आध्यात्मिक कायाकल्प

अध्यात्म द्वारा दैनिक जीवन के प्रश्नों के समाधान

Refinement of Personality Through Spirituality

Answers to the questions of day-to-day life through Spirituality

पाठ्यक्रम 620112 - ब्रह्मविद्या का ज्ञान विज्ञान (ब्रह्मविद्या द्वारा ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति) (जीवात्मा का विज्ञान Science of Soul)

(परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिए गए उद्बोधनों पर आधारित पाठ्यक्रम) (स्व-शिक्षण पाठ्यक्रम Self-Learning Course)

ब्रह्मवर्चस का ज्ञान विज्ञान

परम पूज्य गुरुदेव, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिया गया उद्बोधन

यहाँ दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें

उद्बोधन के कुछ अंश नीचे दिए गए हैं

इन्हें डाउनलोड भी कर सकते हैं - (.doc फाइल) (.pdf फाइल)

उद्बोधन के कुछ अंश

1. हमारी नवीनतम शिक्षा पद्धति, जिसको आप चाहें तो प्राचीनतम भी कह सकते हैं - ब्रह्मवर्चस के नाम पर प्रारम्भ करते हैं - जिसके लिए नया भवन बन रहा है, और जिसके अंतर्गत अब हमारे सारे के सारे शिविर चलेंगे

2. इसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए आपको प्रयत्न करना चाहिए - ब्रह्म-वर्चस - क्या मतलब? एक दूसरे के पूरक - पूरक - एक चेतना और एक क्रिया - अध्यात्म, एक धर्म - दो चीज़ों को मिला कर के हम चलते हैं

3. ब्रह्मविद्या - हमारे ॠषियों की विद्या, प्राचीनकाल की विद्या, (भारत) भारत की (की) प्राण और भारतीय संस्कृति की जीवात्मा

4. ब्रह्मविद्या किसे कहते हैं? (ब्रह्म) ब्रह्मविद्या बेटे कहते हैं - साइंस ऑफ सोल (Science of Soul) - जीवात्मा की साइंस

5. हमारी आँखें बाहर की ओर देखती हैं - भगवान ने क्या मखौल किया है हमारे साथ में, क्या दिल्लगी की है - सुराख बना दिए हैं, लेकिन इन सब की निगाह बाहर की ओर है

6. पदार्थ में कोई जायका होता है? पदार्थ में कोई जायका नहीं होता (है) - नीम की पत्ती - हमको कड़वी मालुम पड़ती है - और ऊँट को, ऊँट को मीठी मालुम पड़ती है - बताइए साहब नीम की पत्ती कैसी है? - बेटे हम नहीं बता सकते कैसी है

7. नीम का पत्ता हमारे जीभ के (सलेवा) (saliva) से जब सम्मिश्रित होता है तो हमको (क) कड़वा महसूस होता है - हमारा दिमाग बताता है ये कड़ुवा (है)

8. असल में क्या है? बेटे कुछ नहीं है - मिट्टी है नीम का पत्ता - हमारी (सम्भूतियाएँ), सम्वेदनाएँ (ये) ये अनुभव कर के दिखाती हैं, क्या चीज़ कैसी होनी चाहिए

9. हमारी सम्पदाएँ, समृद्धियाँ कहाँ हैं? साहब बाहर हैं - नहीं बेटे, बाहर नहीं हैं, (भीतर की) भीतर हैं - हम जिसको मान लेते हैं हमारी है, वो दौलत हमारी हो जाती है - जिसको हम (ने) मान लेते हैं हमने दान कर दी (या) बेच दी, वो पराई हो जाती है - चीज़ तो जहाँ की तहाँ खड़ी है

10. मित्रों - सारी की सारी जिंदगी की मूलभूत समस्याएँ हमारे भीतर से उत्पन्न होती हैं, और भीतर ही (जो हो) कर के समाधान (होती हैं)

11. हमारे भीतर से सम्वेदनाएँ निकलती हैं, और वस्तुओं से (टक्कर) टक्कर मार कर के (उसकी) प्रतिक्रियाएँ, उसके रिफ्लेक्शन (reflection) लौट-लौट के हमारे पास आ जाते हैं

12. हमने ये विचार किया कि दुनिया के रग-रग में, और नस-नस में भगवान भरा हुआ पड़ा है - हमारे विचार गए, और प्रत्येक चीज़ (के) के पास में जवाब-तलब करते रहे, और पूछते रहे - कहिए साहब आपमें भगवान है कि नहीं? - हाँ साहब (भग) भगवान है हमारे भीतर - हर चीज़ ने जवाब दिया

13. ये साइंस ऑफ सोल (science of soul) - ये (इतनी बड़ी सोल है इतनी ब) इतनी बड़ी साइंस है, मैं नहीं समझता इससे बड़ी भी कोई साइंस होगी

14. पदार्थ की साइंस बड़ी है - मैं कब कहता हूँ फिज़िक्स (physics) की कोई कीमत नहीं है - मैंने किससे कहा केमिस्ट्री (chemistry) का (कोई) कोई मतलब नहीं होता - ये सब चीज़ें अपनी जगह पर ठीक हैं, और (मुबारिक) हैं, और ताकतवर हैं

15. लेकिन एक ऐसी साइंस है, एक ऐसी साइंस है, जो हमारे स्वयं के संबंध में है - स्वयं के संबंध की साइंस अगर समझ में आ जाए, मज़ा आ जाए हमारी ज़िंदगी में

16. और जो चीज़ें दबी हुई हैं हमारे भीतर, समझ में न आ सकीं हमारे भीतर - वो (उ) उछल कर के, और उभर के (भीतर आ) बाहर आ जाएँ - अगर हमारी भीतर की चीज़ें उछल के और उभर के बाहर आ सकें, मज़ा आ जाए हमारी जिंदगी में

17. ऐसी कोई साइंस और ऐसी फिलॉसफी किसी ने हमको बताई, समझाई नहीं - (कि) हमारे (भी) भीतर वाला जो माद्दा है - कितना ताकतवर, कितना शक्तिशाली, कितना प्रचंड, कितना प्रखर - जो हमारे भीतर दबा पड़ा है - इस चिंगारी को हम कैसे बढ़ा सकते हैं? इसकी हम कैसे सफाई कर सकते हैं? - इस चीज़ का नाम साइंस ऑफ सोल (science of soul) है - इसको ही ब्रह्मविद्या कहते हैं

