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"हमारे क्षेत्र के प्रमुख शक्ति पीठ"
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✽. आशापुरा माता मंदिर नाडोल (रानी),
✽. मायली माता मंदिर बांसोर (जोजावर),
✽. चामुंडा माता मंदिर बोराज (अजमेर),
✽. मझेवला माता मंदिर कानुजा (रायपुर मारवाड़),
✽. भंवाल माता मंदिर जशनगर (मेड़ता),
✽. भुवाल माता मंदिर बुआल (मेड़ता),
✽. ज्वालामुखी मंदिर ब्यावर,
✽. बिहार माता मंदिर बिहार रतनपुरा (जवाजा),
✽. पीपलाज माता मंदिर कानाखेजड़ी (टॉडगढ़),
✽. भंक्या रानी मंदिर (आसीन्द),
✽. सेण्डमाता मंदिर मदारिया (देवगढ़),
✽. आमज माता मंदिर रिछेड़ (कुंभलगढ़),
✽. वैराट माता मंदिर बदनोर,
✽. आवरी माता मंदिर भदेसर,
✽. धूणी माता मंदिर डबोक (उदयपुर),
✽. जोगणिया माता मंदिर बेगू,
✽. झांतरा माता मंदिर मातृकुण्डिया,
✽. कालिका माता चित्तौड़गढ़,
✽. भंवर माता मंदिर छोटी सादड़ी,
✽. भाद्रवा माता मंदिर उदयपुर,
✽. धूणी माता मंदिर बांसी (बड़ी सादड़ी),
✽. अम्बा माता मंदिर उदयपुर,
✽. निमज माता मंदिर उदयपुर,
✽. कालका माता मंदिर भीण्डर,
✽. चामुण्डा माता मंदिर बांसा (चारभुजा),
✽. इड़ाणा माता मंदिर सलूम्बर,
✽. जड़ोल माता मंदिर आमेट,
✽. धनोप माता मंदिर गुलाबपुरा
✽. हिंगलाज माता मंदिर रावली गणेशपुरा,
✽. कुण्डा माता मंदिर बाघमाल,
✽. बेलपना माता मंदिर (बेलपना),
✽. कोटड़ा माता मंदिर झिंझारड़ी (कंटालिया),
✽. चामुण्डा माता मंदिर खोड़िया,
✽. केबाजा माता मंदिर रामगढ़ (सेन्दड़ा)
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास
लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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#___जय_मां_भवानी____
#___जय_राजपूताना____
स्वाभिमानी रावत राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
तीर्थराज पुष्कर (एक अलौकिक तीर्थ) ―
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सृष्टि के रचियता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्थली तीर्थगुरु "पुष्कर" नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। यह तीर्थ हमारे अनगिनत ऋषियों- मुनियों व देवपुरूषों की तपोभूमि भी रही है। इसी कारण आदिकाल से ही यह स्थान जन-जन की श्रद्धा एवं भक्ति का केन्द्र रहा है। सर्वधर्म समभाव की नगरी अजमेर से उत्तर-पश्चिम में करीब १३ किलोमीटर दूर पुष्कर में अगस्तय, वामदेव, जमदग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों की तपस्थली के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में है। अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यह छोटा सा कस्बा करोड़ों हिंदुओं का आस्था का केन्द्र है। यहां प्रतिवर्ष विश्वविख्यात कार्तिक मेला लगता है।
जगतपिता ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसके कारण इस समय का अनादिकाल से एक विशेष महत्व बन गया है, जिसकी स्मृति में यहां मेला लगता है। पुष्कर के आस-पास पहाड़ियां, रेत के टीबे व सघन वनस्पति है तथा यहां के पहाड़ हरे-भरे एवं मनमोहक है। पुष्कर में सभी समाजों की धर्मशालाएं व मंदिर है। यहां ब्रह्माजी के मंदिर के पास मेला स्थल रोड़ पर रावत-राजपूत समाज का मंदिर व धर्मशाला भी है। यहां यह भी उल्लेखनीय विषय है कि पुष्कर क्षेत्र रावत-राजपूत समुदाय का बाहुल्य क्षेत्र है तथा यहां के रावत-राजपूत अत्यंत संपन्न एवं धार्मिक है।
पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आदि शंकराचार्य ने संवत् ७१३ में ब्रह्माजी की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने १८०९ ई. में बनवाया था।
यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है, जहां ब्रह्माजी की चर्तुमुखी आदमकद पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा है, दाई ओर कुबेर की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में ही गणेशजी, श्रीकृष्ण व शिवजी आदि के मंदिर है। मंदिर के पीछे पश्चिम में रत्नगिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ ६९ फुट की ऊँचाई पर सावित्री माताजी का मंदिर है तथा ठीक विपरीत दिशा में गायत्री माता का शक्तिपीठ है। सावित्री माता को यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था।
तीर्थराज पुष्कर को सभी तीर्थो का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में पाँच तीर्थो में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरूक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। पुष्कर हमारे पाँच महातीर्थो में प्रमुख तीर्थ, पाँच सरोवरों में प्रमुख सरोवर, नौ अरण्य व अष्ठोत्तर विष्णु क्षेत्रों में दिव्य विष्णु क्षेत्र माना जाता है। अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर सरोवर धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केन्द्र रही है। यहां पवित्र सरोवर के अतिरिक्त अनेकों सुप्रसिद्ध देवालय एवं शक्तिपीठ हैं, जहां श्रद्धालुजन आकर स्नान, दान, यज्ञ, श्राद्ध, दर्शन एवं सत्संग लाभ प्राप्त कर स्वयं को धन्य समझते है।
पद्मपुराण के अनुसार जगतपिता ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस सरोवर (झील) का उद्गम हुआ। इस सरोवर का जल पवित्र, रोग विनाशक, पाप मोचक तथा मोक्ष दायक माना गया है। पुष्कर सरोवर १८ से ३२ फीट तक गहरा है, जिसके चारों ओर ५२ घाट व अनेक मंदिर बने है। इनमें गऊ घाट, वराह घाट, ब्रह्म घाट, नरसिंह घाट प्रमुख है। संध्या के समय गऊ घाट पर तीर्थगुरू पुष्कर की आरती की जाती है। झील में दीपदान भी किया जाता है। यहां अधिकतर घाट राजा- महाराजाओं ने बनाये हैं।
जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। विदेशी पर्यटकों को यह दृश्य बेहद भाता है। सरोवर के बीचों बीच छतरी बनी है। चौहान राजा अर्णोराज का बनवाया हुआ यहां विष्णुवराह मंदिर है। इसी प्रकार यहां के विख्यात मंदिरो में भगवान शंकर का अमटेश्वर मंदिर है। पुष्कर में रमा-वैकुंठनाथ मंदिर है जिसकी चैत्र में भव्य झाकियां निकलती है और सावन में झूलोत्सव रहता है। प्रायः दर्शनार्थी स्नान के बाद मंदिरो के दर्शन करते है, दानधर्म करते हैं और सन्यासियों से सतसंग लाभ प्राप्त करते है। अनेक श्रद्धालु अस्थि विसर्जन के लिए भी आते है, कई यहां पितरों का श्राद्ध भी करते है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था।
