नाम ले कर के, नाम लेने का परिणाम ये होना चाहिए कि आदमी का व्यक्तित्व सही हो और, और शुद्ध बने।

22. 3. तीसरा, हमारा अब तक का अनुभव ये है कि उच्चस्तरीय, उच्चस्तरीय जप और उपासनाएँ तब सफल होती हैं जब कि आदमी का दृष्टिकोण और महत्वाकांक्षाएँ भी ऊँची हों।

23. देवता सबसे पहले कर्मकाण्डों की विधि और विधानों को देखने की अपेक्षा ये मालुम करने की कोशिश करते हैं कि (इ) इसकी उपासना का क्या उद्देश्य है?

24. जिन्होंने किसी अच्छे काम के लिए, ऊँचे काम के लिए भगवान की सेवा और सहायता चाही है, उनको बराबर सेवा सहायता मिली है।

25. ये तीन बातों को हमने (प्र) प्रयत्न किया कि हम इस गायत्री उपासना में प्राण संचार करें।

26. एक भगवान के भक्त को जैसा जीवन जीना चाहिए, अपने, हमने भरसक प्रयत्न किया है कि उसमें किसी (तरीके) से कमी न आने पावे।

27. पीड़ित मानवता को ऊँचा उठाने के लिए, देश, धर्म, समाज और संस्कृति को समुन्नत बनाने के लिए हम उपासना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं।

28. भागीरथ की नियत को देख कर के भी गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी पे आने के लिए तैयार हो गई थीं, और शंकर भगवान उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए थे।

29. उपासना की सार्थकता कोई परख करनी हो, तो इनको इन तीनों बातों पे ध्यान रखना पड़ेगा जो हमने अभी-अभी निवेदन किया - उच्चस्तरीय दृष्टिकोण, परिष्कृत व्यक्तित्व और अटूट श्रद्धा विश्वास।

30. गायत्री को कामधेनु कहा जाता है, ये सही है।

31. गायत्री को पारस कहा जाता है, इसको छू कर के लोहा सोना बन जाता है, ये सही है।

32. ये सब कुछ सही उसी हालत में है कि गायत्री रूपी कामधेनु को चारा भी खिलाया जाए, पानी भी पिलाया जाए, उसकी रखवाली भी की जाए।

33. अब ज्ञान पक्ष की बात - जो मेरा 70 वर्ष का अनुभव है - गायत्री के तीन पाद, तीन चरण में तीन शिक्षाएँ भरी पड़ी हैं।

34. तीन पक्ष, त्रिपदा गायत्री - एक (1) आस्तिकता, दूसरी (2) आध्यात्मिकता, तीसरी (3) धार्मिकता।

35. 1. आस्तिकता का अर्थ है - ईश्वर का विश्वास।

36. ईश्वर का विश्वास का अर्थ ये है, कि सर्वत्र जो भगवान समाया हुआ है, उसकी, उसके संबंध में ये दृष्टि रखें - उसका न्याय पक्ष, उसका कर्म का फल देने वाला पक्ष इतना समर्थ है

37. भगवान सर्वव्यापी है, सर्वत्र है, सबको देखता है, अगर ये, ये विश्वास हमारे भीतर हो तो हमारे लिए पाप कर्म करना संभव नहीं है।

38. आस्तिकता चरित्र-निष्ठा और समाज-निष्ठा का मूल है।

39. हाथी के ऊपर अंकुश जैसे लगा रहता है, आस्तिकता का अंकुश हर आदमी को ईमानदार बनने के लिए, अच्छा आदमी बनने के लिए प्रेरणा करता है और प्रकाश देता है।

40. ईश्वर की उपासना का अर्थ है - जैसा ईश्वर महान है वैसे ही हम महान बनने के लिए कोशिश करें।

41. यह विराट विश्व भगवान का रूप है, और हम इसकी सेवा करें, और इसकी सहायता करें, इस विश्व उद्यान को समुन्नत बनाने की कोशिश करें

42. सर्वत्र भगवान विद्यमान है, ये भावना रखने से आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना मन में पैदा होती है।

43. हम अपनी इच्छा भगवान पर थोपने की अपेक्षा, भगवान की, की इच्छा को अपने जीवन में धारण करें।

44. 2. अध्यात्मिकता का अर्थ होता है - आत्मावलम्बन, अपने आप को जानना, आत्मबोध।

45. अपने दुःखों का कारण बाहर तलाश करते फिरते रहते हैं। ये जानते नहीं कि हमारी मन:स्थिति के कारण ही हमारी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

46. स्वर्ग और नरक हमारे ही भीतर हैं।

47. चट्टानों के ऊपर बादल बरसते रहते हैं, लेकिन एक घास का तिनका भी पैदा नहीं होता।

48. ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं।

49. इसीलिए आध्यात्मिकता का संदेश ये है कि हर आदमी को अपनेआप को देखना, समझना, सुधारने के लिए भरपूर प्रयत्न करना चाहिए

50. 3. धार्मिकता का अर्थ होता है - कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यों का पालन।

51. शरीर के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसको निरोग रखें।

52. मस्तिष्क के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसमें अवांछनीय विचारों को न आने दें।

53. परिवार के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसको, उनको सद्गुणी बनाएँ।

54. देश, धर्म, समाज और संस्कृति के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इन्हें भी समुन्नत बनाने के लिए भरपूर ध्यान रखें।

55. इन सारे के सारे कर्तव्यों को अगर हम ठीक तरीके से पूरा न कर सके तो हम धार्मिक कैसे कहला सकेंगे?

56. लेकिन इसके सार में तीन ही चीजें समाई हुई हैं - एक (१) आस्तिकता अर्थात ईश्वर का विश्वास, (२) आध्यात्मिकता अर्थात स्व-अवलंबन, आत्मबोध और अपने आप को परिष्कृत करना, अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार करना, और तीसरा हमने पाया (३) धार्मिकता अर्थात कर्तव्यपरायणता।

57. कर्तव्यपरायण व्यक्ति, स्वावलंबी व्यक्ति, और ईश्वरपरायण व्यक्ति गायत्री मंत्र का उपासक कहा, कहा जा सकता है और गायत्री मंत्र के ज्ञानपक्ष के द्वारा जो शांति मिलनी चाहिए, सद्गति मिलनी चाहिए, उसका अधिकारी बन सकता है

58. ऊँचे से ऊँची स्थिति प्राप्त करके इसी लोक में स्वर्ग और मुक्ति का अधिकारी बन सकता है - ऐसा हमारा अनुभव, ऐसा हमारा विचार और ऐसा हमारा विश्वास