18. हमारे ॠषियों की सबसे बड़ी दौलत, और (स स) सबसे बड़ा आविष्कार, कि हम (अप) अपने बारे में जान पाएँ - नो दाईसेल्फ (know thyself) - अपनेआप को जानो

19. अपने बारे में जानने की आदमी कोशिश करे, तो अपनी जिंदगी को इतनी मीठी, इतनी सरस, इतनी मधुर, इतनी शक्तिशाली बना सकता है - मज़ा आ सकता है - प्राचीनकाल के ॠषियों ने इसी साइंस को समझा था - ये ब्रह्मविद्या की साइंस है

20. अपनी जिंदगी क्या हो सकती है? हम स्वयं क्या हो सकते हैं? हमारी सम्भावनाएँ क्या हैं? और हमारे काम करने के तरीके, काम करने के रास्ते क्या होने चाहिए? हमारी समझ, और (हमारी) सोचने के ढंग क्या होने चाहिए? हमारे व्यवहार में क्या शालीनता समन्वित होनी चाहिए? - इसका नाम ब्रह्मविद्या है

21. ब्रह्मविद्या, ब्रह्मलोक की बात कहते हैं - हाँ बेटे, यही ब्रह्मलोक है - तुझे बताते तो हैं - (हमारा) हमारा जो जीवात्मा - यही ब्रह्मलोक है

22. हम तो इसी लोक की बात कहते हैं - जो हमारा लोक भीतर है - इसी की जानकारी के संबंध में - ब्रह्मविद्या कहलाती थी - ये (बड़ी) बड़ी महत्वपूर्ण विद्या थी

23. लोगों ने जब इसको समझने की कोशिश की कि हम क्या हैं, और हमें क्या होना चाहिए, और किस तरीके से हम क्या बन सकते हैं - इसके बारे में जब बात लोगों की समझ में आ गई, तो लोगों ने छोटे-छोटे शरीरों में पैदा हो कर के, गज़ब कर के दिखा दिया - लोगों ने इसी मिट्टी के भीतर भगवान को (प्रगट) कर के दिखा दिया

24. अपनेआप को इस स्तर तक विकसित कर लिया कि हम उनको भगवान कहते हैं, और भगवान ज़रूर कहेंगे - भगवान आप क्यों कहते हैं? बेटे हम भगवान ही कहेंगे, (क्योंकि) भगवान की सारी की सारी विशेषताएँ जिनके भीतर पाई जा सकती हैं, (हम) क्यों भगवान न कहेंगे

25. ये ब्रह्मविद्या - मैं समझता हूँ, इस संसार की सबसे बड़ी विद्या होनी चाहिए - जो आदमी के व्यक्तित्व को उछालती है, व्यक्तित्व को उभारती है, व्यक्तित्व को परिष्कृत करती है, व्यक्तित्व को श्रेष्ठ और शालीन बनाती है

26. इतना शालीन बना सकती है कि हम इंसान की काया में भगवान (की) साक्षात्कार कर सकते हैं, देवता का साक्षात्कार कर सकते हैं - इसी काया के भीतर हम ॠषि का साक्षात्कार कर सकते हैं, और इसी, इसी काया के अंदर हम (म) महात्मा, परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं

27. ऐसी विद्या, ऐसी साइंस, ऐसी साइंस के लिए मैं क्या कह सकता हूँ, फिलॉसफी के लिए क्या कह सकता हूँ - ये ब्रह्मविद्या हमारी सम्पदा है - इसी ने नर रत्नों को, नर रत्नों को गढ़ा

28. जगह-जगह से, प्रत्येक खदान में से, प्रत्येक कुटुम्ब में से नर रत्न निकलते आते थे, किसी जमाने में - ये किसका चमत्कार था? किसका जादू था? बेटे ये ब्रह्मविद्या का (ज) जादू था

29. मित्रों - ये साइंस और ये फिलॉसफी, हमारी महत्वपूर्ण फिलॉसफी थी - जिसमें मनुष्य ने अपने शरीर की दृष्टि से विचार ही नहीं किया कभी - शरीर को खाना कम मिलेगा तो क्या, कपड़ा कम मिलेगा तो क्या, शरीर को विषय कम मिलेंगे तो क्या, भोग मिलेगा तो क्या, इससे क्या बनता है

30. हमारे जीवात्मा का स्तर (और हमारा स्वा) ऊँचा उठा रहना चाहिए, ऊँचा उठा रहना चाहिए - हमारी आंतरिक गरिमा, उत्कृष्ट, ऊँचे स्तर पर, पहाड़ के बराबर होनी चाहिए

31. हमारे जीवात्मा का स्तर ऊँचा होना चाहिए, हम (महा) महान होने चाहिए, बड़े आदमी न हों तो न हों - कैसी गज़ब की फिलॉसफी थी

32. मैं (सो) सोचता हूँ - अगर कोई फिलॉसफी (उस) उसको फिर इस हिंदुस्तान में ला कर के (वापिस कर) सके, तो मैं सोचता हूँ - स्वर्ग (फिर) इस जमीन पे आ सकता है, और मनुष्यों के भीतर देवत्व का फिर उदय हो सकता है - ये हमारी ब्रह्मविद्या की बात थी

33. ब्रह्मविद्या (सिर्फ) वो है जिसमें कि आदमी अपने व्यक्तित्व के संबंध में, अपनी समस्याओं के संबंध में, अपनी मूलभूत सत्ता के संबंध में विचार करता है

34. विद्या को मैं उस (उस माने) में (अर्थ) करता हूँ, जिसको पा कर के आदमी अमृतत्व को प्राप्त कर लेता है - वो विद्या, वो विद्या हमारी सम्पदा थी

