आदिकाल का लौकिक साहित्य
पृष्ठभूमि: यह साहित्य आम लोगों के बीच विकसित हुआ था। इस प्रकार के साहित्य में कवि जीवन की उपयोगिता (usefulness) के बारे में बताते हुए नैतिक मूल्यों (moral values) पर प्रकाश डालते हैं। संयोग (मिलने), वियोग (बिछड़ने), प्रकृति का सौन्दर्य और कभी-कभी मनोरंजन (entertainment) इस प्रकार के साहित्य के सामान्य विषय हैं। यह साहित्य आमतौर पर संप्रदाय मुक्त (free of sectarianism) है।
प्रमुख रचनाएँ / रचनाकार :
ढोला मारू रा दूहा: ग्यारहवीं शताब्दी मे रचित एक लोक-भाषा काव्य है। मुख्य रूप से दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी मे कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाईयां (एक प्रकार का छंद) जोड़कर विस्तार दिया था। इसमे राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू / मारवणी की प्रेमकथा का वर्णन है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता है। इसकी भाषा पुरानी राजस्थानी है।
जयचंद-प्रकाश: इस लोक-काव्य की रचना भट्ट केदार ने की थी। इसमें राजा जयचंद की कहानी बताई गई है।
जयमयंक-जसचंद्रिका: इस लोक-काव्य की रचना मधुकर ने की थी। इसमें राजा जयमयंक की कहानी बताई गई है।
वसंत विलास: इस लोक काव्य की रचना 13वीं सदी के मध्य में हुई थी। इसके रचनाकार का पता नहीं चल पाया है। इसमें 84 दोहों के द्वारा वसन्त ऋतु (spring season) और स्त्रियों पर उसके विलासपूर्ण प्रभाव (amusing effect) को दिखाया गया है।
संदेश-रासक: इसके लोक-काव्य के रचयिता का नाम अबदुर्रहमान है। वह मुल्तान (अब आधुनिक पाकिस्तान में) के रहने वाले थे। इस काव्य में एक प्रेम कहानी को बताया गया है। यह एक विरह-काव्य माना जाता है। कहानी में एक विरहिणी मुल्तान गए अपने पति को एक संदेश भेजती है। इस संदेश में विरहिणी अपने मन की तुलना अलग-अलग ऋतुओं से करती है।
प्राकृत-पैंगलम: इसमें कवि बब्बर, विद्याधर, हरिब्रह्म आदि की रचनाएँ संग्रहित हैं। इसमें प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में लिखी गई रचनाएँ मिलती हैं। इस ग्रंथ में उस समय के समाज जैसे अमीर-गरीब, किसान-राजा आदि के संबंधों का सजीव (lively) वर्णन का किया गया है।
विद्यापति (1360-1448) : विद्यापति मिथिला (वर्तमान बिहार और नेपाल की तराई में) के राजा कीर्तिसिंह के दरबारी कवि थे। इन्हें मैथिल-कोकिल [कोकिल=जिसका स्वर कोयल/Cuckoo की तरह हो] भी कहा जाता है। उन्होंने अपभ्रंश, अवहट्ट और मैथिली में काव्य रचना की है। कीर्तिलता, कीर्तिपाताका, भूपरिक्रमा, पुरुष परीक्षा, लिखनावली, विभागसार, पदावली आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। भाषा की दृष्टि से कीर्तिलता और काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से पदावली अधिक लोकप्रिय है। कुछ विद्वान इन्हें पुरानी हिंदी के पहला कवि भी मानते हैं। इनकी रचनाओं में श्रृंगार और प्रेम रस की प्रधानता है। पदावली में सुन्दर शरीर और प्यार की चाहत के बारे में राधा-कृष्ण की लीला (play) के माध्यम से वर्णन किया गया है।
पदावली से एक छंद:
जाइत देखलि पथ नागरि सजनि गे, आगरि सुबुधि सेगानि।
कनकलता सनि सुनदरि सजनि में, विहि निरमाओलि आनि।।
हस्ति-गमन जकां चलइत सजनिगे, देखइत राजकुमारि
[अर्थ: आज सुन्दरी को राह चलते देखा। वो बुद्धिमती थी, चालाक थी, साथ ही साथ कलक लता के समान सुन्दर भी। विधाता ने काफी सोच-विचार करने के बाद उसका निर्माण (सृजन) किया है। हथिनी के चाल में चलती है किसी वैभवपूर्ण राजकुमारी जैसी लगती है]
अमीर खुसरो (1253-1325): खुसरो खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि माने जाते हैं। खुसरो अल्लाउद्दिन खिलजी (दिल्ली का सुल्तान, 1296 से 1319 ईसवी तक) और ग़यासुद्दिन तुगलक (दिल्ली का सुल्तान, 1320-1325 ईसवी) के दरबारी कवि तथा प्रसिद्ध सूफ़ी संत निजामुद्दिन औलिया के शिष्य (pupil) थे। खलिकबारी (फ़ारसी, अरबी और हिंदी का शब्दकोश), पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सखुना, ग़ज़ल, तुग़लकनामा आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। खुसरों के काव्य में हास्य रस की प्रधानता थी। उन्होंने मनोरंजन के लिए साहित्य लिखने की परंपरा को शुरु किया।
[✰पहेली का उदाहरण देखें:
श्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागे प्यारी
जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले
उत्तर: भौं (हिंदी में कुत्ते की आवाज़ को भौं-भौं कहा जाता है)
✰मुकरी में जो बात कही जाती है उसके दो अर्थ होते हैं, पर जो अर्थ अधिक सही होता है, उसे छोड़कर (मुकरकर) दूसरे अर्थ को अंत में महत्वपूर्ण बनाया जाता है जैसे देखें
सगरि रैन वह मो संग जागा।
भोर भई तब बिछुरन लागा।
वाके बिछरत फाटे हिया।
क्यों सखि साजन ना सखि दिया- …............यहाँ देखिए अर्थ प्रधान हो रहा है पति या साजन का पर अंत में सखि या सहेली को महत्व दे दिया गया है।
✰दो सखुना में दो या तीन पहेलियों का एक ही उत्तर होता है जैसे देखें:
रोटी क्यों सूखी? बस्ती क्यों उजड़ी
उत्तर: खाई न थी।.........................................यहाँ देखिए इसके दो अर्थ है: १- जिसे खाया न गया हो। २- वहाँ बस्ती की सुरक्षा के लिए खाई (ditch) नहीं थी]
मौलाना दाऊद: दाऊद ने चंदायन नामक एक सूफ़ी प्रेम काव्य वर्ष 1379 में लिखी थी। यह प्रेमकथा लोरिक-चंदा नाम की लोक प्रेमकथा पर आधारित है। हिंदी क्षेत्र विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में में आज भी इस प्रेमगाथा (love story) का गायन लोरिकी, चनैनी, लोरिकायन आदि के नाम से किया जाता है।
[सूफ़ी वह व्यक्ति है जो सूफ़ीवाद (Sufism) में विश्वास करता है। यह इस्लाम का एक पंथ है जिसमें ईश्वर की उपासना (worship) प्रेमी और प्रेमिका के रूप में की जाती है। सूफ़ी लोगों को दरविश भी कहा जाता है। इनका लक्ष्य मानव सेवा और ईश्वर की उपासना है। विश्व भर में इन्होंने इस्लाम का खूब प्रचार किया।भारत में फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, चीन में कशगर में खोजा अफ़ाक़ की दरगाह, तुर्की में कोन्या में मावलाना रुमी की दरगाह आदि कुछ प्रसिद्ध सूफ़ी स्मारक (monuments) हैं।