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"राजपूत महासभा सम्मेलन, टॉड़गढ़" ―
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१४ अगस्त १९२६ को कार्यकारिणी की बैठक–
रावत-राजपूत महासभा कार्यकारिणी की मिटिंग टाॅड़गढ़ में १४ अगस्त को खरवा नरेश राव गोपालसिंह जी खरवा की अध्यक्षता में हुई। इसमें ३ हजार वर्धनोरा (मगरांचल) राज्य के राजपूतों ने भाग लिया। मिटिंग में निर्णय हुआ कि महासभा का प्रधान कार्यालय खरवा में होगा तथा इसके अजमेर व ब्यावर में सहायक कार्यालय रहेंगे। मिटिंग में सर्वसम्मति से मैनेजिंग कमेटी बनाई गई, जिसमें चौहान वंश के रामसिंह जस्साखैड़ा, नंबरदार खेमसिंह भगड़ी कलालिया, सूबेदार डूंगरसिंह घोटी, नंबरदार भादूसिंह काबरा, नंबरदार हम्मीरसिंह बरार, नंबरदार चतरसिंह टाडगढ़, सूबेदार भीमसिंह छापली, हिम्मतसिंह काछबली, हवलदार गजसिंह लगैतखेड़ा, जमादार अन्नासिंह अंधेरीदेवरी, मोटसिंह नाहरपुरा राजगढ़, ओमसिंह बायला व उदयसिंह चैनपुरा अजमेर, पंवार वंश में से सूबेदार खेमसिंह बिहार भांडेता, नंबरदार मानसिंह रूढ़ाना, हीरासिंह बाघमाल, मेंदूसिंह गवारड़ी अजमेर, लूम्बसिंह फारकिया व भूरसिंह मदारपुरा, गुहिलोत वंश में से सूबेदार बन्नासिंह गोहाना, चिमनसिंह सोनियाणा, रावजी टीलसिंह कूकरखैड़ा व डिप्टी रेंजर दल्लासिंह कूकरखैड़ा, राठौड़ वंश में से ज्ञानसिंह पटेल पुष्कर तथा भाटी वंश में से खेमसिंह नोलखा को लिए गए। कमेटी का अध्यक्ष रामसिंह जस्साखैड़ा, मंत्री अन्नासिंह अंधेरी देवरी व कैशियर करणसिंह कांसिया तथा रामसिंह बिच्छुचौड़ा बनाए गए। सर्वसम्मति से यह भी निर्णय हुआ कि भविष्य में महासभा की समस्त गतिविधि प्रधान सभापति राव गोपालसिंह खरवा के सानिध्य में ही हुआ करेगी। मीटिंग में निर्णय किया कि अपनी परंपराओं में सुधार लाया जाएगा। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाई जाएगी और समाज में सुधार लाया जायेगा।
१५ अगस्त १९२६ को राजपूत महासभा सम्मेलन -
रावत-राजपूत महासभा का १५ अगस्त को टॉडगढ़ में सम्मेलन हुआ। इसमें अजमेर, वर्धनोरा (मगरांचल), मेवाड़ व मारवाड़ के ८ हजार रावत-राजपूत सरदार शामिल हुए। सम्मेलन में बनेड़ा नरेश राजा अमरसिंह मुख्य अतिथि थे। सम्मेलन की अध्यक्षता खरवा नरेश राव गोपालसिंह ने की। इस ऐतिहासिक अवसर पर मसूदा नरेश राव विजयसिंह, ठाकुर गोविन्दसिंह ज्ञानगढ़, पुरोहित मोडसिंह खरवा व कुछ आर्य समाज के उपदेशकों के अतिरिक्त लगभग दो सौ राजपूत सरदार शाहपुरा, रायपुर, देवगढ़, पालड़िया सहित आस-पास के ठिकाणों से पधारे थे। सभी प्रमुख सरदारों ने सम्मेलन को संबोधित किया, तदोपरांत सहभोज हुआ। इस मौके पर खरवा राव गोपालसिंह का जो सारगर्भित, प्रेरणास्प्रद व उल्लेखनीय संबोधन हुआ, जिसका सार इस प्रकार है –
'खरवा नरेश राव गोपालसिंह का ऐतिहासिक संबोधन' –
