(अपडेट दी:7/11/24) वेबसाइट में समाज ऊपयोगी सूचना डालने के लिए (मोतीसिंह पिथासिंह सुजावत-8200633847) पर वोटसअप हेतु सभी स्वजातीय महोदयश्री आमंत्रीत हेl
#_वर्धनोरा/मगरांचल के हीरो - #_मेजर_फतेहसिंह_चौहान —
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कुदरत की ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि समय-समय पर हर क्षेत्र व समाज में कोई न कोई नायक के रूप में जन्म लेता है जो कि कुछ नया करके जाता है जिससेे उसकी पहचान सार्वजनिक हो जाती है और समय-समय पर उसके कार्यों के कारण याद भी किया जाता है।
३ मार्च, १९१३ को भीम के पास नंदावट गांव में खुमानसिंह व सिद्धि कंवर के घर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम फतेहसिंह रखा गया। खुमानसिंह कृषि के साथ निर्माण कार्य में सुपरवाइजर का कार्य करते थे। उस समय मगरांचल अंग्रेजी सरकार के अधीन था। भीम में मिडिल स्कूल था जिसमें ७ वर्ष की आयु के बाद इच्छुक बच्चों को प्रवेश दिया जाता था। विद्यालय में हिन्दी, अंग्रेजी व ऊर्दू भाषा में शिक्षा दी जाती थी और सातवीं कक्षा तक शिक्षा मिडिल लेवल तक की होती थी। फतेहसिंह ने भी भीम स्कूल में सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद दसवीं तक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अजमेर में रहकर शिक्षा प्राप्त की। मैट्रिक में कला वर्ग के बाद इन्टर मिडियट सनातन धर्म इन्टर कॉलेज ब्यावर से उत्तीर्ण की। रामजस कॉलेज दिल्ली से बी.ए. इतिहास आर्नस की डिग्री प्राप्त की। भीम व ब्यावर में रहते हुए आर्मी के रिटायर व सेवारत अफसरों से सम्पर्क कर फौज में कमिशन ऑफिसर के चयन हेतु मार्ग दर्शन लेते हुए फौज में ऑफिसर बनने का लक्ष्य बना लिया और स्कूल में स्काउट व कॉलेज में यू.टी.सी.(एन.सी.सी.) में भाग लेकर प्रमाण-पत्र हासिल कर लिये गये। सन् १९३७ में आगरा लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और कमीशन हेतु आवेदन भी कर लिया। जून १९३९ में एल.एल.बी. उत्तीर्ण होने के बाद ही द्वितीय लेफ्टिनेंट में चयन हो गया जिसका प्रशिक्षण सान्ताक्रुज बोम्बे में प्रारंभ हुआ। ३ जून, १९४१ को प्रोबेशन व ट्रेनिंग के बाद लेफ्टिनेंट की पदोन्नति ग्रेनेडियर्स यूनिट अजमेर में नियुक्ति हुई। ३० अक्टूबर, १९४१ में कप्तान पद पर पदोन्नति हुई। सागर, नसीराबाद की इन्फेन्ट्री शस्त्र प्रशिक्षण स्कूल में प्रशिक्षक रहे। १६ नवम्बर, १९४५ को मेजर पद पर पदोन्नति के बाद उत्तर-पश्चिम प्रदेश वाना में नियुक्ति हुई। २६ जनवरी, १९४७ को सेवानिवृत्त हुए। वकालत हेतु जिला मुख्यालय ब्यावर का चयन कर वही आबाद होकर व्यवसाय शुरू किया। मई १९४७ में रावत-राजपूत महासभा के अध्यक्ष बने। उस समय राजा-रजवाड़ों के सानिध्य में राजस्थान क्षत्रिय महासभा जिसके अध्यक्ष #_महाराज_कुमार #_दलजीतसिंह_ईडर व अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष #_महाराजा #_तेजसिंह_अलवर थे। ये सामाजिक संगठन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सक्रिय थे जब अंग्रेज भारत छोड़ने की स्थिति में थे। सत्ता परिवर्तन की स्थिति में देश में उस समय नाजुक हालात बने हुये थे।
फौज में प्रथम नियुक्ति के पास आऊट अंग्रेजी रिकॉर्ड में कुंवर फतेहसिंह रावत दर्ज होने से इस लेख के इतिहासकार श्री चन्दनसिंह खोखावत ने शीर्षक जोड़ा है। अध्यक्ष बनने के बाद मेजर फतेहसिंह ने उक्त क्षत्रिय महासभा के अध्यक्षों से सम्पर्क कर सभी क्षत्रिय संगठनों को एक साथ मिलकर सामाजिक एकता के लिए विचार-विमर्श करने व सामूहिक सम्मेलन करने का मत रखा। वार्तालाप के बाद मारवाड़ राज्य के सेन्दड़ा गांव में सम्मेलन रखना तय कर ३० अक्टूबर, १९४७ की तिथि तय कर प्रचार-प्रसार किया गया। सेन्दड़ा आवागमन के लिये रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ था और अन्य राज्यों की सीमा के नजदीक भी था।
इस सामाजिक आयोजन के लिये विशाल टेन्ट लगाकर आगन्तुकों के लिये सुविधायें जुटाई गयी। उक्त सम्मेलन में मारवाड़, मेवाड़, अजमेर, वर्धनोरा (मगरांचल), शेखावाटी, अलवर क्षेत्र से हजारों की संख्या में प्रमुख, राव, उमराव एकत्रित हुये। इस अधिवेशन की अध्यक्षता अजमेर-ब्यावर क्षेत्र के प्रमुख आर्यसमाजी स्वामी श्री माधवानंद ने की। मुख्य अतिथि मारवाड़ महाराजा हनुवंतसिंह भी बिलाड़ा तक नीजी वायुयान से आये। अधिवेशन के स्वागतकर्ता अध्यक्ष मेजर फतेहसिंह थे।
इस अधिवेशन में सभी लोग अपने-अपने पारम्परिक वेश में उपस्थित हुये। क्षत्रिय संगठनों ने सामुहिक घोषणा कि रावत-राजपूत जाति के मूल में चौहान, गुहिलोत, पंवार, राठौड़, भाटी आदि राजपूत वंशज समाविष्ट है इसलिए रावत-राजपूत निर्विवाद रूप से राजपूत समाज के ही अंग है। हमें राष्ट्र और धर्म के प्रति एक साथ मिलकर कार्य करने है और क्षात्र धर्म की रक्षा करनी है। अतीत में अस्तित्व के लिए आपस के विवादों को भूल कर हिन्दुस्तान के हिन्दुओं की रक्षा की जिम्मेदारी निभानी हैं।
इस अधिवेशन में वर्धनोरा (मगरांचल) के अनेक ठाकुर, रावजी व सेवानिवृत्त कर्मचारी रजवाड़ों के उक्त अतिथियों के अलावा राव गणपतसिंह खरवा, राजाधिराज उम्मेदसिंह शाहपुरा, ठाकुर रायपुर, ठाकुर निम्बाज, कर्नल मोहनसिंह भाटी, कुंवर गोविन्दसिंह चण्डावल, राजपुरोहित मोहनसिंह खरवा, मंगलसिंह खूड आदि अनेक प्रमुख थे। सम्मेलन समाप्ति के पश्चात् सामूहिक भोज हुआ। पंगत व पतलों में भोजन करते हुये एक-दूसरे को आपस में नवाले दिये गये। उस समय के समाचार पत्रों में इसके समाचार प्रकाशित हुए। इस सम्मेलन के पश्चात् समाज सुधार के महत्वपूर्ण कार्य हुए।
मार्च १९४८ में मारवाड़ विधानसभा का गठन हुआ जिसमें कोट-किराणा परगने से #_कुबेरसिंह_किराणा को मनोनित किया गया, जिसके प्रथम अधिवेशन में कुबेरसिंह के साथ मेजर फतेहसिंह ने भी भाग लिया।
