परिधि का परिंदा
अविरल नभ में उड़ता पंछी,
यथेच्छ दिशा में जाता है,
ऋतूनुसार निवास परिवर्तन,
हर द्वीप-देश से नाता है |
उन्मुक्त गगन और अविभत धरा,
मनुष्य को निर्बाध दिया,
खींच धरा पर स्वत: रेखाएं,
स्वयंमेव परिसीमा में क़ैद किया I
किये लघु-विशाल भूभाग विभाजित,
गांव बस्ती शहर में बांटा,
विभक्ति दीन-धनी संप्रदाय जात की,
रंगभेद का चुभ रहा है कांटा |
'हम' विच्छेद किया 'मैं' 'तू' में,
राज रंक सा भेद किया,
कर स्वर्ण संचयन सम्पूर्ण सुरक्षित ,
फिर अंगारों सा श्रृंगार लिया |
जटिल जाल का बना के फंदा,
बैठा सोच रहा था बंदा,
स्वतंत्र, स्वाधीन, स्वछंद, नहीं क्यूँ ,
क्यूं कर काट पंख स्वयं के,
मनुष्य बना परिधि का परिंदा|
मनुष्य बना परिधि का परिंदा|
© Sudhir Birla
अविभत- Undivided
अविरत- Continuous
निर्बाध- free, seamless
विभक्त – divided