आदि काल
समय: 1400 ई से पहले
नामकरण (naming):
वीरगाथाकाल >> > पंडित रामचंद्र शुक्ल
सिद्ध-सांमत युग >> > राहुल सांकृत्यायन
संधिकाल-चारणकाल >>> रामकुमार वर्मा
आदिकाल >>> आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
अपभ्रंश काल >>> बच्चन सिंह
मुख्य प्रवृत्तियाँ:
सिद्ध साहित्य
सिद्ध का अर्थ है जिसने कुछ प्राप्त कर लिया है। यानी जिसका सन्यास पूरा हो गया हो।
बौद्ध धर्म ®हीनयान, महायान, मंत्रयान, सहजयान, वज्रयान संप्रदाय
सिद्धों का संबंध मंत्रयान और वज्रयान से है।
सिद्ध पंच मकार (मांस, मत्स्य, मदिरा, मुद्रा, मैथुन) का प्रयोग करते थे।
84 सिद्ध थे।
उनके नाम के साथ आदरसूचक (honorific) ’पा’ जुड़ा होता था।
भाषा : सिद्धों की भाषा अर्ध मागधी अपभ्रंश से प्रभावित। इसे संधा भाषा भी कहते हैं। चर्यापदों की भाषा अवहट्ट थी।
सरहपा (हिंदी के प्रथम कवि कहे जाते हैं, आठवीं सदी के थे)
अन्य कवि: शबरपा, लुईपा, डोम्भिया, कण्हपा, कुक्कारिपा, तिल्लोपा, भुसुकपा, दारिकपा, टंटिपा, ठेंठण
महत्वपूर्ण ग्रंथ: सरहपा का दोहा कोश, सहरपा के 32 ग्रंथ हैं।
शैली (style): दोहा, चौपाई, चर्यागीत (एक प्रकार के गीत जो अनुष्ठानों (ceremonies) के समय गाये जाते हैं) आदि छंद
सरहपा के साहित्य का एक दोहा
भोग में निर्वाण (somehow like Bohemian way of living)
खाते पीते सुरत रमंते। आलिकुल बहुलहु चक्र फिरंते।
एवं सिद्धि जाइ परलोकहिं। माथे पाद देइ भवलोकहिं।
जहँ मन पवन न संचरै, रवि शशि नाहिं प्रवेश।
तहँ मूढ़! चित्त विश्राम करु, सरह कहेउ उपदेश।
आदि न अंत न मध्य तहँ, ना भव ना निर्वाण।
एहु सो परम महासुख, ना पर ना अप्पान।
ठेंठन के चर्यागीत का समसामयिक (contemporary) हिंदी में अनुवाद:
मेरी कुटिया सघन बस्ती के बीच है, पर पड़ोसी नहीं है।
पतीली में चावल का एक भी कण नहीं बचा है, पर प्रेमी हमेशा दरवाज़े पर दस्तक देते रहते हैं।