आदिकाल का साहित्य: मुख्य प्रवृत्तियाँ
· आदिकाल का साहित्य मुख्य रुप से दो तरह का था। आध्यात्मिक (spiritual) = सिद्ध, जैन और नाथ साहित्य और लौकिक (folk) = रासो साहित्य, प्रेम कथा साहित्य, मनोरंजन साहित्य (विनोद साहित्य)।
· आदिकाल की बहुत सी धार्मिक पुस्तकों में हमें बढ़िया साहित्य दिखाई देता है जैसे नाथ साहित्य, जैन साहित्य आदि।
· आदिकाल में ऐतिहासिक व्यक्तियों की जीवनी के आधार पर चरित काव्य लिखा जाता था जैसे पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता आदि।
· आदिकाल के काव्य में लड़ाइयों का बहुत अच्छा वर्णन हुआ है जैसे रासो सहित्य में।
· आदिकाल में प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य दोनों में लिखा गया है जैसे सरहपा, गोरखनाथ, विद्यापति, खुसरों के काव्य में मुक्तक काव्य दिखता है। स्वयंभू, पुष्पदंत, चंदबरदाई, जगनिक आदि केकाव्य में प्रबंध काव्य मिलता है। बिसलदेव रासो मुक्तक काव्य का उदाहरण है, और खुमान रासो तथा पृथ्वीराज रासो प्रबंध काव्य हैं।
· विभिन विषयों का विस्तार से वर्णन होने के कारण आदिकाल के काव्य में कल्पना (imagination) और रचनात्मकता (creativity) अधिक है।
· आदिकाल के काव्य है जैसे वीर रस, श्रृंगार रस, शांत रस, हास्य रस, करूण रस आदि।
· आदिकाल के साहित्य में कई प्रकार के छंद (quatrain) मिलते हैं जैसे दोहा, चर्यागीत, आल्हा, चौपाई (एक प्रकार का छंद), सोरठा (यह दोहे का उलटा होता है)
· आदिकाल की भाषा अपभ्रंश से निकलते हुए अवहट्ट के साथ मिलकर खड़ी बोली हिंदी तक पहुँची। इन भाषाओं के नाम ये हैं:
अपभ्रंश: सिद्ध साहित्य और जैन साहित्य (नागर अपभ्रंश)
सधुक्कड़ी भाषा : नाथ साहित्य
राजस्थानी/ब्रजभाषा मिली हुई अपभ्रंश (पिंगल और डिंगल): रासो साहित्य
अवहट्ट : विद्यापति की भाषा
खड़ी बोली मिली हुई हिन्दुस्तानी: अमीर खुसरो की भाषा
· आदिकाल में आधुनिक काल की कई नई साहित्यिक विधाओं की शुरूवात हुई जैसे मनोरंजन का साहित्य, आत्मकथा, पहेली आदि।