"रावत-राजपूत समय-समय पर अपनी राजपूती का उज्जवल कीर्तिमान स्थापित करते आए हैं तथा अपनी मान-मर्यादा के भी बड़े धनी रहे हैं। रावत-राजपूतों ने उदयपुर व जोधपुर राज्यों के लिए भी अनेक बार कुर्बानियां दी है तथा दोनों राज्यों में इनका पूरा सम्मान था। इस क्षेत्र में कभी मेर जाति रहा करती थी जिन्हें आप लोगों के पुरखों ने मार भगाया था और इस क्षेत्र पर अपना स्वामित्व स्थापित किया था। यह इतिहास सिद्ध तथ्य है कि यहां रहने वाले राजपूत सरदार चौहान, गुहिलोत, राठौड़, परमार व भाटी वंश के राजपूत हैं जो कि समय-समय पर इस क्षेत्र में आकर बसे हैं। इन्हीं वंशधरों ने इस क्षेत्र में आगे जाकर अपनी रावत-राजपूत सरदार के रूप में एक पृथक पहचान बनाई थी जो कि सर्वविदित है।"
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स्त्रोत - (१). रावत-राजपूतों का इतिहास।
(२). वर्धनोरा राज्य का इतिहास। लेखक- 'स्व. इतिहास लेखक डॉ. मगनसिंह जी चौहान, कूकड़ा'
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इतिहास संकलनकर्ता — सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
“सेन्दड़ा क्षत्रिय सम्मेलन” —
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अरावली की उपत्यकाओं में विस्तृत वर्धनोरा (मगरांचल) क्षेत्र के रावत-राजपूतों और समीपस्थ क्षेत्रों के राजपूत सरदारों का दिनांक ३० अक्टूबर, १९४७ ई. को सेन्दड़ा (जिला-पाली) में राजपूताना रावत-राजपूत महासभा, राजस्थान क्षत्रिय महासभा और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के तत्वाधान में सम्मेलन हुआ, जिसके प्रमुख सूत्रकार राजपूताना रावत-राजपूत महासभा के सभापति मेजर फतेहसिंह जी रावत-राजपूत थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि जोधपुर राज्य के राज राजेश्वर महाराजाधिराज हनुवंतसिंह जी राठौड़ (१९४७-१९५२ ई.) थे। सम्मेलन में सैकड़ों रावों, उमरावों, जागीरदारों, ठाकुरों सहित हजारों राजपूत एवं रावत-राजपूत सरदारों ने भाग लिया। सम्मेलन में राजस्थान क्षत्रिय महासभा के इस इतिहास-सम्मत निर्णय की उद्घोषणा की गई –
“रावत-राजपूत जाति के मूल में चौहान, गहलोत, पंवार, राठौड़, भाटी आदि राजपूत वंशज समाविष्ट है इसलिए राजपूताना क्षत्रिय महासभा की प्रतिनिधि सभा में तारीख १२ अक्टूबर, १९४७ ई. की जोधपुर बैठक में यह निर्णय लिया गया कि रावत-राजपूत निर्विवाद रूप से राजपूत समाज के ही अंग है।”
सम्मेलन में लिये गए उपर्युक्त ऐतिहासिक निर्णय के प्रमुख हस्ताक्षर —
महाराजा तेजसिंह जी अलवर (अ.भा. क्षत्रिय महासभा),
महाराज कुमार दलजीतसिंह जी ईडर (राज. क्षत्रिय महासभा),
ठाकुर मंगलसिंह जी खूड,
कर्नल मोहनसिंह जी भाटी जोधपुर,
कु. गोविन्दसिंह जी चंडावल,
कु. देवीसिंह जी मंडावर,
मोडसिंह जी खरवा,
ठाकुर रामसिंह जी सिरोही,
ठाकुर माधोसिंह जी खींची।
महाराजाधिराज हनुवंतसिंह जी के सम्बोधन का मुख्य अंश –
“भाईयों! म्हने इण बात री घणी खुशी अर गर्व है कि म्हारा राज में पचास हजार सूं ऊपर रावत-राजपूत भाई म्हारे मायने पाछा मिल रया है। इण काम ने पूरो करने आपां जिण दूरंदेशी रो परचो दियो है वो तवारीख में सोना रा आखरां सूं लिख्यो जावेला।...... मैं एक राजपूत री हैसियत सूं रावत-राजपूत भाईयों रो स्वागत करूं हूँ।”
लोकार्पण - ३० अक्टूबर, २०२० ई. तद्नुसार मिति आश्विन शुक्ल १४ वि.सं. २०७७...
स्त्रोत- वर्धनोरा राज्य का इतिहास लेखक- स्व. डॉ. मगनसिंह चौहान, रावजी का तालाब, कूकड़ा।
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स्वाभिमानी रावत राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर
प्रथम विश्वयुद्ध से अब तक मेरवाड़ा स्टेट अजमेरा-मगरा क्षेत्र मेर तथा रावत योद्धाओं का राष्ट्र हित में सैनिक योगदान और शहीदों का ज्ञात इतिहास*
देशसेवा में ऐतिहासिक रूप से अजमेरा-मगरा क्षेत्र का महत्व निर्विवाद है । सांभर की चौहान शाखा के राजा अजयपाल ने "अजयमेरू" के नाम से अजमेर की स्थापना सन् 1113 ई. में की थी । कालान्तर में यह शहर और इसके अधीन क्षेत्र अजमेर-मेरवाड़ा एक स्वतंत्र प्रांत के रूप में जाना जाता रहा । भारतीय इतिहास में यह नगर आकर्षण और युद्ध घटनाओं का केन्द्र रहा ।
*अजमेर मेरवाडा पर ब्रिटिश शासन और मेरवाड़ा बटालियन*
24 जून 1818 ई. को ईस्ट इंडिया कं. और ग्वालियर महाराजा के मध्य एक संधि के तहत अजमेर पर अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हो गया । प्रारम्भ में अजमेर प्रांत के 105 ग्राम अंग्रेजों को प्राप्त हुए । प्रथम ब्रिटिश सुपरिटेंडेंट एफ. वाइल्डर (1818-24) ने यहां संघर्षरत *छापामार युद्ध* में प्रवीण तथाकथित मेर जातियों की दशा सुधारने का प्रयत्न प्रारम्भ किया । उनके बाद हेनरी मिडिल्स, केवेडिश, मूर स्पीयर्स, एंडमंडस्टन आदि ने अजमेर सुपरिटेंडेंट का कार्यभार संभाला था । 1842 ई. में कर्नल सी.जी. डिक्सन ने अजमेर के साथ मेरवाड़ा का पदभार संभालते हुए अजमेर को मुख्यालय बनाया । अंग्रेज शासकों के मन में जहाँ मुगल संस्कृति के प्रति नफरत थी वहीं धर्मान्तरित मेर लोगों व स्वतंत्रता प्रिय पशुपालक वीर क्षत्रियों के प्रति नकारात्मकता अपरिहार्य थी । छापामार युद्ध प्रवीण लोग, क्षेत्र की रक्षा व बलिदान के जज्बे से ओतप्रोत इस क्षेत्र के लोगों को जबरदस्ती काबू ना कर पाने से इन्हें ब्रिटिश सेना में भर्ती करना प्रारम्भ किया और सैनिक योगदान लिया गया । आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय अंग्रेजों ने चार केन्द्रशासित प्रदेश बनाए थे । पहला "कुर्ग" जो कर्नाटक में स्थित है । यहाँ कुर्ग जाति रहती है जो सिकंदर के वंशज हैं । दूसरा बलूचिस्तान (वर्तमान में पाक अधीन) था जो लड़ाका जाति बलूच जाति का क्षेत्र था । तीसरा केन्द्रशासित प्रदेश अण्डमान निकोबार था । चौथा और अहम क्षेत्र जिसने अंग्रेजों की हालत खराब कर दी थी । वीर रावत-राजपूतों की कर्मस्थली *अजमेर-मेरवाड़ा* । इन प्रदेशों का केन्द्रशासित होना ही यहाँ के लोगों की निर्भिकता, वीरता स्वतः सिद्ध करता है। इन्होंने कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की । अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत पर आधिपत्य स्थापित करने की नीति के तहत सन् 1823 ई. में ब्रिटिश हुकूमत के आदेश से '44' मेरवाड़ा राजपूत इन्फेंट्री बटालियन का गठन किया । 1 दिसम्बर 1926 के एक पत्र में मेजर जनरल कमांडिंग ऑफिसर सी.वी.एफ. टाउन-शेड ने लिखा था कि, "राजपूताना के मध्य भारत के सहायक भर्ती अधिकारी के रूप में मैंने पाया 1920 से 1921 ई. में सारे भारत में सेना में भर्ती होने वालों में संख्या के लिहाज से अजमेर-मेरवाड़ा सबसे अव्वल था । मैंने व्यक्तिगत रूप से मेरवाड़ा-राजपूताना की निडरता, बहादुरी व देश के प्रति प्रतिबद्धता देखी है । "
*मगरे के प्रथम शहीद राजू रावत जातीय स्वाभिमान के लिए 12 वर्षों तक अंग्रेजों के छापामार युद्ध करते रहे थे।* यही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहिद थे ।
*प्रथम विश्वयुद्ध और मेरवाड़ा बटालियनों का गठन*
प्रथम विश्वयुद्ध 1914 ई. के दौरान ब्रिटिश सी.वी.एफ. टाउन-शेड, मे.ज.कमांडिंग ऑ. 6वीं बटालियन फोर्स में कुत-एल-अमराह अधिकारी थे । ये 1842 से 1857 ई. तक सयुंक्त अजमेर-मेरवाड़ा के गवर्नर रहे । इनके अनुसार मेर-रावत-राजपूतों ने निम्न बटालियनों में अपनी सेवाएं दी....।
1. 29वीं पंजाबी कन्टेनिंग वन कम्पनी ऑफ रावत एण्ड मेरात्स
2. 2वीं/42वीं देवली रेजीमेंट कन्टेनिंग वन कं. ऑफ रावत एण्ड मेरात्स
3. 43वीं, 2वीं, 43वीं यूरोपियन रेजिमेंट
4. 44वीं मेरवाड़ा बटालियन
5. दी 72वीं पंजाबी कन्टेनिंग वन कं.
