*****
मेरा आशियाँ है कहाँ,
नभ औ समुंदर मिले जहां,
ये किनारे कहते हैं मुझसे,
उठ मुसाफ़िर चल दें वहाँ।
*****
हर पत्ता शाख से कहता है ,
बारिश का मंज़र देखकर,
गिराकर जहाँ में मुझे ,
कोई उठाने वाला ना मिला ।
गिराया जिस झोंके ने मुझे,
उसका पता बताने वाला ना मिला ।
*****
दीवारो दर इस खंडहर की देखकर लगता है,
कभी किसी के ख़्वाबों का महल रहा होगा,
आज ज़ार ज़ार है, इस हाल में है, तो क्या है ,
किसने देखा है कल सवेरा फिर कहां होगा।
*****
कभी मिलाये उसी शहर से
जिससे है जन्म का नाता
स्वच्छ जलधारा सतलुज की
पावन पवन के शीतल झोंके
बचपन के कुछ बरस कटे
पुरानी यादें जो ना मिटे
यात्रा जन्म भूमि की
कभी कभी कराये विधाता
*****
© sudhirbirla