35. अपनेआप के संबंध में जिसमें हम बारीकी से विचार करते हैं, और अपनी समस्याओं के समाधान करते हैं - ये ब्रह्मविद्या है - (ये मैं) मैं सोचता हूँ, ब्रह्मविद्या का प्रचार और ब्रह्मविद्या का प्रसार फिर से होना चाहिए

36. युग क्या बदल जाएगा? (यु) युग (क्या प) क्या परिवर्तन होगा? बेटे, युग का परिवर्तन (ये कि होगा) कि आदमी को प्रेरणा देने वाली, प्रकाश देने वाली, दिशा देने वाली जो मान्यताएँ, और आस्थाएँ, और निष्ठाएँ, वो (म) ब्रह्मविद्या के (आ) आधार पर (वि) विनिर्मित होंगी, भौतिकवाद के आधार पर नहीं

37. इस तरीके से हम अज्ञान में से ज्ञान की तरफ निकलने के लिए जो कदम बढ़ाते हैं, उसका नाम ब्रह्मविद्या है

38. नया वाला शिक्षण का तरीका - जिसको हम एक नई हिम्मत को ले कर के, और नया जोश, और नया जीवन ले कर के चले हैं, कि हम ब्रह्मविद्या मनुष्य को सिखाएंगे

39. हिन्दू को - हाँ बेटे हिन्दू को भी सिखाएंगे - मुसलमान को भी सिखाएंगे - हिन्दुस्तान को सिखाएंगे - हाँ बेटे हिस्दुस्तान को भी सिखाएंगे, और दूसरे मुल्कों को भी सिखाएंगे - क्योंकि हमारे लिए इंसान एक (है), इंसान एक है - हम हर इंसान को ब्रह्मविद्या सिखाएंगे

40. किस तरीके से सिखाएंगे? बेस (base) क्या होगा? बेस बेटा हमारा विज्ञान होगा - नया युग जो आ रहा है - तर्क का युग आ रहा है - विचारणा का युग आ रहा है - दलील का युग आ रहा है - अब हम किसी को श्रद्धा के (के) आधार पर प्रभावित कर सकें, ऐसा हमको दिखाई नहीं पड़ता

41. अब हमको सारी दुनिया के हिसाब से विचार करना पड़ेगा - ब्रह्मविद्या को नए आधार, नए (वेस) हम देंगे - इसीलिए (नवीन) नवीनतम कह सकते हैं आप - प्राचीनतम कह सकते (हैं)

42. हम फेथ (faith) के आधार पर, फेथ के आधार पर, सारी दुनिया को, (सारे) मानव जाति का (समा) समाधान नहीं कर सकते - इसीलिए ब्रह्मवर्चस, जिसको हम प्रारम्भ करते हैं - इसके हमने नए आधार और नए ग्राउंड दिए हैं

43. हमने सारी मनुष्य जाति को चुनौती दी है - आइए, हम आपका समाधान करेंगे - और आप, आप क्या चाहते हैं? हम तो दलील चाहते हैं - बेटे हम दलील देंगे आपको

44. क्या चाहते हैं? प्रत्यक्ष चाहते हैं - अच्छा चलिए हम प्रत्यक्ष ही बताएंगे - प्रत्यक्ष अब हमारा कमज़ोर नहीं है - अब हम भागने वाले नहीं हैं - अब हम विज्ञान में (बहु) बहुत आगे आ गए हैं

45. अब हम कहते हैं - भगवान को हम साबित करेंगे - अब (परि) परमाणु, ऐटम (atom) (ख) (खतम) हो गया - ऐटम के भीतर उसके पार्टिकल्स (particles) निकल के आ गए - (इसके) भीतर इलेक्ट्रॉन (electron) काम करता है, प्रोटॉन (proton) काम करता है

46. प्रोटोन क्या है? प्रोटोन एक पदार्थ की, मैटर (matter) की ईकाई है - अब मैटर की ईकाई भी समाप्त हो गई - ये क्या है? ये तरंगें हैं, ये (बेव्स) (waves) हैं, ये (बेव्स) हैं

47. (बेव्स) के बाद में फिर, फिर अभी और हम आगे (चल) चल पड़े - अब हम आ गए, वहाँ आ गए - क्वान्टा (quanta) पर आ गए - क्वान्टा किसे कहते हैं?

48. ऊर्जा काम करती है - (बेव्स) उसी का एक हिस्सा है - ऐटम (उ) उसका (मो) मोटा रूप है - पार्टिकल्स उसके मोटे रूप हैं

49. ईकोलॉजी (ecology) साइंस ने अब हमको ये बता दिया है - क्वान्टा विचारशील है - इसके अंदर जीवन है - (चे) चेतना है - हम ईकोलॉजी के सिद्धांतों को, जब हम लोगों को समझाते हैं, और हम लोगों को पढ़ाते हैं, तो कहते हैं - हर चीज़ विचार के हिसाब से जिंदा है

50. आदमी और पेड़ आपस में (रिश्तेदार) हैं - आदमी, आदमी (कार्बन डाइक्सिड गा) कार्बन डाईऑक्साइड (carbon dioxide) थूकता है, और पेड़ हमारे लिए ऑक्सीजन (oxygen) थूकता है

51. अब हमने ये निश्चय कर लिया है, कि जिसके बारे में लोग कहते थे - जड़ है - जड़ है - (सारा) दुनिया जड़ है - पदार्थवादी, पदार्थ विज्ञान कहता था सारी दुनिया जड़ है - अब हम उससे कहते हैं कि (को) कोई जड़ नहीं है - चेतन है

52. केवल गॉड (God) है इस दुनिया में - कोई क्वान्टा नहीं है, और कोई (मै) मैटर नहीं - अब हम वेदान्त की भाषा में (नए) नए (से) से बोलेंगे - और मित्रों अब हमारे अंदर हिम्मत है

53. हर आदमी से कहेंगे - (अकल) के हिसाब से हम चलेंगे, और हम (आपको) पदार्थ के हिसाब से चलेंगे, और लॉजिक (logic) के हिसाब से चलेंगे, और प्ली (plea) आपको देंगे, और आपके सामने फैक्ट्स (facts) (पे) पेश करेंगे

