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पीपलाज माता मंदिर छापली, जिला-राजसमंद —
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महिषवाहिनी जगदम्बा का प्राचीन मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-८ (वर्तमान में ५८) के पश्चिम में छापली, मेडीयां व कोटड़ियां नामक गांवों के मध्य पहाड़ी पर शोभायमान है।
मंदिर के पूर्व में मेड़ीयां व पश्चिम में कोटड़ियां नाम से पुरानी आबादी की बसावट है। मंदिर के आस-पास के स्थान पर उत्तर दिशा में काली व दक्षिण दिशा में सफेद दो रंगों वाली कंकरीली मिट्टी का संगम है। मन्दिर के पास में छापली की प्राचीन आबादी के खण्डहर मौजूद है। ये खण्डहर बड़ी हथाई से धोरण तक क्रमबद्ध रूप में पाये जाते है। उजड़ी हुई आबादी में पूर्वजों की कई मूर्तियां खण्डित व साबूत हालत में मौजूद है। इन पर ढाल, तलवार सहित घुड़सवार के चित्र उत्कीर्ण है। इन मूर्तियों पर संवत भी अंकित है।
मंदिर के सामने जोधपुरी पत्थर पर एक शिलालेख प्राचीन भाषा शैली में उत्कीर्ण किया हुआ है। ठाकुर जमादार तेजसिंह व ठाकुर सुबेदार भीमसिंह द्वारा संवत् १९९६ में मन्दिर के बाहर की चांदनी का निर्माण कराये जाने का उल्लेख शीलापट्ट पर उत्कीर्ण है। नवरात्री के अलावा भाद्रपद कृष्णा नवमी को यहां पर मेला लगता है।
स्त्रोत―(१). छापली और महाराणा प्रताप…
लेखक– श्री चन्दनसिंह खांखावत चौहान -पुलिस उप निरीक्षक।
(२). वर्धनोरा राज्य का इतिहास।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजस्थान....
लेखनकर्ता– सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर.....
मगरे में बिहार माता रानी का दरबार (भक्ति और आस्था का प्रमुख केन्द्र) –
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मगरांचल ह्रदयस्थल कहे जाने वाले जवाजा कस्बे के पास बिहार-रतनपुरा गांव में विशालकाय चट्टान पर चट्टानी गुफा के अंदर विराजमान बिहार माता रानी का पावन दरबार मगरा क्षेत्र में आस्था का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है। यहां हर रविवार को दूर-दराज से भक्त अपनी मनोकामनाओं को लेकर माता के दरबार में हाजरी लगाते है। माता के दरबार में सालो से चली आ रही मनोकामनाओं को पूर्ति करने वाली पाती उतरने की परंपरा में आज भी भक्तों की आस्था देखते ही बनती नजर आती है। रविवार को सुबह से शाम तक भक्तों की तांता लगा रहता है। अरावली पर्वतमालाओं के बीच विशालकाय चट्टानों पर माता का दरबार प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ एडवेंचर का जबरदस्त अनुभव करवाता है। इस पहाड़ी से दूर-दूर तक फैला जंगल और गांवो का आकर्षक नजारा आंखो को सुकून का एहसास करवाता है। जवाजा में १६ मील चौराहा से भाउ का बाडिया होते हुए बिहार-रतनपुरा गांव से माता के मंदिर तक डामरीकृत सड़क होने से आवागमन भी सुगम होता है।
जवाजा और आसपास के गांवो में बसे पंवार वंशीय देहलात गौत्रीय राजपूत परिवारों में बिहार माता कुलदेवी के रूप में पूजनीय है, लेकिन आज माता का दरबार ना केवल देहलात गौत्रीय परिवार, बल्कि सम्पूर्ण मंगराचल के लोगों में आस्था का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है। मान्यतानुसार आज भी देहलात (पंवार) परिवारो में अपने प्रथम पुत्र और प्रथम भांजे का माता के नाम से जडूला रखने और उतारने की परपंरा निभाते रहे है।