6. दी 122वीं राजपूताना इंफेंट्री
7. दी जे एण्ड के कम्पनी ऑफ दी 122 इंफेंट्री
8. दी 9/119वीं इंफेंट्री
9. दी 3/150वीं इंफेंट्री
10. दी कुली कॉपर्स कंटेनिंग वन कं.
11. दी ट्रांसपोर्ट कॉपर्स कंटेनिंग वन कं.
12. दी हॉस्पिटल कॉपर्स कंटेनिंग वन कं.
13. दी आर्मी बिएर कॉर्प्स
उपरोक्त रेजीमेंट्स ने प्रथम विश्वयुद्ध में पूरी वीरता एवं बहादूरी से अपना प्रदर्शन किया । इसमें सैंकड़ों रावत-राजपूतों ने अपनी जान की कुर्बानियां दी । प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर आज तक कई मोर्चों पर अपने पराक्रम का परिचय दे चुके हैं ।
*प्रथम विश्वयुद्ध के शहीद और भारत का एकमात्र विक्ट्री मेमोरियल*
साल 1914 से 1918 ई. तक चले प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन की तरफ से हजारों सैनिकों ने भाग लिया । कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन के मुताबिक अविभाजित भारत से 11 लाख सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया था । इसमें से 10 लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों मे अपनी सेवाएं दी थी । युद्ध के दौरान कुल 62000 भारतीय सैनिक मारे गये । लगभग 67000 सैनिक घायल हुए । देशी-विदेशी सैनिकों को साथ जोड़ा गया तो 74,187 सैनिकों का नाम आया था । 1931 ई. में ब्रिटिश शासकों ने दिल्ली के राजपथ (किंग्सवे) पर 43 मीटर ऊँचा विशाल द्वार बनवाया । यहाँ प्रथम विश्वयुद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है जिन्होंने लड़ते हुए अपने प्राण गँवा दिए । 13000 सैनिकों के नाम "इण्डिया गेट" पर उत्कीर्ण हैं । यह स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय स्मारक है । इसका डिजाइन सर एडवर्ड लुटियंस ने तैयार किया था । यह दस वर्षों में बनकर तैयार हुआ तथा छः लाख रुपये का खर्च आया था । यह स्मारक पेरिस के आर्क डे ट्रॉयम्फ से प्रेरित था । अजमेर-मेरवाड़ा व राजपूताना (राजस्थान) के 1550 शहीदों के नाम भी इसमें ही उत्कीर्ण हैं । यहाँ बाद में अमर जवान ज्योति स्थापित की गई थी जो निरन्तर शहीदों की याद में जलती रहती है । अजमेर-मेरवाड़ा के शहीद सैनिकों के कुछ नाम जो इंडिया गेट पर उत्कीर्ण हैं..यथा
1. अमीरा रावत 19087, पिता नन्दू रावत,अजमेर (आर्मी बिएर)
2. नंगा रावत 5206, पिता केना रावत, काली माई का मौहल्ला,नसीराबाद (आर्मी हॉ.कॉ.)