सितम्बर १९४८ में भारतीय सेना में पुनः बुलावा आ गया तो पूर्वी कमान के रांची मुख्यालय पर जोईन किया। मिलिट्री इन्टेलिजेन्स एवं लामजन ऑफिसर के रूप में सेवा देकर अप्रैल १९५२ में त्याग पत्र देकर लौट आये।
१९५४ में गगवाना, १९५७ में भीम-देवगढ़, १९६७ में ब्यावर, १९७७ में भीम-देवगढ़ से विधायक रहे। पुनः रावत-राजपूत महासभा के अध्यक्ष भी रहे। सन् १९८२ के बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बनाकर सामाजिक व वकालत का कार्य करते रहे। १६ जून, २०१० को ब्रह्मलीन हुये।
प्रयास करने वाले की हार नहीं होती। लक्ष्य तय कर कठोर परिश्रम करने से सफलता मिलती है। स्वामी विवेकानन्द का संदेश “उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रूको नहीं।” यह उनका मार्ग दर्शक था। महापुरुषों की जीवनीयां पढ़ने से प्रेरणा मिलती है।
एक आदर्श महापुरुष - मेजर साहब फतेहसिंह जी चौहान —
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✽. एक अनुकरणीय प्रेरणास्प्रद व्यक्तित्व –
शूरों और वीरों की गौरवमयी पुण्यभूमि राजस्थान की भीम तहसील के गांव नन्दावट में हमारे समाज के अनमोल रत्न मेजर फतेहसिंह चौहान ने ३ मार्च, १९१३ को पिता खुमानसिंह व माता सिद्धिदेवी के यहां जन्म लिया था। आपने उस स्वाभिमानी रावत-राजपूत समाज में जन्म लिया जिसकी वीरता व स्वाभिमान का एक उज्जवल एवं गौरवमयी इतिहास रहा है। रावत-राजपूतों ने अपने क्षत्रिय कुल के मान, मर्यादा, स्वाभिमान, धर्म, संस्कृति, कुलगौरव व जीवन मूल्यों की रक्षा में सैकड़ों वर्षों तक मुगल शासकों व आस-पास की देशी रियासतों के राजा-महाराजाओं से निरंतर संघर्ष करते-करते आर्थिक रूप से जर्जर हो गए पंरतु गुलामी व पराधिनता स्वीकार नहीं की। इसी शूरवीर, बहादुर व कणबांकुरा क्षत्रिय कुल की चौहान शाखा के बरड़वंशीय वरावत रावत-राजपूत शाखा से मेजर साहब फतेहसिंह जी थे।
✽. दृढ़ संकल्पों के धनी व्यक्तित्व –
मेजर साहब दृढ़संकल्पी, पुरूषार्थप्रिय व कठोर परिश्रमी व्यक्तित्व थे। आपने प्राथमिक शिक्षा भीम से पास करने के बाद आपका लक्ष्य सेना में अधिकारी बनना था। इसके लिए उच्च शिक्षा आवश्यक थी। इस हेतु आपने सन् १९३२ ई. में अजमेर से माध्यमिक, सन् १९३५ ई. में ब्यावर से इंटरमीडियेट, सन् १९३७ ई. में दिल्ली से बी.ए. ऑनर्स तथा सन् १९३९ ई. में आगरा से एल.एल.बी. परीक्षा पास की। आपके पिता एक किसान थे परंतु पुत्र को सुयोग्य बनाने के लिए सभी कष्ट सहे, यह उसी का सुखद परिणाम रहा कि आप उस समय इस स्तर तक की उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले हमारे रावत-राजपूत समाज के प्रथम युवक बने।
✽. सुयोग्य एवं कुशल सेना अधिकारी –
आपने विद्यार्थी जीवन में ही संकल्प लिया था कि सेना में अधिकारी बनकर देश की सेवा करनी है। इसी लक्ष्य से आप सन् १९३९ ई. में सेना में कमिशन पाकर अधिकारी बनने वाले उस समय एक मात्र रावत-राजपूत थे। आप अपनी कार्यकुशलता, अनुशासन, कठोर परिश्रम व नेतृत्व क्षमता के बल पर अल्पकाल में ही मेजर के पद तक पहुंचे। इसी समय सन् १९४७ ई. में देश आजाद हो गया। शासन की नई प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू हुई। हमारा समाज भी नई शासन व्यवस्था में शामिल हो इसकी जरूरत थी। इसके साथ ही मेजर साहब ने अपने बाल्यकाल में समाज के पिछडे़पन की जो स्थिति देखी उससे पीडा भी उभरी कि समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता जगाना जरूरी है नहीं तो हमारा समाज अन्य समाजों से पिछड़ जाएगा तथा समाज में सुधार हेतु जन आंदोलन की आवश्यकता भी महसूस की। समाजसेवा के इसी उद्देश्य से आपने सेवानिवृत्ति ले ली।
✽. सफल व क्रांतिकारी समाज सुधारक नेता –
मेजर साहब ने सेना की नौकरी छोड़कर रावत-राजपूत समाज का नेतृत्व संभाला और समाज को वर्षो तक एक छत्र नेतृत्व प्रदान किया। आपने रावत-राजपूत महासभा को जो ऊंचाई प्रदान की वह संगठन आज भी समाज की सेवा का काम कर रहा है। मेजर साहब ने समाज सुधार हेतु आवश्यक कार्य किये और देखते ही देखते समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने में सफल हुए। आज समाज का जो अच्छा स्वरूप देखा जा रहा है उसके लिए बहुत बड़ा योगदान मेजर साहब का ही रहा है। इसी कारण आपकी समाज सुधारक के रूप में भी पहचान बनी। आपके समय में रावत-राजपूत समाज आपको महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद व राजा राममोहन राय के नाम से गर्व के साथ संबोधित करता था।
✽. समाज की खोई प्रतिष्ठा को वापस दिलाना –
मेजर साहब फतेहसिंह जी ने रावत-राजपूत समाज के इतिहास को जाना और प्रण किया कि समाज की खोई प्रतिष्ठा को वापस दिलानी है। आपने इसके लिए अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के तत्कालीन पदाधिकारियों व राजपूत नेताओं से मिले और आपके प्रयासों से अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया कि रावत-राजपूत जाति के मूल में चौहान, गुहिलोत, पंवार, राठौड़, भाटी आदि राजपूत वंशज समाविष्ट है इसलिए रावत-राजपूत निर्विवाद रूप से राजपूत समाज के ही अंग है। आपने इस निर्णय की घोषणा भी रावत-राजपूतों व राजपूतों के सेंदड़ा में आयोजित हुए संयुक्त सम्मेलन में तत्कालीन जोधपुर रियासत के महाराजा सा. हनुवंतसिंह से हजारों लोगों की उपस्थिति में तालियों व जयघोषों के मध्य करवाई थी। इस मौके पर सहभोज भी हुआ, जिसमें मेजर सा. व महाराजा सा. ने एक थाली में भोजन किया। इस निर्णय के परिणामस्वरूप ही रावत-राजपूत भी सेना की सभी यूनिटों में भर्ती होने लगे।
✽. स्पष्टवादी, ईमानदार व चरित्रवान राजनेता –