मुगलकाल में जवाजा और उसके आसपास के गांवो के पूर्वज जो कि बिहार माता के परम भक्त थे, उन्होंने माता की शक्ति और भक्ति से इस्लामीकरण को बढ़ावा देने वाली शक्तियों से लडा़ई-लड़ी और जवाजा के पहले ही मगरे की ओर इस्लाम को प्रवेश होने से रोक दिया था। भांडेता भूरियाखेड़ा के पंवार क्षत्रियों ने इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने वालो से जबरदस्त युद्ध किये थे, यह युद्ध इतना भयावह थे कि कई इस्लाम प्रचारक मारे गए और उसके बाद इस्लाम धर्म जवाजा से आगे नहीं बढ़ पाया था। यह बिहार माता की शक्ति और भक्ति से ही संभव हो पाया, अन्यथा आज पूरा मगरा इस्लाम की चपेट में आ जाता।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास
लेखक- स्व. इतिहासकार डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
श्री पीपलाज माता मंदिर, केसरपुरा —
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केसरपुरा गांव में पीपलाज माता व खोडियार सात बायोसा मंदिर पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर नवरात्र में मेला लगा रहता है। मान्यता है कि इस स्थान पर पुजारी द्वारा की गयी भविष्यवाणी हमेशा सिद्ध होती है। प्रत्येक रविवार को लकवे से ग्रस्त कई सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं जो तैयार होकर ही लौटते हैं। केसरपुरा गांव में पीपलाज और खोडियार सात बायोसा मंदिर पर चैत्र नवरात्र में मेला लगता है।
स्त्रोत- ब्यावर दैनिक भास्कर (दि.- ०२ अप्रैल, २०२२)
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर___
पार्वती माता मंदिर, ग्राम-पार्वती, राजसंमद —
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सरदारगढ़ से १५ किलोमीटर दूर राजसमंद रोड़ से पूर्व में पार्वती गांव में माता पार्वती का मंदिर है। यह प्राचीन मंदिर है जो कि रावत-राजपूतों की ऐतिहासिक धरोहर है। पार्वती गांव में अभी सभी गुर्जर बंधु है। पार्वती माता के मंदिर की भव्यता देखने लायक है। इतिहास के संदर्भ के अनुसार कभी पार्वती गांव में रावत-राजपूत जातीय सरदार रहते थे तथा पार्वती माता उनकी आराध्य देवी थी। यहां के रावत-राजपूत सरदार किसी परिस्थितिवश कालागुमान चले गए। यहां रावत-राजपूतों के पांच गांव थे जो सभी उजड़ चुके हैं। यहां आस-पास में मार्बल की खानें है और मार्बल व्यापारी ही इस मंदिर को और भव्य बनाने में जुटे हुए हैं।
स्त्रोत- रावत-राजपूत संदेश पत्रिका।
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
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"चामुण्डा माता धाम -(खोड़िया )"
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'चंड मुंड मारण सगत,
वारण धर विकराल
कोप खड़ग धारण करी,
कारण असुरां काल '
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प्राचीन चामुण्डा माता धाम - वरदों देह - खोड़िया ग्राम पंचायत से 6 किमी दूर दक्षिण - पूर्व में अरावली पर्वतमाला के त्रिवेणी संगम पर स्थित है।
कहा जाता है कि चौहान वंशीय अनहल राव की २९वीं पीढ़ी में राव पचोंण जी (कूकड़ा) ने पौष सुदी १३ विक्रम संवत १६७० को चामुण्डा माता की स्थापना की।
