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बरड़वंशीय मोरेचा चौहान राजपूतों की वंशावली एवं इतिहास "–
पौराणिक कथा के अनुसार अग्निवंशीय चौहान राजपूतों की उत्पति अर्बुद गिरि (आबू पर्वत) से हुई। चौहानों का प्रारंभिक शासन सांभर के आसपास के क्षेत्र में था, जिसे 'शाकम्भरी' या 'सपादलक्ष' कहते थे।
शाकम्भरी के चौहानों का आदिपुरुष (चौहान वंश के शासन का संस्थापक) 'वासुदेव चाहमान' को माना जाता है, जिसने सन् ५५१ ई. के आसपास सपादलक्ष क्षेत्र में अपने राज्य की स्थापना की एवं अहिछत्रपुर को अपनी राजधानी बनाया।
वासुदेव के वंशज वाक्पतिराज के पुत्र राव लक्ष्मण नाडोल राज्य के शासक बने। राव लक्ष्मण के छः पुत्र- राव अनहल, राव अनूप, आसल, शोभित सोही, अजेतसिंह हुए।
राव लक्ष्मण के दोनों पुत्र राव अन्हल व राव अनूप नाडोल से निकलकर वर्धनोरा में कामलीघाट के समीप चेता गांव में आकर बसे। राव अन्हल चौहान ने चांग के मिहिर वंश के प्रतिहार राजपूतों पर आक्रमण कर वर्धनोरा (बदनोरा राज्य ) राज्य में अपना शासन स्थापित किया, तत्पश्चात् इन दोनों भाईयों ने अपने शासन का बंटवारा कर लिया जिसमें नरवर से टोगी तक का क्षेत्र अन्हलवंशीय (मोरेचा चीता साख) चौहान राजपूतों के पास व टोगी से दिवेर तक का क्षेत्र अनूपवंशीय (मोरेचा बरड़ साख) चौहान राजपूतों के पास रहा। अनूपराव चौहान के वंश में बरड़राव चौहान हुए, जिनके वंशज #बरड़वंशीय #मोरेचा_चौहान राजपूत कहलाते है।
नाडोल के चौहान वंश के शासक राव लाखनसी के द्वितीय पुत्र राव अनूप के वंश में क्रमशः राव आहड़, राव बाहड़, राव बरड़, राव जोधजी, राव जामलिगजी, राव आहिल, राव बाहल, राव वीहल हुए।
✽. राव वीहल चौहान –
वीहलजी चौहान तत्कालीन ठिकाना चेता के ठिकाणेदार एवं आस-पास के विस्तृत भू-भाग के स्वामी थे। इनके समय में समसुद्दीन इल्तुतमिश दिल्ली से मेवाड़ के शासक रावल जैत्रसिंह पर हमला करने हेतु छापली के पास रात्रि विश्राम हेतु ठहरा हुआ था। रात्रि में वीहलजी ने इल्तुतमिश की मूंछ और उसकी बेगम की चोटी काट दी, जिससे भयभीत होकर वह वापस सेना सहित दिल्ली भाग गया। इस वीरता एवं साहसिक कार्य के लिए मेवाड़ के शासक रावल जैत्रसिंह ने वीहलजी चौहान को 'रावत' की पदवी से विभूषित किया और कुंभलगढ़ के समीप गढ़बोर (चारभुजा) का राज्य प्रदान किया। राव वीहलजी के पुत्रों में सत्याजी, राव धड़ंग, राव कल्हण, मानाजी, लखाजी, बावलजी, बजरंगजी, करणाजी, हंसाजी थे।
राव वीहल के पुत्र सत्याजी के वंश में क्रमशः लावाजी, मानाजी, सीहड़जी हुए। सीहड़जी के वंशज 'सहड़ोत चौहान" कहलाते है। सीहड़जी चौहान के वंश में क्रमशः पदमसी, खेड़ाजी, खोखरजी, खूंटका, धोहड़जी, धामाजी हुए। धामाजी के वंशज "धामावत चौहान" कहलाए।
राव वीहल के द्वितीय पुत्र राव धड़ंग के वंशज मेवाड़ में बस गये। राव धड़ंग के पुत्रों में सातूजी, राव जाला हुए।
