पौरुष को आह्वान

 

बसंत ऋतु में रुई सी फुहार ,

मधुकर कुसुम से मधुरस लूटे ,

चंचल चित्त मयूर हो रहा ,

यौवन का ज्यूँ कोम्पल फूटे ,

 

किन्तु छा रहा सन्नाटा ,

थम रही थी श्वास ,

शिथिल हो रहा तन जैसे ,

मन था बदहवास ,

 

तिमिर का तम तिरोभूत हो गया ,

अरुणोदय की रश्मि छा गयी ,

दिव्य जीवन प्रारम्भ करने ,

सुनम्य सौम्य सुता आ गयी ,

 

थाली न बजी, घंटी न बजी,

न ही बजे घड़ियाल ,

मात-पिता उल्लसित किन्तु ,

स्तब्ध हो रहा पंडाल ,

 

वह आत्मज और मैं आत्मजा

इक गर्भ से अपना जन्म हुआ ,

अल्हड़ बचपन अठखेलियां लेता ,

तरंगिणी धारा सा निकल गया ,

 

आभास हुआ विविध रूप से ,

तट यौवन के जब पग धरा ,

बाह्य मधुर समाज के मध्य ,

पूर्ण प्रकांड प्रपंच भरा ,

 

प्रथम आघात जब किया भेद

सहोदर को शिक्षा मुझे खेद ,

है लिंग की ही भिन्नता ,

न है प्रज्ञता में विभेद ,

 

अनुराग प्रतीत होता था समान ,

संग व्यतीत करें जीवन ऐसा अरमान ,

ज्ञात विलम्ब से हुआ परन्तु ,

यौतुक का योग्यता से उच्च स्थान ,

 

व्याकुलता है उद्विग्न ह्रदय है ,

नील नयन से अश्रु फूटे ,

संताप कर रहा हर वह पौधा ,

पुष्प से जिसकी पंखुड़ी टूटे ,

 

समाज की कुरीति और कुप्रथा ,

अनेक कुटुंबो की है यह व्यथा ,

जिससे पुरुष उत्पन्न हुआ ,

पचीसी पे उसका दांव किया ,

 

गर्भ में भ्रूण वध से बची  ,

जिव्हा पे लवण न पड़ा ,

भेद जात धनाढ्यता कारण ,

छद्म सम्मान रक्षा हेतु  ,

अपनों ने सूली पे गढ़ा ,

 

जननी ने संग में जना ,

इक आत्मज और मैं आत्मजा ,

बाल्यावस्था में आभास न था ,

चित्त से क्यूँ कर मुझे तजा ,

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ,

मिला शास्त्रों से यह अमूल्य ज्ञान ,

क्या लुप्त हो गए वह पुरुष धरा से ,

बोध था जिनको, संग था अभिमान ,

 

मैं कनकलता , मैं झलकारी ,

मैं सिद्ध करूँ जो मन में ठना ,

संगिनी मैं जीवन की तेरे ,

मुझको तू अधीनस्त न बना ,

 

मिला दृष्टि मेरी दृष्टि से ,

आवाह्न कर, कर पुरुषत्व खड़ा ,

हो नींव नवीन संप्रदाय की ,

समकक्ष मेरे तू पग को बढ़ा  ,

समकक्ष मेरे तू पग को बढ़ा  ,

   ------


© sudhirbirla       

शब्दार्थ  word meaning

कोम्पल  Bud

तिमिर darkness

तिरोभूत Hidden

सुनम्य सौम्य सुता Beautiful gentle daughter

आत्मज Son

आत्मजा daughter

तरंगिणी Wavy river

सहोदर sibling

यौतुक dowry

भ्रूण  embryo

लवण salt

छद्म  pseudo

कनकलता: कनकलता बरुआ (जन्म- 22 दिसंबर, 1924; शहादत- 20 सितम्बर, 1942) भारत की ऐसी शहीद पुत्री थीं, जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिलीं। मात्र 18 वर्षीय कनकलता अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हों, लेकिन त्याग व बलिदान में उनका कद किसी से कम नहीं। एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 ई. को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया था। तिरंगा फहराने आई हुई भीड़ पर गोलियाँ दागी गईं और यहीं पर कनकलता बरुआ ने शहादत पाई|

झलकारी: झलकारी बाई (२२ नवंबर १८३० - ४ अप्रैल १८५७) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है|