आपने राजनीति में भी एक कीर्तिमान स्थापित किया। आप अजमेर राज्य की गगवाना विधानसभा क्षेत्र से सन् १९५२ में पहली बार निर्दलीय विधायक बने। बाद में अजमेर राज्य राजस्थान में विलय हो गया तो आप सन् १९५७ में भीम-देवगढ़ से, सन् १९६७ में ब्यावर क्षेत्र से स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी के रूप में व सन् १९७७ में भीम से जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में विधायक बनने में सफल रहे। आप विधानसभा के एक बार कार्यवाहक अध्यक्ष भी रहे। आप विधानसभा में दमंगता, ऊंची आवाज, ओजस्वी भाषा के वक्ता थे। राजनीति में आपने पूरी तरह ईमानदारी व स्पष्टवादिता रखी।
✽. आदर्श आचरणों वाला महापुरुष –
आपनेे जीवन में सदैव अपनी कथनी और करनी एक रखी। आपने सभ्य व शिष्ट आचरण रखा एवं अनुशासनमय जीवन जीया। वाणी में सदा स्पष्टवादिता रखी। जीवन भर सादा जीवन व उच्च विचार रखे, सदा स्वच्छता पसंद की। अपना चरित्र उज्जवल बनाए रखा व ईमानदार रहे। आप दृढ़ संकल्पी, कठोर परिश्रमी और अपने लक्ष्य के प्रति सदा सजग रहे। अनीति, अन्याय व अत्याचार का दृढ़ता से सदा विरोध किया। समाज के सेवा कार्यों में सदा अग्रणीय रहे। अपने धर्म, देश, संस्कृति व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारियों के प्रति सदैव जागरूक रहे। समय को सदैव कीमती समझ उसका सदुपयोग किया। इस तरह मेजर सा. फतेहसिंह जी एक आदर्श महापुरुष थे। उनका जीवन चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय रहा है।
✽. फौजदारी व राजस्व मामले के सफल एडवोकेट –
मेजर साहब ने सेना से सेवानिवृत्ति लेने के बाद जीवनयापन के लिए वकालात का व्यवसाय अपनाया साथ ही वकालात जैसे पेशे में भी मेजर सा. ने जीवनभर ईमानदारी रखी जो कि एक मिशाल है। आप फौजदारी व राजस्व मामलों के अपने समय के ख्यातिप्राप्त एडवोकेट थे। आप अपने जीवन काल में एक भी मुकदमा नहीं हारे जो कि एक इतिहास है। आपने एक ईमानदार नोटेरी पब्लिक के रूप में भी सेवाएं दी।
✽. शिरोमणि रावत रत्न पदक से सम्मानित –
सारण में २२ अप्रैल, २००१ को हजारों रावत-राजपूतों के जयघोषों के मध्य कृतज्ञ रावत-राजपूत समाज की ओर से मेजर साहब को शिरोमणि रावत रत्न पदक देकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर वीरता की प्रतीक तलवार भेंट की गई, स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया व केसरिया साफा बांधकर आपका अभिनंदन किया गया। इस तरह का समाज की ओर से मान-सम्मान पाने वाले रावत-राजपूत समाज के आप एक मात्र नेता रहे हैं।
✽. कर्तव्य परायण व जिम्मेदार पिता –
मेजर साहब ने अपने समय में समाज के समक्ष अपने आचरण से छोटा परिवार-सुखी परिवार का भी आदर्श आचरण पेश किया। आपके पुत्र लक्ष्मणसिंह चौहान व पुत्री राजकुमारी चौहान है। आपने दोनों पुत्र, पुत्री को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाई व अच्छे संस्कार दिये। फलतः आपके पुत्र लक्ष्मणसिंह चौहान भी मेजर साहब की तरह ही फौज में स्क्वेड्रन लीडर रहे, कॉलेज में व्याख्याता रहे, तीन बार विधायक रहे, राजस्थान सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे, समाज सेवा में भी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहे हैं तथा वकालात का व्यवसाय कर रहे हैं। पुत्री राजकुमारी भी प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त है।
✽. यादें व मेरा जीवन संघर्ष छोड़ गए युगपुरुष –
मेजर साहब ने वृद्धावस्था में भी कर्म के प्रति सजगता रखी और अपने जीवन की यादों को मेरा जीवन संघर्ष पुस्तक के रूप में समाज को प्रदान कर अनूठा कार्य किया। आप ९८ वर्ष की आयु में १६ जून, २०१० को अपनी नश्वर देह त्याग कर स्वर्ग सिधार गए, पीछे छोड़ गए अपना जीवन चरित्र जो युगों-युगों तक हमें व भावी पीढ़ी को अच्छी प्रेरणा देता रहेगा।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास,
इतिहास लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
स्त्रोत- मगरांचल के नायक लेखक- इतिहासकार श्री चन्दनसिंह खोखावत (पुलिस उपनिरीक्षक)
ठि.-छापली, जिला-राजसमन्द____
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#___जय_मां_भवानी____
#___जय_राजपूताना____
स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
"मेजर सा. फतेहसिंह चौहान" —
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वीर प्रसूता भूमि राजस्थान का रावत-राजपूत क्षत्रिय कुल मान, मर्यादा, स्वाभिमान, धर्म, संस्कृति व कुल गौरव के लिए प्रसिद्ध रहा है। रावत-राजपूतों ने कभी गुलामी स्वीकार नहीं की, न ही कभी अपने स्वाभिमान के साथ कोई समझौता किया, भले ही कठिनाई उठा ली अथवा आर्थिक रूप से जर्जर हो गए।
रावत-राजपूतों की वीरता, शौर्य, बहादुरी व स्वाभिमान का उज्जवल इतिहास रहा है। इसी स्वाभिमानी रावत-राजपूत कुल में अग्रणीय समाज सुधारक, आदर्श राजनेता, सफल एडवोकेट एवं देशभक्त सैन्य अधिकारी रहे मेजर सा. फतेहसिंह चौहान का जन्म राजसमंद जिले की भीम तहसील के गांव नंदावट में ३ मार्च १९१३ को श्री खुमानसिंह वरावत के घर हुआ। आपकी माता का नाम सिद्धि देवी था।
मेजर सा. फतेहसिंह चौहान ने भीम से सन् १९३२ में गवर्ननेंट हाई स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की। आपने ब्यावर से सन् १९३५ में इंटर मीडियेट उत्तीर्ण की तथा काॅलेज शिक्षा दिल्ली के रामजस काॅलेज से प्राप्त की। इसके बाद आपने सन् १९३९ में आगरा (उत्तरप्रदेश) से एलएलबी पास की।
आपका लक्ष्य था कि अधिकारी बनकर देश की सेवा करूं। इसी भावना के अनुरूप आपने प्रयास किया और आप सन् १९३९ में बोम्बे ग्रेनेडियर्स में सैकंड लेफ्टिनेंट बननें में कामयाब हुए। उस समय आप समाज के प्रथम कमीशन अधिकारी बने जो रावत-राजपूत समाज के लिए गर्व व खुशी का विषय था। आपको सन १९४१ पदोन्नति मिली और कप्तान बने, सन १९४६ में आपने मेजर के पद पर पदोन्नति प्राप्त की। इस दौरान आपने द्वितीय विश्वयुद्ध में विभिन्न जगह अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दी। सेना की सेवाओं के दौरान आपने समाज के इतिहास की जानकारी भी ली तथा समाज के चल रहे सुधार कार्यो को लेकर सभा-सम्मेलनों में शामिल होते रहे। इसी दौरान आपने समाज सेवा, समाज सुधार के कार्य को महत्वपूर्ण मानकर सन् १९४७ में सेना से सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद आपने समाज का नेतृत्व अपने हाथों में लिया और समाज सुधार को एक नया मुकाम दिया।
