अभिमन्यु का भाग्य
षड्यंत्रों की व्यूह रचना,
अभिमन्यु से कहती है,
सत्य की ग्रीवा पे,
सदैव तलवार रहती है |
पंच भूतों की इस युद्ध में,
विजय की अब तैयारी है,
किन्तु भूपति ही युद्ध के,
परिणाम का अधिकारी है|
संग्राम कौरव पांडवों का,
वजह फिर वही पुरानी है,
सुई की नोक से बारीक,
धरा का कौन स्वामी है|
अनुपस्थिति में पिता की,
द्रोण, कृपा, अश्वत्थामा, दुर्योधन, शल्य,
दुःशासन, भूरिश्रवा को कर परास्त,
भूमिका अभिमन्यु को निभानी है|
गर्भ-ज्ञात ज्ञान अधूरा है,
न रथ पे पार्थ-सारथि है,
पद्मव्यूह तोड़ेगा तू कैसे,
द्रोण रचना अभेद्यकारी है |
सबने मिल घेर के मारा,
जबकि इक-इक को लड़ना था,
कर्म था यह किसका,
दंड क्यूँ तुझ पे भारी है,
जहाँ अर्जुन को होना था,
वहां वीर पुत्र की बारी है,
क्या यह भाग्य है तेरा,
या दिव्य विभ्रांति सारी है |
क्या यह भाग्य है तेरा,
या दिव्य विभ्रांति सारी है |
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