एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला

Madhushala, an equalizer, has no biases

Madhushala Podcast, Episode 21

Previous Episode | Next Episode

In the previous episode, we spoke about hesitation and moving beyond that, and if a someone is capable enough, there is nothing she/he can’t achieve. Now there are plenty of poems on caste/religion in Madhushala, so let’s hear about an experience from the life of Dr Bachchan’s father.


पिछले अंक में हमने बात की थी स्वाभिमान की, कुछ संकोच की, कुछ पहली हिचकिचाहट की, और उससे आगे बढ़ने की और यदि इंसान में सामर्थ्य हो तो वो क्या कुछ नहीं कर सकता – और सुनाई थी वीर रस की एक छोटी सी कविता। अब मधुशाला में सामाजिक भेदभाव पर तो कई सारी कविताएं हैं, उन्हीं में से एक आज सुनते हैं और साथ ही एक किस्सा बच्चन बाबू के पिताजी से जुड़ा हुआ, शुरुआत करते हैं मधुशाला की इस चतुष्पदी से - 


कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',

कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',

सभी जाति के लोग यहाँ पर, साथ बैठकर पीते हैं,

सौ सुधारकों का करती है, काम अकेले मधुशाला (५७)



ये किस्सा है जब कविराज के पिताजी एक हिन्दू मुस्लिम दंगा रोकने के लिए अपने सर पर इल्जाम लेने को तैयार हो गए थे। बच्चन जी अपनी आत्मकथा “क्या भूलूँ क्या याद करूँ” में याद करते हुए कहते हैं - 

“शहर में किसी कारण हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया था। हमारे मुहल्ले में भी तनाव फैल गया। उत्तर की ओर मुसलमानों की एक बस्ती थी। उधर होकर किसी हिन्दू का जाना मुश्किल हो गया। एक-आधे बुरी तरह पिटे। हमारे मकान के सामने के मैदान में हिन्दुओं ने मिलकर सलाह की कि क्या हम लोग भी इस तरह की कार्रवाई अपनी तरफ शुरू कर दें? पिताजी इस आग को बढ़ने देने के पक्ष में नहीं थे। मुसलमानों को समझाना-बुझाना चाहिए। एक ही मुहल्ले में रहना है, चोली दामन का साथ है, पर इस वातावरण में समझाने के लिए जाने वाले की शामत ही आती! अन्त में यह दायित्व पिताजी ने अपने ही ऊपर ले लिया। जब पहुंचे तो हिन्दुओं को इकट्ठे देख उधर मुसलमान भी लाठियाँ ले लेकर खड़े हो गए। पिताजी ने कहा, ‘सब लोग यहीं ठहरें, मैं अकेले जाऊँगा।’ पिताजी ने धोती ऊपर कर ली, कुरते की बाँहें चढ़ा लीं, और अपना पहाड़ी मोटा डंडा दाहिने हाथ से कन्धे पर सँभाले, बायाँ हाथ तेजी से हिलाते, नंगे पांव आगे बढ़ चले।” (imagine the visual)


बच्चन जी आगे कहते हैं – 

उस दिन मैंने साक्षात् आत्म-विश्वास को धरती पर चलते देखा था। (अग्निपथ को याद करें) यों तो उनकी बहुत-सी तस्वीरों की छाप मेरी स्मृति पर है, लेकिन यह जितनी स्पष्ट है उतनी दूसरी नहीं। एक आदमी को पच्चीस तीस के दल से भिड़ने को आते देख एक बार तो विरोधी भी सकते में आ गए। पिताजी ने उनके पास जाकर कहा, ‘मैं लड़ने नहीं आया हूँ। लड़ने को आता तो अपने साथ औरों को भी लाता; मैं लड़ाई बन्द कराने आया हूँ। डंडा केवल आत्म-रक्षा के लिए साथ है, कोई अकेला मुझे चुनौती देगा तो पीछे नहीं हटूँगा। मर्द की लड़ाई बराबर की लड़ाई है, चार ने मिलकर एक को पीट दिया तो क्या बहादुरी दिखाई। इस तरह की लड़ाई तो बे-समझी की लड़ाई है, कहीं किसी ने किसी को मारा, आपने दूसरी जगह किसी दूसरे को मार दिया। धरम का नाता है तो पास-पड़ोस, इनसानियत का नाता भी है। इनसान मेल से रहने को बना है। लड़ाई कितने दिन चलेगी, दो दिन, चार दिन; पाँचवें दिन फिर सुलह से रहना होगा। दो-चार, दस-बारह, सौ-पचास हिन्दू-मुसलमानों के कट-मरने से न हिन्दुत्व समाप्त होगा न इस्लाम खत्म होगा। साथ रहना है तो समझदारी इसी में है कि मेल से रहें, मेल से न रह सकें तो अलग होकर रहें।’ पिताजी की बातों का असर हुआ। उस दंगे में फिर कोई वारदात नहीं हुई। और इतना असर हुआ कि आगे भी कई बार जब शहर में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, तब भी हमारे मुहल्ले में शांति बनी रही।"