राव जाला के ज्येष्ठ पुत्र जैतराजी ने धरियावाद के हवड़ा मगरा पर गढ़ बनवाया तथा इसकी समीप पीपलाज माता का मन्दिर बनवाया। वीर जैतराजी के वंशज "जैतरावत चौहान" कहलाते है।
राव जाला के द्वितीय पुत्र पातूजी ने पातूखेड़ा बसाया। यहां पर तालाब बनवाया तथा पातूला भैंरू का मन्दिर बनवाया।
पातूजी ने केसरियावाद के राठौड़ो को युद्ध में पराजित कर केसरियावाद पर अधिकार किया।
राव धड़ंग के पुत्र सातूजी के राव भाण्डाजी हुए। राव भाण्डाजी वाड़ी (निम्बाहेड़ा) के ठिकाणेदार थे। राव भाण्डाजी को यह जागीर चित्तौड़ के शासक मालदेव सोनगरा ने प्रदान की, जो बाद में 'भाण्डामगरा' के नाम से विख्यात हुई।
✽. राव कल्हण चौहान –
राव वीहल के तृतीय पुत्र राव कल्हण हुए जो भाणपा (मेवाड़) से देवी प्रतिमा व पुजारी माल भोपा को अपने साथ लेकर आए और देवी प्रतिमा को पीपल की खोह में रखी। कालान्तर में वहीं से देवी स्वतः प्रतिष्ठित हुई, जिससे मोरेचा बरड़ चौहान राजपूत सरदारों की कुलदेवी पीपलाज माता के नाम से पूजी जाने लगी। राव कल्हण ने देवी आशीर्वाद से चारभुजा राज्य वापस पाया।
राव कल्हण ने अपने नाम से कई नगरों और गांवों की स्थापना की जिसमें केलवा, केलवाड़ा, कालागुमान, कालेटरा प्रमुख हैं। राव कल्हण के पुत्रों में अरिपाल, राव गाला और धनपतजी हुए। अरिपाल के तीसरी पीढ़ी में नोमणजी हुए, जिन्होंने #निम्बाहेड़ा (मेवाड़) में अपना राज्य स्थापित किया।
राव कल्हण के द्वितीय पुत्र राव गालाजी के पुत्रों म़े राव जेठलजी, धारूजी एवं गजगेन्द्रा हुए।
✽. राव जेठल चौहान –
राव गाला के पुत्र राव जेठलजी के वंशज "झूठावत चौहान" कहलाये, जो वर्धनोरा (मगरांचल) क्षेत्र के विभिन्न गांवो में रहते है।
✽. धारूजी चौहान –
राव गालाजी के द्वितीय पुत्र धारूजी के दो पुत्र हुए- लखाजी एवं सीयाजी। लखाजी के वंश में क्रमशः खीमा, लखमा, सुमण, भीमा, जैता, सांगण हुए। सांगणजी के वंशज मेवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में रहते है। धारूजी चौहान के पुत्र सियाजी के पुत्रों में लखियाजी (लखियात चौहान) एवं सूमणजी हुए। लखियाजी की ५वीं पीढ़ी में धर्माजी हुए, जिनके वंशज 'धकोत चौहान' कहलाये।
✽. गजगेन्द्रा चौहान –
राव गालाजी के पुत्र गजगेन्द्रा के वंश में क्रमशः जोधाजी, करेड़मालजी, खांखाजी हुए। खांखा जी ने खांखरोली (कांकरोली) नगर बसाया तथा यहां चारभुजा नाथ का भव्य मंदिर भी बनवाया। खांखाजी के वंशज "खांखावत चौहान" कहलाये, जो छापली, कालागुमान, दिवेर आदि क्षेत्र में रहते है।
✽. सुमणजी चौहान –
सियाजी चौहान के पुत्र सुमणजी के भीमटा चौहान (भीमसिंह) हुए।
भीमटा चौहान के पुत्रों में पातलाजी, राव धोधाजी और ताहड़जी हुए।
✽. पातलाजी चौहान –
भीमटा चौहान के ज्येष्ठ पुत्र पातलाजी के वंशज "पातलावत चौहान" कहलाए जो निम्बड़ी, सारण, कामला, सेलपुरा, मारवाड़ क्षेत्र में रहते हैं। पातलजी के दो भाई देवाजी व कानाजी नीम्बड़ी से भाणपा में जा बसे। कानाजी ने कानोड़ बसाया।
✽. धोधाराव चौहान –
भीमटा चौहान के द्वितीय पुत्र धोधाराव हुए। माताजी के आशीर्वाद स्वरूप इनके सात पुत्र हुए, जिनमें रामणजी, कोठाजी, सांगणजी (सांगणोत चौहान), हुलणजी (हुलणोत चौहान), जगदेवजी (धोधावत चौहान), खींयाजी (खींयावत चौहान) व सातवें पुत्र गुल्लीजी थे।
✽. रामणजी चौहान –
रामणजी के दो पुत्र हुये- वराजी और बाहड़जी ।
✧. वराजी चौहान –
वराजी के वंशज "वरावत चौहान" कहलाते है। वराजी के दो पुत्र हुए- निबरजी व जैतमलजी। जैतमलजी के वंशज नंदावट में रहते है। निबर जी के दो पुत्र हालाजी और जेहाजी हुए।
हालाजी के हरपालजी व हरपालजी के दो पुत्र कानाजी व डूंगाजी (डूंगरसिंह) हुए। कानाजी के वंशज "कानात चौहान" कहलाये, जो केवड़ा व कुम्भलगढ़ क्षेत्र में रहते है। डूंगाजी वरावत सारण व मदारिया ठिकाणे के शासक थे। वीर डूंगाजी वरावत ने #मारवाड़_महाराजा #राव_चन्द्रसेन को न केवल अपने यहां शरण दी, बल्कि सदैव के लिए उनके सुरक्षित कवच भी बने रहे। डूंगाजी के वंशज "डूंगावत चौहान" कहलाये। डूंगाजी के पांच पुत्रों के वंशज निम्न स्थानों पर रहते है- हीराजी के वंशज वाणियामाली में रहते है। आपाजी के वंशज सारण, तेलपुरा, मियाला में, नाथाजी के वंशज सोनगरी में, खोखरजी के वंशज भाउका वाड़िया व हालाजी के वंशज राशमी में रहते है।
जेहाजी के दो पुत्र हुए- कीताजी और पाताजी। कीताजी के वंशज "कीतावात चौहान" कहलाये जो सून्दी टोकरा में रहते है। पाताजी के तीन पुत्र हुए- गीदाजी के "गोदावत वंशज" कुड़ेली में व मोरवाजी के "मोरवावत वंशज" बोगला में रहते है। अड़वाल के लाखाजी हुए। लाखाजी के हरिराजजी हुए। हरिराजजी के तीन पुत्र आपाजी, वारमलजी, मानाजी हुए। आपाजी के तीन पुत्र हुए- कचराजी, कचराजी के खीमाजी जिनके वंशज खीमातों की वरजाल में रहते है। मेराजी के वंशज मेरातों की वरजाल में रहते है। दाहाजी के नाथाजी व नाथाजी के सोडाजी के वंशज सोडातों की वरजाल में रहते है।
वारमलजी के पुत्र उदाजी, रतनाजी व कूंपाजी हुए। रतनाजी के वंशज फुलाद में रहते है। कूंपाजी के वंशज "कूंपावत चौहान" कहलाते है। कूंपाजी के सात पुत्र हुए- हीराजी के वंशज हीराजी की बस्सी में, हालूजी के वंशज बाघाना में, गांगाजी के कामली में, कलाजी के खीमातों के गुड़ा में, हादाजी के पूनमों के गुड़ा में, खंगारजी के केवड़ीनाल में व कानाजी के वंशज दिवेर में रहते है।
इस वंश में हालु व राजूजी बरजाल के वीर एवं पराक्रमी पुरुष हुए है।
✧. बाहड़जी चौहान –
बाहड़जी के दो पुत्र हालाजी व मेघाजी हुए। मेघाजी के वंशज "मेघावत चौहान" कहलाये, जो ठीकरवास, बग्गड़, सांगावास आदि गांवो में रहते है।
हालाजी के पांच पुत्र मेणसी, तवलसी, मालकसी, हालकसी और खेतसी हुए, जो "बाहड़ोत चौहान" कहलाते है।
मेणसी के वंशज दीपावास, खीवेल आदि गांवो में रहते है।
तवलसी के खीमाजी, खीमाजी के दल्लाजी, दल्लाजी के लाखाजी एवं लाखा जी के दो पुत्र सांगाजी व खेड़ाजी हुए। खेड़ाजी के वंशज खेड़ात, सिराड़ी में रहते है। सांगाजी के वजाजी हुए, जिन्होंने पीपली बसायी। वजाजी के पांच पुत्र हुए- गोपाजी के वंशज सिरोड़ी में, चौथजी के पुत्र सोढ़ा के वंशज (सोढ़ावत चौहान) पीपली क्षेत्र में, हरराजजी के कुडेंली में, लखाजी के वंशज पीपली में रहते है।
हामाजी वीर पुरुष थे जिन्होंने सिंदल राजपूतों को पराजित कर काछबली में अपना आधिपत्य जमाया। काछबली की बावड़ी मगरा क्षेत्र में प्रसिद्ध है। इस सम्बन्ध में एक उक्ति प्रसिद्ध है-
"काछबली केरा करे, माहे निरंजननाथ।
चार खूंट की बावड़ी, वा हामावतों के हाथ।।"
हामाजी के तीन पुत्र केहाजी, हादाजी और जेहाजी हुए। केहाजी के वंशज मेड़िया, गुजरिया, कालीकाकर, नया तालाब, मामावड़, पायरी, तलाई, चतरपुरा, सिरोला, मालावतों की गुआर आदि गांवो में रहते है। हादाजी के वंशज खेरावड़ी, सोलीखेड़ा, अजानिया आदि गांवो में रहते है। जेहाजी के वंशज लाखागुढ़ा, हामावतों की गुआर आदि क्षेत्रों में रहते है।
केहाजी के वंश में हीराजी एक प्रसिद्ध वीर योद्धा हुए थे।
हालाजी के तीसरे पुत्र मालकजी के वंशज "मालकोत चौहान" कहलाते है जो कथार, धवाला, टेलड़ा, ठीकरवास खुर्द आदि क्षेत्रों में रहते है। चौथे पुत्र हालकजी वंशज "हालकोत चौहान" कहलाते है जो थोरिया, झुंतरा, धवाला खुर्द में रहते है।
✽. कोठाजी चौहान ―
कोठाजी चौहान के चार पुत्र सीड़जी, आहड़जी, पारगी व रणमल हुए। कोठाजी के ज्येष्ठ पुत्र सीडजी के राजाजी हुए, जिनके वंशज "राजावत चौहान" कहलाये।
कोठाजी के द्वितीय पुत्र आहड़जी के दो पुत्र हुये- मालाजी, मेणाजी।
आहड़जी के द्वितीय पुत्र मेणाजी के तीन पुत्र भीमाजी, रतनाजी, सुलखाजी थे।
भीमाजी चौहान के दो पुत्र हुये- केहरजी, लखमाजी। लखमाजी के दो पुत्र हुये- पातूजी, टांटूजी। पातूजी के वेराजी हुए जिनके वंशज "वैरावत चौहान" कहलाये। लखमाजी के द्वितीय पुत्र टांटूजी के वंशज "टाटोक चौहान" कहलाते है।
भीमाजी के ज्येष्ठ पुत्र केहरजी के दो पुत्र देवराजजी, जगमलजी हुए।
देवराजजी के पुत्रों में हीराजी, लोलाजी, लुम्बाजी हुए।
हीराजी चौहान- देवराजजी के ज्येष्ठ पुत्र हीराजी के वंशज "हीरावत चौहान" कहलाते है, जो बरार में रहते है।
लोलाजी- लोलाजी के सात पुत्र हुए–
(i). आपाजी चौहान- लोलाजी के ज्येष्ठ पुत्र आपाजी के वंशज "आपावत चौहान" कहलाते है जो बेड़िया, कालियादड़ा, छिपाला आदि क्षेत्रों में रहते है।
(ii). मालाजी चौहान- लोलाजी के द्वितीय पुत्र मालाजी थे, जिनके वंशज "मालावत चौहान" कहलाये। माला के पुत्रों में कानाजी, राव खंगारजी और देहलाजी थे।
✧. कानाजी चौहान – मालाजी चौहान के पुत्र कानाजी हुए, जिनके वंशज "कानावत चौहान" कहलाये।
