हिंदुस्तानी हिंदी की एक शैली (style) है जिसका अर्थ है हिंदुस्तान की भाषा है।
कई लोग मानते हैं कि हिंदुस्तानी नाम युरोपियों की देन है जिसका इस्तेमाल 19वीं सदी में शुरु किया गया, लेकिन इस शब्द का प्रयोग मुगल बादशाह बाबर के काल (16वीं सदी) में भी उनकीकिताब ’तुजुक बाबरी’ में किया गया है।
भाषा के अर्थ में हिन्दुस्तानी शब्द हिंदी या हिन्दवी का पर्याय (synonym) था।
बाद में इसका अर्थ उस भाषा से हो गया जिसमें हिंदी और उर्दू की तुलना में संस्कृत एवं अरबी-फारसी के शब्द कम होते हैं। इसमें केवल वे ही शब्द इस्तेमाल होते हैं जिन्हें समझना आम लोगों (common people) के लिए आसान हो।
हिंदी की यह शैली दिल्ली से लेकर आगरा तक बोली जाने वाली खड़ी बोली पर आधारित (based) है।
युरोपीय लोगों ने शासन करने और ईसाई धर्म को सिखाने के लिए हिंदी की इस शैली का प्रचार (propagate) किया।
19वीं सदी के अंत तक हिंदी की तीन शैलिया विकसित हो गईं:
1. खड़ी बोली आधारित हिंदी शैली
2. फारसी प्रभावित उर्दू
3. हिंदुस्तानी
1800 ईसवी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई और हिंदुस्तानी का विभाग (Department) खोला गया जिसके प्रथम विभागाध्यक्ष (Head of the Department) जॉनगिलक्राइस्ट बनाए गए।
फोर्ट विलियम कॉलेज द्वारा ब्रिटिश अफसरों को हिंदी सिखाने के लिए भारतीय मुंशियों (clerks) द्वारा कई किताबें लिखवाई गई। ये किताबें तीन शैलियों में लिखवाई गई:
1. हिंदी शैली में प्रेमसागर (लेखक – लल्लू लाल) और नासिकेतोपाख्यान (लेखक – सदल मिश्र)। इन किताबों की लिपि देवनागरी थी।
2. उर्दू शैली में बागो बहार (लेखक – मीर अम्मन)। इसकी लिपि नस्तलीक़ थी। इस फारसी प्रभावित (Persian influenced) शैली का उपयोग अदालत (court) में पहले से ही हो रहा था। यह कानून (law) की भाषा थी।
3. हिन्दुस्तानी शैली में बैताल पच्चीसी (लेखक – लल्लू लाल और काजिम अली जवाँ) और सिंहासन बत्तीसी (लेखक लल्लू लाल)। इन किताबों की लिपि देवनागरी थी।
बाद में अदालत में फारसी प्रभावित शैली (यानि उर्दू शैली) को फोर्ट विलियम कॉलेज के मुंशियों ने हिंदुस्तानी के नाम पर बढ़ावा देना शुरू किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि 1872 में जब डाउसनहिंदुस्तानी का व्याकरण लिखा तो उसे उर्दू का पर्याय माना।
फोर्ट विलियम कॉलेज की हिंदुस्तानी के बारे में मद्रास के गवर्नर विलियम्स ने 1869 में लिखा – “फोर्ट विलियम की देख-रेख में जो हिंदी पनपी है, जिसे मुंशियों ने अपनाया है, मुसलमानी मदरसों मेंवहाँ के लड़कों ने सीखा है, वह हिंदुस्तान के किसी भाग में नहीं बोली जाती।“
इस तरह हिंदी को धर्म के आधार पर तीन शैलियों में बाँटने का काम फोर्ट विलियम कॉलेज द्वारा शुरु किया गया। जिसके बाद हिंदी और उर्दू में विरोध (opposition) बढ़ता गया। ब्रिटिश सरकारद्वारा यह सारा काम भारतीय लोगों की एकता को तोड़ने के लिए किया गया।
हिंदी और उर्दू में झगड़ा इतना अधिक बढ़ गया कि महात्मा गाँधी ने भारत की राष्ट्रभाषा बनने के लिए हिन्दुस्तानी जो उनके अनुसार हिंदी-उर्दू के बीच की भाषा थी, को बढ़ावा (encourage) दिया।
अप्रैल 1818 में पादरी चेंबरलेन ने हिंदुस्तानी में बाईबल के न्यू टेस्टामेंट का अनुवाद किया।