अब देखिए, केवल एक आदमी के दृढ़ता के साथ खड़े होने से ही कितना परिवर्तन, कितना सुधार आ सकता है! अब इसी विषय पर मधुशाला में एक और कविता है, चलिए सुनते हैं - 


एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,

अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,

रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,

साम्यवाद की प्रथम प्रचारक, है यह मेरी मधुशाला (५९)


साम्यवाद यानी communist ideology, जहां सबको समान सुविधाएं, समान आय। यहाँ मधुशाला में देखिए, हम पहले से कह रहे हैं – यहाँ तो अज्ञ-विज्ञ में अंतर ही नहीं है – यानी जब कोई मतवाला हो चुका हो तो क्या मूर्ख और क्या विद्वान और मदिरालय (House of Wine) में क्या रंक क्या राव – सब एक समान। इसीलिए कहा कि साम्यवाद की पहली प्रचारक तो अपनी मधुशाला ही है, और जैसा बच्चन जी के समीक्षक कहते थे के मधुशाला काव्य का तो आधार ही है – जीवनवाद


मूर्ख और विद्वान की बात पर संस्कृत की उक्ति याद आती है – “मौनम मूर्खस्य भूषणम”, अर्थात जो मूर्ख होते हैं, मौन उनका आभूषण होता है, कोई शब्द बोल पड़े तो पोल खुल जाए। किंतु विरोधाभास ये है कि मौन एक विद्वान का भी आभूषण हो सकता है जैसे कि मलयालम में कहा गया है – “मौनम विद्वानु भूषणम” - और इसके साथ ही संस्कृत में ये भी कहा जाता है कि बुद्धिमान का अस्त्र मौन है। अर्थात एक बुद्धिमान, समझदार व्यक्ति जानता है मौन को कब आभूषण जैसे प्रयोग करना है, और कब एक अस्त्र की तरह!


मौन वाली बात पर बच्चन जी के पिताजी का एक और किस्सा है जो पिछली कहानी से जुड़ा हुआ है - बच्चन जी आगे बताते हैं - 

“पिताजी को अपनी बात मनवाने की कला खूब आती थी। वे बातों के सही-गलत पक्ष का निर्णय ठंडे दिमाग से करते थे, और बगैर तैश में आए हुए सही पक्ष को सही साबित करने के लिए अपना पूरा वाक्-चातुर्य इस्तेमाल करते थे। उनसे बातों में पार पाते मैंने किसी को नहीं देखा। वे वकील बने होते तो बड़े सफल वकील होते इसमें सन्देह नहीं है। वे हारे तो केवल मुझसे। मैं उनके साथ बहस-मुबाहसे के अखाड़े में उतरता ही नहीं था। मुझे जैसे मालूम हो गया था कि तर्क-वितर्क वाद-विवाद के सारे दाँव-पेचों में वे पारंगत हैं। मुझे क्या करना है, क्या नहीं करना है, इसका मैं अपनी सहज बुद्धि से निर्णय करता था – मैं यह दावा नहीं करूँगा कि मेरे फैसले सदा ठीक ही रहे हैं – मगर मैं उन पर अड़ अवश्य जाता था। और जितना ही मुझे समझाया-बुझाया जाता था, मुझपर ज़ोर डाला जाता था, उतनी ही मेरी ज़िद बढ़ती जाती थी; और अन्त में मुझे अपनी सी करने को छोड़ दिया जाता था, और उसे, मैं अपनी जीत समझता था। प्रताप नारायण दुनिया भर से तो जीत गए मगर अपने पुत्र से हार गए थे। अब सोचता हूँ कि अपने पुत्र से हार जाना पिता के लिए कितनी बड़ी जीत है।”


कवियों ने बहुत गहरे पैठकर कहा होगा – सर्वत्र जयमन्विच्छेत्, पुत्रादिच्छेत् पराभवम्। 

(पिता सारे जहां को जीतने की इच्छा रखते हैं. वे ये भी चाहते हैं कि उनके सारे कीर्तिमान संतान तोड़ दे। जैसे एक अच्छे पिता को यह इच्छा रखनी चाहिये कि मेरा पुत्र उससे भी आगे बढ़ जाए, वैसे ही एक अच्छे गुरु को यह इच्छा रखनी चाहिये कि मेरा शिष्य मुझसे भी आगे बढ़े) 


आज यहीं विराम लेते हैं, अगले अंक में बताएंगे कि एक समय पर बच्चन परिवार का उनके रिश्तेदारों ने सामाजिक बहिष्कार क्यों कर दिया था और वो कैसे एक लंबे समय तक चलता रहा।


Previous Episode | Next Episode

You can listen to the Podcast on

Spotify | Gaana | Google | Apple | JioSaavn | Amazon

ways to connect

LinkedInFacebookInstagramYouTubePinterestTwitter