आधुनिक काल (सन 1857 ईसवी से अब तक)
पृष्ठभूमि:
· विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी शुरू से साहित्य की रचना पद्य (poetry) में ही होती थी। इसका कारण यह था कि मुद्रण (printing) और कागज़ (paper) की सुविधा न होने के कारण गेयता (जिसे गाया जा सके) और लयता (जिसमें लय हो) के कारण काव्य (पद्य) को याद कर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी (generation) तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता था। गद्य (prose) को याद रखना थोड़ा कठिन था।
· रीतिकाल में पद्य और गद्य दोनों की भाषा ब्रजभाषा थी। आधुनिक काल में साहित्य गद्य और पद्य दोनों में समान रूप से लिखा जाने लगा। इसका कारण था अंग्रेज़ो के भारत आगमन के बाद मुद्रण और रेल जैसे यातायात (transport) के साधनों (device/appliances) का विकास। पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के प्रकाशन से खड़ी बोली का विकास और तेज़ हो गया। इसी समय खड़ी बोली हिंदी ने ब्रजभाषा से साहित्यिक भाषा का स्थान ले लिया।
· ब्रजभाषा का विकास संपर्क भाषा (बोलचाल की भाषा) के रूप में नहीं हो पाया था। खड़ी बोली जनसाधारण (आम लोग) की भाषा थी। यह दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी। सबसे पहले मुगल शासकों ने फारसी मिली हुई खड़ी बोली (जो बाद में चलकर रेख्ता, उर्दू कहलायी) को अपने शासन की भाषा के रूप में अपनाया और खड़ी बोली को संपर्क की भाषा के रूप में विकसित किया।
· फिर मुगल सामाज्ञ (empire) के टूटने के बाद खड़ी बोली हिंदी के पश्चिमी शहरों (दिल्ली, आगरा, मेरठ आदि) से पूर्वी शहरों (लखनऊ, वाराणसी, पटना, मुर्शिदाबाद आदि) में फैलने लगी।
· दूसरी तरफ दक्षिण भारत में खड़ी बोली का एक रूप दक्खिनी विकसित हुआ जिसमें बहुत सारे साहित्य की रचना होने लगी। 1757 में प्लासी की लड़ाई (battle of plassey) के बाद भारत मे अंग्रेज़ों का शासन हो गया है।
· अंग्रेज़ों के आने के साथ ईसाई मिशनरी भी भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए खड़ी बोली हिंदी का इस्तेमाल और प्रकाशन करने लगे। बाईबल के हिंदी अनुवाद और प्रकाशन (publication) से हिंदी में गद्य को बढ़ावा मिला।
· सन 1800 ईसवी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई। खड़ी बोली शब्द का प्रयोग सबसे पहले इसी कॉलेज द्वारा किया गया। इस कॉलेज की स्थापना के साथ ही हिंदी गद्य लेखन और अधिक फैला।
· अंग्रेज़ो के भारत आने से विश्व के ज्ञान-विज्ञान से भारतीय लोग शिक्षित और परिचित हुए। भारत का बुद्धिजीवी (intellectual) वर्ग (class) अंग्रेज़ी माध्यम से नई शिक्षा पाकर जाग (arise) उठा। पूरे देश में राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, रानाडे जैसे समाज सुधारकों (social reformers) ने समाज की बुराईयों को खत्म करने के लिए आंदोलन (movement) शुरू किए। यह काल इसलिए भारतीय नवजागरण काल (renaissance) भी कहा जाता है।
· इसी समय में हिंदी पत्रकारिता (journalism) का जन्म भी हुआ। सन् 1826 ईसवी में पंडित युगल किशोर जायसवाल ने उदंत मार्तण्ड नाम से हिंदी का पहला समाचारपत्र कोलकाता से प्रकाशित किया। इस प्रकार से खड़ी बोली हिंदी का विकास और तेज़ होता गया।
· तत्कालीन विदेशी सरकारों ने उर्दू-हिंदी के झगड़े में इसे दबाने का प्रयास किया परन्तु हिंदी साहित्यकारों ने इसे मजबूती से आगे बढ़ाया।
