उर्मिला की भूमिका

 

वचन पिता का और राम ने ,

सिंघासन का त्याग किया ,

शक्ति स्वरुप  प्रज्ञ सीता ने,

क्षण भर में वैराग्य लिया |

 

लक्ष्मण का भी त्याग श्रेष्ठ था ,

भावज भ्रात संग वनवास लिया , 

त्याग उर्मिला का दिव्य था किन्तु,

चेतनत्व को लाँघ लिया |

 

सहृदय सुनयना तथा नरेश जनक की,

पुत्री यशस्वी उर्मिला थी वो ,

प्रबल रश्मि का तेज मस्तक पर ,

वैदेही की भगिनी थी वो |

 

वल्कल वस्त्र धारण कर ,

जब वन जाने को तैयार हुए ,

वाणी सुन उर्मिला की ,

लक्ष्मण भी नि:शब्द हुए |

 

हे भर्ता, कहा उर्मिला ने ,

राजप्रसाद का मोह नहीं है ,

मेरा उद्देश्य, प्रयोजन तुम्हारा ,

संग चलूंगी, मैं भी तिहारे |

  

कहा लक्ष्मण ने, हे उर्मिले ,

चौदह बरस, निद्रा का परित्याग करूँगा ,

सेवा में भ्रात भावज की, रात्रि जगूंगा ,

ना दिन को मैं आराम करूँगा |

 

परिचर्या परिजन सर्वजन हेतु,

तुम रत रहो, तुम धैर्य धरो ,

दृढ़ प्रतिज्ञ हो, हे भार्या

नलिन दृगों में न अश्रु भरो |

 

वचन बद्ध भार्या ने,

अश्रु का परित्याग किया ,

ह्रदय वेदना की कर उपेक्षा ,

अयोध्या ही में निवास किया |

 

पिता जनक के संग मिथिला को ,

प्रस्थान से भी इंकार किया ,

ध्येय पृथक हैं हर जीवन के ,

संकल्प स्वयं का ध्यान किया |

 

मेघनाद को वरदान प्राप्त था ,

मोक्ष उस प्राणी से मिलेगा ,

निद्रा त्याग चौदह वर्षों तक ,

जीवधारी जो सो न सकेगा |

 

निद्रा की देवी ने, सेवारत लक्ष्मण को ,

चौदह बरस जागने का वरदान दिया ,

उर्मिला ने एवज में समकक्ष समय ,

सुप्तावस्था को स्वीकार किया |

 

सुलोचना के छलकते थे अश्रु,

वेदना थी द्रवित ह्रदय था ,

निकट धव  का पार्थिव शरीर था ,

किन्तु लक्ष्मण को बतलाना था ,

हे सुमित्रानंदन, गर्व न करना ,

वध करों से तेरे न संभव था ,

शक्ति न थी ब्रह्माण्ड समस्त में ,

मेघनाद का वध करने की ,

शक्ति थी भार्या की तेरी ,

या अंततः भाग्य था मेरा ,

निद्रा तेरी अंगीकार ना होती ,

मेघनाद कदाचित परास्त ना होता |

 

उर्मिला को वरदान प्राप्त था ,

कई कार्य संग कर सकती थी ,

निद्रा में भी जागृत थी वो ,

परिजन सुश्रूषा कर सकती थी |

 

पृष्ठभूमि में रामायण की ,

प्रेम, त्याग, धर्म  वेदिका ,

अप्रत्यक्ष किन्तु थी अनुपम ,

उर्मिला की अद्वितीय भूमिका |

उर्मिला की अद्वितीय भूमिका |

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