रफ्ता रफ्ता चल रही है ज़िंदगी,
धड़्कनों की तरंगों की तरह,
वह बोले.....हाथ में तेरे है ज़िंदगी,
विचारों का निरंतर आवागमन,
चित्रपट पे चलचित्र की तरह, (स्वत: ही);
भोर से सांझ तक और पुन: भोर तक,
कौन जाने, हाथ में है किस के!
तन्हा मैं नहीं, मन मेरा है!
© sudhirbirla