मेजर सा.को सन् १९४८ में फिर से सेना में बुला दिया गया और पूर्वी कमान में मिलिट्री इंटेलीजेंस एण्ड लायजन आॅफिसर लगाया गया। इस समय आपने असम, बंगाल, उत्तरप्रदेश व बिहार में सेवाएं दी, बाद में आपने सेना से फिर सेवानिवृति ले ली।
मेजर सा. फतेहसिंह जी चौहान का विवाह सूबेदार इन्दरसिहं ग्राम लोटियाना की पुत्री यशोदा के साथ मई १९४० को हुआ। मेजर सा. के एक सुपुत्र लक्ष्मणसिंह व सुपुत्री राजकुमारी है। मेजर सा. एक कुशल सैन्य अधिकारी, सिद्धांतवादी एडवोकेट, सफल समाज सुधारक, आदर्श राजनेता, ओजस्वी वक्ता व उज्जवल चरित्र के धनी रहे। समाज सदैव फतहसिंह का कृतज्ञ रहेगा।
मेजर सा. फतहसिंह जी चौहान ने सामाजिक क्षेत्र में सर्वप्रथम १९४३ में रावत-राजपूत समाज के कालीकांकर सम्मेलन में शामिल हुए। इसके बाद १९४४, १९४५, १९४६ के अधिवेशनों में शरीक हुए। आपने सेना से सेवानिवृत्ति के बाद राजस्थान क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष महाराज कुमार दलजीतसिंह रियासत ईडर व अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष महाराज सा. तेजसिंह रियासत अलवर से मिले और रावत-राजपूतों की जानकारी देकर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से यह प्रस्ताव पास कराने में सफल रहे कि "रावत-राजपूत भी राजपूत है इनसें किसी प्रकार का सामाजिक भेदभाव न रखा जावे।" इस निर्णय में ठाकुर मंगलसिंह ठिकाना खूड, कर्नल मोहनसिंह भाटी जोधपुर, कुंवर गोविन्दसिंह ठिकाना चण्डावल, कुंवर देवीसिंह ठिकाना मण्डावा, मोडसिंह राजपुरोहित ठिकाना खरवा ने पूर्ण सहयोग दिया। इसके बाद ३० अक्टूबर १९४७ को सेंदड़ा में रावत-राजपूतों व राजपूतों का संयुक्त सम्मेलन रखा जिसमें जोधपुर महाराज सा. हनुवंतसिंह मुख्य अतिथि थे तथा मेजर सा. फतहसिंह स्वागताध्यक्ष थे। सम्मेलन में राजस्थान के सैकड़ों राव, उमराव व जागीरदार भी शामिल हुए। सम्मेलन में जोधपुर महाराजा सा. ने अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का प्रस्ताव हर्षोल्लास के मध्य "रावत-राजपूत भी राजपूत है तथा इनसे किसी तरह का भेदभाव न रखा जाए" पढ़कर सुनाया। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए राव सा. गणपतसिंह खरवा व राजाधिराज उम्मेदसिंह शाहपुरा ने मेजर सा. को बधाई दी।
इसके बाद वर्षों तक मेजर सा. ने रावत-राजपूत समाज को नेतृत्व प्रदान किया। मेजर सा. ने समाज के सुधार व विकास के क्रम में जो निर्णय किया उसे रावत-राजपूत समाज ने तत्काल शिरोधार्य किया जैसे कोई राजा का आदेश हो। इससे देखते ही देखते समाज में अभूतपूर्व सुधार आ गया।
मेजर फतहसिंह समाज के राजनैतिक जाग्रति के भी जनक थे। आप पहली बार मगरांचल स्टेट में सन १९५४ में गगवाना से विधायक रहे बाद में सन १९५७ में भीम देवगढ़, सन १९६७ में ब्यावर व सन १९७७ में भीम देवगढ़ से विधायक रहे।
मेजर सा. ने रावत-राजपूत समाज में शिक्षा की भी अलख जगाई। आज समाज जिस उन्नत रूप में देखा जा रहा है, इसमें मेजर सा. का बड़ा योगदान रहा है।
स्त्रोत- (१). रावत-राजपूत संदेश पत्रिका।
(२). वर्धनोरा राज्य का इतिहास।
लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
"वर्धनोरा (मगरांचल) राज्य के राजपूत समाज के इतिहास लेखक डॉक्टर श्री मगनसिंह चौहान"―
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मगरांचल क्षेत्र के सुप्रसिद्ध इतिहास लेखक डॉ. मगनसिंह चौहान का जन्म अक्टूबर,१९१८ को राजस्थान के राजसमंद जिले में भीम तहसील के गांव रावजी का तालाब (कूकड़ा) में हुआ था। आपकी माताजी का नाम श्रीमती पन्नूदेवी और पिताजी का नाम बुद्धासिंह था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा गांव कूकड़ा में हुई। आर्थिक तंगी ए्वं घरेलू विषम परिस्थितियों के कारण आप आगे अध्ययन जारी नहीं रख सके। सन् १९३१ ई. में आपका विवाह भीलवाड़ा जिले की आसिन्द तहसील के गांव रीछी का बाड़िया में तेजसिंह की सुपुत्री नन्दू कंवर के साथ हो गया। सन् १९३३ ई. में अपने बड़े भाई लालसिंह के साथ बड़ौदा जाकर कपड़ा मिल में आपने श्रमिक का कार्य किया।
२ जुलाई, १९४० को आपने भारतीय थल सेना की मेड़िकल कोर में भर्ती होकर अपनी सेवायें दी। इसके पश्चात् १० जनवरी, १९४१ को आप भारतीय थल सेना के साथ सिंगापुर गये, जहां सन् १९४२ में आप सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए। आजाद हिन्द फौज ने अग्रेंजो के विरूद्ध युद्ध किया। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा आजाद हिन्द फौज के सैनिको को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके ४ वर्ष बाद आप रिहा हुए। डॉ. साहब १९४६ ई़ में अवकाश पर गांव लौटे, इसके पश्चात् आपने मगरे क्षेत्र की ऐतिहासिक जानकारी के लिए तथ्यों को संग्रहित करके प्रकाशित करवाने का मानस बनाया।
आपने मगरे के इतिहास पर गहन अध्ययन किया और इतिहास की प्रमाणिक खोज के लिए आपने कई स्थानों का भ्रमण किया और कवि, राव, चारण, भाट आदि से जानकारी प्राप्त कर उसे लिपिबद्ध किया। सन् १९४७ में देश की स्वतंत्रता के बाद आप भारतीय सेना में पुनः जुड़ गए और १९६६ ई. में सेना से सेवानिवृत हुए। सेवानिवृति के बाद आपने अपना शेष जीवन इतिहास लेखन में लगा दिया और इतिहास सहित कई पुस्तकें लिखी। समाज और क्षेत्र के लोगों का आपको अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण आप अपने द्वारा लिखित इतिहास संबंधी पुस्तकों को प्रकाशित नहीं करवा सके। आपने इतिहास का संकलन और खोज में १९४६ से १९८४ तक ३८ वर्षो तक अथक परिश्रम किया। आपको आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा का अच्छा ज्ञान था। आपके द्वारा रोगियों का ईलाज करने के कारण लोग आपको डॉक्टर साहब कहकर पुकारते थे। आपका दिनांक २७ सितम्बर १९९३ को ७६ वर्ष की आयु में निधन हो गया। आपके दो पुत्र और दो पुत्रियां है, ज्येष्ठ पुत्र भगवानसिंह चौहान आपके ही पदचिन्हों पर चलते हुए समाज सेवा कर रहे हैं तथा १९९४ से रावत-राजपूत संदेश समाचार पत्र का निरंतर प्रकाशन कर रहे हैं।