राव पचोंण जी शूरवीर एवं सिद्ध पुरुष होने के कारण जोधपुर महाराज श्री गजसिंह ने पौष शुक्ल १२ वि. सं. १६७० को दरबार में बुलाकर रावजी की पदवी, बर का ठिकाने का पट्टा एवं नगारा का अधिकार के साथ -साथ गंतव्य स्थल तक सुरक्षित पहुंचाने का आदेश दिया। जब राव पचोंण जी गजनाई के नाका होते हुए वरदों देह से गुजर रहे थे, तभी डाकुओं ने हमला कर दिया, राव पचोंण जी की ललकार के आगे डाकु भाग खड़े हुए। कहते हैं कि राव पचोंण जी ने यहीं विश्राम के समय चामुण्डा माता की स्थापना की। चामुण्डा माता जोधपुर महाराज की इष्ट देवी थी। राव पचोंण जी इसी रास्ते होते बली - जस्साखेडा -कूकड़ा (भीम)पहुंचे थे।
चामुण्डा माता - दुर्गा का ही रुप है। पौराणिक काल के अनुसार हजारों वर्षों पूर्व माँ दुर्गा के रुप से कौशिकी हुआ, कौशिकी सर्व सुंदरी को तीनों लोक के दैत्यों शुम्भ और निशुम्भ विवाह कर पाना चाहते थे। कौशिकी ने तीनों लोक के शुम्भ और निशुम्भ के असुर दूत - चण्ड और मुण्ड को कहा कि - पहले मुझे युद्ध में जीतना (विजय) होगा। यह बात जब तीनों लोक के शुम्भ और निशुम्भ को दूत चण्ड - मुण्ड ने बताई तो क्रोधित होकर कहा कि उसे पकड़ कर लाओं। चण्ड और मुण्ड दो खुंखार राक्षस जब युद्ध करते हुए कौशिकी को पकड़ने लगे तब देवी कौशिकी ने अपने आज्ञाचक्र भृकुटि (ललाट) से एक और स्वरूप काली (कालका) रुप धारण कर चण्ड और मुण्ड असुरों को निजधाम पहुँचा दिया। उन दोनों असुरों चण्ड और मुण्ड को मारने के कारण माता का नाम "चामुण्डा माता" पड़ा।
"चामुण्डा माँ " को अपने अपने देशकाल के अनुसार अनेक नाम से पुकारा जाता है जैसे - भवानी, भगवती, अम्बे माँ, जगदम्बा इत्यादि।
प्राचीन चामुण्डा माता धाम - वरदों देह (खोड़िया) विशालकाय दो पत्थर की शिला (चट्टान) के मध्य स्थापित है। लेखक - एन एस सूरावत (लाखाखेत) की जन्मभूमि कुछ दूरी पर है। इन्हीं चट्टानों की गुफा मे "कनहोइया" (चमगादड़ की एक प्रजाति) भी है। यहाँ डाकुओं का आतंक से जनता में भयं के वातावरण में जी रहीं थी।
वैशाख वदी १,विक्रम संवत १९३६, (१८८० ई. लगभग) ठाकुर श्री भाखर सिंह जैतावत देवली हुल्ला (बगड़ी नगर) यहाँ से गुजर रहे थे, तो डाकुओं ने धावा बोल कर मार डाला।
जब डाकुओं ने जुझार ठाकुर श्री भाखर सिंह जैतावत को मार डाला, तभी चामुण्डा माता ने चमगादड़ों (कनहोइया) का रुप धारण कर डाकुओं पर हमला कर सदा के लिए भगा दिया। उस दिन से आज तक "कनहोइया" (चमगादड़ों ) इस चामुण्डा माता की गुफा में रह रहीं हैं और न कभी कोई ऐसी यहाँ अनहोनी हुई है। श्रृद्धालु माँ चामुण्डा और इनके रुप कनहोइया (चमगादड़) के दर्शन करने मात्र से अपने को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं।
प्राचीन चामुण्डा माता धाम दो नदियों के तट संगम पर स्थित है, नदियों के एक तट पर चामुण्डा माता है जो कि खोड़िया ग्राम पंचायत के अन्तर्गत है तो दूसरे नदी के तट पर (सामने ) ठाकुर श्री भाखर सिंह जैतावत का स्मारक बना हुआ है जो कि गजनाई - गुड़ा बींजा ग्राम पंचायत के अन्तर्गत है। यहाँ बारिश के मौसम में नदियों की जलधारा और प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। शीघ्र ही प्राचीन चामुण्डा माता धाम का जीर्णोद्धार कर पर्यटक/दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। यहाँ के आस पास के निवासी एवं दूर दराज के श्रृद्धालु बड़ी श्रृद्धा से यहाँ खींच आतें है।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
श्री चामुंडा माता मंदिर बोराज (अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की आराध्य देवी) ―
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अजमेर शहर के तारागढ़ पहाड़ के ठीक दक्षिण पश्चिमी ढ़लान में श्री चामुंडा माता मंदिर शोभायमान है। यह भारत के १५१ शक्तिपीठ में से एक है। यह शक्तिपीठ भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की यादों से जुड़ा रहा है। जिस समय पृथ्वीराज चौहान अजमेर के शासक थे तब वे देवी मां के इस मंदिर में रोज हाजरी देते थे। ये ही चामुंडा उनकी आराध्य देवी रही है।
अजमेर से पुष्कर को जाने वाली सड़क से फॉयसागर को जाने वाले मार्ग पर बोराज गांव है। इतिहास के संदर्भ से यह जानकारी प्राप्त होती है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सैनिकों में बोया (परमार) राजपूत थे, जो वहां स्थित सैनिक छावनी क्षेत्र में निवासरत थे। बोया राजपूतों ने ही बोराज गांव को बसाया। यहां के बोया शासक द्वारा बनाई गई प्राचीन बावड़ी तथा महल के भग्न अवशेष आज भी विद्यमान है, जो ऐतिहासिकता के साक्षी है। यहां के बोया राजपूतों के पश्चात् गुहिलोत वंश के ठाकुर श्री मानसिंह व श्री जीवनसिंह ने यहां आधिपत्य स्थापित किया, तब से इनके वंशजो को ही माताजी की सेवा करने का आदेश प्राप्त है।
इस मंदिर के ठीक पास में जलकुंड है, जिसे गंगा माई के नाम से जाना जाता है। यहीं पर शिव मंदिर है। श्री चामुंडा माता मंदिर परिसर में ही भव्य हनुमान मंदिर है। श्री चामुंडा माता मंदिर के ठीक नीचे बड़ा भैरव मंदिर बना हुआ है। यहां का नवरात्रा का नजारा अत्यन्त आकर्षक रहता है क्योंकि हर रोज अजमेर शहर के हजारों श्रद्धालु यहां माता के दर्शनों के लिए आते है। यहां सावन शुक्ला अष्टमी को यहां मेला लगता है। श्रद्धालुओं द्वारा चामुंडा माता मंदिर का स्थापना दिवस प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया को उत्साह एवं धूमधाम से मनाया जाता है।
इस मंदिर के निर्माण के समय का प्राचीन शिलालेख है, जिसका विवरण इस प्रकार है–
श्री चामुण्डा माता मंदिर का शिलालेख —
श्री चामुण्डा माता प्राचीन स्थान चांवडराय देदा गोविंदराय गुहिलोत गांव चसमा नगरी का पहाड़ में जातुणी दसा में सं. ११४० की साल माता चामुण्डा का मंदिर थरपना पृथ्वीराज का सुरमा मिती वैशाख सुदि आखातीज के दिन बिलोजी बालोत (सिसोदिया) गांव चस्मानगरी का पहाड़ को पट्टो पायो। सं. ११४५ की साल मिती आसोज सुदि एकम माता चामुण्डा की गुमटी बनाई। पूनासिंह का जेबोजी गांव बोराज सं. १३५५ की साल मिली जेठ सुदि ७ के दिन जेबोजी माता चामुण्डा का मंदिर बणयो। गांव सुलका उदासा ने डूंगर का ढाल में कुण्ड खुदायो व बड़ लगाया। रतनाजी को पदमोजी माता चामुण्डा के तिबारा बणायो, कुण्ड नीचे का खुदायो। सं. १४९१ की साल उदोजी को चौथ ने दोय आम का पेड़ लगाया। तिबारा बनायो। सं. १५७० की साल। पुजारी गांव की मरजी से रखे। देखभाल गांव की है। श्री चामुण्डा माई के मंदिर में गांव बोराज की समिति की तरफ से संगमरमर का गुमज ऊपर वाली व आरसीसी की छत भी भरवाया और नीचे की फर्स संगमरमर लगवाई गई चैत्र सुदि रामनवमी सं. २०४३.....
