जीवन- एक व्यूह चक्र

 

सजने लगे द्वार सोपान ,

एकत्रित हुए अनेक मेहमान ,

वितरित होने लगे मिष्ठान ,

कुछ मुद्रा वस्तु भी हुआ दान |

 

घन घन बज रही थाली,

नृत्य गान करें आली ,

आगमन नव शिशु का ,

दमकने लगे अंशुमाली |

 

हर स्थान पे है जगमगाहट ,

कुछ शोर, कुछ फुसफुसाहट ,

आभास एहसास मातृत्व का ,

संग में लज्जा और मुस्कुराहट |

 

लघु मुस्कान, पैनी दृष्टि  ,

कुछ हिचकिचाहट, कुछ घबराहट ,

प्रियजनों के मध्य उपवेशन

दर्पित कर रही शिशु की आहट |

 

आशीष पाहुन सब दे रहे ,

हर विषय कला में पारंगत हो ,

हर विधा में हो पूर्ण युक्त ,

हर स्पर्धा में श्रेणी अग्रिम हो ,

 

किन्तु,

परिपेक्ष शिशु का कितना उक्त है ,

जन्म परिंदों सा उन्मुक्त है ,

जनक मेरे की भिन्न है दृष्टि ,

आनंद के मध्य, वात्सल्य लुप्त है |

  

पुरुष के उपनाम का केतु ,

वंश के उत्तरवर्तन हेतु ,

शिशु सोच रहा था परंतु ,

संतति वर्धन का क्या मैं सेतु

 

जन्म हुआ, फिर लूँ मैं ज्ञान ,

उपरांत, धन अर्जन के विधि विधान ,

फिर वही जीवन शैली ,

क्यूँ कर करूँ चादर मैं मैली ,

किंकर्तव्यविमूढ़ वह सोच रहा ,

जीवन के कितने आयाम ,

अवतरें कृष्ण शीघ्र जीवन में ,

विधिवत व्यूह चक्र का करें निदान |

विधिवत व्यूह चक्र का करें निदान |

 

 

©  Sudhir Birla