54. कि ब्रह्म - अर्थात विचारणा - अर्थात (चे) चेतना - अपनेआप में (जग) है - और (आ) आदमी जड़ नहीं है, और दुनिया (ज) जड़ नहीं है

55. ब्रह्मवर्चस - जो हमारी भावी वाली क्रिया पद्धति है - शिक्षण वाली पद्धति है - इसका बेस (base) बदल दिया है, इसीलिए नवीनतम है - और ये, चूँकि इसकी जीवात्मा प्राचीनतम है, जीवात्मा को हमने छुआ नहीं (है), जीवात्मा (को) हम रक्षा करेंगे - पोशाक हमने बदल दी है

56. आपकी शिक्षण पद्धति, जिसका आपको ग्राउन्ड जानना चाहिए, और विचार करना चाहिए कि आखिर हमको क्या पढ़ाया (जा रहा जाय) जा रहा है - और अगले दिनों, और भी बड़ी तैयारी के साथ हम क्या पढ़ाने जा रहे हैं

57. हम ब्रह्मविद्या पढ़ाने जा रहे हैं - और हम ऐसी ब्रह्मविद्या पढ़ाने जा रहे हैं, कि (जब हम जि) जिसके लिए हम हर एक से कहेंगे - आप नास्तिक हैं और आस्तिक हैं, हमें कोई (फरक) नहीं पड़ता - (आप आप) और आप हिन्दू हैं या मुसलमान हैं, हमारे लिए कोई (फरक) नहीं पड़ता

58. नास्तिक के लिए भी 'साइंस ऑफ सोल' उतनी ही ज्यादा सही, उतनी ही ज्यादा प्रभावशाली है, (ज) जितना कि भगवान के भक्त के लिए

59. हम हिन्दू और ईसाई के बीच में कोई (फरक) करने वाले नहीं - ऐसा, सारे विश्व के लिए, ब्रह्मविद्या का नवीनतम कलेवर, जिसको आप चाहें तो युग की नई सूझबूझ कह सकते हैं, युग का नया प्रतिपादन कह सकते हैं

60. आपकी संस्था जिस काम (को) शिक्षण करने के लिए चली है - बड़ा मज़बूत ग्राउण्ड - और दुनिया (की) कायाकल्प कर देने वाली - विचारों में क्रांति करने वाली दिशाधारा ले के चली है

61. ब्रह्मवर्चस का (द) दूसरा वाला हिस्सा - (ब्रह्मविद्या का सूक्ष्म) - ब्रह्मविद्या का पहला वाला हिस्सा (जो) हमने लिया है - ब्रह्म - और दूसरा वाला - दूसरा वाला हिस्सा (हमने मिला के चले हैं) - वर्चस

62. वर्चस क्या होता है? वर्चस कहते हैं बेटे ताकत को, शक्ति को कहते हैं - (व) वर्चस - ज्ञान की रक्षा अकेले नहीं हो सकती - ज्ञान अकेला जिंदा नहीं रह सकता - ज्ञान की रखवाली के लिए - ज्ञान की रखवाली के लिए, एक और चीज़ की ज़रूरत है, जिसका नाम - वर्चस

63. वर्चस के माने है - शक्ति - वर्चस के माने शक्ति - शक्ति हमको प्रत्येक क्षेत्र में ज़रूरत है - आध्यात्मिक क्षेत्र में भी ज़रूरत है

64. प्राचीनकाल की हमारी परम्परा - परम्परा में अध्यात्म के (साथ म) साथ में बल का समन्वय कर के रखा गया था

65. दोनों चीज़ें प्राचीनकाल में मिली-जुली चली आ रही थीं, मिली-जुली चली आ रही थीं, मिली-जुली चली आ रही थीं - ब्रह्मक्षत्र - ब्रह्मक्षत्र का वर्णन उपनिषदों में बार-बार आता है

66. ब्रह्म-क्षत्र - दोनों आपस में मिले हुए शब्द हैं - ब्रह्मक्षत्र किसे कहते हैं? ब्राह्मण और क्षत्रिय - अर्थात ज्ञान और बल - दोनों का समन्वय

67. दोनों (का) समन्वय की परम्परा जब तक रही, मज़ा बना रहा, मज़ा बना रहा - धर्म तंत्र और राज तंत्र, दोनों आपस में कंधे से कंधा मिला के चलते रहे

68. धर्म के दो पहलू हमेशा से, (हमारे) अनादिकाल से मिले हुए, जुड़े हुए (चल) चले आ रहे थे - भगवान जी, भगवान जी भी (य) यही, यही करते रहे - एक बार, एक हाथ से धर्म की स्थापना - एक (हाथ) से अधर्म का विनाश

69. जब तक हम समन्वय और संगति की बात नहीं कर सकते, तब तक कोई भी जिंदा नहीं रहेगा - न धर्म जिंदा रहेगा, न बल जिंदा रहेगा - (बल को ध) बल का रक्षण धर्म से होना चाहिए, और धर्म का रक्षण बल से होना चाहिए

70. मनुष्य के भीतर भगवान भी रहता है, (और) शैतान भी रहता है - (भगवान को) भगवान का हम ज्ञान से पूजन करेंगे - लोगों को उपदेश देंगे, ब्रह्मविद्या सिखाएंगे, रामायण की बात सिखाएंगे

71. अनुष्ठान की बात सिखाएंगे, जप की बात (करें) सिखाएंगे, सोहम् साधना की बात सिखाएंगे, खेचरी मुद्रा की बात सिखाएंगे

72. प्राचीन परम्परा है, और हम नवीन उसका रूप दे (रहे हैं) - नवीन हम रूप दे रहे हैं कि ज्ञान के साथ में बल का समन्वय, ज्ञान के साथ में बल का समन्वय आवश्यक है - शक्ति, शक्ति के बिना भक्ति की रक्षा नहीं हो सकती - शक्ति और भक्ति दोनों का समन्वय होना चाहिए

73. क्रांतिकारी बुद्ध - उसने एक ही (बोला वाक्य) और एक ही बात कही - बुद्धम् शरणम् गच्छामि - हम बुद्धि की शरण में जाते हैं, विवेक की शरण में जाते हैं, समझदारी की शरण में जाते हैं, इंसाफ की (समझ) में जाते हैं

