मन का रावण
मन का रावण
आज रावण को जलते देख कुछ शब्द लिखने की इच्छा जाग्रत हुई :
मन का रावण
गूँज रहा है धरा पे शोर ,
मैदानों में लगी है होड़ ,
असंख्य रावण जल रहे चहुँ ओर ,
पर मन का रावण नहीं जला |
दश शीश कट गिरे भूमि पर ,
लीलाओं की लीक पटी है ,
सटीक नाभि पर बाण चला ,
पर मन का रावण नहीं जला |
कभी गूँज थी अट्टहास की,
और सिंहासन का मान बड़ा ,
है आज भूमि पर पतित पड़ा ,
पर मन का रावण वहीँ खड़ा |
सदियों से जलता आया है ,
धुएँ का बादल छाया है ,
दसों इन्द्रियों की माया है ,
मन के रावण की काया है ,
प्रतिकारक तो जल रहा है कब से ,
मन में है यह रहा अड़ा ,
मन का रावण वहीँ खड़ा |
जाग्रत हो चक्षु अब खोलो ,
प्राण श्वास से अंतर्मन धोलो ,
श्रीराम ध्यान से वश करने की ,
अब बारी है रावण वध की |
अब बारी है रावण वध की |
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© sudhirbirla