· यह सच है कि अंग्रेज़ों ने भारत में नई अर्थव्यवस्था, उद्योग, यातायात के नए साधन, प्रेस. नई अंग्रेज़ी शिक्षा व्यवस्था आदि की स्थापना अपने निजी स्वार्थ (selfish interests) के लिए की थी लेकिन इसने भारत में नए बौद्धिक (Intellectual) आंदोलनों (movements) को भी जन्म दिया।
· समाज और धर्म सुधार (reform) के इन आंदोलनों ने भारतीय समाज, संस्कृति, कला और साहित्य में बहुत सारे परिवर्तन लाए और हिंदी साहित्यकारों में एक नए वैज्ञानिक दृष्टिकोण (scientific approach) को जन्म दिया।
· उस समय के प्रमुख गद्य लेखकों में फोर्ट विलियम कॉलेज के लल्लूलाल और सदल मिश्र के नाम महत्वपूर्ण हैं। इन्हे खड़ी बोली में लिखने के लिए खास तौर पर विलियम कॉलेज के अध्यक्ष जॉन गिलक्राइस्ट ने बुलवाया था। इनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ ये हैं:
ü लल्लूलाल: प्रेमसागर
ü सदल मिश्र: नासिकेतोपाख्यान
· पर फोर्ट विलियम कॉलेज द्वारा खड़ी बोली हिंदी के गद्य के प्रकाशन के पहले ही मुंशी सदासुखलाल ने ’सुखसागर’ और मुंशी इंशाअल्ला खाँ ने ’रानी केतकी की कहानी’ नाम की रचनाएँ लिखी थी।
· इसी दौरान मुख्य संघर्ष हिन्दी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों— राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिन्द' व राजा लक्ष्मण सिंह ने हिन्दी के स्वरूप (structure) निर्धारण (formation) के सवाल पर दो रास्तों पर चले। राजा शिव प्रसाद ने हिन्दी का गँवारुपन (rusticness) दूर कर उसे उर्दू जैसा बना दिया तो राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ (संस्कृत जैसा) हिन्दी का समर्थन किया।
· सन 1857 में भारत में अंग्रेज़ों के शासन के खिलाफ पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ और इस प्रकार से हिंदी का साहित्य आधुनिक काल में प्रवेश कर गया। आधुनिक काल हिंदी साहित्य का एक विस्तृत काल है। इस कारण आधुनिक काल के साहित्य को छ्ह युगों (era) में विभाजित किया जाता है। ये युग निम्नलिखित हैं:
ü भारतेन्दु युग (सन् 1857 से 1902)।
ü द्विवेदी युग (सन् 1903 से 1916)।
ü छायावादी युग (सन् 1917 से 1936)।
ü प्रगतिवादी युग (सन् 1937 से 1943)।
ü प्रयोगवादी और नवकाव्य युग (सन् 1944 से 1990)।
ü उत्तर आधुनिक युग (सन् 1990 से आज तक)।
भारतेन्दु युग:
हिन्दी गद्य साहित्य का सन् 1857 से लेकर सन् 1900 तक का समय भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। हिन्दी गद्य साहित्य के क्षेत्र में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के आने से पूर्व इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व (representation) दो महत्वपूर्ण व्यक्ति कर रहे थे – वे थे राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द और राजा लक्ष्मण सिंह। जहाँ राजा शिवप्रसाद सिंह सितारे हिन्द हिन्दी को उर्दू प्रधान बनाकर उसका प्रचार-प्रसार करने का प्रयास कर रहे थे वहीं राजा लक्ष्मण सिंह हिन्दी को संस्कृतनिष्ठ (sanskritic) बनाकर उसका प्रचार-प्रसार करने में जुटे हुए थे। ऐसे ही समय में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का हिन्दी गद्य साहित्य में आना हुआ जिन्होंने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के ऊपर बताए गए दोनों मार्गों को एक साथ मिला कर एक बीच का मार्ग निकाला। उन्होंने न केवल उर्दू और संस्कृत बल्कि अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि अन्य भाषाओं के उन समस्त सरल शब्दों का, जिन्हें आम लोग प्रयोग में लाते थे, हिन्दी में शामिल किया। हिन्दी भाषा को सजीव (lively) तथा सशक्त (powerful) बनाने के लिए उन्होंने कहावतों, मुहावरों और लोकोक्तियों को हिन्दी में सही स्थान देने का कार्य किया। उनके इस प्रयोग से हिन्दी भाषा व्यवहारिक (functional) तथा प्रवाहपूर्ण (with flow) होकर आम लोगों की भाषा बन गई। भारतेन्दु ने लिखा है:
