चलो सवाल कर लेते हैं!

Let's all ask questions!

चलो, सवाल कर लेते हैं!

We love to ask questions. Answers? Not so much.

हाँ चलो, सवाल कर लेते हैं

इतने सालों से सवाल ही तो कर रहे हैं

कुछ और सवाल कर लेते हैं

कुछ सरकार से सवाल कर लेते हैं,

कुछ नेताओं से सवाल कर लेते हैं

सवाल का जवाब तो हमें नहीं आता

हाँ जवाब में सवाल करना खूब है भाता

इसलिए बस सवाल कर लेते हैं

महामारी हो गई, क्यूँ कैसे हो गई

एक साल हो गया

फिर तैयारी क्यूँ नहीं की गई

सरकार ने क्या किया, ये सवाल कर लेते हैं

लेकिन हमने खुद क्या किया, वो टाल देते हैं

लेकिन उनसे नहीं पूछेंगे जो बिना मास्क चल रहे थे

भीड़ बना के शान से टहल रहे थे

हमने तो बिना हेलमेट वाहन चालकों से भी नहीं पूछा

गुटखा खा के थूकने वालों से नहीं पूछा

सड़क पे कचरा फेंकने वालों से नहीं पूछा

अतिक्रमण करने वालों से नहीं पूछा

जहां खाली देखा वहाँ घर बना लिया

खुद खाली पैकेट सड़क पे उड़ा दिया

गंदगी हम खुद ही मचा देते हैं

लेकिन, लेकिन... सफाई सरकार से करवा लेते हैं

चलो, कुछ सवाल कर लेते हैं

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सरकार तो चिल्ला चिल्ला के कह रही थी न

मोबाईल की घंटी में आवाज लगा रही थी न

जब तक दवाई नहीं ढिलाई नहीं - जब तक दवाई नहीं ढिलाई नहीं

घर बैठने में कुछ बुराई नहीं

Sanitizer बिना हाथों की सफाई नहीं

भीड़ इकट्ठा करने में कोई चतुराई नहीं

न बड़ी शादी हो, और हो कोई सगाई नहीं

मास्क, मास्क नाक के नीचे लगाने में भलाई नहीं

लेकिन, लेकिन हमारी तो नाक ऊंची है साहब

इसलिए मास्क थोड़ा नीचे कर लेते हैं

पुलिस को देखकर थोड़ा adjust कर लेते हैं

या शर्म से मुंह छुपा के निकल लेते हैं

हाँ कोई और हमें रोक दे, रोक के टोक दे

तो हम सड़क पर ही बवाल कर लेते हैं

टोकने वाले को गालियों से हलाल कर देते हैं

कल भी कर रहे थे, आज फिर कर लेते हैं

चलो यार, कुछ सवाल कर लेते हैं

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सवाल ही तो करते हैं हम

कभी पान की दुकान में करते हैं

कभी चाय पर अड्डा बना के करते हैं

ओ नहीं, हम तो मॉडर्न हैं जी

क्यूँकि जो चाय पे बोले तो नकली गधा है, जो ट्विटर पे चीखे वो असली गधा है

तो इसलिए, तो इसलिए

हम ये काम ट्विटर पर करते हैं

कभी रेल में भीड़ भर के करते हैं

कभी सड़कें रोक के करते हैं

कभी बाज़ार जला के करते हैं

कभी देश को रुला के करते हैं

कभी खामखा चिल्ला के करते हैं

कभी विज्ञापनों में सुना के करते हैं

कभी Toolkit बना के करते हैं

कभी ग्रेटा, कभी रिहाना को बुला के करते हैं

हम बस, सवाल पे सवाल करते हैं

जवाब नहीं देते, बस सवाल करते हैं

चलो यार, कुछ और सवाल करते हैं

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फेस्बूक की दीवार से सवाल करते हैं

व्हाट्सप्प की खिड़की से सवाल करते हैं

जवाब तो हमसे बनता नहीं ना

अनुशासन, हमें जमता नहीं ना

अनुशासन, वो क्या है?

