छायावाद हिन्दी कविता के एक विशेष युग में पुरानी कविता के विरोध में निकला हुआ एक विशेष भावानात्मक दृष्टिकोण, एक विशेष दार्शनिक अनुभूति और एक विशेष शैली है, जिसमें लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक का तथा अलौकिक प्रेम के सहारे लौकिक अनुभूतियों का चित्रण होता है। ऐसे काव्य में प्रकृति को मानवीरूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें गीति-तत्च की प्रमुखता रहती है।
छायावादी कविता की शुरूवात प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान 1916-20 में हुई थी। सबसे पहले छायावाद शब्द का इस्तेमाल मुकुटधर पाण्डेय ने “शारदा” नामक एक पत्रिका में सन 1920 में किया था। लेकिन यह नाम उन्होंने छायावादी काव्य की अस्पष्टता (छाया-shadow) के कारण दिया था। छायावादी कविता उस समय के तत्कालीन स्वच्छंदतावादी आंदोलनों (Romantic movements) से जुड़ी हुई थी। यह काव्य स्वच्छंद, कल्पनापूर्ण, और भावुक है। भाषा, भाव, छंद, शैली और अलंकार की दृष्टि से इसका पुरानी कविता से कोई मेल नहीं है। वस्तु निरूपण की जगह अनुभूति निरुपण को स्थान मिला। छायावाद को स्वच्छंदतावाद भी कुछ लोग कहते हैं। आलोचक नगेन्द्र छायावाद को स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह माना है। इसका मतलब है – उपयोगिता के प्रति भावुकता का, नैतिक रूढ़ियों के प्रति मानसिक स्वतंत्रता का और परंपराबद्ध काव्य के प्रति कल्पना का विद्रोह। आलोचक नामवीर सिंह छायावाद को व्यक्तिवाद (individualism) की कविता कहते हैं जिसका आरंभ व्यक्ति के महत्व को स्वीकार करने और करवाने से हुआ है।
जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख स्तंभ हैं।
“संसार के प्रत्येक पदार्थ में आत्मा के दर्शन करके तथा प्रत्येक प्राण में एक ही आत्मा की अनुभूति करके इस दर्शन और अनुभूति को लाक्षणिक और प्रतीक शैली द्वारा व्यक्त करना ही छायावाद है।"
आधुनिक काल के छायावाद का निर्माण भारतीय और यूरोपीय भावनाओं के मेल से हुआ है, क्योंकि उसमें एक ओर तो सर्वत्र एक ही आत्मा के दर्शन की भारतीय भावना है और दूसरी ओर उस बाहरी स्थूल जगत के प्रति विद्रोह है, जो पश्चिमी विज्ञान की प्रगति के कारण अशांत एवं दु:खी है। सन् 1918 ई० के आसपास दिवेदी युग की काव्यधारा के बीच रीतिकालीन काव्यप्रवृत्तियों के विरोध में इस नवीन काव्यधारा का जन्म हुआ। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के मतानुसार पुराने ईसाई संतों के छायाभास (फैटज्मैंटा) तथा यूरोपी काव्यक्षेत्र में प्रवर्तित आध्यात्मिक प्रतीकवाद (सिंबालिज्म) के अनुकरण पर रची जाने के कारण बंगाल में ऐसी कविताएँ 'छायावाद' कही जाने लगीं । इस धारा का हिंदी काव्य अँगरेजी के रोमाटिक कवियों तथा बँगला के रवींद्र काव्य से प्रभावित या । अतः हिंदी में भी इस नई काव्यधारा के लिये 'छायावाद' नाम प्रचलित हो गया ।
छायावादी कविता का एक उदाहरण। सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" के कविता संग्रह “अनामिका” से -
खुला आसमान
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़--
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले
जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले,
तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के सधे बाण!