पुष्कर के पास लम्बा हरा भरा पहाड़ अपनी विशेषता व आश्चर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह पहाड़ हरा-भरा, मनमोहक व वनाच्छादित है। इस पहाड़ में व इसकी तलहटी मे अनेक सुप्रसिद्ध स्थान है। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी तथा यहीं उनका हंसडीक से युद्ध हुआ था। पांडवो ने यहां कुछ दिन वनवास के बिताये थे, यहीं अर्जुन के बाण से खुदी पाण्डुबेरी है, यहां पांच कुण्ड (पंचकुण्ड), महादेव मंदिर, गऊमुख भी है।
बूढ़ा पुष्कर (कानस) कभी ऋषि कण्व की तपोस्थली रही है। यहां कृष्णभक्त लीलासेवड़ी का कृष्ण मंदिर भी है, इसके अतिरिक्त जमदग्नी कुंड (जहां परशुरामजी के पिता जमदग्नी ऋषि ने तपस्या की थी), अगत्स्य मुनि की गुफा (जहां अगत्स्य की प्रतिमा है), भर्तहरि गुफा (राजा से जोगी बने भर्तहरि ने यहां शिव की कठोर तपस्या की थी, कहा जाता है कि आज भी भूले भटके राहगिरों को आप रास्ता बताकर अंर्तध्यान हो जाते है), नारी के गाढ के दुर्गम स्थल पर कभी विश्वामित्र आश्रम रहा था, जहां विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की थी।
होकरा में चौहान राजा सोमेश्वरराज का बनवाया हुआ भगवान वैद्यनाथ का मंदिर है। नागपहाड़ पर ही सोमेश्वरराज ने किला बनवाया जो आज ध्वस्त है, जहां लक्ष्मीपोल के पास कभी लक्ष्मीजी का स्वर्णमंदिर था।
इसी तरह चौहान राजा अजयपाल भी महान योद्धा व तपस्वी हुए, वे भी इच्छाधारी सिद्धपुरूष थे। अजयपाल के बारे में यह मान्यता है कि वे भूले-भटके यात्रियों को कई बार दर्शन देते है। इन्हीं अजयपाल का अंजार (गुजरात) में जैसल-तोरल के मंदिर के सामने मंदिर व बावड़ी है जहां हर वर्ष मेला लगता है। इसके अतिरिक्त यहां नागकुंड, चक्रकुंड व सुधाकुंड भी प्रसिद्ध है।
पुष्कर में रामानुज, निम्बार्क, वल्लभाचार्य, रामस्नेही, कबीर, दादू, सिक्ख व गायत्री सम्प्रदाय के उपासनागृह है।
पुष्कर तीर्थ के आस-पास के गांवो में गनाहेड़ा, गोवलिया, मोतीसर, डाबला, चावड़िया, तिलोरा, कानस, नेड़लिया, होकरा, रावतखेड़ा, सवाईपुरा, अखेपुरा, सगतपुरा, देवगढ़, दौलतपुरा, गौड़जी का गुड़ा, वाड़ीघाटी, बुआल आदि है। पुष्कर व इसके आस-पास के गांवो में गुलाब की खेती भी विश्वप्रसिद्ध है। यहाँ का गुलाब तथा पुष्प से बने गुलकंद, गुलाब जल इत्यादि का निर्यात किया जाता है।
इस तरह पुष्कर धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पौराणिक व आध्यात्मिक दृष्टि से एक अलौकिक धाम है।
स्त्रोत- (१). वर्धनोरा राज्य का इतिहास।
(२) अजमेर का इतिहास।
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#___जय_राजपूताना____
स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर_
"गोरमघाट (राजस्थान का कश्मीर)" ―
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क्या कभी आप कश्मीर गए हैं? नहीं…. तो कोई बात नहीं। हम आपको राजस्थान के कश्मीर से वाकिफ करवाते हैं। नैसर्गिक सौन्दर्य व वन्य जानवरों से परिपूर्ण टॉड़गढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य के तहत राजसंमद, पाली व अजमेर जिले की सरहद पर स्थित है गोरमघाट। रेल्वे कर्मचारियों के लिए भले ही कालापानी की सजा हो परंतु यहां आने वाला हरेक पर्यटक इस वन्य अभ्यारण्य व घाट सेक्सन को देख रोमांचित हो बार-बार आने की इच्छा रखता है। मावली-मारवाड़ जंक्शन रेलखण्ड़ के कामलीघाट रेल्वे स्टेशन से १४ किलोमीटर दूर गोरमघाट स्टेशन पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। वर्ष १९३८ में अंग्रेजों द्वारा पहाड़ो के बीच निकाली गई इस रेल्वे लाइन को घुमावदार, घाटी, पहाड़ों, तेज ढ़लान व गहरी खाइयों के बीच से निकाला गया है। गोरमघाट पहुंचने के लिए पर्यटकों को सिर्फ रेल का ही सहारा लेना पड़ता है। यहां के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं है। काछबली से जरूर पगडंडी मार्ग है परंतु यह दुर्गम मार्ग है। कामलीघाट से गोरमघाट रेल्वे स्टेशन के बीच २ गुफाएं है जिनमें से रेल गुजरती है। गहरी खाईयों व तेज ढलान होने के कारण ट्रेन सिग्नल नं. १ व २ पर रूककर रेल्वे टोकन लेकर आगे बढ़ती है। रेल के इस सफर के दौरान पर्यटकों को अनेक बार अरावली के अनेक मनोरम दृश्य नजर आते हैं। गोरमघाट रेल्वे स्टेशन पर से तो ५ किलोमीटर दूर रेल पहाड़ों से उतरती नजर आती है, यह दृश्य आश्चर्यजनक लगता है। गोरमघाट स्टेशन के बाद फूलाद स्टेशन आता है।
गोरमघाट स्टेशन से दो किलोमीटर पहले जोगमंडी दर्शनीय पर्यटक स्थल आता है जहां बरसात के समय ८० फीट ऊंचा झरना पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहता है। यहां मंदिर बना हुआ है जिसमें यदा-कदा कोई तपस्वी रहा करते हैं। यही रेल्वे का सबसे ऊंचा पुल है जिसकी ऊंचाई ३५० फीट है। यहां आस-पास में ८ पुल है। वर्षाकाल में प्रायः यहां रेल रोक दी जाती है तो पर्यटक यहीं उतर जाते है।
यह वन क्षेत्र अनेक प्रजातियों के पेड़ों व वनौषधियों से भरपूर है। वन क्षेत्र में जंगली जानवर भी अधिक है। कई बार रेल कर्मचारी भी शेर या रीछ आदि से रूबरू होते रहते हैं। संभवतया गोरमघाट देश का एक मात्र ऐसा रेल्वे स्टेशन है जहां बिजली नहीं है। यहां सौर उर्जा से बिजली की व्यवस्था हो रखी है परंतु वर्षाकाल में जब लगातार कई दिनों तक सूर्य का दर्शन नहीं होता है तो सौर उर्जा यंत्र भी काम करना बंद कर देता है और अंधेरा झेलना पड़ जाता है। यहां मोबाइल सेवा भी बन्द हो जाती है, जो भी हो यह घाट अत्यंत आकर्षक एवं नैसर्गिक पर्यटक स्थली है।
गोरम पहाड़ के आसपास की तपोभूमि में अनेक उल्लेखनीय महत्व के स्थान ―
मध्य अरावली क्षेत्र की सुरम्य वादियों में स्थित गोरमपहाड़ के १० किलोमीटर दायरे की भूमि ऋषियों, मुनियों व साधु-संतों की तपोभूमि रही है, जिसका कण-कण अपनी पवित्रता व अलौकिकता लिए हुए है। मारवाड़ व मेवाड़ के मध्य बदनोरा (मगरांचल) राज्य की यह पवित्रतम स्थली पर्यटन व धार्मिक महत्व की है जहां छोटे-बड़े कई उल्लेखनीय महत्व के स्थान है। इस छोटे से क्षेत्र में इतने चमत्कारिक, दर्शनीय एवं धार्मिक महत्व के स्थान है, यह आश्चर्य व गर्व का विषय ही है।
गोरमपहाड़ के आस-पास की तपोभूमि के अनेक धार्मिक स्थान ---
(१). वायड़– गोरम पहाड़ की तलहटी में स्थित यह धर्म स्थल बड़े-बड़े पेड़ों से आच्छादित है। ऐसे बड़े व भारी पेड़ अन्यत्र देखे नहीं जाते है। गांव सारण (पाली) से ६ किलोमीटर पूर्व में स्थित इस स्थान पर भैरूजी की छत्री है जहां चैत्र सुदी एकम व आखातीज के बाद पहले रविवार को पूजा कर जोत ली जाती है जिससे वर्षा का शगुन लिया जाता है। यहां वन खण्ड ऋषि की तपोभूमि है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान पुष्करराज से भी ज्यादा पुराना है। यहां महादेव का मंदिर है और पानी की बावड़ी है। इस पर्यटन स्थल तक कच्ची सड़क आती है।