डॉ. साहब द्वारा लिखित अप्रकाशित पुस्तकें–
(१). रावत-राजपूतों का इतिहास
(२). मगरांचल का इतिहास
(३). मगरे के वीरों की गौरव गाथायें
(४). घोड़ावत चौहानों का इतिहास
(५). त्यागी वीर पचौण रावजी
(६). बलराज चीता को वैराट राज्य का मिलना
(७). भीमटा चौहान को बादशाही मिलना
(८). अनूपवंशीय (बरड़ साख) चौहान वंशवृक्ष
(९). अन्हलवंशीय (चीता साख) चौहान वंशवृक्ष
(१०). लोकदेवता देवनारायण
(११). लोकदेवता मालदेव पंवार (मांगटजी महाराज)
(१२). हालकोट- मालकोट वंश
(१३). ज्ञान भण्डार
(१४). स्वतंत्रता सेनानी राजूजी चौहान
(१५). भारतीय सभ्यता एवं शिष्टाचार
(१६). नारी धर्म एवं शिक्षा
(१७). खंगारजी मालावत को महादेव मिलना
(१८). गोगादेव चौहान
(१९). लोकदेवता वीर तेजाजी
(२०). सम्राट पृथ्वीराज चौहान चरित्र
(२१). मगन चरित्र
(२२). मगरा के क्षत्रियों की वंशावली
(२३). शिक्षाप्रद दोहे और सोरठे
(२४). काठात चौहानों का इतिहास....
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डॉ. मगनसिंह चौहान ने कई वर्षो तक शोध करने के बाद रावत-राजपूतों के इतिहास को लेकर कई पुस्तकें लिखी थी जो कि आज भी अप्रकाशित है। इन्हीं अप्रकाशित पुस्तकों में से ही सम्पादक भगवानसिंह चौहान रावत-राजपूत संदेश प्रकाशन में इतिहास से जुड़ी जानकारी देते रहे है।
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"महामानव प्रायः अपने जीवन काल में नहीं पहचाने जाते। उनके चले जाने पर ही उनकी गरिमा पहचानी जाती है और उनकी यह गरिमा अनंतकाल तक प्रेरणा एवं आदर्श बनकर असंख्य मानवों का हित साधन करती रहती है।"......
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🚩 जय मां भवानी 🚩
⚔ जय राजपूताना⚔
स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था, राजस्थान.......
पेज एडमिन– सूरजसिंह s/o शोभागसिंह
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर..
मारवाड़ क्षेत्र से मोहन सिंह जी डिंगोर साहसी निडर धैर्यवान एवं समाज के हितेषी रावत समाज का रतन जिन्होंने रावत रावत मेजर फतेह सिंह की सारण में 1955 में आम जनता मैं डाकुओं का डर घुसा हुआ था तो उसे समय मेजर फतेह सिंह जी ने एवं उनकी कार्यकारिणी ने सारण के अंदर एक मीटिंग का आयोजन हुआ मेजर फतेह सिंह की जनसंघ से जुड़े हुए थे तत्कालीन सरकार ने उन पर जनता को को भड़काने का आरो लगाकर गिरफ्तार कर दिया गया उस समय लोग डरे हुए थे ऐसी स्थिति में मेजर फतेह सिंह जी की जमानत कराने के लिए मोहन सिंह जी डिंगोर आगे आए और उन्होंने 25000 जमानत दी आज के भाव से 25 लख रुपए बनते हैं ऐसे वीर समाजसेवी निडर मारवाड़ क्षेत्र के रावत मोहन सिंह जी को रावत राजपूत महासभा ब्यावर की ओर सत सत नमन करते हैं। पोस्ट साभार भगवान सिंह चौहान कामलीघाट
वर्धनोरा के हीरो श्री अर्जुनसिंह भोपावत —
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राजस्थान की धन्य है वो धरा जिसे वीरता के लिए विदेशों में भी नमन किया जाता है। शौर्य और साहस ही नहीं अपितु हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र मेें अपना अहम् योगदान देकर विदेशों में ख्याति प्राप्त की है, बात करते है राजस्थान राज्य के राजसमंद जिले के छोटी तहसील भीम उपखंड में वर्धनोरा के हीरो सम्मानीय श्री अर्जुनसिंह भोपावत की। आपका जन्म ७ अक्टूबर, १९०६ को सूबेदार श्री डूंगरसिंह जी के घर हुआ था। आप ब्रिटिश शासनकाल में अजमेर में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् सन् १९३४ ई. में आगरा उत्तर प्रदेश से एल.एल.बी. उत्तीर्ण कर एडवोकेट तहसीलदार मुंसिफ मजिस्ट्रेट फिर सिविल मजिस्ट्रेट पद से ब्यावर से सेवानिवृत्त हुए। आप जीवन के तमाम चुनौतियों से संघर्ष करते गए और आपने बुलदियां छुते हुए राष्ट्र के प्रति आप समर्पित रहे। आर.जे.एस. सेवानिवृत्ति के पश्चात् सन् १९७१-७२ में राजस्थान रावत-राजपूत महासभा ब्यावर के अध्यक्ष चुने गए। आप ही के कार्यकाल में ही रावत-राजपूत महासभा का पंजीकरण हुआ था। आपका ७ जुलाई, १९७४ को ६८ वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया था।
संकलनकर्ता – इतिहासकार श्री चंदनसिंह खोखावत (पुलिस उपनिरीक्षक राजसमंद)
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
पेज एडमिन ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
"राव भारमल चौहान बरार "―
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अजमेर-मगरांचल में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत जब इंग्लैंड में सम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया का शासन था। उस समय भारत के गर्वनर जनरल व वायसराय लॉर्ड लिटन थे।
सम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया जब इंग्लैंड से भारत में अंग्रेजी शासन व्यवस्था देखने पधारी तो भारत के गर्वनर जनरल व वायसराय ने उनके सम्मान में भव्य समारोह 'दिल्ली दरबार' का आयोजन १ जनवरी, १८७७ को दिल्ली में किया। दिल्ली दरबार में अजमेर मगरांचल के विख्यात व्यक्तित्व वाले सरदारों व राव उमरावों को आमंत्रित किया।
उस समय ब्यावर अजमेर क्षेत्र से बरार, बरसावाड़ा जो उस समय ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत तहसील मुख्यालय था।