3. हरनाम सिंह 983 पिता राम सिंह, अजमेर ( इंडियन लेबर कॉर्प्स)
4. गाजी रावत 1059, पिता जीवन रावत, गुनपुरा, ब्यावर (150 इंडियन इंफेंट्री)
5. कूंपा रावत 681,;पिता लाला रावत, राजगढ़- अजमेर (150 इंडियन इंफेंट्री)
6. माला रावत 1064, पिता बीना रावत, बुकाहोरिया,ब्यावर (150 इंडियन इंफेंट्री)
7. रामा रावत 687, पिता गोमा रावत, राजगढ़-अजमेर (150 इंडियन इंफेंट्री)
8. चूना रावत 636, पिता बजा रावत छापली- बदिया, टॉडगढ़ अजमेर
9. देवा रावत 2576, पिता पाँचा रावत, बरजाल, टॉडगढ़-अजमेर
10. मान सिंह रावत 1979, केसा रावत, बरार-टाडगढ़-अजमेर
11. मंगला काठात, प्रथम विश्वयुद्ध
12. सुजान सिंह/रूप सिंह, थुनी का थाक द्वितीय विश्वयुद्ध
13. माला पुत्र रूपा रावत छापलियाँ बीएन 2448/119 सिपाही, इण्डियन इन्फेंट्री मुलतान, 27 फर. 1917
14. केसर पुत्र कूंंपा रावत ठिकरवास बीएन 3515/119 सिपाही (इ. इ. मुलतान) 10 फर. 1916 बसरा
15. रूपा पुत्र भगा रावत टॉडगढ़ बीएन 4108/119 I I{M} {Heliopolis port tewfik egypt} 22 दिसम्बर 1918
16. अजबा पुत्र लाला रावत टॉडगढ़ 119 आई आई एम, फालवर 22 दिसम्बर 1917 बसरा मेमोरियल
17. अखा पुत्र भाना रावत अमरपुरा बीएन 3845/119 आई आई एम नायक,14 फरवरी 1917 बसरा
18. अमरा पुत्र......फालवर 2 मार्च 1917
19. अमरा पुत्र परसा रावत तितरी, 4019/119 आई आई एम सिपाही, 5 अप्रैल 1917 बसरा
20. अरजा पुत्र मोटा रावत नन्दावट-भीम, बीएन 3889/119 आई आई एम नायक, 28 जनवरी 1917 बसरा
21. बागा पुत्र कजा रावत ठिकरवास, 4006/119 आई आई एम सिपाही, 28 अप्रैल 1916 बसरा
22. बगता पुत्र हीरा रावत टॉडगढ़, 3750/119 आई आई एम सिपाही, 15 मार्च 1917 बसरा
23. रामा पुत्र खूमा रावत पिपली-देवगढ़ 3477/119, आई आई एम नायक, 16 फरवरी 1917 बसरा
2्4. रामा पुत्र पीथा रावत 355/119 आई आई एम सिपाही, 22फरवरी 1917 बसरा
25. रामा पुत्र काला रावत काछबली बीएन 4236/119 आई आई एम सिपाही 11 जनवरी 1917 बसरा
26. भैरा पुत्र हाला रावत डाबझर बीएन 4391/119 आई आई एम सिपाही 22 जनवरी 1917
27. रामा पुत्र भाऊ रावत काछबली बीएन 4607/119 आई आई एम सिपाही 28 फरवरी 1917 बसरा
28. बुद्धा पुत्र कम्बर रावत कालादेह भीम बीएन 555797/119
5वीं कम्पनी आर्मी हॉस्पिटल फालवर 22 अगस्त 1921 इण्डिया गेट
29. बद्धा पुत्र लुम्बा रावत भगड़ी बीएन 1107/9 वीं 17 जनवरी 1918 बसरा मेमोरियल
30. नंगा पुत्र नारा रावत डासरियाँ बीएन 3966/119 आई आई एम सिपाही 26 जनवरी 1917 बसरा
31. नंगा पुत्र तेजा रावत बनजारी बीएन 2276/120 राजपूताना इंफेंट्री सिपाही 7 अगस्त 1916
32. नंगा पुत्र दल्ला रावत सिरमा बीएन 2418/122 राजपूताना इंंफेंट्री सिपाही 21 अप्रैल 1917 बसरा
33. देवा पुत्र पांचा रावत बरजाल बीएन 2676/122 राजपूताना इंफेंट्री सिपाही 16 अप्रैल 1916 इण्डिया गेट
34. कूंंपा पुत्र जीता रावत रूपनगर बीएन 1588/122राजपूताना इंफेंट्री सिपाही 1 मार्च 1917 बसरा
35. कूंंपा पुत्र ....रावत कुकड़ा बीएन 4242/119 इण्डियन इंफेंट्री आई आई एम सिपाही 25 मार्च 1917 बसरा
36. कूंंपा पुत्र पूरा रावत दिवेर बीएन 4252/119 आई आई एम सिपाही 11फरवरी 1917 बसरा
(शहीद स्मारक इण्डिया गेट पर अंकित नामवर सूची अनुसार)
*सैनिक विश्राम गृह (victory Memorial ) टॉडगढ़-अजमेर*