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
भारतेन्दु ने हिन्दी गद्य साहित्य की सभी विधाओं, जैसे नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना, जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत्तान्त, डायरी लेखन, रिपोर्ताज, गद्य-गीत, रेखाचित्र इत्यादि में न केवल उन्होंने न केवल स्वयं रचना की बल्कि अपना एक लेखक मंडल भी तैयार किया, जिसे 'भारतेन्दु मंडल' कहा गया।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके समकालीन प्रमुख साहित्यकार और उनकी रचनाएँ हैं –
भारतेन्दु हरिशचंद्र:
नाटक- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति, भारत दुर्दशा, प्रेम योगिनी, नील देवी, अंधेर नगरी, विषस्य विषमौषधम, श्री चंद्रावली नाटिका
काव्य-कृतियाँ- दानलीला, होली, प्रेममालिका, प्रेम माधुरी, बंदर सभा, बकरी विलाप, भक्तसर्वस्व, प्रेमप्रलाप, मधुमुकुल आदि; कई निबंध
बालकृष्ण भट्ट: नाटक – पद्मावती, शिशुपाल वध, चंद्रसेन; उपन्यास – नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान; कई निबंध
बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमधन: नाटक – भारत सौभाग्य, वीरांगना रहस्य
राधाकृष्ण दास: नाटक – दुखिनी वाला, महाराणा प्रताप, मेकडानेल पुष्पांजलि, भारत बारहमासा, देश दशा आदि
देवकीनंदन खत्री: उपन्यास – चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति
हरे कृष्ण जौहर: उपन्यास- कुसुमलता
किशोरीलाल गोस्वामी: उपन्यास – तिलिस्मी शीश महल, अधखिला फूल, तारा, रजिया बेगम
प्रताप नारायण मिश्र: काव्य- प्रेम पुष्पावली, मन की लहर, श्रृंगार विलास; कई निबंध
राधाचरण गोस्वामी: काव्य- नव भक्तमाल, दामिनी दूतिका, इश्क चमन, शिशिर सुष्मा आदि।
बाल मुकुन्द गुप्त: कई निबंध
लाला श्रीनिवास दास: हिंदी का पहला उपन्यास ’परीक्षा गुरू’ लिखा, प्रहलाद चरित्र, तप्ता संवरण आदि
माधवराव सप्रे: हिंदी की पहली कहानी एक टोकरी भर मिट्टी लिखी।
भारतेन्दु युग के साहित्य की विशेषताएँ:
· विषयवस्तु (subject matter): भारतेन्दु युग के साहित्य की विषयवस्तु में अन्य कालों की तुलना में बहुत बदलाव आया। समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम, देशभक्ति, विदेशी शासन के प्रति विरोध, शिक्षा, मनोरंजन आदि से जुड़े विषयों पर साहित्य की रचना हुई। दूसरी तरफ काव्य की परंपरागत विषयवस्तु जैसे भक्ति, प्रेम, और सौन्दर्य में भी काव्य लिखा गया।
· भाषा: अधिकांशत: भारतेन्दु युग के पद्य की भाषा ब्रजभाषा रही और गद्य की भाषा खड़ी बोली हिंदी बन गई। साहित्य की भाषा को आम लोगों की भाषा से जोड़ने का काम किया गया। छोटे-छोटे वाक्यों की रचना कर भाषा को सरल बनाया गया। काव्य में लोकगीतों और मुहावरों-लोकोक्तियों का खूब प्रयोग हुआ। अन्य भाषाओं के शब्दों को अपनाया गया। भारतेन्दु युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि गद्य रचना के लिए खड़ी बोली को माध्यम के रूप में अपनाकर नवजागरण के अनुरूप स्वस्थ दृष्टिकोण का परिचय दिया गया।
· भारतेन्दु युग में साहित्य जनता से जुड़ गया।