छायावादी काव्य की मुख्य प्रवृत्तियाँ
ü आत्मनिष्ठ काव्य: छायावादी कविता मूल रूप से आत्मनिष्ठ (व्यक्तिनिष्ठ- subjective) है। छायावादी कवियों ने पहले की कविता की विषयनिष्ठा (objectivity), इतिवृत्तात्मकता [महाकाव्य और प्रबंध काव्य जिनमें किसी कथा का वर्णन होता है] एवं स्थूलता (coarseness) के स्थान पर व्यक्तिनिष्ठा और निजी अनुभूतियों को प्रमुखता दी है। छायावादी कवि सभी बंधनों से मुक्त होना चाहता है। कवियों ने अपने सुख-दुख, आशा-निराशा, उतार-चढ़ाव आदि को खुलकर बताया है।
ü नारी बोध: छायावादी कविता में नारी को सभी बंधनों से मुक्त करने की आवाज़ उठाई गई है। उसे समाज में सम्मानजनक स्थान देने का प्रस्ताव रखा गया है। आदिकाल की कामिनी (amorous woman) और रीतिकाल की भोग्या (an object of experience) के रूप में वर्णन से स्वतंत्र कर इन कवियों ने नारी की इच्छा-आकांक्षाओं, सुख-दुख, अधिकारों आदि के बारे में बताया है।
ü प्रकृति वर्णन: छायावादी कविता में प्रकृति का वर्णन खूब हुआ है। पहले की कविता में आमतौर पर प्रकृति को अलंकार या उद्दीपन रूप में ही दिखाया गया था। किन्तु छायावादी कविता में प्रकृति को एक स्वतंत्र सत्ता और चेतन इकाई के रूप में दिखाया गया है। इसलिए छायावादी काव्य को प्रकृति काव्य भी कहा जाता है। छायावादी कवि मानते हैं कि प्रकृति सौंन्दर्य नारी सौन्दर्य से भी बेहतर है। छायावादी कवियों ने प्रकृति के कोमल और कठोर दोनों रूपों का वर्णन किया है। यह कुछ हद तक स्वच्छंदतावादी नारे “प्रकृति की ओर लौटो” (Back to Nature) से जुड़ा हुआ था।
ü सौन्दर्य बोध: छायावादी कवियों की दृष्टि सौन्दर्यवादी है। इन कवियों ने सौन्दर्य (Beauty) को चेतना (consciousness) का उज्ज्वल वरदान माना है। उन्होंने मानव सौन्दर्य के शारीरिक पक्ष की अपेक्षा उसके भावनात्मक पक्ष पर बल दिया है।
ü वेदना और करुणा का वर्णन: छायावादी कविता में वेदना (pain) की अभिव्यक्ति करुणा और निराशा के रूप में हुई है। हर्ष-शोक,हास-रुदन, जन्म-मरण,विरह-मिलन आदि से पैदा हुई विषमताओं से घिरे हुए मानव-जीवन को देखकर कवि हृदय में वेदना और करुणा उमड़ पड़ती है। कवि की वेदना में मुक्ति की आकुलता (restlessness) दिखाई देती है।
ü देश प्रेम और राष्ट्रीय भावना: छायावादी कवि तत्कालीन भारत के स्वाधीनता आंदोलन से परिचित थे और उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से इसमें योगदान दिया है। इन कवियों की राष्ट्रीय भावना संकुचित (narrow) नहीं है, बल्कि वे इसके माध्यम से मानवतावाद (humanism) और लोकमंगल (public welfare) का संदेश भी दे रहे थे।
ü प्रतीकात्मकता: छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषता प्रतीकात्मकता (symbolism) है। प्रकृति पर हर स्थान पर मानवीय भावनाओं को दिखाया गया और उसका भावनात्मक रूप में वर्णन किया गया। इस तरह से प्रकृति स्वतंत्र अस्तित्व और व्यक्तित्व से अलग हो गई और उसमें प्रतीकात्मकता का उपयोग किया गया। जैसे सुख के लिए फूल, दुख के लिए काँटे, प्रफुल्लता के लिए उषा (dawn/daybreak) और उदासी के लिए शाम का इस्तेमाल किया गया है।
ü गेयता: छायावादी काव्य आमतौर पर गेय (lyrical) काव्य है। कवि कविता के साथ-साथ संगीत का भी ज्ञान रखता है। इस कविता में गीति-काव्य के सभी गुण हैं।
ü रहस्यवाद: छायावादी काव्य रहस्यवाद (mysticism) से जुड़ा है क्योंकि इन कवियों का मन अज्ञात सत्ता की प्रति आकर्षित था। वह प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में इसे खोजता है।
प्रमुख छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ:
जयशंकर प्रसाद: उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, प्रेम-पथिक, कानन-कुसुम, आँसू, झरना, लहर, कामायनी, करुणालय, महाराणा का महत्व, अयोध्या का उद्धार, वभ्रुवाहन
सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’: परिमल, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, गीतिका, नए पत्ते, अर्चना, आराधना, सरोज-स्मृति, राम की शक्तिपूजा
सुमित्रा नंदन पंत: वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवानी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, उच्छ्वास, उत्तरा, शिल्पी, स्वर्ण-धूली, रजतशिखर, वाणी
महादेवी वर्मा: रश्मि, निहार, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा