अवहट्ट अपभ्रंष्ट शब्द का विकृत (बिगड़ा हुआ) रूप है। इसे 'अपभ्रंश का अपभ्रंश' या 'परवर्ती (subsequent) अपभ्रंश' कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच की भाषा है।
अवहट्ट को अवहट्ठ भी कहा जाता है।
समय बीतने के साथ अपभ्रंश, साहित्य की भाषा बन चुका थी, इसे परिनिष्ठित (approved) अपभ्रंश कहते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में राजस्थान से असम तक काव्यभाषा का रूप ले चुका थी। लेकिन अपभ्रंश के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेंत्रों की बोलियों का भी विकास हो रहा था और बाद में चलकर उन बोलियों में भी साहित्य लिखा जाने लगा। इस प्रकार से परवर्ती अपभ्रंश और विभिन्न प्रदेशों की विकसित बोलियों के बीच जो अपभ्रंश का रूप था और जिसका उपयोग साहित्य लिखने के लिए किया गया उसे ही अवहट्ट कहा गया है।
कुछ विद्वान यह मानते है कि अवहट्ट के मूल (root) में शौरसेनी अपभ्रंश थी।
डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने कहा है कि अवहट्ट मध्यदेश के अलावा बंगाल आदि प्रदेशों में भी काव्यभाषा के रूप में इस्तेमाल की जाती थी। यद्यपि अवहट्ठ को काव्यभाषा के रूप में चुना गया था फिर भी यह स्वाभाविक था कि स्थान विशेष (of a specific place) की छाप (mark) उस पर लगती, इसीलिए काव्यभाषा होने पर भी विभिन्न बोलियों के शब्द उसमें आये।
इसका समय 900 ई. से 1100 ई. तक माना जाता है। वैसे साहित्य में इसका प्रयोग 14वीं सदी तक होता रहा है। अब्दुर्रहमान, दामोदर पंडित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, विद्यापति आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को ज्यादा मधुर बताते हैं।
अवहट्ट भाषा के प्रमुख रचनाकारः अब्दुर रहमान (संदेश रासक), दामोदर पंडित (उक्ति–व्यक्ति–प्रकरण), ज्योतिरीश्वर ठाकुर (वर्ण रत्नाकर), विद्यापति (कीर्तिलता) आदि।
“अवहट्ट” शब्द का सबसे पहला इस्तेमाल ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने अपनी पुस्तक वर्ण रत्नाकर में 1325 ईसवी में किया था।
कीर्तिलता में विद्यापति ने लिखा है:
देसिल बअना सब जन मिट्ठा, तं जैसन जम्पञों अवहट्ठा
इसका अर्थ है: “देशी वचन (बात) सब लोगों की मीठा लगता है, इसलिए वैसे ही अव्हट्ठा में लिखता हूँ।“
विद्यापति इसे देसिल बअना भी कहते हैं।
अवहट्ट की शब्दावली अपभ्रंश से तीन प्रकार से अलग है
विदेशी शब्दों का प्रयोग जैसे दूआ (दुआ), दरिगाह (दरगाह), देवान (दीवान)
देशी शब्दों का अधिक इस्तेमाल जैसे लोर (आँसू)
तत्सम शब्दों का प्रयोग
अवहट्ट हिंदी की क्षेत्रीय बोलियों के अधिक करीब है।