आऊंगा फिर मिलने तुझसे, ऐ मेरे शहर

 

ना जाने हमें क्यूँ, शहरों से मुहोब्बत हो जाती है,

कोई लखनऊ की सरज़मीं को नवाता है ,

तो किसी को रेत के शहर से आशिकी हो जाती है |

  

हर खुशबू ख़ास सी लगती है, 

और कुछ टीस सी उठती है जिगर में,

क्या ये पहले इश्क़ सा जुनू है के नहीं, 

एहसास होता है जो, होने से उस शहर में |

 

कारोबार किसी के, भटकाते क्यूँ हैं मुझे, 

बालू के वो दाने आज भी बिखरे हैं उँगलियों में, 

छोड़ आया था जिन्हे साहिल ए समुन्दर पे, 

ओ मेरे शहर, मेरी रूह  की मिट्टी तो याद होगी तुझे |

 

मैं तुझे भूला नहीं, बस दूर हूँ नज़र से तेरी,

कसूर मेरा क्या, कुछ बस तो चले ,

जी लूँ वापस वो लम्हे, ऐ मेरे शहर लगता है कभी,

इल्म नहीं अब, मुझे तुझसे मोहब्बत है या उन लम्हों से |  

 

तलाशे कई शहर और जिया बहुत तन्हा, 

खबर न थी की शहर छूटने से लोग भी छूट जाते हैं,

कहीं मुल्क की सरहद पे, लश्कर भी छूट जाते हैं 

हद अनहद के परे, सब सबब, सब शुमार छूट जाते हैं

 

तेरे मैखाने में कौन गिरा, किसको खबर मेरे यार होगी,

रूह रुके जिससे, कौनसी सरहद की दीवार होगी, 

आऊंगा फिर मिलने तुझसे, ऐ मेरे शहर, मेरे हबीब, 

जब मिट्टी मिट्टी में मिलने को बेकरार होगी, 

आऊंगा फिर मिलने तुझसे, ऐ मेरे शहर

आऊंगा फिर मिलने तुझसे, ऐ मेरे शहर


© sudhirbirla