✧. राव खंगारजी चौहान – राव खंगारजी सिद्ध पुरुष थे, जिन्हें महादेवजी के दर्शन हुए तथा #दुधालेश्वर #महादेव तीर्थ स्थली का उद्भव हुआ। खंगारजी ने आयसजी का कटाला भी शुरू करवाया था।
राव खंगारजी के आठ पुत्र थे- देवराजजी, चरड़ाजी, चांदाजी, गोपालजी, केहाजी, पीथाजी, सहड़ाजी, केनाजी हुए जिनके वंशज मालातो की बेर, डांसरिया, ऊपरली गुआर आदि क्षेत्रों में रहते है। खंगारजी के पुत्र चरड़ा के वंशज "चरड़ात चौहान" और चांदा के वंशज "चांदावत चौहान" कहलाये।
✧. देहलाजी चौहान – मालाजी चौहान के पुत्र देहलाजी हुए, जो बरार के ठिकाणेदार थे। देहलाजी के दो पुत्र हुए- सूजाजी तथा पदमाजी, जिनके वंशज क्रमशः "सूजावत चौहान" और "पदमावत चौहान" कहलाये।
✧. सूजाजी चौहान – सूजाजी (सूजानसिंह) वीर पुरुष थे। इन्होंने मंडला बसाया। सिन्धल राजपूतों से धर्म एवं मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुये।
सूजाजी के तीन पुत्र खेताजी, केहाजी और मादाजी थे।
मादाजी चौहान- सूजाजी के पुत्र मादाजी के वंशज कुंडाल की गुंआर में रहते है।
खेताजी चौहान- खेताजी के नाभाजी हुए, जिनके वंशज नाभावत चौहान कहलाते है जो नाभाली कुड़ी में रहते है।
केहाजी चौहान- केहाजी के पुत्रों में हीराजी, पांचाजी, गोपाजी, मानाजी एवं मालाजी थे।
́✧. पदमाजी चौहान –पदमाजी (पद्मसिंह) के पुत्रों में खींमा, तेजा, रेणा, चांपा, वीरम, गांगा हुए।
(iii). भीलाजी चौहान- लोलाजी चौहान के पुत्र भीलाजी के वंशज "भीलावत चौहान" कहलाये जो माथूवाड़ा, भडुका, लूणोता, बाघमाल, रावली, चान्दातों बेर आदि क्षेत्रों में रहते है।
(iv). लाखाजी चौहान- लोलाजी के पुत्र लाखाजी के वंशज "लाखावत चौहान" कहलाये।
(v). करणाजी चौहान- लोलाजी के पुत्र करणाजी के वंशज "करणावत चौहान" कहलाये, जो दुदालिया में रहते है।
(vi). खीमाजी चौहान- लोलाजी चौहान के पुत्र खीमाजी के वंशज "खीमावत चौहान" कहलाये जो खखेड़िया में रहते है।
(vii). चाहड़जी चौहान- लोलाजी चौहान के ७वें पुत्र चाहड़जी हुए।
✧. पारगी चौहान – कोठाजी चौहान के तृतीय पुत्र पारगी चौहान हुए। पारगी चौहान के पुत्र भीमाजी के माणाजी हुए। माणाजी के वंशज "माणकात चौहान" कहलाये जो धोरेला, बरार, भीम आदि क्षेत्रों में रहते है।
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स्त्रोत— (१). वर्धनोरा राज्य का इतिहास।
(२). मगरांचल का इतिहास, लेखक- इतिहासकार श्री मगनसिंह चौहान।
(३). मगरे की वीरों की गौरव गाथायें, लेखक- इतिहासकार श्री मगनसिंह चौहान।
(४). चीतावंशीय मोरेचा शाखा की वंशावली, लेखक- इतिहासकार श्री मगनसिंह चौहान।
(५). रावत-राजपूतों का इतिहास, लेखक- श्री प्रेमसिंह चौहान।
(६). क्षत्रिय रा.- राजपूत दर्शन, लेखक- श्री गोविन्दसिंह चौहान।
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स्वाभिमानी रावत-राजपूत संस्था राजसमन्द राजस्थान
इतिहास संकलनकर्ता ― सूरजसिंह सिसोदिया
ठि.– बोराज-काजिपुरा, अजमेर_