क्षत्रिय रावत राजपूत जाति ने अपने बलिदान, शोर्य, पराक्रम से देशसेवा की कई मिशालें पेश की थी । कई बड़े सम्मान अर्जित किए । इसी वीरता की याद को अक्षुण बनाए रखने के लिए शहीदों की याद में टॉडगढ़ में बनाई गई थी "विक्ट्री मेमोरियल धर्मशाला"। रावत राजपूत योद्धाओं को 'इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट' और 'विक्टोरिया क्रास इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट' से सम्मानित किया गया था । प्रथम विश्वयुद्ध में टॉडगढ़ क्षेत्र के शहीद हुए 124 सैनिकों की याद में पेंशनर सैनिकों के आर्थिक सहयोग से निर्मित यह स्वाभिमान का प्रतीक आज जर्जर हालत में विद्यमान है । 15 दिसम्बर 1942 को एक भव्य समारोह में ऑनरेबल मिस्टर आई.आई. हॉलेंड, तत्कालीन गवर्नर जनरल व चीफ कमिश्नर ऑफ अजमेर मेरवाड़ा ने इसे समाज को अर्पित कर शुभारंभ किया । आज यह गौरव की प्रतिक स्मारक जर्जर हालत में है जिसे देख अजमेर-मगरा के कुछ युवाओं ने सहयोग राशि एकत्र कर इसमें थोड़ा मरम्मत का कार्य करवाया है । जनप्रतिनिधियों व क्षेत्र के जागरूक लोगों को इसमें सहयोगी बनना चाहिए ।
*बचपन से भरते हैं देशसेवा का जज्बा*
मगरा क्षेत्र के युवाओं को देशप्रेम का जज्बा विरासत में मिलता है यहाँ । देश आजादी से पूर्व मगरा क्षेत्र कभी किसी शासन व्यवस्था का गुलाम नहीं रहा । देशी रियासतें हो या विदेशी ताकतें । स्वतंत्रता का संघर्ष निरंतर चलता रहा । शहीद राजू रावत भी इसी काल में हुए थे । तत्कालीन समय से लेकर अब तक क्षेत्र के युवाओं में देशप्रेम का जज्बा जीवित रखने में यहाँ के बुजुर्ग लोगों व पेंशनर सैनिकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी । यही कारण है कि यहाँ के युवा देशप्रेम व सेवा के प्रति हमेशा समर्पित रहते हैं । पूरे सम्भाग में सैनिकों की सर्वाधिक संख्या इस क्षेत्र के लोगों की हैं । कुछ वर्षों पूर्व तक मगरा-अजमेरा के तकरीबन हर घर से फौजी हुआ करते थे । आजादी के पूर्व से ही भीम-देवगढ़़ क्षेत्र के हजारों सैनिकों ने देश के लिए योगदान दिया । भौगोलिक दृष्टि से पहाड़ी क्षेत्र होने से यहाँ के युवाओं का शारीरिक सौष्ठव, कदकाठी सर्वश्रेष्ठ होने से दौड़ में अव्वल रहने के कारण आसानी से सेना में भर्ती हो जाते हैं । इसके चलते कई परिवारों में परम्परागत रूप से सेना के प्रति रूझान बढ़ता गया । देशसेवा के इस जुनून के चलते कई परिवार सैनिक परिवार के रूप में पहचाने जाते हैं । अजमेर सेना भर्ती कार्यालय के अजमेर से स्थानांतरित हो जाने के बाद क्षेत्रीय युवा अन्य व्यवसाय, नौकरियों की ओर जा रहे हैं वहीं कुछ शराब के नशे/धँधे में, अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त हो गए हैं।
*शहादत में बहुत आगे हैं मगरे के रणबांकुरे*
देशसेवा के लिए मर मिटने वालों में उदयपुर संभाग से सबसे ज्यादा रणबांकुरे राजसमंद जिले से हैं । इसमें मगरा क्षेत्र (भीम-देवगढ़़) की तादात अधिक हैं । 1965 की लड़ाई हो या 1971 का युद्ध, ऑपरेशन ब्ल्यु स्टार हो या ऑपरेशन पवन या कारगिल हमला । हर लड़ाई में यहाँ के सैनिकों ने साहस व बलिदान का परिचय दिया । 1965 से 2019 तक इस जिले से कुल 16 जवानों की देशसेवा में शहादत हुई हैं । इसमें से 12 सैनिक मगरा क्षेत्र के थे । दो सपूत नाथद्वारा से, एक कुम्भलगढ़ से व एक बिनोल राजसमंद से थे ।
*संम्भागीय वीर शहीदों की सूची* (निम्नलिखित शहीद सैनिकों में से कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें सेना ने अभी शहीद का दर्जा नहीं दिया है ।)
1. कालू सिंह सिपाही गोहाना (ब्यावर)1965