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था, राजस्थान....
इतिहास संकलनकर्ता — सूरजसिंह सिसोदिया ठि.— बोराज-काजिपुरा, अजमेर....
" गांव रामगढ़ की अरावली पहाड़ियों में स्थित केबाजा मां का दरबार "―
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राष्ट्रीय राजमार्ग १६२ के करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत के रामगढ़ सेडोतान राजस्व ग्राम के भाटियों के बाड़िया के समीप अरावली पर्वत में मनमोहक पहाड़ियों के बीच विराजमान केबाजा मां का मंदिर अपनी अनूठी पहचान बनाए हुए है। यह मंदिर अति प्राचीन है। प्राचीन मान्यता के अनुसार ऋषि-मुनियों ने देवी के चरणों में बैठक साधना को सफल बनाया। मंदिर के पूर्व चांग की धूणी जो अंगोर पंथियों का प्रमुख स्थान है और पश्चिम में बाबा बालकनाथ की प्राचीन धूणी बोरवाड़ में स्थित है। मंदिर के नीचे चट्टान में हमेशा गंगा की जलधारा अनवरत रूप से बहती है, जो अकाल के समय भी बहती रहती है। मान्यता है कि इसका जल पीने से असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती है। जलकुंड के पास कदम्ब के वृक्ष स्थित है। रामगढ़ सेडोतान ग्राम से अधिकतर परिवार भारतीय सेना में कार्यरत है, जिन्होंने कनेकों युद्ध में भाग लेकर विजयश्री प्राप्त की है।
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास
लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर____
श्री कालिंजर माता रानी दरबार —
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अरावली पर्वतमाला क्षेत्र में स्थित ग्राम कालिंजर के हाथीगिरी पहाड़ की सर्वोच्च चोटी पर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच विराजमान कालिंजर माता रानी दरबार भक्ति एवं आस्था का प्रमुख केन्द्र है। समुद्र तल से करीब साढ़े चार हजार फीट ऊंचे हाथीगिरी पहाड़ की चोटी पर माता रानी के दरबार में आस्था का सैलाब देखने से ही बनता है। जयपुर राजघराने की कुलदेवी कालिंजर माता के दरबार में सदियों से चली आ रही मनोकामना पूर्ण करने वाली पवित्र पात्ति उतरने की परंपरा आज भी कायम है। माता के श्रीफल, खीर-चूरमा, मेवे-मिश्री का भोग लगाकर भक्तों में चुनरी चढ़ाने और पात्ति लेने की होड़ मची रहती है। धरातल से करीब डेढ़ किलोमीटर की सीढ़ियों वाले रास्ते पर पैदल पहाड़ी चढ़ाई में चढ़कर माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। माता रानी के दरबार से उंची पहाड़ी चोटियों पर भ्रमण करते भक्तों को आस-पास का प्राकृतिक सौंदर्य अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करता है। इस प्राकृतिक नजारे के बीच हाथीगिरी पहाड़ में माता रानी दरबार से आधा किलोमीटर दूरी पर हाथीगिरी की धूणी और गुफा है। माता की आने वाले अधिकांश भक्त माता के दर्शन करने के बाद यहां पर दर्शन करने जाते हैं। इस पहाड़ पर रॉक गार्डन का नजारा और प्राकृतिक एडवेंचर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस पहाड़ी क्षेत्र में पैंथर, सियार, वन बिलाव, लोमड़ी, खरगोश, मोर, तोते, कबूतर, रंग-बिरंगी चिड़ियां देखी जा सकती है। यहां माता रानी के दरबार में नवरात्रों को छोड़कर अधिकांशतः रविवार के दिन ही पूजा-पाठ होती है और श्रद्धालु बडी़ संख्या में पहुंचते हैं।
स्त्रोत– वर्धनोरा (मगरांचल) राज्य का इतिहास।
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लेखनकर्ता— सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर...