(अपडेट दी:7/11/24) वेबसाइट में समाज ऊपयोगी सूचना डालने के लिए (मोतीसिंह पिथासिंह सुजावत-8200633847) पर वोटसअप हेतु सभी स्वजातीय महोदयश्री आमंत्रीत हेl
राजस्थान रावत-राजपूत महासभा, ब्यावर
वर्धनोरा (मगरांचल) राज्य के राजपूत समाज में सामाजिक चेतना लाने, समाज को संगठित शक्ति बनाने व समाज में समय के अनुसार आवश्यक सुधार लाने के लिये समय-समय पर जागरुक सरदारों के प्रयास होते रहे है। इन्हीं जागरुक सरदारों की प्रेरणा व प्रयासों से समाज को प्रगति के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा मिली।
उस समय हमारे देश में अंग्रेजो का शासन था। देश को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता आदोंलन भी चल रहे थे। इसी समय खरवा नरेश राव श्री गोपालसिंह अपनी क्रातिकारी गतिविधियों के दौरान अजमेर-मगरांचल राज्य के राजपूतों के सम्पर्क में आये। इस क्षेत्र के राजपूतों को संगठित व एकत्रित रखने के सार्थक उद्देश्य से १७ जनवरी, १९१७ को एक विशाल सभा सर्वप्रथम राजगढ़ (अजमेर) में शाहपुरा नरेश श्री उम्मेदसिंह जी और खरवा राव श्री गोपालसिंह के सभापतित्व में सम्पन्न हुई। इसके पश्चात् सन् १९२० में सूबेदार श्री डूंगरसिंह के प्रयास से भीम तालाब की पाल पर उनकी अध्यक्षता में सामाजिक सुधार सम्बन्धी सम्मेलन हुआ। इसके बाद टॉडगढ़ में अगस्त सन् १९२६ ई. को श्री राव गोपालसिंह खरवा, राजस्थान हिन्दू संरक्षिणी सभा एवं श्री नाथूलाल आर्य की प्रेरणा से समाज सुधार हेतु ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ।
"१४ अगस्त, १९२६ को कार्यकारिणी की बैठक "–
रावत-राजपूत महासभा कार्यकारिणी की बैठक टाॅड़गढ़ में १४ अगस्त को खरवा नरेश राव गोपालसिंह जी की अध्यक्षता में हुई। इसमें अजमेर-मेरवाड़ा के दो हजार राजपूतों ने भाग लिया। बैठक में निर्णय हुआ कि महासभा का प्रधान कार्यालय खरवा में होगा तथा इसके अजमेर व ब्यावर में सहायक कार्यालय रहेंगे। बैठक में सर्वसम्मति से मैनेजिंग कमेटी बनाई गई, जिसमें चौहान वंश के श्री रामसिंह जस्साखैड़ा, नंबरदार श्री खेमसिंह भगड़ी कलालिया, सूबेदार श्री डूंगरसिंह धोटी, नंबरदार श्री भादूसिंह काबरा, नंबरदार श्री हम्मीरसिंह बरार, नंबरदार श्री चतरसिंह टॉडगढ़, सूबेदार श्री भीमसिंह छापली, श्री हिम्मतसिंह काछबली, हवलदार श्री गजसिंह लगैतखेड़ा, जमादार श्री अन्नासिंह अंधेरी देवरी, श्री मोटसिंह नाहरपुरा राजगढ़, श्री ओमसिंह बायला व श्री उदयसिंह चैनपुरा अजमेर, पंवार वंश में से सूबेदार श्री खेमसिंह बिहार भांडेता, नंबरदार श्री मानसिंह रूढ़ाना, श्री हीरासिंह बाघमाल, श्री मेंदूसिंह गवारड़ी अजमेर, श्री लूम्बसिंह फारकिया व श्री भूरसिंह मदारपुरा, गहलोत वंश में से सूबेदार श्री बन्नासिंह गोहाना, श्री चिमनसिंह सोनियाणा, राव श्री टीलसिंह कूकरखेड़ा व डिप्टी रेंजर श्री दल्लासिंह कूकरखेड़ा, राठौड़ वंश में से श्री ज्ञानसिंह पटेल पुष्कर तथा भाटी वंश में से श्री खेमसिंह नोलखा को लिए गए। कमेटी के अध्यक्ष श्री रामसिंह जस्साखेड़ा, मंत्री श्री अन्नासिंह अंधेरी देवरी व कोषाध्यक्ष श्री करणसिंह कांसिया तथा श्री रामसिंह बिच्छुचौड़ा को मनोनीत किये गए। सर्वसम्मति से यह भी निर्णय हुआ कि भविष्य में महासभा की समस्त गतिविधि प्रधान सभापति राव श्री गोपालसिंह खरवा के सानिध्य में ही हुआ करेगी। बैठक में निर्णय किया कि अपनी परंपराओं में सुधार लाया जाएगा। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाई जाएगी।
*➣ "टॉडगढ़ में रावत-राजपूतों का प्रथम विशाल सम्मेलन" ―*
टॉडगढ़ में १५ अगस्त, १९२६ को रावत-राजपूतों का प्रथम बड़ा सम्मेलन खरवा राव श्री गोपालसिंह की अध्यक्षता व बनेड़ा नरेश श्री अमरसिंह के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ, जिसमें करीब ३ हजार अजमेर- मगरांचल राज्य के राजपूत सरदार उपस्थित हुए। इस ऐतिहासिक अवसर पर मसूदा नरेश राव श्री विजयसिंह, ठाकुर ज्ञानगढ़ श्री गोविन्दसिंह, श्री मोडसिंह पुरोहित खरवा व अन्य आर्य समाज के उपदेशकों के अतिरिक्त दो सौ राजपूत सरदार शाहपुरा, रायपुर, देवगढ़ व पालड़िया सहित आस-पास के ठिकाणों से पधारे थे। सभी प्रमुख सरदारों ने सम्मेलन को संबोधित किया।
इस अवसर पर खरवा राव श्री गोपालसिंह ने जो सारगर्भित, प्रेरणास्प्रद व उल्लेखनीय उद्बोधन दिया वो इस प्रकार है –
*" रावत-राजपूत समय-समय पर अपनी राजपूती का उच्च कीर्तिमान स्थापित करते आये हैं और अपनी मान मर्यादा के बड़े धनी रहे है। रावत-राजपूतों ने उदयपुर व जोधपुर राज्यों के लिए भी अनेक बार कुर्बानियां दी है तथा इन दोनों राज्यों में इनका पूरा सम्मान था। इस क्षेत्र में कभी 'मेर' जाति रहा करती थी जिन्हें आप लोगों के पुरखों ने मार भगाया था और इस क्षेत्र पर अपना स्वामित्व स्थापित किया था।*
*यह इतिहास सिद्ध तथ्य है कि यहां रहने वाले राजपूत सरदार चौहान, गहलोत, राठौड़, पंवार व भाटी वंश के राजपूत है जो समय- समय पर इस क्षेत्र में आकर बसे हैं। इन्हीं वंशधरों ने इस क्षेत्र में आगे जाकर अपनी रावत-राजपूत सरदारों के रूप में एक पृथक पहिचान बनाई थी जो कि सर्वविदित है। "*
इस विशाल सम्मेलन व राजपूतों की संगठित ताकत को उभरते देखकर अंग्रेजो को चिन्ता हुई और उन्होंने कूटनीति से रावत-राजपूतों की बनी सभा को अपने प्रभाव में लेकर तत्कालीन अंग्रेज ई.ए.सी. स्वयं इस सभा के अध्यक्ष बन गये। इस तरह इनके नेतृत्व में भी कुछ वर्षों तक सभाऐं होती रही लेकिन इन सभाओं में अंग्रेज अधिकारी ज्यादा आने से समाज के लोगों में रोष पनपा। इन सभाओं के उस समय ई.ए.सी. अध्यक्ष सर्वश्री डिसूजा, रायबहादुर किशनलाल खन्ना व रामस्वरूप रह चुके हैं। जातिय संगठन पर अंग्रेजों का वर्चस्व को समाप्त करने के लिये कुछ समाज के जागरुक सरदार सर्व श्री मा. वजीरसिंह अनाकर, श्री रामसिंह बग्गड , मा. श्री चतरसिंह धोलादांता , श्री दूधसिंह भगडी व मा. श्री कानसिंह आगे आये। इनके सद्प्रयासों से समाज के सम्मेलन प्रतिष्ठित व्यक्ति की अध्यक्षता में होने लगे।