74. एकांगी शिक्षण हमारे अध्यात्म में से अगर निकल गया होता, तो हमारा शौर्य, और हमारा पराक्रम, और हमारा तेज अक्षुण्ण बना रहता - हम ज्ञानवान रहते, लेकिन हम पराक्रमी भी रहते

75. पराक्रमी और ज्ञान की परम्परा हम देखते हैं अपने इतिहास को पलट कर के - प्राचीनकाल से, अनादिकाल से ले कर के अब तक चली आई थी

76. हमने देखा - एक हाथ में माला, और एक हाथ में भाला की नसीहत देने वाले (कु) कुछ लोग आए - कुछ संत आए

77. बगीचे में पानी का इंतजाम किया है - बेटा अच्छा किया है (तेने) - हमने बगीचे में खाद लगाया, ये (उस) उससे भी अच्छा किया - पर तू ये बता - (तेने) उसके नीचे से निराई-गुड़ाई का इंतजाम किया है कि नहीं किया है?

78. (तेने) रखवाली का कोई इंतजाम किया है? नहीं साहब, रखवाली का तो कोई इंतजाम नहीं किया - तो देख, मैं एक बताए देता हूँ - जब तेरी मक्की पक कर के आएगी, तो इस पे (कौए) आएंगे, (तो तो तो) तोते आएंगे, सुअर आएंगे, (सियार) आएंगे, (चमगादड़ आएंगे) - सब तेरे खेत को साफ कर जाएंगे

79. रखवाली का इंतजाम करना चाहिए - हमारे अंदर एक और भी माद्दा होना चाहिए जिसका नाम है - तेज - तेज अगर आपके भीतर नहीं है तो बेटे कुछ बात बनेगी नहीं

80. दया और क्षमा की शक्ति है तो सही, लेकिन तब है, जब उसके साथ-साथ में, जब उसके साथ-साथ में तेज जुड़ा हुआ हो - ब्रह्मतेज हमेशा से हमारी भारतीय संस्कृति की अनादि परम्परा रही

81. और इससे आगे, भविष्य में, भविष्य में, कभी भी अगर धर्म जिएगा, अध्यात्म जिएगा, शालीनता जिएगी, मनुष्य की विशेषताएँ जिएंगी, तो दोनों को मिला कर के जिएंगी

82. दोनों को मिला कर के हमको इस तरीके से चलना पड़ेगा - ये समन्वयात्मक नीति - ये कौन सी है? ये बेटे प्राचीनतम है, ये प्राचीनतम है

83. मूल सिद्धांत (की) दृष्टि से (ते) तेजस्विता का अध्यात्म में समावेश होना चाहिए - अध्यात्म-तेज - अध्यात्म-तेज - बेटे हमको रोज़ संघर्ष करना पड़ेगा

84. कौन से हैं चोर? ये हैं बेटे - एक का नाम है काम, एक का नाम क्रोध, एक का नाम लोभ, एक का नाम मद, एक का नाम मत्सर - ये ऐसे दुष्ट हैं, ऐसे दुष्ट हैं - (जब) हम आगे के लिए बढ़ने को (अ ये) चलते हैं, तो हमारी टांगें पकड़ के ऐसे घसीटते हैं

85. कैसे पिंड छूटेगा? बेटे वैसे ही पिंड छूटेगा जैसे कि पहले छूटा था - चक्र सुदर्शन ले कर के विष्णु भगवान आए थे - हमारा विष्णु भगवान, हमारा जीवात्मा, चक्र सुदर्शन ले कर के आएगा और जब इनको चैलेंज (challenge) करेगा - अच्छा ठहर जाओ बदमाशों

86. एक क्रिया के भीतर इस तरह की तन्मयता का समन्वय हो जाए - क्रिया और, क्रिया और, और विचार, इस, इस कदर से मिल जाए, इस कदर मिल जाएँ

87. आदमी का चिंतन, आदमी की रुचि, आदमी की इच्छा, और आदमी की क्रिया - (दोनों) को मिला दीजिए, कमाल हो जाएगा और गज़ब हो जाएगा - बेटे जो भी काम करेगा ऐसा काम बढ़िया होगा, ऐसा काम बढ़िया होगा

88. आलसी आदमी और प्रमादी आदमी - प्रमादी और आलसी को क्या करना पड़ेगा? अपनेआप से लोहा लेना पड़ेगा

89. गीता में आखिर नसीहत क्या है? उसको मैंने शुरू से आखिर तक पढ़ा - पहला वाला श्लोक (ही) जब पढ़ा तो मेरी आँख खुल गई - आ, ये मामला है, ये चक्कर है इसमें

90. धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र में, कर्म क्षेत्र में जो सेना इकट्ठी हुई है, उसका चक्कर है - धर्म क्षेत्र और कर्मक्षेत्र - ये हमारा जीवन - हमारे जीवन में कौरव और पाण्डवों का संघर्ष होता रहता है

91. शांति - अशांति से संघर्ष कर के जो (वि) विजयश्री के रूप में गले में डाली जाती है, वो शांति है - मित्रों, उस शांति को प्राप्त करने के लिए हमको क्या करना पड़ेगा? हमको (ते) तेजस की उपासना करनी पड़ेगी, ज्ञान और कर्म की उपासना करनी पड़ेगी

92. इन दोनों की संगति के बिना महाभारत (जी जी) जीता नहीं जा सकता, और जीवन के महाभारत में हमको इन दोनों (यो) योद्धाओं की समान रूप से आवश्यकता है

93. ज्ञान (को) भी हमको चाहिए, और विज्ञान भी हमको चाहिए - इन दोनों की उपासना का क्रम बहुत पुराने समय से चला आ रहा था

94. जिसने (श) शक्ति की उपासना की, उसने ज्ञान को तिलांजलि दे दी - जिसने ज्ञान की उपासना की, (उसने) उसने शक्ति की आवश्यकता नहीं समझी - ये अपूर्णता, ये अपंगता हमको अब दूर करनी (है), हमको अब दूर करनी है - व्यक्ति के जीवन में, आध्यात्मिक जीवन में

95. व्यक्तिगत जीवन की बात कहता हूँ - मैं तो सामाजिक जीवन की बात कहता हूँ - (ह) हर क्षेत्र की बात कहता हूँ - चलिए - अब मैं हर क्षेत्र की बात कहता हूँ - विज्ञान से ले कर के ज्ञान तक, हर क्षेत्र की बात कहता हूँ, कि इन दोनों में, दोनों शक्तियों का समन्वय आवश्यक है

96. आध्यात्मिक प्रगति के लिए भी भगवान की भक्ति की ज़रूरत है, प्रेम की ज़रूरत है, करुणा की ज़रूरत है, श्रद्धा की ज़रूरत है, दया की ज़रूरत है, सेवा की ज़रूरत है, संयम की ज़रूरत है - सब की - ध्यान की ज़रूरत है, लय की ज़रूरत है - सब की ज़रूरत है

97. लेकिन एक और की भी ज़रूरत है - उसका नाम है संकल्पबल, उसका नाम है प्राणबल - संकल्पबल अगर आपका नहीं हुआ तो आपका ये मन आपको चलने नहीं देगा - फिर आपका अनुष्ठान पूरा नहीं हो सकेगा - मन ये भागता फिरेगा

98. उन्नति की ओर चलने के लिए हमको जिस शौर्य, और जिस साहस, और जिस पराक्रम की ज़रूरत है - वो आध्यात्मिकता का अंग है

99. योग और तप की दो धाराएँ‌ हैं, और दोनों मिली हुई हैं - दोनों में से हम (किसी को) किसी को अलग नहीं कर सकते हैं

100. योग किसे कहते हैं? योग बेटे ध्यान को कहते हैं - योग किसे कहते हैं? भावना की दृष्टि से आत्मा और परमात्मा को जो हम मिलाने का संकल्प करते हैं, (उस उ) उस वृत्ति का नाम योग है

101. हम दोनों को मिलाते हैं - अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाते हैं - शरणागत होते हैं, समर्पण करते हैं, भक्ति भावना से ओतप्रोत हो जाते हैं - ये क्या चीज़ कह रहे हैं आप? ये बेटे मैं वो कह रहा हूँ, योग की बात कह रहा हूँ

102. इसको मैंने (अपने) शिक्षण पद्धति में ब्रह्मविद्या के नाम से कहा - ये योग है - ये भावनात्मक उछाल है, भावनात्मक उभार है

103. भावनाओं को हम परिष्कृत करेंगे, श्रेष्ठ करेंगे, भावनाओं को हम उज्ज्वल बनाएँगे, भावनाओं को (प) पवित्र बनाएँगे, भावना को कोमल बनाएँगे, (भावनाओं) को संवेदनशील बनाएँगे

104. ताकि हमारी भावनाएँ वैसी हो जाएँ जिसमें कि हम ब्रह्म से मिल सकने के लायक जीवात्मा (मिला) दें - हम (इतने) इतना कोमल अपनेआप को बनाएँगे जितना ब्रह्म

105. और हम अपनेआप को (इ) इतना गरम करेंगे जितना ब्रह्म - दोनों को एक ही क्वालिटी (quality) का (मिला) कर के हम साथ-साथ मिला देंगे, और हम दोनों जुड़ने की कोशिश करेंगे

106. पानी मिल सकता है दूध में - नहीं साहब ये मिला दीजिए - क्या मिला दें? ये पत्थर का चूरा - ये नहीं मिलेगा - ये पत्थर का चूरा नहीं मिल सकता - (पा) दूध में कुछ (मिलानी) है तो पानी मिल सकता है - लिक्विड (liquid) लिक्विड (liquid) में मिल सकता है

107. नहीं साहब, ऐसे ही कुछ मिला दीजिए आप तो - ये मिट्टी का तेल मिला दीजिए - बेटे मिट्टी के तेल की (परत) आ जाएगी ऊपर, पानी नीचे रह जाएगा - (नहीं) साहब मिला दीजिए - नहीं मिल सकता - (पा पानी हल्का) पानी भारी है और मिट्टी का तेल हल्का है - दोनों नहीं मिल सकते

108. ब्रह्म और जीव को मिलाने के लिए अपनी संवेदनाओं को, अपनी विचारणाओं को, अपनी मन:स्थिति को हम कोमल बनाते हैं, नम्र बनाते हैं, शीलवान बनाते हैं, चरित्रवान बनाते हैं, दिव्य बनाते हैं - इसका नाम योग है

109. योग से सिद्धि मिल जाएगी? नहीं, योग (से) सिद्धि नहीं मिलेगी - योग का एक और भाई है, (उस) भाई को ले कर के तू नहीं चलेगा, सिद्धि नहीं मिलेगी

110. उसका एक और सहायक है - उसको ले के चल - सहायक कौन सा? उसका नाम है तप - तप क्या चक्कर है? तप बेटे ये चक्कर है कि प्रत्येक अपनी वृत्ति को चैलेंज कर, चैलेंज कर, चैलेंज कर

111. शरीर हमारे ऊपर हावी होता है और ये कहता है - शरीर की मर्जी से मन को चलना पड़ेगा - नहीं - (अब हम) अब हमने ये कसम खाई है कि हमारा शरीर, हमारा शरीर हमारे मन की आज्ञा पे चलेगा

112. पेट को हमारा हुकुम मानना पड़ेगा - ये क्या चीज़ है? ये, ये बेटे कड़ाई है, ये (अन) अनुशासन है, ये (डिसिप्लिन discipline) है - आप कहना मानो मेरा

113. तप का अर्थ क्या है? तप का अर्थ है (अनु) अनुशासन - प्रत्येक चीज़ के ऊपर - अपनी, अपनी हर चीज़ के ऊपर (अनु) अनुशासन

114. तप में हम तपाते हैं - प्रत्येक चीज़ को हम (चै) चैलेंज करते हैं - चैलेंज करते हैं - सोने को चैलेंज करते हैं - जागने को चैलेंज करते हैं - हम मौन रहते हैं - जमीन पे सोने की कोशिश करते हैं - जाने कितनी बातें - (उ) (उपास) करते हैं - ब्रह्मचर्य (से) से रहते हैं