(२). गोरक्षनाथ का मंदिर– सुरम्य वादियों में स्थित रेलवे स्टेशन गोरम घाट के पास खड़े मध्य अरावली के सर्वाधिक ऊंचे पहाड़ पर गोरक्षनाथ का मंदिर है जहां गोरम घाट, मण्डावर व वायड़ से जाने की पगडण्डी मार्ग है। यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम है।
(३). काजलवास – यह तपोस्थली सिरयारी से चार किलोमीटर पूर्व में प्राचीन धार्मिक महत्व का स्थान है। यहां गोमुख से निकल रहे जल को पशु व अन्य रोग में प्रायः प्रयोग में लेते हैं। यहां सिरिया देवी व भक्त प्रहलाद सहित ११ जीवित समाधियां है। इनमें धोरमनाथ व गंगानाथ की समाधियों के साथ यह कथन जुड़ा हुआ है कि ये दोनों समाधियां प्रतिदिन नजदीक आ रही है। जिस दिन दोनों समाधियों का मिलन होगा, उस दिन प्रलय हो जाएगा।
(४). गौखर – सिरियारी (पाली) से ६ किलोमीटर पूर्व में गौखर है। कहा जाता है कि किसी समय यहां गाय का खुर जमीन में धस गया। वहां से अविकल जलधारा प्रवाहित हुई वह अटूट चल रही है। यही गोरमजी तपस्या के बाद भगवान शिव एवं माता पार्वती के दर्शन पाकर धन्य हुए थे।
(५). शब्द गुरू निर्मलावन की धूणी-पांच मथा पहाड़– सिरियारी से ४ किलोमीटर पूर्व में बरजालिया का गुड़ा के पास पांच एक जैसे शिखर वाली पहाड़ियां है। इसकी चट्टानों के नीचे गुफाओं में ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है। यहीं निर्मलावन की धूणी भी है।
(६). केरूण्डा – गोरम पहाड़ के उत्तर की ओर, मण्डार (भीम) के पास घने जंगलों में स्थित यह चमत्कारिक स्थान है। जहां रामदेव बाबा का मंदिर है तथा चार कुण्ड बने है। यहां आखातीज के एक दिन पहले सैंकड़ों श्रद्धालु पूजा करते हैं। इससे इन कुण्डों में जल फूट पड़ता है। इस जल से रोठ बनाते है। इस पर सूत लपेटकर अग्नि में सेका जाता है पर चमत्कार कि सूत नहीं जलता है और रोटी सिक जाती है। यदि जिस तरफ की रोटी का सूत जल जाता है तो मानते हैं कि उस दिशा में अकाल का संकट रहेगा।
(७). धोरों का बड़ – घने जंगल में स्थित धोरों का बड़ १००० वर्ष पुराना महत्व रखता है जहां चट्टानर के नीचे से अविकल जलधारा प्रवाहित हो रही है।
(८). आशापुरा माता का मंदिर व बरड़वंशीय चौहान राजपूतों का गुरूद्वारा – सारण गांव में रावले के पास सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक अनहलवंशीय एवं अनूपवंशीय (चीता-बरड़) चौहान राजपूतों की कुलदेवी माँ आशापुरा का प्राचीन मंदिर है। यहां अनूपवंशीय चौहानों (बरड़ वंश) का सुप्रसिद्ध गुरुद्वारा है जो कभी अनहलवंशी चौहानों का भी गुरुद्वारा था। यहां निर्मलावन जी की समाधि व शिव मंदिर है। यह स्थान बहुत चमत्कारिक है।
स्त्रोत- (१). रावत-राजपूत संदेश पत्रिका।
(२). मगरांचल का इतिहास, लेखक - स्व. इतिहासकार श्री मगनसिंह चौहान।
(३). रावत-राजपूतों का इतिहास, लेखक - ठाकुर श्री प्रेमसिंह चौहान।
(४). वर्धनोरा राज्य का इतिहास।
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