निर्गुण भक्ति की प्रेममार्गी शाखा / सूफी काव्य
निर्गुण भक्ति धारा की दूसरी शाखा उन संतों की है जो ईश्वर को प्रेम का स्वरूप समझ कर सिर्फ मनुष्य से प्रेम पर जोर देते हैं। भक्ति की इस धारा में प्रमुख रूप से इस्लाम धर्म को मानने वाले सूफ़ीलोग आते हैं। सूफ़ी शब्द की व्युत्पत्ति “सूफ़” से हुई है। “सूफ़” का अर्थ है- ऊन। ऊनी चोगा पहनने वाला सूफ़ी होता है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि “सफ़ा” (पवित्र, साफसुथरा) होने के कारण अरबीसंत सूफ़ी कहलाए। दूसरी तरफ कुछ ने सफ़ (पंक्ति; line) में सूफ़ी को खोजा है [यानी वो व्यक्ति जिसे कयामत के दिन अल्लाह के सामने सबसे आगे पंक्ति में खड़ा किया जाएगा], तो कुछ ने सोफिया (ज्ञान) में। सूफ़ शब्द अरबी भाषा का है और सूफ़ी शब्द फारसी का है।
सूफ़ी शब्द की शब्दकोश में परिभाषा यह है: ऊनी कपड़े पहनने वाला, संत, पवित्र, संसार के प्रेम से मुक्त होकर ईश्वर प्राप्ति के लिए साधना करने वाला, सूफिया संप्रदाय का अनुयायी (मानने वाला), सभी धर्मों से प्रेम करने वाला [ईसा का बपतिस्मा करने वाले संत जॉन को भी सूफ़धारी बताया गया है..जॉन 1:29-33।]
शुरू-शुरू में सूफ़ी ईरान के रास्ते भारत आए इस्लाम धर्म के प्रचारक थे लेकिन वे मुल्लावाद (कट्टरपंथ ; fundamentalism) के विरोधी भी थे। उन्होंने सादा जीवन और निश्चल ईश्वर के प्रेम पर जोरदिया। सूफ़ियों के अनुसार पैगंबर मुहम्मद साहब को ईश्वर से दो प्रकार की वाणियाँ प्राप्त हुई थी- इल्म-ए-सकीना (जो कुराण शरीफ में है) और इल्म-ए-सीना (जो दिल में है)। सूफ़ी दर्शन पर ईसाई धर्म, बोद्ध धर्म, यूनानी आदि धर्मों का प्रभाव रहा है। भारत में सूफ़ी दो प्रकार के थे:
1. इस्लाम के सिद्धांत पर चलकर धार्मिक नेता का मान पाने वाले संत
2. इस्लाम की सीमा में रहकर अन्य भारतीय धर्मों, संस्कृतियों, लोक जीवन को साथ लेकर साहित्य रचना करने वाले कवि। इन संत कवियों ने मुसलमान और हिंदू लोगों के बीच परस्पर विश्वासजगाने का काम किया।
सूफ़ियों ने ईश्वर को अलौकिक (super natural) और सर्वशक्तिमान (almighty) माना है। सूफ़ी आत्मा को परमात्मा का अंश (हिस्सा) मानते हैं और मानते हैं कि हर जीवित चीज़ में ईश्वर है। वेईश्वर को “हक़” (अरबी: बनाने-वाला) कहते हैं। वे खुद को अन-अल-हक़ (मैं ईश्वर हूँ) कहते हैं। सुफ़ियों के काव्य में जीवात्मा रूपी प्रेमी परमात्मा रूपी प्रेमिका को पाने के लिए अनेक प्रकार के कष्टउठाता है, तब उनको पाता है, और उसमें लीन (खो) हो जाता है।
सूफ़ी परमात्मा को प्रेम का स्वरूप मानते हैं और उसे प्रेम द्वारा पाने की बात कहते हैं । इन कवियों ने लोक -प्रचलित प्रेमाख्यान (love narratives) चुनकर उन्हें इस प्रकार से काव्य-रूप दिया कि लोग प्रेम के महत्व को पहचाने और प्रभु -प्रेम में लीन हों । सूफ़ी फकीरों ने हिंदू साधुओं के रहन सहन, रंग-ढ़ंग, भाषा और विचार-शैली को अपना कर अपने ह्रदय की उदारता का परिचय दिया । अपनी प्यार भरी वाणी से भारतीय जीवन को गहराई से महसूस किया। आतंकित और पीड़ित जनता के घावों को मरहम लगाने का कार्य करके उन्होंने हिंदू-यवन के भेद-भाव को दूर करने में योग दिय। [यवन = घुड़सवार आक्रमणकारी]
प्रमुख सूफ़ी कवि :
इस शाखा के प्रतिनिधि (Representative) कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं । अन्य कवि और उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं :-
मलिक मुहम्मद जायसी : आखिरी कलाम, अखरावट,चित्ररेखा, मसलानामा, कहरनामा,पद्मावत । इनकी भाषा अवधि है ।
शेख कुतुबन : मृगावती ।
मंझन :मधुमालती ।
मुल्ला दाऊद : चंदायन (चंदावत)
उसमान : चित्रावली
शेखनबी : ज्ञानदीप
कासिमशाह : हंसजवाहिर
नूरमुहम्मद : इन्द्रावती, अनुराग बांसुरी
असाइत : हंसावली
पुहकर : रसरतन
जान कवि : कनकावती, मधुकर मालती
जलालुद्दीन : जमाल पचीसी
ख्वाज़ा अहमद : नूरजहां (भाषा मनसवी शैली)
नसीर : प्रेम-दर्पण
शेख रहीम : प्रेम-रस
मधुकर : मधुमालती
जान : रत्नावली
रंजन : प्रेमवन जीवन
मृगेन्द्र :प्रेम पयोनिधी
ईश्वरदास : सत्यवती कथा
दामोदर : लखमनसेन पद्मावती कथा
गणपति(आलम) : माधवानल कामकंदला
नरपति व्यास : नल-दमयंती
दु:खहरणदास : पहुपावती
प्रमुख प्रवृत्तियाँ :
1. इस धारा के काव्य फारसी की मसनवी शैली में लिखे गए हैं , जिनमें मुहम्मद साहब का गुणगान (Praise), तत्कालीन बादशाह की प्रशंसा और गुरु परम्परा का परिचय दिया जाता है ।[मसनवी एक अरबी शब्द मसनवा से बना है जो के एक प्रकार के दो पंक्तियों के छ्न्द का नाम है जिसमें दोनों मिसरे तुक में होते हैं]
2. इन्होंने अपनी कथाओं का आधार हिंदु जन-जीवन में प्रचलित प्रेम-कहानियों को बनाया । इनमें हिंदु समाज का बहुत ही स्वाभाविक व वास्तविक चित्रण मिलता है ।
3. लौकिक-प्रेम कथाओं द्वारा ही अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति होने के कारण इन कवियों में रहस्यवाद की भावना आ गई है । इनका रहस्यवाद सरस और भावनात्मक है । इन्होंने आत्मा को पुरुष और परमात्मा को नारी के रूप में चित्रित किया है । साधक के मार्ग की कठिनाइयों को नायक के मार्ग की कठिनाइयों के रूप में चित्रित किया गया है । सूफ़ी शैतान को आत्मा-परमात्मा के मिलन में बाधक समझते हैं और इस शैतान रूपी बाधा (obstacle) को सच्चा गुरु ही दूर कर सकता है । सूफ़ी लोगों के के अनुसार ईश्वर एक है, आत्मा (बंदा) उसी का अंश है । आत्मा ईश्वर से मिलना चाहती है।
4. प्रेम को दिखाने के लिए इन्होंने भारतीय और फारसी दोनों शैलियों को अपनाया । पद्मावत में गर्मी के मौसम का वर्णन, नगर-वर्णन, समुद्र-वर्णन, विरह-वर्णन, युद्ध-वर्णन आदि भारतीय महाकाव्य शैली में लिखे गए हैं । इन प्रेम कहानियों में नायक को नायिका की प्राप्ति के लिए कोशिश करते हुए दिखाया गया है , यह भी फारसी साहित्य का प्रभाव है । साथ ही नागमति तथा पद्मावती जैसी नायिकाओं के प्रेम चित्रण द्वारा भारतीय-शैली का इस्तेमाल किया गया है। । इस प्रकार सूफ़ी प्रेमाख्यानों में भारतीय तथा ईरानी काव्य-धाराओं का संगम हुआ है ।
5. यद्यपि कवियों का ज्ञान स्वाध्याय (खुद से पढ़कर) द्वारा पाया हुआ न होकर, सुना-सुनाया अधिक है । लेकिन इसमें सूफ़ी सिद्धांत दिखाई देता है।
6. सूफ़ी कवियों का मुख्य केंद्र अवध था । इसलिए अवधी भाषा इनके काव्य भाषा थी । नूरमुहम्मद ने ब्रजभाषा का भी प्रयोग किया । अरबी और फारसी के शब्द भी इनके काव्यों में बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होते हैं । जायसी की अवधी में गाँव की अवधी का रूप मिलता है ।
7. सूफ़ी साहित्य को प्रतीकात्मक काव्य (allegorical poetry) माना जाता है । इनकी अधिकांश रचनाओं में दोहा-चौपाई शैली का प्रयोग मिलता है । इन छंदों के अलावा कहीं-कहीं सोरठा, सवैया और बरवै छंद का प्रयोग भी मिलता है ।
8. प्रेमाख्यान काव्य-प्रधान शैली में रचे गए हैं और प्रबंध काव्य अधिक है ।
9. प्रेमाख्यान काव्य में कथानक को गति देने के लिए कथानक में रुढ़ियों का प्रयोग किया गया है । ये कथानक रुढ़ियाँ भारतीय साहित्य परम्परा के साथ-साथ ईरानी-साहित्य परम्परा से भी ली गई हैं । जैसे चित्र-दर्शन , शुकसारिका (तोता-मैना का मनुष्य की बोली बोलना) आदि द्वारा नायिका का रूप श्रवण कर नायक का उस पर आसक्त होना, मंदिर में प्रिय युगल का मिलन आदि भारतीय कथानक रुढ़ियाँ हैं तथा प्रेम-व्यापार में परियों और देवों का सहयोग, उड़ने वाली राजकुमारियाँ आदि ईरानी साहित्य की कथानक रुढ़ियाँ हैं ।
सभी प्रेमाख्यानों में प्रधानत: श्रृंगार के दोनों पक्षों संयोग तथा वियोग का चित्रण सुंदर रूप में हुआ है । परन्तु वियोग पक्ष का वर्णन अधिक मार्मिक है । पद्मावत में वीररस मिलता है