मगरांचल राज्य के कई ठिकाणे जो जोधपुर, उदयपुर दरबार के अन्तर्गत थे। मगरा क्षेत्र उन दरबारों के नियंत्रण से बाहर था, इसलिए उन्होंने यह क्षेत्र अंग्रेजों को सौंप दिए थे। अंग्रेजों ने अजमेर में चीफ कमिश्नर को इन ठिकाणों पर शासन व्यवस्था हेतु लगाया। चीफ कमिश्नर जो अंग्रेज होता था। नियंत्रण व शासन व्यवस्था को सुदृढ़ करने के क्रम में टॉडगढ़ में तहसील मुख्यालय कायम किया था।
कर्नल व फौज के अफसर ज्यादातर अंग्रेज व कुछ स्थानीय सैनिक होते थे। क्षेत्र के मुख्य व्यक्तित्व को समय-समय पर शासकीय व्यवस्था हेतु आमंत्रण देकर बुलाते थे। उस समय बरार भी बरसावाड़ा तहसील के अन्तर्गत मुख्य क्षेत्र था। बरार के राव भारमल चौहान को जो कोठात थोक के रावजी थे उन्हें मेम्बर ऑफ डिस्ट्रीक्ट कमेटी अजमेर बनाया गया था। उनको १ जनवरी, १८७७ को दिल्ली दरबार में सम्राज्ञी विक्टोरिया महारानी ने सुनहरी तलवार जिसकी मूंठ सोने की थी व ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था।
ज्ञातव्य हो उस समय डिस्ट्रीक्ट मेम्बर भी आज के राज्यसभा के सदस्यों की भांति नामित (नॉमीनेट) किए जाते थे। ब्रिटिश शासन व्यवस्था वहां के संविधान के अन्तर्गत होती थी। ब्रिटिश साम्राज्य उस समय विश्व विख्यात था। यह प्रसंग दिल्ली दरबार भारत की आजादी से ७ दशक पूर्व का था। भारत में अंग्रेजी शासन के इतिहास के बारे में इतिहास वेत्ता ही ज्यादा जानते हैं कि दिल्ली दरबार का आयोजन भव्य व प्रभावी होता था।
आज तक भी बरार में राव भारमल चौहान के वंशज क्रमशः नीम्बा रावजी, हमीर रावजी, लालसिंह रावजी, ज्येष्ठसिंह रावजी जो कोठात रावजी हैं। उनका वर्णन पीपलाज माता मंदिर व दुधालेश्वर महादेव के मंदिर में शिलालेखों में नामांकित साक्ष्य है। कोठात रावजी का पद अब भी समाज में प्रतिष्ठित व मान्य है।
प्रस्तुतकर्ता- भानुशशिसिंह, सेनि. प्राध्यापक बरार....
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स्वाभिमान रावत-राजपूत संस्था राजस्थान.....
✍ सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.- बोराज काजिपुरा, अजमेर....
मगरांचल के हृदय सम्राट - (श्री हीरा सिंह जी चौहान)
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हमारे रावत-राजपूत समाज में सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक उत्थान में मेजर श्री फतेह सिंह जी साहब के बाद किसी का नाम आदर से लिया जाता है, तो वह है "शेर- ए- मगरा" श्री हीरा सिंह जी चौहान।
अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों की श्रृंखलाओं "मगरांचल" के एक छोटे से गाँव - कानूजा (रायपुर -पाली) में १ जुलाई, १९४० को नारी शक्ति श्रीमती हंजा कंवर - श्री नाथू सिंह के घर श्री हीरा सिंह चौहान जी का जन्म हुआ। आप सन् १९५८ से निरंतर १२ वर्षो तक एक आदर्श शिक्षक की सेवा करते हुए, बी.ए. एवं एल.एल.बी. कर सन् १९७० में वकालत का व्यवसाय प्रारंभ किया। सन् १९७४ से १९७७ तक कृषि उपज मंडी - जैतारण के चेयरमैन रहें। सन् १९८१ से १९८४ तक कानूजा के निर्विरोध सरपंच तथा प्रधान (रायपुर) इन पदों पर रहतें हुए मगरांचल क्षेत्र के किसानों, मजदूरों एवं गरीबों के लिए सराहनीय कार्य कर लोकप्रिय नेता के रूप में पहचान मिली।
राजस्थान रावत राजपूत महासभा - ब्यावर के संविधान का प्रारुप सन् १९७० में तैयार कर रजिस्ट्रेशन कराने महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। सन् १९८५ से १९९० तक रायपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। #मगरांचल क्षेत्र में विकास कार्यों एवं लोकप्रियता से सन् १९९० से पुनः रायपुर विधानसभा से विधायक बन कर "राजस्थान विधानसभा" में मगरांचल क्षेत्र के विकास के मुद्दों को "सिंह की गर्जना" की तरह दहाड़ कर विकास कार्यों को पारित कराया। सन् १७ जुलाई, १९९२ में अखिल भारतीय स्तर पर " भारतीय रावत राजपूत महासभा - नई दिल्ली (रजि.)" की स्थापना कर समाज को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलायी। आपने "जिलेलाव आसन प्रकरण" में समाज के लोगों का बखूबी साथ दिया।
श्री हीरा सिंह चौहान विधायक रहते हुए, राजस्थान विधानसभा में #उपाध्यक्ष पद पर भी सुशोभित हुए, जो कि समाज के लिए गौरव का विषय था। आप राजस्थान विधानसभा में तीन बार विधायक रहें। राजस्थान रावत राजपूत महासभा - #ब्यावर के अध्यक्ष, महामंत्री पदों पर रहते हुए, आशापुरा माता मंदिर ट्रस्ट -नाडोल में दो रावत-राजपूत सदस्यों का नाम समायोजन कराते हुए, ट्रस्ट के उपाध्यक्ष पद पर सुशोभित हुए। जयपुर में "रावत-राजपूत समाज" का भवन बनवाने में योगदान, मगरा विकास बोर्ड का गठन, कार्य प्रणाली बनाने एवं लागू कराने में अहम् भूमिका रही।
राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैंरों सिंह शेखावत ने आपके कार्य प्रणाली एवं आदर्श व्यक्तित्व से प्रभावित होकर "शेर-ए-मगरा" का खिताब (पदवी ) से नवाजा गया। आपने रावत-राजपूत समाज को गौरवान्वित कराने के लिए बर (रायपुर) चौराहे पर अंतिम हिंदू ह्रदय चंहुदिशान चक्रवर्ती "सम्राट पृथ्वीराज चौहान" का स्मारक बनवाया।
इस स्मारक के अनावरण में देश के कई दिग्गज नेता, मगरांचल क्षेत्र के लाखों लोगों को सम्मेलन में सम्मिलित #लेखनी (एन एस #सूरावत - लाखाखेत) ने अपनी आँखों से देख कर गर्व से "सीना ५६ इंच का होते" रोक न पायें।
श्री हीरा सिंह चौहान साहब ने तारागढ़ (अजमेर) एवं नई दिल्ली में भी "सम्राट पृथ्वीराज चौहान" स्मारक बनवाने एवं डाक टिकट जारी करवाने में पूर्ण योगदान दिया। अपने वंशज खेताराणा की बगड़ी (कोट - किराना) में स्मारक, मेवाड़ रावत-राजपूत महासभा का गठन करवा कर वहाँ के लोगों के राजस्व खातों में नाम संशोधन करवाया। राजस्थान एवं नई दिल्ली में हमारे समाज को "अन्य पिछड़ा वर्ग" में आरक्षण दिलाना, बुढ़ा पुष्कर में रावत-राजपूत घाट, मगरांचल कानूजा में मझेवला माता गौशाला निर्माण, #रायपुर बांध में डुबनें वाले विस्थापित लोगों को ध्यान में रख कर बांध की ऊंचाई को ४ फीट कम करवाना , मगरांचल क्षेत्र में शिक्षा हेतु #लाखाखेत ग्राम एवं कई गाँवों में वंचित विद्यालयों को स्वीकृति जारी करवा कर शिक्षा की अलख जगाई।