ओह Discipline, रुल्स, regulations, guidelines

हम तो जहां खड़े हों, शुरू होती हैं वहीं से लाइंस

शादियाँ तो हमें इसी साल करनी थी

बिना बारात के, क्या खाक जमनी थी

दोस्त रिश्तेदारों पे धाक भी तो जमनी थी

कोरोना से बचने की पार्टियां भी करनी थी

नेताओं के संग रैलियाँ भी करनी थी

दोस्तों के संग अठखेलियाँ भी करनी थी

गोवा में जा के रंगरेलियाँ भी करनी थी

और क्यूँ न करें

पिछली साल आखिर इतनी बोरिंग सी गई

हमें लगा, साल गया, suffering भी गई

तो सोचा 2021 में धमाल कर लेते हैं

भीड़ में भी संक्रमण से बचने का कमाल कर लेते हैं

और जो हालात अगर बिगड़ गए तो

मास्क नाक से फिसल गए तो

Situation हाथ से निकल गई तो

तो सरकार तो है ही, उसे घेर लेते हैं

अपनी जिम्मेदारी से मुंह फेर लेते हैं

जो हमे आता है, वो कर लेते हैं

न तुम जवाब देते हो, न हम देते हैं

इसीलिए चलो सवाल कर लेते हैं

आज कुछ और सवाल कर लेते हैं

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सरकार इंसानों से थोड़े ही बनी हैं

इसीलिए तो शायद हमारी उनसे ठनी है

हम तो साहब जो जी में आएगा करेंगे

स्वास्थ्यकर्मी जीये तो ठीक वरना मरेंगे

फिर भी रात दिन हमारे लिए लड़ेंगे

हम शान से लगाएंगे उसमे भी अड़ंगे

हमे पता है सब ठीक हो ही जाएगा

कहीं न कहीं से जादू चल ही जाएगा

या तो मोदी की बढ़ती दाढ़ी से

या प्रियंका की नाक पे बैठी दादी से

केजरी की सौ करोड़ी विज्ञापनी बातों से

या मोटा भाई की शतरंजी करामातों से

या तो पप्पू की पप्पू गिरी से

या शशि थरूर की डिक्शनरी से

मगर हम -

हम आखिर खुद कैसे सुधर जाएँ

बाप का राज है, क्यूँ बैठ घर जाएँ

देश में पहले ही बहुत शोर है

कहीं विपक्ष गद्दार, कहीं चौकीदार चोर है

बहती गंगा में हम भी हाथ धो लेते हैं

इस शोर में अपनी आवाज भी जोड़ लेते हैं

क्यूँकि

बोल के लब आजाद हैं तेरे

बोल जुबान अब तक तेरी है

जिम्मेदारी कौन बला है

बस चिल्लाना आदत मेरी है

हर तरफ सिर्फ सवाल ही सवाल हैं

अब तो जवाब में भी निकल रहे सवाल हैं

मगर हमसे न करो कोई सवाल प्यारों

जवाब देने से हम किनारा कर लेते हैं

सवालों की लिस्ट तो बहुत लंबी है यारों

क्यूँ न अपनी जवाबदेही भी तय कर लेते हैं

इसलिए, चलो, कुछ सवाल कर लेते हैं

चलो, आज कुछ और सवाल कर लेते हैं


(Written by: Arisudan Yadav, 2021)


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कविता की पृष्ठभूमि

हम सब को सवाल करने का तो खूब शौक है, लेकिन हम जवाब देने से क्यूँ इतना कतरा जाते हैं?

कोरोना काल में ऐसे लगा के हर किसी के बीच बस एक होड़ सी लगी है कि कौन ज्यादा सवाल करे? टीवी चैनल वाले सवाल ज्यादा करें, Twitter वाले करें या पॉडकास्ट वाले लोग करें - बस हर कोई सवाल ही सवाल किये जा रहा है!

लेकिन इन्हीं में से बहुत लोग घर से बाहर बिना मास्क के निकल रहे हैं, सड़कों पर बिना हेलमेट के निकल रहे हैं - सड़कों पर कचरा फेंक रहे हैं - लेकिन सवाल करना है सरकार से।

तो बस कटाक्ष के रूप में ये एक मुक्त-छंद कविता बन गई - जो खुद एक सवाल है। इस कविता से अगर किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो ये कवि के लिए क्षोभ का विषय नहीं, अपितु एक उपलब्धि है!

All of us want to question the leaders, politicians, governments, which is fine in a healthy democracy, but are we trying to provide any answers at all?

When will we start looking at our own responsibility and take accountability for our actions?

Haven’t we played an active part in bringing about the deadly second wave of COVID-19 (Corona pandemic) in India?

There are too many questions because it’s easy to ask questions but very difficult to provide answers. This is a poem inspired by peoples’ rat-race to ask questions but not really doing their part in dealing with the situation.

If this hurts the sentiments of some people – the poet is not apologetic at all.


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