५ अगस्त, १९३९ को ब्यावर में कार्यरत उत्साही कार्यकर्ताओं ने मगरांचल के राजपूतों को संगठित व एकत्रित रखने के सार्थक उद्देश्य से महासभा का गठन किया जिसका नाम *" राजपूताना चीता-बरड़ राजपूत महासभा "* रखा गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री कुबेरसिंह किराणा बने। इस सभा को जन्म देने का श्रेय श्री वजीरसिंह, मा.सा. अनाकर, मा.सा. श्री चतुरसिंह धोलादांता, श्री बाबू रामसिंह बग्गड़, मा.सा. श्री कानसिंह टॉडगढ़, श्री दूधसिंह इन्सपेक्टर खाण्डाभागा, श्री नरसिंह सूबेदार भागावड़, श्री कुबेरसिंह किराणा व श्री उदयराम रेंजर काछबली को जाता है। इसका कार्य क्षेत्र, ब्यावर के आस-पास था। धीरे-धीरे महासभा के वार्षिक अधिवेशनों मे लोग अधिक संख्या में भाग लेने लगे। इस चीता-बरड़ सभा का नाम संकुचित था अतः इस सभा का नाम *" राजपूताना रावत-राजपूत महासभा "* रखा गया तथा इसके मुख्यालय ब्यावर व अजमेर में बनाये गये। मगरांचल के प्रसिद्ध स्थानों भीम, टॉडगढ़, काछबली, छापली, जवाजा आदि स्थानों पर महासभा के सम्मेलन होने से जन-जागृति पैदा होने लगी। सन् १९४७ में सेना से सेवानिवृत होकर मेजर श्री फतेहसिंह आये। मेजर रावत-राजपूत महासभा के अध्यक्ष बने। राजपूत महासभा ने बली, काछबली व कालीकाकर आदि अधिवेशनों में क्रान्तिकारी सामाजिक निर्णय लिये। रहन-सहन में सुधार एवं कुरीतियां त्यागने का आह्वान किया गया जिससे सामाजिक सुधार हुए।
तत्कालीन अध्यक्ष मेजर फतेहसिंह के प्रयासों से राजपूत क्षत्रिय महासभा जिसके तत्कालीन अध्यक्ष महाराज कुंवर श्री दलपतसिंह ईडर थे, द्वारा यह प्रस्ताव अक्टूबर, १९४७ में पारित किया गया ―
*" रावत-राजपूत भी राजपूत हैं इनसे किसी प्रकार का सामाजिक भेदभाव न रखा जाय, जिसका अनुमोदन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने किया। "*
३० अक्टूबर, १९४७ ई. को मेजर श्री फतेहसिंह (अध्यक्ष महासभा) के प्रयासों से ऐतिहासिक सेन्दड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें सर्वश्री जोधपुर महाराजा सा. हनुवन्तसिंह, शाहपुरा नरेश श्री उम्मेदसिंह, राव गणपतसिंह खरवा, कर्नल श्री मोहनसिंह भाटी, मेजर दौलतसिंह राठौड़ जोधपुर, कुंवर गोविन्दसिंह चंडावल, कु. सज्जनसिंह रायपुर, राजा सा. कल्याणसिंह भिणाय, श्री मोटसिंह खरवा सहित आस-पास की देशी रियासतों के सैकड़ो जागीरदार, उमराव, ठाकुर व गणमान्य राजपूत सरदार उत्साह से शामिल हुए थे। इस सम्मेलन की अध्यक्षता जोधपुर के महाराजा श्री हनुवन्तसिंह जी ने की तथा उन्होंने सम्मेलन में जो महत्वपूर्ण उद्गार प्रकट किये, जो इस प्रकार है ―
*" भाइयां म्हने इण बात री घणी खुशी और गर्व है कि म्हारा राज में पचास हजार सूं ऊपर मगरांचल रा राजपूत भाई म्हारे मायने पाछा मिलरया है। इण काम ने पूरो करने आपा जिण दूरन्देशी रो परचो दियो है वो तवारीख में सोना रा आंखरा लिखयो जावेला।*