2. सगत सिंह सिपाही कुंठवा नाथद्वारा 1965
3. अजब सिंह सिपाही पावटिया (भीम) 1965
4. गमेर सिंह ड्राइवर खमरपुरा-नाथद्वारा 1965
5. राम लाल एफ.एन. पाटियां (भीम)
6. भगवान सिंह रा.मैन बार (भीम)
7. त्रिलोक सिंह रा.मैन कूकड़ा (भीम)
8. चतर सिंह ग्रेनेडियर कानियाखेड़ा (भीम)
9. केसर सिंह ग्रेनेडियर बोरवा (भीम)
10. किशन सिंह ग्रेनेडियर कालागुमान (भीम)
11. लाल सिंह ठिकरवास (भीम) भारत-पाक 1971
12. हजारी सिंह अतीतमण्ड (ब्यावर) 1971
13. पूरण सिंह भीला कानूजा (पाली)
14. अमर सिंह कालिंजर (ब्यावर)
15. मोब सिंह बड़लिया (अजमेर)
16. विजय सिंह रामपुरा (खरवा) ऑब्ल्यु स्टार 1984
17. औंकार सिंह सिरौला-ताल (भीम) 1987
18. बाबू सिंह सेंदड़ा काश्मीर 1992
19. सोहन सिंह कोटड़ा (ब्यावर) नागालैण्ड 1996
20. टील सिंह काबरा काश्मीर 1996
21. गोरधनसिंह कोटड़ा काश्मीर 2000
22. नरेन्द्र सिंह सिपाही जेतपुरा(सेंदड़ा) ऑ.पवन 1987
23. भँवर सिंह ग्रेनेडियर रक्षक 1996
24. रतन सिंह नायक थोरिया(कुम्भलगढ़) रक्षक 1998
25. नारायण सिंह सिपाही परतों का चौड़ा (भीम) कारगिल 2000
26. निम्ब सिंह हवलदार राजवा (भीम) उरी संघर्ष 2018
27. नारायण गुर्जर बिनोल (राजसमंद) पुलवामा 2019
28. छगन लार चंदेल बड़ाखेड़ा (ब्यावर) 2008
29. हजारी सिंह किशनपुरा (ब्यावर) 2017
30. लक्ष्मण सिंह थुनी का थाक, 1971- भारत बांग्लादेश युद्ध
31. शिवपाल सिंह आंतरिया- जस्साखेड़ा ,10/11/19 बि
बिकानेर-सूरतगढ़
32. प्रभूलाल मेवाड़ा, कुकड़ा, सिंगलकोर आर्मी 6/7/95 कुपवाड़ा जे एण्ड के
33. सुरेन्द्र सिंह पुत्र घिसा सिंह पिपली नगर-देवगढ़, 26 अगस्त 2021, पठानकोट
*सभी शहीद परिवारों को मिले सम्मान और सहायता*
वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट व सोशियल मीडिया से खबरों का प्रसारण बहुत तेज गति से जन-जन तक पहुँच जाता हैं । वर्तमान शहीदों को सम्मान व सरकारों के साथ जनसहयोग से भी आर्थिक सहयोग मिलता है । पूर्व शहीदों के परिवारों को पहले बहुत कम आर्थिक सहायता मिलती थी । उनके परिजन आज भी शहीद परिलाभों से वंचित होकर बेहद गरीबी की दशा में जीवन यापन कर यहे हैं । सरकारों व भामाशाहों से अपील है कि भूतपूर्व शहीदों के परिवारों को भी सुविधाएँ, सहायताएँ देकर उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयास करें..।।
अजमेर मेरवाड़ा में रावत राजपूत समीकरणीय समुदाय की गौत्रें
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अनहल वंशी चीता गौत्रें -वंश परम्परा के क्रम में (16 गौत्र चीतो की)
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1.भोपात 2.नापात 3.वन जोगी(सारण) 4.राजोरिया 5.धाड़ियात 6.बिगड़ियात 7. लाडात 8.लगेत 9.नाडोत 10.कणियात 11.मलेत,12.बोरवाड़ा 13.भूंडात (भूड़ात) 14. मुंडियात चीता 15.हरियाला चीता 16.पोम्बड़ियात चीता 17.बहलोल 18.नणेत 19.बीजलोत चीता 20.पालोत चीता 21.पाखरिया चीता 22.कूम्बात चीता 23.नोमणियात चीता 24.बाजड़ियात चीता 25.चाचकियात चीता 26.बलाडिया 27.भादात 28.सातलखानी (11 गांव काठा क्षेत्र ) 29.काठात (जोधावत गजावत करनावत ) 30.घोड़ावटी-नरावत और देवावत। नरावत-१.सूरावत २.उदावत ३.तेजावत ४.नेतावत ५.खींयावत(मोडूगढ़ मालवा)। देवावत-१.वीरमोत
वर्तमान में हरमर,खरमर आदी गौत्रों का अन्य गौत्रों में विलय हो गया या वंश समाप्त हो गया हैं।
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अनूप वंशीय बरड़ गौत्रें- वंश परम्परा के क्रम में
