नाथ साहित्य
विशेषताएँ:
सिद्धों के भोगवाद (Hedonism) तथा वामाचार (आत्मा को शक्ति [स्त्री] के रूप में कल्पना कर साधना) के विरोध में नाथ संप्रदाय आया।
नाथ दर्शन के अनुसार नाथ शब्द का अर्थ है मोक्ष (salvation) प्रदान करने वाला और ज्ञान को स्थापित करने वाला
नाथपंथ का ईश्वर निर्गुण था।
नाथपंथ के अनुसार सबसे पहले नाथ यानी आदिनाथ स्वयं ‘शिव’ (shiva) हैं।
उन्होंने सिद्धों के निरिश्वरवादी (atheist) शून्य को ईश्वरवादी (theist) शून्य के रूप में दिखाया।
सिद्धों की भोग-प्रधान साधना (पंच मकार) के ज़वाब में नाथों ने हठयोग साधना का आरंभ किया।
[हठ शब्द हठ 'ह' व 'ठ' से मिलकर बनता है। 'ह' का मतलब पिंगला नाड़ी या सूर्य स्वर या दाईं नासिका से आने-जाने वाली सांस व 'ठ' का मतलब इड़ा नाड़ी या चंद स्वर या बाईं नासिका से आने-जाने वाली सांस। इन दोनों स्वरों के मिलन की साधना को हठयोग कहते हैं। यह नाथ योगियों की साधना रही है, जो आदिनाथ शिव, गुरु गोरखनाथ आदि सिद्ध योगियों द्वारा बताई गई है।]
हठयोग करने वालों को योगी, अवधूत, औघड़ भी कहा जाता है।
नाथ लोग ब्रह्मचर्य ( self imposed celibacy) और योगाभ्यास (practice of yoga) पर बल देते थे।
नाथपंथ के नेता गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) थे। इनके गुरू का नाम मछंदरनाथ (मत्स्येन्द्रनाथ) था।
नाथों की संख्या 9 मानी जाती है।
नाथ लोग पुस्तक विद्या और वेद-शास्त्रों को बेकार बताते थे।
नाथपंथ के योगी कान की लौ में छेद करके बड़े-बड़े स्फटिक पहनते थे। इससे कनफटे भी कहलाते थे।
अन्य नाथ साहित्यकार: चौरंगीनाथ, गोपीचंद, चुणकरनाथ
गोरखनाथ द्वारा लिखे गए ग्रंथों की संख्या 40 बतायी जाती है।
महत्वपूर्ण रचनाएँ: गोरखबानी, गोरखसार, सबदी, दत्त-गोरख संवाद, गोरख-गणेष गोष्ठी, आत्मबोध, प्राण सांकली, सिद्धसिद्धांत पद्धति, गोरक्ष संहिता, अमरौघशासनम, महार्थ मंजरी
भाषा: नाथों की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता है। इसका अर्थ है साधुओं की भाषा। इसमें पूर्वी हिंदी, बिहारी हिंदी, खड़ी बोली और पंजाबी का मिश्रण (mixture) है।
गोरखनाथ के साहित्य का उदाहरण:
जोगी अजपा जपै त्रिवेणी कै घाटी।। टेक ।।
चंदा गोटा टीका करिलै, सूरा करिलै पाटी।
गूंनी राजा लूगा धौवै, गंग जमुन की घाटी।।1।।
अरधैं उरधैं लाइलै कूँची, थिर होवै मन तहाँ थाकीले पवनां।
दसवां द्वार चीन्हिले, छूटै आवा गवनां।।2।।
भणत गोरषनाथ मछिंद्र ना पूता, जाति हमारी तेली।
पीड़ी गोटा काढ़ि लीया, पवन षलि दीयां ठैली।।3
गोरखनाथ के साहित्य का उदाहरण:
अवधू जाप जपौं जपमाली चीन्हौं जाप जप्यां फल होई।
अजपा जाप जपीला गोरष, चीन्हत बिरला कोई।। टेक ।।
कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली।
अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जपंत गोरष चवाली।।1।।
एक अषीरी एकंकार जपीला, सुंनि अस्थूल, दोइ वाणी।
प्यंड ब्रह्मांड समि तुलि व्यापीले, एक अषिरी हम गुरमुषि जाणी।।2।।
द्वै अषिरी दोई पष उधारीला, निराकार जापं जपियां।
जे जाप सकल सिष्टि उतपंनां, तेंजाप श्री गोरषनाथ कथियां।।3।।
पवनां रे तूँ जासी कौनैं बाटी।
जोगी अजपा जपै त्रिवेणी कै घाटी।। टेक ।।
चंदा गोटा टीका करिलै, सूरा करिलै पाटी।
गूंनी राजा लूगा धौवै, गंग जमुन की घाटी।।1।।
अरधैं उरधैं लाइलै कूँची, थिर होवै मन तहाँ थाकीले पवनां।
दसवां द्वार चीन्हिले, छूटै आवा गवनां।।2।।
भणत गोरषनाथ मछिंद्र ना पूता, जाति हमारी तेली।
पीड़ी गोटा काढ़ि लीया, पवन षलि दीयां ठैली।।3।।