आपने ३५ सालों तक मगरांचल, मारवाड़, मेवाड़ में सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, धार्मिक जागृति करते हुए, २५ नवम्बर, २०१० को अलविदा कह दिया। आज हमारे समाज के ह्रदय सम्राट श्री मान हीरा सिंह चौहान नहीं है, किन्तु इनके कार्यों, यश, कीर्ति युगों युगों तक दिलों दिमाग में स्मरणीय रहेगा। उनके जाने से अब भी ऐसा लगता है कि "समाज का सूर्य" अस्त हो गया है। इनके पीछे भरा - पूरा परिवार पुत्र - श्री महेंद्र सिंह (एडवोकेट), श्री राजेन्द्र सिंह(पूर्व जिला परिषद् सदस्य) , श्री मानवेन्द्र सिंह (सी.आई. जयपुर), श्री सुरेन्द्र सिंह, श्री जितेन्द्र सिंह तथा पुत्रवधु - श्रीमती कमला कंवर (पूर्व प्रधान), शकुंतला चौहान, मीना चौहान, ममता चौहान, पूनम चौहान इत्यादि को छोड़ गए।
२५ नवम्बर २०१२ द्वितीय पुण्यतिथि पर #कानूजा में स्मारक का अनावरण किया गया। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयंती पर "क्षत्रिय रावत परिषद्" द्वारा मरणोपरांत "रावत रत्न" प्रदान किया गया।
जागो! उठो! समाज के सपूतों कोई तो इनके कार्यों की बागडोर संभालों ! ऐसे #समाज के सपूत, जीवन भर संघर्षशील, ओजस्वी वक्ता, लोकप्रिय समाज सेवी को शत् शत् नमन्।
"लिखनें में, मैंने लिख दिया, आगे कुछ लिखा न जाय,
पल - पल में आंसू गिरें, सभी अक्षर मिट जाय। "
-#लेखनी से -एन.एस. सूरावत (लाखाखेत)।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
“श्री विजयसिंह चौहान” ―
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श्री विजयसिंह चौहान का जन्म २३ अगस्त, १९३८ को अजमेर के माखुपुरा गांव के साधारण किसान परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से साहसी व्यक्तित्व होने के कारण दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद जलसेना में भर्ती कर लिये गये। वहां उन्हें यान्त्रिक इंजिनियरिंग डिप्लोमा-श्रेष्ठता से उत्तीर्ण करने के परिणामस्वरूप इसी अध्ययन हेतु फ्रांस व इंग्लैण्ड भेजा गया।
सन् १९६२ के भारत-चीन युद्ध में पनडुब्बी में कारतूस से बने छिद्र को स्वयं अपने हाथ से कई घण्टों तक रोक कर डूबने से बचाया जिससे राष्ट्र ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें इस युद्ध के बाद उनकी राष्ट्रपति पद से सम्मानित किया गया। भारतीय जल सेना से स्वेच्छा से १९६५ में सेवा निवृत होकर आने के पश्चात् अजमेर क्षेत्र में समाज सुधार के साथ राजनैतिक जागृति के कार्य में जुट गये, परिणामस्वरूप राजस्थान विधान सभा के चतुर्थ चुनाव वर्ष १९६७ ई. में स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याक्षी के रूप में कांग्रेस के दिग्गज नेता तत्कालीन वित्त मंत्री श्रीमान् बालकृष्ण कौल साहब को भारी मतों से पराजित कर नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से विजयश्री प्राप्त की।
औजस्वी वक्ता, सुन्दर व्यक्तित्व व स्वच्छ छवि के कारण विपक्ष के तत्कालीन नेतागण ने इन्हें विधानसभा में सचेतक पद से सुशोभित किया, जिसकी तस्वीर आज भी राजस्थान विधानसभा के प्राचीर पर जयपुर में अतीत की स्मरण करवा रही है। श्री विजयसिंह का आज भी, सम्पूर्ण रावत-राजपूत समाज समय-समय पर स्मरण करते हुए अतीत की दुःखद घटना पर प्रश्न चिन्ह लगाया है कि समाज की होनहार राजनेता को तत्कालीन राजनीति षड़यंत्र का शिकार होकर ८ जुलाई, १९६८ को सड़क दुर्घटना के कारण हमारे बीच नहीं रहे। श्री विजयसिंह अल्पकाल के राजनीतिक जीवन में “शेरे रावत-राजपूत” की उपाधि से अलंकृत हुए। “शेरे रावत-राजपूत विजयसिंह चौहान” की पुण्य स्मृति में माखुपुरा चौक पर विजय स्मारक का निर्माण किया जाना चाहिये।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
कुबेरसिंह_किराणा
रावत-राजपूतों में से आजादी के बाद मारवाड़ विधानसभा में कोट-किराणा परगने से प्रथम विधायक बने #_कुबेरसिंह_किराणा जो लेफ्टिनेंट #_ऊमा_साहब के सुपुत्र थे। यह हमारे समाज के पहले व्यक्ति थे जो कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधि के तहत चयनित हुए।
" वर्धनोरा (मगरांचल) के वीर स्वतंत्रता सेनानी मास्टर श्री वजीरसिंह अनाकर "―
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वर्धनोरा राज्य के राजपूत समाज के सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक उत्थान में मेजर सा. फतेहसिंह सहित अनेकों महापुरूषों का बहुमूल्य योगदान रहा है। इनमें अनाकर (जवाजा) के निवासी मास्टर श्री वजीरसिंह का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। मास्टर वजीरसिंह ने पिता बुद्धासिंह व मां गोमी कंवर के यहां २६ अक्टूबर १८९८ को जन्म का सौभाग्य पाया था। आपके दो भाई अजबसिंह, प्रेमसिंह व बहिन हंसादे थी। आपने अपने ननिहाल बावड़ी की गुआर (बरार) के सहयोग से भीम में मिडिल तक की शिक्षा प्राप्त की, बाद में शिक्षक प्रशिक्षण करके सन् १९१६ में काछबली में अध्यापक के पद पर लग गए। इसके बाद आपका स्थानान्तरण कोटड़ा (ब्यावर) में हो गया। यहां आते ही आप देश की आजादी के लिए हो रहे आन्दोलनों में सक्रियता से भाग लेने लग गए, फलतः अंग्रेज शासन ने आपको शिक्षक पद से निष्काषित कर दिया। बाद में सन् १९२१ में बदनोर (भीलवाड़ा) के ठाकुर सा. ने आपको बदनोर की मिड़िल स्कूल में प्रधानाध्यापक बना दिया। इसके बाद आपको सन् १९३६ में हॉलैण्ड म्यूनिसिपल स्कूल ब्यावर में शिक्षक लगाया जहां से आप सन् १९५५ में सेवानिवृत हुए। इस दौरान आप देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा अजमेर स्टेट के लिए बनाई एड़वाईजरी कोंसिल के १९४७ से लेकर १९५१ तक सदस्य भी रहे।