115. लेकिन जब तक इसकी ये परिस्थिति बनी हुई है कि हमारे मन को, और हमारे जीवात्मा को, और हमारे सिद्धांतों को चैलेंज करता है - तब तक हम इसकी पिटाई करेंगे

116. ये क्या चीज़ है? तप - तप किसे कहते हैं? (कड़क) को कहते हैं - तप किसे कहते हैं? जीवट को कहते हैं - तप किसे कहते हैं? हिम्मत को कहते हैं - तप किसे कहते हैं? (संघर्ष को कहते हैं)

117. किससे संघर्ष करना पड़ता है? अपनेआप से संघर्ष करना पड़ता है - बेटे यही तो है - यही तो है संघर्ष - (इसी) इसी का नाम तो आध्यात्मिक जीवन है

118. बहिरंग जीवन में अपनी (म) मनोवृत्तियों से हमको संघर्ष करना पड़ता है - कौन-कौन सी वृत्तियाँ हैं? मैंने कल बताया था न (आपने) - तीन चुड़ैलें ऐसी हैं - दो तो ये थे भूत - कौन से बताए भूत? आलस्य और प्रमाद

119. कौन-कौन सी हैं तीन? - (जिसको) मैंने आपसे बताया था - वासना एक - तृष्णा दो - अहंता तीन - ये हमारी जिंदगी के मूल्यवान रस को सब पी (जाती)

120. हमारे पास सामर्थ्य थी - शरीर था हमारे पास, बल था, पराक्रम था - पर हमारी (वासनाओं) ने खा लिया - जीभ ने खा लिया - कामेंद्रिय ने खा लिया - आँखों ने खा लिया - (विलासिता) ने खा लिया

121. अगर हमने इंद्रियों के सुराखों में से अपनी शक्तियों को खर्च न किया होता तो मज़ा आता - हमारी आँखें चमकती होतीं (टॉर्च जैसी) - हमारी वाणी कड़कती होती बिजली जैसी - और हमारे हाथ (फड़कते) होते

122. जिसका नाम है तृष्णा - बेकार की चीज़ें - जिनकी हमें कोई ज़रूरत नहीं थी - जिनके बिना हमारा कोई काम रुका हुआ नहीं था - हाय पैसा, हाय पैसा - तो (क) क्या करेगा पैसा?

123. किस चिज़ की कमी है तेरे पास? (रो) रोटी (के) लिए गुंजाइश है? हाँ रोटी तो मिलती है - और कपड़ा? कपड़ा भी मिलता है - रहने को मकान है - तो फिर काहे की तैने कमी है? नहीं महाराज जी वो अमीर तो बना ही नहीं, जायदाद तो हुई नहीं, मकान तो बना ही नहीं, मोटर तो आई नहीं

124. इन (त) तृष्णाओं ने सारी हमारी इच्छाशक्ति, सारी हमारी आकांक्षा, (सारे) हमारा मनोबल - इस तरीके से चूसा, ऐसे चूसा, ऐसे चूसा

125. कैसी कीमती (अकल) थी - ये कितना बड़ा कम्प्यूटर था हमारे पास - इस कम्प्यूटर का हमने ठीक तरीके से इस्तेमाल किया होता तो गज़ब कर देते - कम्प्यूटर हमारी (अकल)

126. हमारी जीवात्मा - जीवात्मा (किसी भी) भीतर था - जो हमारे भीतर से कोई कहता था - भगवान कहता था - श्रेष्ठ बन, ऊँचा उठ, ऊँचा उठ, आगे बढ़, आगे बढ़, ऊँचा उठ, ऊँचा उठ, आगे बढ़

127. आत्म-सम्मान के लिए कह रहा था बेटे - आत्म-सम्मान की बात - आत्म-गौरव की बात - आत्म-निष्ठा की बात मैं कह रहा था

128. ये अहंता, अगर हमारे (आत्माभिमान) को, आत्म-गौरव को, आत्म-वर्चस्व को बढ़ाने में काम (आ) आती होती तो कैसा अच्छा होता

129. दो - आलस्य और प्रमाद - और तीन, तीन - अहंता, तृष्णा, वासना - अब ये हमको खाए जा रही हैं - परलोक में क्या होगा? परलोक की हम नहीं जानते - हम तो इसी की (ज म की) बात कहते हैं - मैं तो चर्चा हमेशा व्यावहारिक जीवन की करता हूँ

130. मैं तो जीवन की बात कहता हूँ - व्यवहार की बात कहता हूँ - दैनिक जीवन में काम आने वाली समस्याओं पे प्रकाश डालता हूँ - उससे फुर्सत मिलेगी, तब मैं शंकर जी की बात बताऊँगा

131. ब्रह्मज्ञान की (बता) - यही ब्रह्मज्ञान है - और (यही) तप बताइए - बेटे यही तप (है) - यही तप है कि (हमको) व्यावहारिक जीवन में किस तरीके से अपनेआप के ऊपर हम काबू पा सकते हैं

132. अपनी वो (खु) खुराफ़ातें - जो हमारे शरीर पर हावी होती हैं, हमारे दिमाग पर हावी होती हैं, हमारे अंत:करण पे हावी होती हैं - उनसे हम कैसे टक्कर मार सकते हैं, हम कैसे लोहा ले सकते हैं

133. हम आपको शौर्य सिखाते हैं, और पराक्रम सिखाते हैं, और तेज सिखाते हैं, और लड़ना सिखाते हैं, और संघर्ष सिखाते हैं - इसका नाम क्या है? तेज

134. संस्कृत में इसका नाम है - तेजस - तेजस - (इसका) नाम है - वर्चस - वर्चस - हम क्या सिखाते हैं? बेटे, व्यक्ति निर्माण के लिए, समाज निर्माण के लिए, राष्ट्र निर्माण के लिए, धर्म और संस्कृति के विकास के लिए जिन दो ताकतों की ज़रूरत है, उन ताकतों को मुहैया करने के लिए हम कोशिश करते हैं - एक ज्ञान और एक विज्ञान

135. हम क्या पढ़ाएंगे? हम ब्रह्मविद्या पढ़ाएंगे - हम वो पढ़ाएंगे - साइंस ऑफ़ सोल (science of soul) - कि हमारा जीवात्मा कहाँ से आता है, और कहाँ चला जाता है - क्यों, क्यों (उन्नति) से हम वंचित हो जाते हैं, और क्यों (हम ए) अंधकार में भटकते रहते हैं?