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1.सेड़ोत 2. धामात 3.झूंठा 4.खांखावत 5.लखियात 6.धकोत 7.पातलात 8.धोधात 9.रामनोत थोक- वरात- A.वरात B.डूंगावत C.कानात D.रत्नावत E.कीतात F.गोदावत G. मोकावत H.होड़ात I.खींमात J.मेरात. K.कूंपावत
(बाहड जी)के हाला और मेघा । हाला जी के हालावत+बाहड़ोत और मेघात।
10.कोठात थोक- a.राजावत(रावल जोगी) b.वेरात+टाटोक c.माणकात d.हीरात । लोलाजी के अ.आपावत, ब.मालावत, स.भीलावत, द.लाखावत, य.करणावत, र. खींमावत। मालाजी के खंगार जी के पाँच 1.चरड़ा जी के चरड़ात 2.देवराज जी के देदा जी के aरावजी और bहोडात, cकेनात, dपूरात । रवताई रावत रावजी की गुँआर। 3.हादात- a-हींयात, b-आत, c-खेतात, d-चौंपात। 4.चांदाजी के चांदावत, गोपाजी के गोपात(दात),5.विन्दाजी (पीथाजी) के विन्दात।
माल जी के दूसरे बेटे देलाजी से सूजावत, पदमावत। मालाजी के तीसरा बेटे काना जी से कानावत
11.सांगणोत, 12.हुलणोत
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गहलोत वंशी गौत्र- वंश परम्परा क्रम में आठ रावल हुए, खुंमा रावल के महाराणा प्रताप के बाद कान रावल के मन्ना रावल और चन्द्रा रावल हुए।
मन्ना रावल के --
1.गोदात(शाहपुरा, अमरबावड़ी,बोरवा आदि)
2.भूण्डक (फताखेड़ा,फता की पोल,भोजपुरा आदि)
3.विहलात (जोड़किया और नाहरपुरा)
चन्द्रा रावल के --
4.महेन्द्रात-(बोरवा,रामगढ़,ठिकरणा,कानपुरा,रेणपुरा,देतपुरा,रेल का बाड़िया,बागमाल,बारखेड़ा(मसूदा)
5.बप्पा रावल के कछजी से काछी कहलाए (स्वादड़ी,परबतपुरा, खानपुरा,सोमलपुर, रामगढ़,कानपुरा,जौहरखेड़ा और मेवाड़ में)
6.बप्पा रावल के गुरजी से गरतूण्ड हुए (गुरजी नरवर आकर बसे वंशज नरवर से बस्सी से श्यामगढ़ मसूदा आए...यहाँ से उनके वंशज लुम्बा जी झूंठा आकर बसे और गरतूण्ड कहलाऐ। (रतनपुरा, राजियावास, खैंराटा (टॉडगढ़), झाड़ली,सेन्दड़ा आदि)
7. बप्पा रावल के गोपाजी के वंशज डींगा कहलाए। इनके वंशज मानाजी बागात कुकरखेड़ा आकर बसे और कुछ यहाँ से सोनियाणा चले गये।
8. खेम रावल के बावलाजी जी हुए। इनके वंशज बावलात कहलाए।
9.चरेड़ 10. बरगट 11.वाणियात 12.वालोत। 13.लोहरा 14.कानात 15.मादात 16.डागल 17. काठ 18. कीट 19.बूज 20.मन्नात 21.बहलोल 22.मोटा 23.विटोल 24.भीलात 25.दोयमा 26.धोरणा 27.धर्मलात 28.भूचर 29.भाभला
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पँवार वंश क्रम- हरिशचंद्र के रोहितास और मोटा, रोहितास के हरिया व चरिया । हरिया के मोठिस (मगरा+अजमेरा)। चरिया के मोठिस (जहाजपुर)। मोटा जी पँवार के वंशज-- 1.देहलात 2.मोठिस 3.कल्लात 4.बोया
5.धोधिंग 6.खींयात 7. मिराला 8.तोजी 9.मूंजी 10.टाटड़
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भाटी वंश क्रम- 1.ठेकरोत 2. सेलोत 3.चोरोत 4.घाटात 5. पांपलियात 6.रेलोत 7.हेलोत 8. जालात (सिरोही) 9.वाणात (मेवाड़)
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राठौड़ वंश क्रम- 1.पोखरिया 2.बोच
3.मामणियात 4.बरलोत,5.रजवंशी 6.भरल
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अन्य में-- कड़िवाल, चरड़ माल, चांदा, नाडला,
आलेख-संकलन
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चंदन सिंह जी रिटायर्ड थानेदार छापली-हाल उदयपुर निवासी डॉक्टर मेघ सिंह जी मालावत एवं
गोविन्द सिंह चौहान
गाँव - भागावड़
पोस्ट - डासरियां (भीम)
जिला - राजसमन्द (राज.)
305921
मो. - 9783207045