किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं , उस कद को खोज रहा हूँ मैं
किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं , उस कद को खोज रहा हूँ मैं
आगे 'किस' पथ में बढ़ने का,
मकसद खोज रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं ,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं ,
वास-स्थान, उत्तम है किन्तु ,
प्रासाद विशाल, ढूँढ रहा हूँ मैं ,
साज-सामान वाहन, बहु सारे ,
'उससे' बड़ा, ढूँढ रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं ,
धन धान्य से परिपूर्ण, मगर ,
वैभव अनंत, तलाश रहा हूँ मैं ,
विह्वल मन, खुद किया है मैंने ,
अमन परलोक, खोज रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं ,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं ,
ओहदा बड़ा हो, तुझसे मेरा ,
कद कुर्सी का, नाप रहा हूँ मैं ,
रंग आवरण का, तुझसे गहरा ,
विधि इसकी, सोच रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं ,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं ,
जिस का दूध है, सबसे मीठा ,
उस ढोर को, ढूँढ रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ‘किसका’, पंथ बड़ा ,
उस पंथ को, शोध रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं ,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं ,
जब वायु मतभेद करे जीवों में ,
न रहे प्रकृति द्योतक समता की ,
जब रश्मि करे फर्क तृण तरुवर में ,
उस भोर को खोज रहा हूँ मैं ,
नीम के नीचे खाट बिछाकर,
क्यूँ सब सोच रहा हूँ मैं ,
‘किससे’ ऊँचा उठ जाऊं मैं ,
उस कद को खोज रहा हूँ मैं |
© Sudhir Birla