बचपन से मुझे साहित्य, विशेषकर कविताओं को पढ़ने का शौक रहा है | चाहे वह रामधारीसिंह दिनकरजी की रश्मिरथी हो या मैथली शरण गुप्त जी की साकेत, चाहे मुंशी प्रेमचंद जी की सामाजिक पहलुओं को उजागर करती पुस्तकें हों या फिर हीर राँझा, लैला मजनू, शीरीं फरहाद, ढोला मारू, जैसी ह्रदय को वेदना देती दस्ताने, गीता के उपदेश हों या श्री रामचरित का व्याख्यान, मीराबाई, सूरदास के पद हों , बुल्ले शाह जी का सूफी कलाम अथवा कबीर दास जी के दोहे, सभी आत्मज्ञान की तरफ दिशान्तरित करते है| हिंदी के कुछ श्रेष्ठ रचनाकार जैसे दिनकरजी, मैथली शरण जी, सुभद्रा कुमारी चौहान जी, अज्ञेयजी, जयशंकर प्रसाद जी, डॉ हरिवंशराय जी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी, शिवमंगल सिंह सुमन जी, कुमार विश्वास जी और विशेषकर गोपालदास नीरज जी से मैं प्रभावित रहा हूँ | मेरे विचार से रचनाकार , न केवल समाज का आइना है, अपितु समाज को दिशा देने का भी कार्य करता है| वह गागर में सागर भर, अंतर्मन को झिंझोड़ के रख देता है| आज मैं अपनी श्रद्धा कवियों के प्रति कुछ पंक्तियों के माध्यम से समर्पित कर रहा हूँ....
रश्मि रथी का रस-गान किया,
मैथिली शरण, सुमित्रा नंदन,
सूर्यकांत की रश्मि निराली,
अज्ञेय, सुभद्रा, विश्वास को सुन,
दी मुक्ति बंध खूंटे से जिसने
उस गुरु का सर्वत्र यशगान किया।
कवि, लेखक, साहित्य की भाषा।
मैं प्रकट, मैंअंतर्यामी, मैं पार्थ, मैं सारथी,
मैं राधेय, मैं कौन्तेय, मैं ही सुयोधन,
मैं ही द्रोण, पितामह और नियोजन,
पंचभूत, पंच पांडव और सौ मैं,
अनंत संज्ञाओं से, मुझे सृष्टि पुकारती।
मैं पावक, प्रफुल्लित, मैं पारिजात,
दोहा, मुक्तक, छंद, मैं करामात,
मैं उषा किरण का त्राटक हूँ,
मैं पूर्ण स्वयं में हूँ संबल,
यह कवि लेखनी की शक्ति है,
कुछ ज्वार उठाती है मन में,
कुछ जोश भुजा में भरती है।
मैं हतप्रभ सा रह जाता हूँ,
पृकृति निशब्ध सी लगती है ,
कवियों और लेखकों को विनम्र श्रद्धांजलि© sudhirbirla