धर्म अधर्म - विडम्बना
हंसना द्रौपदी का, कसना व्यंग्य ,
चौसर युधिष्ठिर का कौरवों संग |
लगाना मात पे भी, दाँव बारम्बार ,
राज्य, पत्नी पांचाली, सब गए हार |
भरी सभा में, नारी का तिरस्कार ,
सर झुके, स्वयं पांडव करें धिक्कार |
भीष्म, द्रोण, गुरु श्रेष्ठ, बैठे दरबार ,
क्यूँ न सुनें, वेदना भरी पुकार |
यदि शकुनि का पासा था अधर्म,
अधर्म ही नहीं, दुष्टता थी चीर हरण |
नारी पूजनीय, और सत्य यदि है परं,
चौसर पे दांव इनका, है कौनसा धर्म |
भीष्म द्वारा अपहरण, अम्बा बहनों का ,
अंगुष्ठ लेना दक्षिणा में, गुरु द्रोण का |
धर ब्राह्मण वेश, कुंडल-कवच माँगना इंद्र का,
जल में बहाना माँ द्वारा, कर्ण पुत्र का |
चरम मोह, पुत्र प्रति धृतराष्ट्र का,
स्वदृष्टि अवरोध, पत्नी गांधारी का,
वचन दानवीर से, लेना कर्णप्रसू का,
वध अश्वथामा द्वारा, द्रौपदी पुत्रों का,
घेर अभिमन्यु को, जयद्रथ द्वारा मारना,
सूर्यास्त भ्रम, और जयद्रथ का संहारना |
द्रोण समक्ष अश्वथामा, धीमे से गज पुकारना,
रथविहीन कर्ण को, मृत्यु के घाट उतारना,
या जंघा पे दुर्योधन की, गदा प्रहारना |
धर्म मेरे का तर्क, तेरे अधर्म का कुतर्क,
धर्म तेरे का तर्क, मेरे अधर्म का कुतर्क,
व्याख्या धर्म अधर्म से हो रही विभ्रांति ,
विडम्बना, धर्मयुद्ध उपरांत, अप्राप्य रही शांति |
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