मास्टर वजीरसिंह कट्टर आर्यसमाजी व धार्मिक व्यक्तित्व थे। आपने क्रान्तिकारियों के नेतृत्व में हुए स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया फलतः आजादी के बाद सन् १९५५ में आपको सम्मानित भी किया गया।
आपने समाज सुधार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। आपने मास्टर कानसिंह कानाखेजड़ी, चतरसिंह धोलादांता, बाबू रामसिंह बग्गड़, गिरदावर ज्ञानसिंह बरार व गिरदावर ज्ञानसिंह भगड़ी के सहयोग से सन् १९३८ में रावत-राजपूत महासभा संगठन बनाया और वर्षो तक इस माध्यम से समाज सुधार की अलख जगाते रहे, बाद में इस संगठन का नेतृत्व मेजर फतेहसिंह को प्रदान कर दिया गया। आपने शिक्षा के प्रचार-प्रसार व सामाजिक जागरूकता के लिए जीवन भर कार्य किया। आप सन् १९५१ में राजस्थान रावत-राजपूत महासभा के अध्यक्ष भी रहे। आप स्वयं चीता साख के जोधावत चौहान परिवार से थे। आपने जोधावत राजपूत चौहानों के गांव सारोठ, डूंगरखेड़ा, बड़कोचरा, अनाकर, भूरियाखैड़ा, नयागांव, धोलीबंदिया व चिड़ियावड़ आदि में सामाजिक चेतना लाए। आपका चरित्र सदा अनुकरणीय व प्रेरणादायक रहा है।
स्त्रोत– रावत-राजपूत संदेश पत्रिका लेख से साभार।
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
स्व. ठाकुर प्रेमसिंह जी चहुआँण काछबली क्षत्रिय रावत-राजपूत रत्न से सम्मानित —
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राजस्थान रावत राजपूत महासभा के भूतपूर्व अध्यक्ष एवम भूतपूर्व विकास अधिकारी (BDO) स्वर्गीय ठाकुर प्रेमसिंह जी चौहान को मरणोपरांत महासभा द्वारा समाज के सर्वोच्च अलंकरण क्षत्रिय रावत राजपूत रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया।
मियाला में राजस्थान रावत-राजपूत महासभा द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह के विशाल कार्यक्रम में यह रत्न उनके सुपुत्र श्री भोपालसिंह चौहान (Rtd RAcS), श्री मदनसिंह और पौत्र डॉ वी.पी.सिंह काछबली द्वारा ग्रहण किया गया।
महासभा प्रदेश वरिष्ठ महामंत्री श्री मोहन सिंह ने बताया कि श्री प्रेमसिंह जी वर्षो तक महासभा के वरिष्ठ महामंत्री और अध्यक्ष रहे, इस दौरान आपने समाज हित के उल्लेखनीय कार्य किये।
मगरा-मेरवाड़ा संदेश नामक मासिक समाचार पत्र द्वारा लगातार १३ वर्ष तक १९९८ से २०११ तक जन जाग्रति कार्य किया।
मगरा क्षेत्र का प्रथम प्रामाणिक इतिहास #_रावत_राजपूतों_का_इतिहास आपने लिखा। इस क्षेत्र के धार्मिक स्थलों, पर्यटक क्षेत्रों का प्रसार प्रचार किया।
इस अवसर पर महासभा अध्यक्ष श्री नाथू सिंह घाटा,महासभा वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री गोपाल सिंह PTI, पूर्व अध्यक्ष नंद किशोर सिंह, आदि सहित सैकड़ों समाजसेवी उपस्थित थे।
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मगरांचल_के_भाटी_राजपूतों_की_शौर्य_गाथा #_स्वर्गीय_श्री_सूबेदार_मेजर_श्री_बुद्धासिंह_भाटी ―
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स्वर्गीय सूबेदार मेजर श्री बुद्धासिंहजी भाटी सन् १८१७ ई. में रामगढ़ ग्राम के साधारण परिवार में जन्में अंग्रेजों के शासन काल में सेना में भर्ती होकर सन् १८४० ई. में हुए काबुल के युद्ध में विजयश्री प्राप्त करते हुए आप अफगानी ध्वज एवं एक तोप भारत ले आये थे। इसी बहादुरी के कारण आपको अंग्रेजों द्वारा सुबेदार मेजर का खिताब दिया गया तथा अपने क्षेत्र के प्रथम श्रेणी न्यायाधीश का अधिकार दिया गया ।
सेवानिवृत के पश्चात् इन्होंने छ: स्थानों पर अपने निवास हेतु सुन्दर छः महल बनवाये जो आज भी खण्डहर के रूप में उनका स्मरण करवाते है।
इनको गुरू भक्ति का विशेष लगाव था। अपने गुरू स्व. श्री आशा भारती को ग्राम रोहिडा खेड़ा में एक सुन्दर गुरू स्थान बनाकर तथा इनके लिये भूमि लेकर भेंट की। मेजर बुद्धासिंह जी अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कोई भी याचक उनके घर से खाली हाथ नहीं लौटते। इन्होंने अपने अन्तिम समय में राजेन्द्रा (ठि.–रामगढ़) सेंदड़ा पाली मारवाड़ में बने अपने महल के समीप निर्मित बावड़ी के पास समाधि ली।
यह एक चमत्कारिक समाधि स्थल है, जहां पर आज भी समाधि के परिक्रमा करने व अगरबत्ती चढ़ाने पर तेज (बुखार, पांतरा) उत्तर जाता है।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास
लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
वर्धनोरा के हीरो स्व. सूबेदार दूदसिंह चौहान, छापली —
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राजस्थान की वीर प्रसूता धरती ने अपने यहां अनेक शूर वीरों को जन्म दिया है, जिन्हें अपनी वीरता एवं साहस के लिए सदैव याद किया जाता है। ऐसे वीरों में सूबेदार दूदसिंह चौहान का नाम अग्रणी है जिन्हें तीन युद्धों में दिखाई गई वीरता व साहस के लिए याद किया जाता है। हमारे वर्धनोरा क्षेत्र के १८ राजपूताना राइफल्स के योद्धा श्री सूबेदार दूदसिंह चौहान छापली जिन्होंने १९६२, १९६५ एवं १९७१ के तीनों युद्धों में अदम्य साहस और वीरता दिखाते हुए पाकिस्तान एवं चीन की सेना को मुहतोड़ जबाब दिया। सन् १९६२ के युद्ध में आपने भारत चीन सीमा लेह लद्दाख पर मोर्चा संभाला एवं सन् १९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध में आप युद्ध के दरम्यान कई दूर तक पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर शत्रु सेना से मुकाबला किया। सन् १९७१ के युद्ध में आप पाकिस्तान की सेना से युद्ध के दौरान वर्तमान बांग्लादेश तक अपने साहस का परिचय दिया। इस साहसिक कार्य हेतु भारतीय सेना द्वारा आप को २ युद्ध पदक, ६ सेवा पदक से अलंकृत किया। हमारे वर्धनोरा क्षेत्र में अनेक योद्धाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध, १९६२, १९६५, १९८१, १९९९ के युद्धों मे बढ़ चढ़कर भाग लिया और जिसमें कई योद्धा तो देश के लिए अमर हो गए।
पोस्ट साभार – रावत पुष्पेन्द्रसिंह।
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