*आज रा उथला पुथल रा जमाना ने देखता आपा ने आपणी कामयाबी री खुशी में ही वक्त नहीं बितावणो चाहिये। इण काम ने पूरो करण रे पछे आपां री जिम्मेवारी और भी बढ़ जावे है। आपां हिन्दुस्तान रा एक बड़ा हिस्सा में आ गया हां जिणरो राजनीति में बड़ो महत्व है। इण काम ने ध्यान में राखने आयां ने हर तरह सूं त्यार रहणो चाहिजे। मारवाड़ या राजपूतानों ही नहीं बल्कि सारा हिन्दुस्तान रा हिन्दुआं रो भारत आपणा खांधा पर है। म्हने पूरी उम्मेद है कि आपां एक होयने एक लक्ष्य राखने एक झण्डा रे नीचे भेला होवेलां और आपणा देश और धर्म रे प्रति आंपणा फर्ज ने अदा करांला। "*
*मै एक राजपूत री हैसियत सू मगरांचल रा राजपूत भाइयां रो स्वागत करूं हूं और एक राजा की हैसियत सू वाने विश्वास दिलाऊं हूं के वांरी तरक्की के वास्ते म्हारा राज रा सारा जरिया और म्हारो खुद रो सहयोग सदा तैयार रेवेला।*
*आखिर में मैं इण काम ने बरसां पहली शुरू करण वाला स्वर्गीय राव गोपालसिंह जी खरवा रे प्रति श्रद्धान्जली अरपण करूं हूं और इण काम ने पूरो करण वाला दूसरा भाइयां ने धन्यवाद दूं हूं! "*
इसके पश्चात् जोधपुर महाराजा श्री हनुवन्तसिंह जी ने हर्षोल्लास, गगनभेदी नारो व तालियों की घड़घड़ाहट के मध्य अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा व राजस्थान क्षत्रिय महासभा के द्वारा लिये गये सर्वसम्मत निर्णय को पढकर सुनाया था कि " रावत-राजपूत भी विशुद्ध राजपूत है अतः इनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं बरता जावे !! " यह निर्णय अभूतपूर्व था तथा इससे हमारे समाज का गौरव एवं प्रतिष्ठा भी बढी। इस सम्मेलन में राजपूतों व मगरांचल के राजपूतों ने एक पक्ताल में भोजन कर सामाजिक समरसता स्थापित की थी। इस ऐतिहासिक सम्मेलन का सुखद परिणाम यह भी रहा कि सेना के सभी राजपूत यूनिटों में मगरांचल के अनेक राजपूत भर्ती हुये और सेना में वीरता का उज्जवल नाम कमाकर समाज को गौरवान्वित किया है। इस सम्मेलन से मगरांचल के राजपूतों को प्रगति के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा मिली।
इस महासभा का सन् १९४९ ई. में " राजस्थान रावत-राजपूत महासभा, ब्यावर " नामकरण कर दिया गया। इस राजपूत महासभा के वर्षों तक महान समाज सुधारक एवं अग्रणीय क्रांतिकारी लौहपुरुष नेता मेजर सा. श्री फतेहसिंह अध्यक्ष रहे है और उनके सफल नेतृत्व में सामाजिक व राजनैतिक जागृति भी अभूतपूर्व आई जिसका उज्जवल परिणाम रहा है।
राजपूत महासभा के अनेक विशाल सम्मेलन व अधिवेशन हुए जिससे जन-जागृति पैदा होने लगी। सन् १९७१ ई. में श्री हीरासिंह चौहान काणुजा (विधायक) ने राजपूत महासभा का संविधान तैयार किया। साधारण सभा द्वारा संविधान की स्वीकृति देने के बाद राजपूत महासभा का रजिस्ट्रेशन दि. १० दिसम्बर, १९७१ को कराया गया, जिसका रजिस्ट्रेशन संख्या २६८/७१-७२ है। इसका पंजीकृत कार्यालय रावत-राजपूत छात्रावास भवन सेंदड़ा रोड़ ब्यावर हैं। वर्तमान में इसमें १३४ शाखा सभाऐं है जो राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में भी विद्यमान है।
इस शिरोमणि महासभा के अब तक सर्व श्री डूंगरसिंह धौटी, श्री गुमानसिंह बीया, श्री कुबेरसिंह किराना, मेजर श्री फतेहसिंह ब्यावर, सुबेदार श्री हम्मीरसिंह टॉडगढ़, श्री वीरमसिंह गिरदावर अरनाली, श्री पांचूलाल रेंजर काछबली, श्री रामसिंह बग्गड, श्री रासासिंह, श्री विक्रमसिंह चौहान खोडमाल, सिविल जज श्री अर्जुनसिंह धौटी, विधायक श्री हीरासिंह चौहान कानूजा, रावत श्री केसरसिंह पीपली, सुबेदार श्री पन्नासिंह भीम, श्री गोविन्दसिंह चौहान धोलाबंदिया, कप्तान श्री बहादुरसिंह सदारण, श्री बिरदसिंह चौहान खोडमाल, श्री प्रेमसिंह चौहान, श्री नाथूसिंह बोस खोडिया अध्यक्ष रह चुके हैं तथा इन सभी ने अपनी गौरवमयी सेवाएं समाज को दी है, इनमें मास्टर श्री वजीरसिंह अनाकर व पूर्व अध्यक्ष श्री बाबूरामसिंह की सेवाएं विशेष उल्लेखनीय रही है। इसी क्रम में महासभा के गौरव एवं अस्तित्व रक्षा में पूर्व अध्यक्ष कप्तान श्री बहादुरसिंह सदारण की सेवाएं भी उल्लेखनीय रही है तथा सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने में पूर्व अध्यक्ष श्री बिरदसिंह देवावत एवं सामाजिक जागरूकता व महासभा संगठन को गतिशील बनाने में पूर्व अध्यक्ष श्री नाथूसिंह बोस खोडिया की सेवाएं भी प्रशंसनीय रही है।
समाज सुधार व कल्याण हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया। महासभा संविधान और जातिय नियमावली का प्रकाशन किया गया। स्व. श्री केसरसिंह (पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी) पीपली नगर के प्रयासों से नवयुवकों को समाज से जोड़ने हेतु नवयुवक मण्डलों का गठन हुआ।
संस्कार शिविर, युवा प्रतिभा सम्मान सम्मारोह एवं खेलकूद प्रतियोगिताऐं, न्याय समिति महिला जागृति मंच, विकास व प्रोत्साहन मंच, नव निर्माण मंच, साहित्य मंच आदि गतिविधियां महासभा के तत्वावधान में केन्द्रीय नव युवक मण्डल की देखरेख में की जाती है।
राजपूत महासभा के केन्द्रिय नवयुवक मण्डल अध्यक्षों में श्री कमलसिंह काबरा, श्री भोपालसिंह काछबली, श्री गोरधनसिंह सिसोदिया सिरयारी, श्री नारायणसिंह सेन्दड़ा, श्री गोपालसिंह भीम, श्री भगवत दयालसिंह चौहान बाघाना, रावत श्री सुदर्शनसिंह ब्यावर, श्री सुरेन्द्रसिंह सूरावत ढोलभाटा, श्री टीकमसिंह भागावड़, श्री सतवीरसिंह चौहान लगेतखेड़ा, श्री आनन्दसिंह सुरड़िया, श्री डूंगरसिंह पंवार कोटड़ा व श्री परमेश्वरसिंह सीरमा चुने गये।
स्त्रोत- (१).रावत-राजपूतों का इतिहास " (पृष्ठ सं.- ९७-१०६) लेखक- "स्व. श्री प्रेमसिंह चौहान, काछबली "
(२). वर्धनोरा राज्य का इतिहास लेखक- स्व. इतिहासकार डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
┄┄┅┅━━═۞═━━┅┅┄
स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
सामाजिक संस्थान प्रकाशित पुस्तिकाए
माहिती पुस्तीक -2010
सामुहिक विवाह पुस्तिका
पदाधीकारी गण डीरेकटरी
सदस्य गण डीरेकटरी