136. रोशनी हमको कैसे मिले ताकि हमारी जिंदगी - हीरे जैसी जिंदगी, मोती जैसी जिंदगी, सोने जैसी जिंदगी, पारस जैसी जिंदगी, कल्पवृक्ष (जै) जैसी जिंदगी, कामधेनु जैसी जिंदगी, बेहतरीन से बेहतरीन जिंदगी जो भगवान ने हमारे लिए सबसे उपहार के रूप में दी है - हम इसको कैसे ठीक बना सकते हैं? - इसका नाम ब्रह्मविद्या है - (हम) ब्रह्मविद्या का शिक्षण करेंगे - हम बेटे ब्रह्म(ते)तेज का शिक्षण करेंगे

137. असली ताकत (आ) आदमी की हिम्मत वाली ताकत (है) - सत्य में हज़ार हाथी के बराबर बल होता है

138. बेटे मैं ये कहना चाहता हूँ कि - रूहानी बल - आत्मा का बल - संकल्प का बल इतना (हमारा) प्रखर, और इतना प्रचण्ड होना चाहिए - जिससे हम (अपनी) व्यक्तिगत जीवन के दुश्मनों को निपट सकने में समर्थ हो सकें

139. अपने स्वभाव और (आ आ) आदतों में शामिल दुश्मनों को हम (ल ग) मिटाने में समर्थ हो सकें - अपने ऊपर छाए हुए कुसंस्कारों को हम चुनौती दे सकें

140. मारिए टक्कर उसमें - किसमें? अपनी अहंता से ले कर के तृष्णा तक - वासना से ले कर के, और (ये) आलस्य और प्रमाद तक

141. बेटे मैं (वो ही) चाहता हूँ कि ब्रह्मक्षत्र - ब्रह्मक्षत्र - पराक्रम, (ए) और सम्वेदना - दया (दया की क), करुणा, कोमलता, क्षमा, भक्ति - मैं चाहता हूँ ये हमारे दिव्य, दिव्य संस्कार जिंदा रहें

142. हर आदमी के भीतर सोया हुआ भगवान सत्यम के रूप में, शिवम के रूप में, (सौ) सुन्दरम के रूप में जिए और जगे

143. हर आदमी की जीवात्मा सत्यम का (अनु) अनुभव करे, (चित्) शिवम का अनुभव करे, सुन्दरम का अनुभव करे, सत् का अनुभव करे, चित् का अनुभव करे, आनन्द का अनुभव करे

144. एक नई पीढ़ी बनाता हूँ, जिसका नाम है - ब्रह्मक्षत्र - ब्रह्मक्षत्र नई पीढ़ी बनाता हूँ - आपको मैं ब्राह्मण बना चाहता हूँ और क्षत्रिय बनाना चाहता हूँ - आपको मैं तपस्वी बनाना चाहता हूँ और योगी बनाना चाहता हूँ

145. आपको मैं ज्ञानी बनाना चाहता हूँ और विज्ञानी बनाना चाहता हूँ - आपको मैं दयालु - आपको मैं अध्यात्मवादी बनाना चाहता हूँ और (ध) धर्मात्मा बनाना चाहता हूँ - आपको दिव्य संस्कारवान बनाना चाहता हूँ (और) कर्तव्यनिष्ठ बनाना चाहता हूँ - दोनों चीज़े बनाना चाहता हूँ

146. इसीलिए अनादिकाल की, प्राचीनकाल की, भारतीय परम्परा और भारतीय संस्कृति का नवीनतम संस्करण - हम अपने ढंग से, अपने (युग की आवश्य) युग की आवश्यकतानुसार, अपने जमाने (के) व्यक्ति की (अकल) को देखते हुए, अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए, अपने समय के उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए

147. संविधान (हमारे) हमारे देश में (चौबीस बा) चौबीस बार बने हैं - पहला (बा) संविधान मनु का है - मनु ने पहला, सबसे पहला दुनिया का, मनुष्य जाति के लिए, संविधान बनाया - मनुस्मृति के रूप में

148. इस समय का संविधान - जो आजकल लागू होता है - ये याज्ञवल्क्य स्मृति है - याज्ञवल्क्य स्मृति का (मिताक्षरा) टीका

149. आज के युग के अनुरूप, आज के व्यक्ति के अनुरूप, आज की समस्याओं के अनुरूप, आज की आवश्यकता के अनुरूप - (हम) उन प्राचीनतम, उन प्राचीनतम दो धाराओं का - जिनको हम गंगा (और) यमुना कह सकते हैं

150. ब्रह्म और क्षत्र - ब्रह्मविद्या और ब्रह्मतेज - इन दोनों (के) समन्वयात्मक प्रणाली और शैली के हिसाब से, हम शिक्षण की नई धारा प्रवाहित करते हैं - (नई नया) नया संगम शुरू करते हैं - नया समन्वय शुरू करते हैं - ब्रह्मवर्चस के रूप में

151. आजकल तो मैं (आपकी) इसकी भूमिकाएँ समझा रहा हूँ - (इसकी) क्रिया पद्धति, साधना पद्धति, इसका व्यवहार, इसका अध्यात्म - दोनों ही (मैं) समझाने की कोशिश करूँगा

152. ब्रह्मवर्चस की (सा) साधनाओं के संबंध में, और उपासनाओं के संबंध में - जीवन में हम ब्रह्मवर्चस के सिद्धांतों को कैसे समाविष्ट करें? और भगवान की भक्ति के नाम पर, योग के नाम पर, ध्यान के नाम पर, जप के नाम पर - हम किस तरीके से क्रियान्वित करें - दोनों ही पद्धतियों के अनुसार (मैं) कोशिश करूँगा आपको ब्रह्मवर्चस विज्ञान को समझाने की